अखबार मालिक एक साल में नहीं सुधरे तो मीडियाकर्मियों के लिए फिर सुप्रीम कोर्ट जाने का मार्ग खुलेगा… जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में 19 जून 2017 को दिए गए फैसले को अगर गंभीरता से पढ़ें तो माननीय सुप्रीमकोर्ट ने अखबार मालिकों को बचाया नहीं है बल्कि उन खांचों को बंद कर दिया है जिनसे निकलकर वे बच निकलते थे। अब अखबार मालिकों ने एक साल के अंदर जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागू नहीं किया तो मीडियाकर्मी फिर उनके खिलाफ अवमानना का सुप्रीमकोर्ट में केस लगा सकते हैं।
मजीठिया वेज बोर्ड में सरकारी महकमे द्वारा कुछ कमियां छोड़ दी गईं थी जिसमे सबसे बड़ा पेंच था क्लासिफिकेशन का। अखबार मालिक अलग-अलग यूनिट का सीए से बैलेंसशीट बनवा कर लेबर विभाग में जमा कर साफ़ कहते थे कि साहब ये यूनिट तो पांचवे ग्रेड में आती है और एड रेवेन्यू कम होने से हम दो ग्रेड नीचे गए हैं। सुप्रीमकोर्ट ने अलग-अलग यूनिट को अलग-अलग मानने से इंकार कर दिया। यानी अब तक जो अखबार मालिक अलग-अलग यूनिट की अलग-अलग बैलेंसशीट दिखाते थे, अब उनको क्लब करना पड़ेगा। इससे कर्मचारी को बहुत फायदा होगा।
दूसरा इश्यू था 20जे का। अखबार मालिकों ने कर्मचारियों से जबरी 20जे के फार्मेट पर साइन करा लिया था जिस पर माननीय सुप्रीमकोर्ट ने साफ़ कह दिया कि मिनिमम वेतन से कम पर किया गया समझौता मान्य नहीं होगा। यानि एक तरीके से सुप्रीमकोर्ट ने 20जे को खारिज कर दिया। अखबार मालिक कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ मांगने पर उनका ट्रांसफर और टर्मिनेशन करते थे। सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले में भी साफ़ तौर पर लेबर कोर्ट को निर्णय लेने का अधिकार दे दिया है। इसके पहले कई राज्यों में ट्रांसफर टर्मिनेशन पर स्टे देने के अधिकार को लेकर स्पष्टता नहीं थी। सिर्फ महाराष्ट्र के लेबर कोर्ट को ये अधिकार था।
अखबार मालिक इस मामले में भी बुरी तरह फंस गए कि उन्हें ठेका कर्मचारियों को भी मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ देना पड़ेगा। इसके लिए बाकायदे अखबार प्रबंधन को ठेका कर्मचारियों की सूची भी कामगार विभाग को देना पड़ेगा। साथ ही उनके बैंक खाते में जमा किये गए राशि का डिटेल भी देना पड़ेगा। अब तक अखबार मालिक स्थाई कर्मचारियों को सीटीसी या ठेका पर वेतन बढ़ाने का प्रलोभन देकर ले आते थे। इस प्रथा पर रोक लगेगी। साथ ही ठेका कर्मचारी अब जल्दी निकाले नहीं जाएंगे क्योंकि मालिक उनको निकालेंगे तो निश्चित ही वे भी अपने बकाये राशि की मांग करेंगे।
इस फैसले में उन अखबार मालिकों की भी सांस टंग गयी है जिन्होंने ये लिखकर कामगार आयुक्त को दिया था कि फाइनेंसियल रीजन से वे जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ नहीं दे पा रहे हैं। अब उन अखबार मालिकों को भी अपने कर्मचारियों को लाखों रुपये का बकाया देना पड़ेगा। आर्डर के तथ्यों को विश्लेषकों की नजर से देंखे सुप्रीमकोर्ट ने मजीठिया वेज बोर्ड लागू किए जाने में आ रही कमियों कमियों की व्याख्या कर दी है। कुछ जानकार साफ़ कहते हैं कि कोई भी अदालत किसी को अपना अधिकार मांगने से नहीं रोक सकती। जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में तो अखबार मालिकों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने वो सारे दरवाजे बंद कर दिए जिससे वे बच निकलते थे।