Sanjaya Kumar Singh : नलिनी सिंह दूरदर्शन की संभवतः सबसे पुरानी एंकर हैं। 1985 में सच की परछाईं प्रस्तुत करते हुए कैसे कपड़े पहनती थीं ये तो याद नहीं है पर कल स्कर्ट टी शर्ट में थीं। आंखिन देखी भी दूरदर्शन के पुराने कार्यक्रमों में है और कल बहुत दिनों बाद दिख गया। इस कार्यक्रम में मेरी दिलचस्पी कभी रही नहीं और कल तो लगा कि आंखिन देखी असल में अपराध की खबरों की बहुत ही घटिया प्रस्तुति है और टीवी एंकर या रिपोर्टर की आंखिन देखी नहीं, हिन्दी पट्टी के पुलिसियों की आंखिन देखी है – जिसका विवरण बहुत ही फूहड़ ढंग से प्रस्तुत कर दिया जाता है।
कार्यक्रम कैसा है इसकी चर्चा न भी करूं तो यह कहना ही पड़ेगा कि नलिनी सिंह ने कोई तरक्की नहीं की है। अगर दूरदर्शन पर बने रहने के लिए ऐसे फटीचर कार्यक्रम बनाते रहना कोई मजबूरी हो तो भी नलिनी सिंह इसे क्यों एंकर कर रही हैं, समझ में नहीं आया। वह भी धर दबोचा, आत्मबल से लबालब जैसे शब्दों के साथ अपने उसी पुराने अंदाज में। लगा ही नहीं कि 2014 खत्म होने को आ गया है। उसपर से तुर्रा यह कि रैपिडेक्स इंग्लीश स्पीकिंग कोर्स, एमडीएच मसाले, मुग्ली घुट्टी 555 और कायम चूर्ण के विज्ञापनों के साथ। धन्य है हमारा दूरदर्शन और जो इस कार्यक्रम को देख रहे हैं (तभी तो चल रहा है) वो भी। इतना पुराना कार्यक्रम है और तस्वीर ढूंढ़ने के लिए गूगल में आंखिन देखी डाला तो एक तस्वीर नहीं मिली। और शुरू के पन्ने पर इससे जुड़ी कोई खबर भी नहीं। नलिनी सिंह सर्च करने पर यह (उपर प्रकाशित) तस्वीर मिली। यह एक खबर के साथ है जिसके मुताबिक तलवार दंपत्ति (राजेश और नुपुर तलवार – आरुषि हत्याकांड) ने नलिनी सिंह को गवाह बनाने की मांग की थी। यानी नलिनी सिंह और आंखिन देखी गूगल पर जीरो।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.
Comments on “नलिनी सिंह कल स्कर्ट टी शर्ट में दिखीं”
bil kool thick kaha aapne sanjayji
itna purane ankar ke lia ish tarah ki bat acha nahi lagta.
Aap Bhi Na… Kamal Ke ? Hain ! Woh “Aankhin Dekhi” Hai Hi Nahi… “Aankhon Dekhi” Hai !
कौन क्या कपड़े पहनता है इससे आपको क्या फर्क पड़ता है भाई? वो पत्रकार हैं और कोई वर्दी तो बनायी नहीं गयी है पत्रकारों के लिये?
आपकी ये पोस्ट शुरु से अंत तक पूर्वाग्रह और भ्रामक तथ्यों से भरी हुई है. नलिनी सिंह खबरों औरप्रस्तुतिकरण के बारे में तो कभी बदनाम नहीं रहीं और एक महिला होते हुए उन्होंने तब चुनौती भरी खोजपूर्ण टीवी पत्रकारिता में कदम रखा जब पुरुष भी इसमें उतरने से घबराते थे.
वो अपने संस्थान के कर्मियों को कम पैसे देने और कभी कभी पैसे मार लेने के लिये जरूर बदनाम रही हैं. ऐसा लगता है संजय जी आप या आपके किसी करीबी का पैसा फंस गया है तभी इतनी मिर्ची लगी है.
patkaro ko apni maryada nhi bhulni chya
संजय जी
आपकी द्वारा कही बातों मे विरोध झलक रहा हैं।किसी भी अपने से
वरिष्ठ पत्रकार के लिए ऐसी बात शोभा नहीं देती।जब आप बच्चे थे।तब इन्ही से अपने कुछ न कुछ सीखा होगा।आज भी लोग उनकी एंकरिंग से प्रेरणा लेते हैं जैसे रेडियो पर अमिन सयानी जी………..।