बोले- ‘नोटा’ का विरोध करने वाले किसी पार्टी विशेष की IT सेल के पालतू शिकारी हैं… ये दिनभर यही काम करते हैं, सावधान रहें इनसे!
Surya Pratap Singh : ग़ुलाम न बनों, अपनी शक्ति का एहसास कराओ…. NOTA का सोटा चलाओ… सावधान! झूठ बोलने/धोखा देने वालों ने अपने आईटी सेल के Paid Workers (शिकारी-कुत्तों) के माध्यम से सोशल मीडिया पर NOTA का विरोध किया जा रहा है….. NOTA के सोशल मीडिया पर विरोध के लिए करोड़ों रुपए ख़र्च किए जा रहे हैं। कोई भी राजनीतिक दल किसी बड़े ‘जन-वर्ग’ को अपना ‘ग़ुलाम’ वोट बैंक समझकर जूते की नौंक पर नहीं रख सकता ….
ये IT Cell के लोगों आमजन की भावनाओं के दुर्दाँत शिकारी हैं, इनसे सावधान रहिए…. ये पराजय के भय से भ्रमित करने के लिए NOTA समर्थकों को किसी पार्टी विशेष की दूसरी टीम तक बता रहे हैं। NOTA समर्थक लोग एक सत्याग्रहियों का तेज़ी से विशाल हो रहा विवेकशील समूह हैं … उन्हें किसी पार्टी को लाभ या हानि की परवाह नहीं हैं ….. भावनाओं को आहत करने वालों को सबक़ सिखाना व अपने अधतित्व का अहसास कराना ही इनका एक मात्र उद्देश्य है।
धोखेबाज़ों से सावधान ….. NOTA का समर्थन अब एक जनंदोलन बन चुका है जिसमें अगड़े व पिछड़े सभी सम्मिलित हैं, इसे रोकना अब असंभव है।
रोज़गार पर झूँट… महँगाई पर झूँट… अर्थव्यवस्था पर झूँट….खुलकर लूट …. और ऊपर से वोट की ख़ातिर अपने ही समर्थकों को बिना जाँच के जेल की सज़ा का तोहफ़ा….अपने आत्मसम्मान के रक्षार्थ इस बार सिर्फ़ NOTA का सोटा …… हर पोलिंग बूथ पर नोटा का बैनर लगा कर अपने आत्मसम्मान का प्रदर्शन करें…. देश को झूँठे व स्वार्थी ‘वोटों-के-लुटेरों’ से बचाएँ। “अबकी बारी-नोटा भारी”… जय हिंद-जय भारत !! ध्यान रखें… ‘नोटा’ का विरोध करने वाले किसी पार्टी विशेष की IT सेल के पालतू शिकारी हैं… ये दिनभर यही काम करते हैं, सावधान!
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क्या इस बार के चुनाव में ‘NOTA-सत्याग्रह’ एक कारगर लोकतांत्रिक हथियार बनेगा? आगामी २०१९ चुनाव में NOTA बनेगा एक विरोध / सत्याग्रह का कारगर हथियार …. ऐसा कुछ pollsters मानते हैं और कुछ हद तक मैं भी सहमत हूँ। एक बड़ा वर्ग सत्ता पक्ष के कुछ हालिया निर्णयों से आहत है लेकिन वह सत्ता पक्ष के अलावा किसी और दल को वोट भी नहीं देना चाहता …. NOTA पर मोहर लगा कर वह अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर करना चाहता है। यह वर्ग हृदय से आहत है, इसकी अपेक्षाएँ धूलधूसरित हुई हैं।
NOTA का मतलब है कि कोई भी प्रत्याशी पसंद नहीं….. यह एक विकल्प चुनाव आयोग ने हर वोटर को दिया है, लेकिन कभी सोचा भी नहीं होगा कि यह एक लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शित करने का कारगर टूल बनके उभरेगा।
संविधान में जातिधारित आरक्षण की व्यवस्था है, लेकिन ग़रीब तो सभी जातियों में हैं यह बात वोट-लोभी नेताओं को समझ तो आती है परंतु करेंगे कुछ नहीं। हाँ, किसी वर्ग द्वारा किसी वर्ग/व्यक्ति को जाति के आधार पर शोषण करने का हक़ नहीं लेकिन बिना जाँच के किसी भी अपराध में सीधे गिरफ़्तार कर जेल कैसे भेजा जा सकता है…. यह तो संविधान में प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के विपरीत है।
बेरोज़गारी की समस्या ज्यों की त्यों मुँहवाहे खड़ी है … किसान, मज़दूर, व्यवसायी सभी का कचुमर निकला है … महँगाई ने दम निकला हुआ है … गैस / पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे हैं…. डॉलर के मुक़ाबले रुपया औंधे मुँह गिरा है। दूसरी और दलित, सवर्ण, हिंदू, मुसलमान, गाय, गोबर, बूचड़खाने….. और अब अस्थिकलश का इवेंट मैनज्मेंट की बातें हो रही हैं….. SC/ST ऐक्ट के वर्तमान संशोधन ने एक वर्ग की छोड़ सभी अन्य जातियों-सवर्णों, पिछड़ों में भय का वातावरण पैदा किया है। डर या फिर प्रलोभनवश मीडिया निष्पक्ष नहीं रहा…. बिक चुका है।
ऐसी परिस्थितियों में समाज का बड़ा वर्ग आज NOTA-सत्याग्रह के लिए विवश हो रहा है …. यह लोकतंत्र में एक बड़े संदेश की और ध्यान आकर्षण भी कर रहा है कि पैसे व बाहुबल के आधार पर वोट माँगने वाले अनपढ़, जातिवादी नेताओं को वोट न देकर सबक़ सिखाने का NOTA एक अच्छा हथियार हो सकता है।
…… आज सत्तापक्ष से नाराज़गी और किसी प्रभावी विकल्प के अभाव में विरोध प्रदर्शन के लिए यदि वोटर का एक बड़ा वर्ग आगामी चुनाव में NOTA को एक सत्याग्रह के कारगर हथियार के रूप में प्रयोग करे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए …. यह विकल्प उसे संविधान में प्रदत्त अधिकार के रूप में चुनाव आयोग ने ही तो उपलब्ध कराया है…. तो क्यों न प्रयोग कर लोकतंत्र के गिरते स्तर के प्रति अपना विरोध प्रदर्शित करें। क्या कहते है, आप?
देश में गिरते लोकतंत्र के स्तर पर करारी चोट करें- राजनीति को ‘व्यवसाय’ समझने वाले भ्रष्ट को सबक़ सिखाएँ: ‘NOTA मेरा लोकतांत्रिक अधिकार’ है – आओ इस अभियान में सम्मिलित हों !!
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NOTA एक सक्रिय प्रतिरोध (Active Resistance) है, जबकि ‘चुनाव-बहिष्कार’ एक निष्क्रिय विरोध (Passive Opposition) मात्र है….. चुनाव बहिष्कार में कोई कर्म नहीं है, पलायन है ….. जबकि NOTA में एक कर्म है, NOTA के प्रयोग में एक Aggressiveness है, एक Force है…NOTA विरोध का सक्रिय स्वर-प्रदर्शन है, NOTA संविधान में प्रदत्त एक प्रभावी अधिकार है…. एक लोकतांत्रिक हथियार (Democratic Belligerence) है। जैसे गांधी ने ‘गोरे’ अंग्रेज़ो भारत छोड़ो (Quit India) आंदोलन चलाया था …. उसी तरह NOTA आज के ‘काले’ अंग्रेज़ो से निजात पाने का प्रभावी हथियार हो सकता है। ‘NOTA-सत्याग्रह’ एक भ्रष्ट, फ़रेबी नेताओं ‘राजनीति छोड़ो’ का आंदोलन है …. जो आज देश के युवाओं व जनमानस को समझना चाहिए।
NOTA से सारे विश्व में देश में सत्ताधारियों द्वारा किए जा रहे जनमानस की भावनाओं से खिलवाड़ के विरुद्ध संदेश जाएगा कि आज जहाँ सारी दुनिया आर्थिक विकास के लिए संघर्ष कर रही है वहीं हमारे देश में आज भी लोकतंत्र का वह चेहरा सामने है जिसमें जाति व धर्म वोट पाने व देने का बड़ा आधार है …. लोगों को अनपढ़/गँवार समझकर जाति-धर्म के नाम पर भावनाओं को भड़का कर वोट पाना आज भी उतना ही प्रचलित है जितना १९५७ में था, बल्कि जाति-धर्म के नाम पर तोड़ने का खेल हालिया वर्षों में कुछ ज़्यादा ही बढ़ा है। आज के खाँटी राजनीतिक दल बाज़ आने को तैयार ही नहीं हैं …. सत्ताधीशों ने कालेधन को ख़त्म करने के लिए आमजन को चाहे ख़ूब तंग किया हो लेकिन आज भी अम्बानी-अड़ानी जैसों से कालेधन की चंदाखोरी न केवल बरक़रार है बल्कि और भी बढ़ी है।
बिना धनबल व बाहुबल व किसी राजनीतिक बैनर के तले ईमानदार लोगों का आज चुनाव लड़ना असम्भव है …. ये कैसा लोकतंत्र है। आज तमाम अच्छे लोगों द्वारा कई नए राजनीतिक दल बनाने का प्रयास किया है लेकिन कैसे टक्कर ले पाएँगे इन सत्ता की दलाल पार्टियों से जिनका हर कृत्य केवल चुनाव जीतने के किए होता है …. चाहे आरक्षण, SC/ST ऐक्ट में संशोधन जैसे मुद्दों से लोगों के मनोभाव से खिलवाड़ ही क्यों न करना पड़े… आर्थिक विकास का नाम केवल ‘मार्केटिंग स्टंट’ ही बनकर रह जाता है।
आज महँगाई, बेरोज़गारी से ध्यान बटाने के लिए … नए-२ स्टंट्स का दौर चल रहा है ….बिके मीडिया में बहसों का गिरता स्तर देखो … चौथा स्तम्भ बेशर्मी के दौर में है। युवा भटकाव में है …. सेना, वाहिनी का दमगा पाकर रोज़गार न मिल पाने की खुन्नस में भ्रष्ट स्वार्थ नेताओं/पार्टियों के बहकाने में आकर आज का युवा ‘मॉब-लिंचिंग’ तक की अगुवाई कर रहे हैं। नोटबंदी के बाद से लिक्विडिटी के अभाव में छोटे व्यवसाय समाप्ति के कगार पर हैं…
रियल इस्टेट व्यवसाय से ग्राहक का विश्वास उठ गया है, जिसे एक छत की आवयकता भी है वह भी unfounded शंकाओं से कारण घर नहीं ले रहा है, उसे लगता है कि कहीं धोखा न खा जाए। सांसद/विधायक/लोकतंत्र के प्रतिनिधि खनन, शराब, ठेकेदारी जैसे धंधों को अपना अधिकार समझते हैं….. छोटे, ग़रीब तबके-किसान/मज़दूर की कमर टूटी है … भ्रष्टाचार आज भी चरम पर है। पार्टियों में सामान्य कार्यकर्ता ठगा सा है, दलाल चमचे मौज में हैं।
ऐसे लोकतंत्र में जनमानस के पास क्या विकल्प है ? या तो इन भ्रष्ट राजनीतिक दलों/नेताओं की चाकरी करें और जैसे कहें वोट करता जाए या फिर अब समय आ गया है कि इस धनबल-बाहुबल जाति-धर्म की राजनीति का विरोध अपने तरीक़े से करे …. वह इन भ्रष्ट नेताओं से सीधी टक्कर तो ले नहीं सकता …
ऐसे में लोकतंत्र को बचाने के लिए या तो चुनाव का बहिष्कार करे या फिर Quit-India मूव्मेंट की भाँति NOTA का बटन दवा कर यह संदेश दे कि जितनी खाँटी की राजनीतिक पार्टियाँ हैं, भ्रष्ट नेता हैं उनपर व ETM को हैक होने वाले चुनाव पर अब उनका विश्वास नहीं है। सारी दुनिया का ध्यान देश के पराजित लोकतंत्र की ओर आकर्षित किया जाए और साथ ही आरक्षण व SC/ST अधिनियम के दुरुपयोग के विरुद्ध अपना सक्रिय प्रतिरोध भी दर्ज कराया जाये….. ताकि लोगों को लड़ाने/जाति-धर्म के आधार पर बाँटने वाले अहंकारी सत्ताधिशों को सत्ता से बाहर किया जा सके।
यदि NOTA जैसे संवेधानिक अधिकार का प्रयोग असफल होता है जैसा कि आज़ादी की लड़ाई/गांधी के समय में Quit India मूव्मेंट के दौरान हुआ था तो फिर बेरोज़गार युवाओं को सिर पर कफ़न बाँध कर अनेकानेक सुभाषचंद्र बोस बनने के सिवाय कोई विकल्प न रहेगा …. ‘तुम मुझे ख़ून दो-मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा’ जैसे नारों का सहारा लेकर सड़कों पर निकलना होगा।
मेरा आग्रह है कि अभी हाल के लिए ‘NOTA-सत्याग्रह’ में सम्मिलित होकर भ्रष्ट अहंकारी नेताओं की नींद ख़राब की जाए ….. उन्हें सत्ता से बाहर किया जाए ताकि जो भी दल आगे सत्ता में आते उसे NOTA के सोटा की मार याद आती रहे। अभी बार हर पोलिंग-बूथ पर नोटा (NOTA) का बैनर लगे …. अपने-२ जनपदों में हर बूथ की टोलियाँ बनाएँ जैसा कि राजनीतिक पार्टियाँ बनाती हैं। ‘नोटा-सत्याग्रह’ के वॉलंटीर्स बनकर हर जनपद/तहसील/ब्लाक/गाँव में संगठन खड़ा करने को तैयार हो जाएँ।
कार्यक्रम करें। आगामी चुनाव में हर चुनावी क्षेत्र से एक-२ प्रत्याशी NOTA के नाम से चुनाव भी लड़ सकते हैं….. बहिष्कार नहीं NOTA का बटन दबाएँ जैसे स्लोगन के साथ चुनाव लड़ा जा सकता है। आओ ‘नोटा-सत्याग्रह’ में सम्मिलित हो, लोकतंत्र को सत्ता का दुरुपयोग करने वाले गिद्दों से बचाएँ। भावनाओं से खिलवाड़ करने वाले नेताओं/राजनीतिक दलों को सबक़ सिखाने व अपने अस्तित्व की पहचान दर्शाने के किए इस बार केवल NOTA …..का बटन दबेगा। क्या आप ‘नोटा-सत्याग्रही’ बनने को तैयार हैं ? आज का नेता सबसे खोटा- इसे लगे ‘नोटा’ का सोटा ! NOTA बनेगा आपके अश्तित्व व मौजूदगी की पहचान …. अब कोई विकल्पहीनता का ठेंगा दिखाकर आपके वोट की ‘लिंचिंग’ नहीं कर सकता !!!
यूपी कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और भाजपा नेता सूर्य प्रताप सिंह की एफबी वॉल से.
https://www.youtube.com/watch?v=UmK1ihBhbN0