मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस विजया के ताहिलरमानी के ट्रांसफर और उनके इस्तीफे से सवाल उठ रहा है कि क्या न्यायपालिका ने चीन्ह चीन्ह के न्याय देना शुरू किया है? क्या न्यायपालिका सरकार के लिए मनमर्जियां करने में अपना कंधा लगा रही है? क्या न्यायपालिका संविधान और कानून के शासन को स्थगित करके राष्ट्रवादी मोड में आ गयी है? क्या बांबे हाईकोर्ट की कार्यकारी चीफ जस्टिस रहते गुजरात के संबंध में आया एक फैसला जस्टिस ताहिलरमानी के लिए इस ट्रांसफर का कारण बन गया है?
गुजरात दंगों के दौरान हुए बिलकिस बानो के साथ हिंसा और रेप की घटना में बांबे हाईकोर्ट ने 2017 में सुनायी गयी सजा में पुराने फैसले को बरकरार रखा और सभी आरोपियों को आजीवन कारावास समेत अलग-अलग सजाएं दी। क्या यह जस्टिस ताहिलरमानी ने अन्याय किया था?
मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस विजया के ताहिलरमानी ने उच्चतम न्यायालय कलिजियम के उस फैसले पर नाराजगी जताई है, जिसमें उनका ऐतिहासिक मद्रास हाई कोर्ट से मेघालय हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया। इस फैसले के विरोध में चीफ जस्टिस ताहिलरमानी ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेज दिया है। उन्होंने अपने इस्तीफे की एक कॉपी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई भी भेजी है।
जस्टिस ताहिलरमानी को 26 जून 2001 को महज 43 साल की उम्र में बॉम्बे हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। 12 अगस्त 2008 को उन्हें मद्रास हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया। देश की 25 हाई कोर्ट में जस्टिस ताहिलरमानी और जस्टिस गीता मित्तल अकेली महिला चीफ जस्टिस हैं। जस्टिस ताहिलरमानी को 2 अक्टूबर 2020 को रिटायर होना था।
गौरतलब है कि 28 अगस्त को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली कलिजियम, जिसमें जस्टिस एसए बोबड़े, एनवी रमना, अरुण मिश्रा और आरएफ नरीमन भी शामिल थे, ने मेघालय हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ऐके मित्तल का मद्रास हाईकोर्ट ट्रांसफर किया था। इसके साथ ही जस्टिस ताहिलरमानी का तबादला मेघायल हाईकोर्ट कर दिया गया था।मेघालय हाईकोर्ट में चार जज शामिल हैं, जबकि मद्रास हाई कोर्ट में 75 जज हैं। अपने इस्तीफे में जस्टिस ताहिलरमानी राष्ट्रपति से उन्हें तत्काल कार्यमुक्त करने का निवेदन किया है। राष्ट्रपति ने उनके इस्तीफे को आगे की कार्रवाई के लिए सरकार को बढ़ा दिया है।
ताहिलरमानी का यह तबादला 28 अगस्त को हुआ था और उसी दिन कोलेजियम ने मेघालय हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एके मित्तल का ट्रांसफर भी मद्रास हाईकोर्ट के लिए कर दिया था। उस दिन कोलेजियम की बैठक में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस रोहिंगटन एफ नरीमन शामिल थे। जस्टिस ताहिलरमानी ने 2 सितंबर को कोलेजियम से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निवेदन किया था,लेकिन 3 सितंबर को हुई बैठक में कोलेजियम ने अपना फैसला बदलने से इंकार कर दिया।मद्रास हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले जस्टिस ताहिलरमानी तीन बार बांबे हाईकोर्ट की कार्यकारी चीफ जस्टिस रह चुकी थीं। बांबे हाईकोर्ट में उनकी 2001 में नियुक्ति हुई थी। उससे पहले वह महाराष्ट्र सरकार की वकील थीं।
दरअसल यह पहला इस्तीफा है जो कोलेजियम के साथ अपने मतभेदों के चलते हुआ है। इसके पहले भी जजों के इस्तीफे होते रहे हैं लेकिन यह अपने किस्म का अकेला फैसला है। हाईकोर्ट के लगभग सभी जजों ने एकमत होकर चीफ जस्टिस ताहिलरमानी से अपने इस्तीफे के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया।लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया है।
इस बीच, मद्रास उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों के एक वर्ग ने उच्चतम न्यायालय न्यायालय को एक प्रतिवेदन दिया है , जिसमें कहा गया था कि इस प्रकार के मनमाने तरीके न्यायाधीशों के तबादले से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायाधीशों के विश्वास को चोट पहुंचती है प्रतिवेदन पर हस्ताक्षर करनेवालों में एनजीआर प्रसाद, जी मसिलामणि, आर वैगई और 100 अन्य वकील शामिल हैं।
वकीलों ने कहा है कि जस्टिस ताहिलरमानी पूरे देश में वरिष्ठता के क्रम में सबसे वरिष्ठ हाई कोर्ट जज हैं.वह मद्रास हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस से पहले दो बार बॉम्बे हाई कोर्ट में कार्यवाहक चीफ जस्टिस रह चुकी हैं. लेकिन चीफ जस्टिस ताहिलरमानी को मद्रास हाई कोर्ट से देश के छोटे से हाई कोर्ट में ट्रांसफर किया जाना, न सिर्फ अनुचित है, बल्कि अपमानजनक भी है। प्रतिवेदन में कहा गया है कि इसे प्रशासनिक हितों के सिद्धांत पर सही नहीं ठहराया जा सकता है। यह विडंबना है कि उसकी वरिष्ठता का एक व्यक्ति सबसे छोटे उच्च न्यायालय को सौंपा जा रहा है। न्यायाधीशों के स्थानांतरण के मामले में कोई मानक नहीं हैं।
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश वी खालिद के शब्दों को याद करते हुए कि स्थानांतरण बर्खास्तगी से अधिक खतरनाक हथियार हो सकता है, वकीलों ने कहा कि यह चिंता का विषय है कि न्यायपालिका प्रशासन के मामलों में कोई जांच और संतुलन नहीं है। कॉलेजियम के कामकाज की शैली इस धारणा को बल देती है कि उच्च न्यायालय उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम के अधीन है। यह उच्च न्यायालयों की गरिमा को प्रभावित करता है और संवैधानिक योजना में उनकी प्रमुखता को पलीता लगा देता है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम से स्थानांतरण पर पुनर्विचार करने और यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि बार और बेंच और वादकारियों का विश्वास का और अधिक क्षरण न हो।
वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.