विनय मौर्या-
पैसे कमाने की अंधाधुंध ललक ने इंसानों को धूर्त,फरेबी,मक्कार बेईमान बना डाला है। जबकि उनके हिस्से में वह कमाई भी खर्च नही हो पाती जिसे वो ठगी-बेईमानी से कमाता है।
यह है संजय सिंगला इसने लखनऊ बाराबंकी में प्लाट-फ्लैट के नाम से कई लोगों से करोड़ो रूपये ठग लिया। पुलिस-प्रशासन की निगाहें टेढ़ी हुई तो इसपर मुकदमें हुयें और यह पहुँच गया जेल की सलाखों के पीछे।
कल रात इसे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। इसे पाइल्स की दिक्कत थी। जिससे खून की कमी यानी एनीमिया हो गया था और यह मर गया। अब सोचिए जिस पैसे की हवस में यह लोगों से ठगी करता रहा उस पैसे का उपभोग करना तो दूर उसके चलते जिंदगी का अंतिम लम्हा जेल में बिताते हुए मर गया। जबकि उम्र ज्यादा नहीं थी ।
ऐसे ही तीन दिन पहले एक पुलिस चौकी पर गया था। वहां दो भाई आपस में एक जमीन को लेकर झगड़ रहे थें। दोनों की उम्र अंडर 40 थी। शाम को जमीन की कचर-पचर और दूसरे दिन जमीन की पंचायत करना था। मगर एक भाई रात को हार्टअटैक से निकल गया।
अब देखिए जितने माफिया हैं। उनके जिंदगी का ज्यादा हिस्सा जेल में या बन्द कमरे गाड़ियों में बीत जाता है। पैसा भले हो मगर आजादी नाम की कोई चीज नही होती। हमेसा जेहन में पुलिस, विरोधी गुट से मुठभेड़ का डर हावी रहता है। आखिर क्या फायदा ऐसे पैसे का जिसके एवज में आजादी खो दें। अभी कुछ साल पहले एक मामले में बन्द बनारस का मिनी माफिया जेल में ही बीमारी से मर गया। बिहार के माफिया शहाबुद्दीन जेल में मर गया। मोख्तार लंबे अरसे से जेल में हैं। सुविधा पैसा भले ही हो मगर खुली हवा में सांस तो नहीं ले रहें। बृजेश सिंह भी जीवन का लम्बा समय फरारी फिर जेल में बिताएं।
सहारा के सुब्रत राय के पास तीन-पांच का पैसा बहुत रहा मगर उम्र का कुछ हिस्सा जेल में बिता। फिर मौत आई तो पास में उनके बेटे तक नही थें।
पता नही यह बात इंसानों को क्यों नही समझ में आता है कि शरीर लीज पर मिला है। इसकी मियाद पूरी होते ही सब कुछ यहीं छोड़कर सिर्फ कर्मो की पोटली संग जाना है। वह भी सबसे सस्ते सफेद मारकीन कपड़े में।
विनय मौर्या
बनारस ।