Sneh Madhur : मीडिया चीख-चीखकर कह रहा है कि उत्तर प्रदेश में मंगलवार को बलराम यादव को मंत्री पद से इसलिए हटा दिया गया क्योंकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पसंद नहीं था कि माफिया छवि वाले नेता मुख्तार अंसारी का परिवार समाजवादी पार्टी में शामिल हों. अखिलेश यादव की कोशिश है कि उनकी खुद की छवि यादव परिवार के अन्य सदस्यों से अलग नज़र आये. कहा जा रहा है कि बलराम यादव ने मुख्तार एंड फॅमिली को सपा में शामिल कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी इसलिए उनको जप लिया गया.
अरे भाई, बलराम यादव ने तो सिर्फ मेहनत की थी और वह भी मुलायम सिंह जी के निर्देश पर की होगी? आदरणीय शिवपाल जी ने तो उन्हें बाकायदा पार्टी में शामिल किया. शिव पाल जी ने बिना मुलायम सिंह जी की अनुमति के ऐसा किया नहीं होगा? इस तरह से सेक्शन १२० के तहत तो मुलायम सिंह जी भी दोषी हुए? चलो, मुलायम सिंह जी तो मंत्री हैं नहीं, उन्हें अखिलेश निकाल नहीं सकते. लेकिन शिवपाल तो मंत्री हैं, उन्हें भी तो बलराम यादव की तरह मंत्रीपद से बर्खास्त किया जा सकता है?
करेंगे स्वच्छ छवि वाले युवा मुख्यमंत्रीजी? सुना है कि बलराम यादव की जगह उनके पुत्र संग्राम यादव को मंत्रीपद से नवाजा जाएगा. यह अच्छी बात है. भला पिता के गलत काम की सज़ा बेटे को क्यों दी जाए? फिर मंत्री पद तो घर में ही रहेगा-चाहे बेटा रहे मंत्री या पिता..! और फिर इससे युवाओं को मंत्रिमंडल में तरजीह देने का सन्देश भी जाएगा–एक तीर से दो शिकार..! अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर यादव एंड फॅमिली द्वारा प्रस्तुत किये गए इस योग का क्या नामकरण किया जाना चाहिए..युवाओं को प्रेरणा देने के लिए.. …सोचिये…जहाँ सोच, वहीं शौचालय….!
यूपी में कई अखबारों में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके पत्रकार स्नेह मधुर के एफबी वॉल से.
Kumar Sauvir : यूपी में चुनाव की बिगुल बजने ही वाला है। हर दल अपने-अपने तरकश से तीर और तेजे तेज करने में जुटे हैं। लेकिन सरकार ने इस चुनाव पर अपनी पेशबंदी के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोल दिया है। तरीका है मीडिया को साधना। इसका बहुआयामी लाभ मिलने की उम्मीद में है समाजवादी पार्टी की सरकार। एक तो नकारात्मक खबरों की नकेल तरीके से ज्यादा कसी जा सकती है, साथ ही इस अभियान के तहत सरकार की उपलब्धियों को अधिक से अधिक पेश किया जा सकता है। इसके लिए खबरों की शैली में सरकारी प्रचार के नये-नये तरीके खोज कर बाकायदा बुलेटिन तैयार किये जा चुके हैं।
चैनलों से साफ कह दिया गया है कि वे ऐसे बुलेटिन खबरों के तौर पर पेश करें। उप्र सूचना विभाग के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया है कि प्रचार की इस नयी सरकारी शैली में सबसे फायदा मिला है ईटीवी को। सरकार से ईटीवी ने 15 करोड़ का पैकेज हासिल कर लिया है। ईटीवी ने पिछले साल भी 15 करोड़ ले लिया था। विगत बरस सरकार ने इण्डिया न्यूज को 10 करोड़, न्यूज नेशन और जी-समूह को पांच-पांच करोड़ रूपया थमाया था। बाकी अन्य चैनलों को तीन से पांच करोड़ तक सौंपे गये थे। एक चैनल के एक सूत्र का कहना है कि इस बरस ईटीवी और इण्डिया न्यूज को 15-15 करोड़ रूपये दिये जाने का फैसला हुआ है। न्यूज नेशन ने पांच करोड़ रूपया झटक लिया है। जबकि आजतक, आईबीएन-7, इण्डिया टीवी, एबीपी को तीन से पांच करोड़ रूपया दिया जाना है। इण्डिया वायस को तीन करोड़ मिलना है।
बताते हैं कि इण्डिया वायस रामगोपाल यादव का ही उपक्रम है। उधर जी-समूह को 10 करोड़ रूपयों का फैसला हुआ था। इसमें से तीन करोड़ रूपयों का रिलीज ऑर्डर उप्र सूचना विभाग द्वारा जारी भी कर दिया गया था। लेकिन कैराना को कश्मीर बताने वाले चैनलों का मुंह काला हो, के प्रकरण को जी-नेशनल ने जिस तरह प्ले किया, उससे उप्र सरकार और मुख्यमंत्री खासे नाराज हो गये थे। नतीजा यह हुआ कि इस खबर चलने के तत्काल बाद सूचना विभाग ने 3 करोड़ रूपयों का यह आरओ निरस्त कर दिया।
बहरहाल, सरकार की इस विज्ञापन नीति के बारे में सूत्रों का कहना है कि इस पैकेज में एक विशेष बुलेटिन का प्रसारण किया जाना अनिवार्य होगा। इसमें हर चैनल अपने स्तर से बुलेटिन तैयार कर रहा है। हालांकि इस बुलेटिन का मसौदा और उसका प्रोमो सूचना विभाग द्वारा ही अनौपचारिक तौर पर मंजूर किया जा रहा है। इस बुलेटिन में मुख्यमंत्री और उप्र सरकार की उपलब्धियों पर केंद्रित मैटर होगा। लेकिन इसे विज्ञापन के तौर पर पेश नहीं किया जाएगा। यह बुलेटिन हर चैनल अपने-अपने स्तर पर खबर के तौर पर पेश करेंगे। यह भी शर्त रखी गयी है कि इस चैनल को रोजाना कम से कम तीन बार यह बुलेटिन दिखानी ही पड़ेगी। सूत्र बताते हैं कि ईटीवी ने ऐसी बुलेटिन तीन बार प्रसारित कर दिया है।
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर के एफबी वॉल से.