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फिल्टर वाटर की गदर के बाद लोग कुवें और घड़ों की तरफ लौटने लगे हैं!

सिद्धार्थ ताबिश-

आज से पंद्रह -बीस साल पहले RO वाटर फ़िल्टर चलन में आये थे. कंपनियों में होड़ मच गयी थी लोगों के “स्वच्छ” पानी पिलाने की. मेडिकल एसोसिएशन भी बताने लगा था कि सिर्फ़ आप फ़िल्टर पानी ही पियेंगे तो आपकी 90% बीमारियाँ वैसे ही ठीक हो जायेंगी क्यूंकि ज़्यादातर बीमारियाँ पानी जनित ही होती हैं. लोग डर गए और ख़ूब धड़ल्ले से लोगों ने फ़िल्टर ख़रीदे. भारत में इसका बिज़नस हजारों और लाखों करोड़ का हो गया.

फिर कंपनियों को और अधिक फ़िक्र हुई लोगों के स्वास्थ की. उन्होंने उसी फ़िल्टर में UV+ RO निकाला. किसी ने कुछ और निकाला, फिर किसी ने कुछ और. और सरकारों ने न तो कभी इन दावों को चेक किया, न ही इसे भ्रामक बताया और न ही कोई एक्शन लिया. ये सब सरकारों की सहमति से हुआ. लोग पानी के टीडीएस को लेकर ऐसा पागल हो गए और इतना डर गए कि कम से कम 20 या 25 टीडीएस अपने RO में करवाने लगे. यानि वो पानी के सारे मिनरल्स या खनिज को छान देने लगे और बिना किसी खनिज के पानी को मिनरल वाटर बोलने लगे. जनता भी वही बोलने लगी. आज भी बिसलेरी के 75 से 80 टीडीएस वाले पानी को मिनरल वाटर बोला जाता है और ज़मीन के 250 टीडीएस वाले पानी को हार्ड और गंदा.

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WHO यानि वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने भी शुरुवात कम से कम टीडीएस वाले पानी की वकालत से की थी. इसीलिए आज भी बिसलेरी जैसी कंपनियों के टीडीएस 75 होते हैं. फिर जैसे-जैसे इस कम टीडीएस वाले पानी के दुष्प्रभाव सामने आने लगे, WHO वालों ने अपना टीडीएस चार्ट अपडेट करना शुरू कर दिया. अब आधिकारिक रूप से WHO 300 तक के टीडीएस पानी को अच्छा बताता है. क्यूंकि बहुत कम टीडीएस के पानी से आपकी धमनियां तक गलने लगती हैं और आपको दिल के गंभीर रोगों का ख़तरा बहुत अधिक हो जाता है.

अब WHO कहता है कि 300 या उस से कम टीडीएस बहुत अच्छा, 300 से 600 तक अच्छा, 900 से 1200 तक उतना अच्छा नहीं, मगर फिर भी चल जाएगा. और 1200 से ऊपर का पीने योग्य नहीं होता है. वहीँ आप अगर बिसलेरी की साईट पर देखेंगे तो पायेंगे कि वो कह रहे हैं कि 50 से 150 तक अति उत्तम होता है, 150 से 250 तक अच्छा, 250 से 300 तक ओके टाइप, और 300 से 500 तक टीडीएस सेहत के लिए हानिकारक है. जबकि भारतीय मानक ब्यूरो 500 तक के टीडीएस को अच्छा बताता है.

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यानि बिसलेरी सरकार के दावे को गलत बता कर उसे स्वास्थ के लिए हानिकारक बता कर सरकार को झूठा बता रहा है.. अब ज़रा सोचिये कि इस दावे पर कोई सरकारी एक्शन हुआ है या होगा कभी? और ये इतना बड़ा मुद्दा है जो कई करोड़ लोगों के जीवन से सीधे जुड़ा है.. क्यूंकि बहुत कम टीडीएस का पानी “ज़हर” होता है.

अब स्थिति ये है कि जनता आने वाले करीब सौ सालों तक अभी और बहुत कम टीडीएस का पानी पीती रहेगी क्यूंकि ज़्यादातर बहुत क़ाबिल और बहुत पढ़े लिखे लोग जिस तरह से नयी खोज और विज्ञान के नाम पर परोसे गए कचरे को सीने से लगा लेते हैं वो किसी भक्त के भगवान् को सीने से लगाने से कहीं ज़्यादा खतरनाक होता है. क्यूंकि ये लोग स्वयं को बहुत समझदार और बाक़ी हर किसी को जाहिल, गंवार और जाने क्या क्या समझते हैं. आस्तिकों के तो भगवान आप आसानी से बदल सकते हैं मगर बहुत पढ़े लिखे और विज्ञान के गुलाम लोगों की भक्ति मज़बूत होती है. ये खोजेंगे, गूगल करेंगे फिर वो पढेंगे, ये पढेंगे और फिर बिसलेरी पीते रहेंगे क्यूंकि गूगल पर ही आपको सैकड़ों आर्टिकल मिल जायेंगे जो कम टीडीएस को स्वास्थ के लिए अच्छा बताएँगे. क्यूंकि कंपनियां ऐसे नहीं अपने यहाँ कंटेंट राइटर रखती हैं आपके दिमाग़ में कचरा भरने के लिए.

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लाखों करोड़ के टर्नओवर वाली मेडिकल कंपनियां हैं. आपको क्या लगता है कि ये किसी संस्था से अपनी दवाओं और अपने RO के लिए रिसर्च करवा कर अपने समर्थन में पेपर नहीं पब्लिश करवा सकती हैं? इन्टरनेट पर आप जितना कूड़ा दिन भर पढ़ते हैं वो ज़्यादातर प्रायोजित होते हैं. तभी लोग धड़ल्ले से एंटीबायोटिक को जीवनरक्षक समझकर खाते जा रहे हैं और बिसलेरी पीते जा रहे हाँ. जबकि कुछ मुट्ठी भर समझदार लोग दुबारा कुवें और घड़ों की तरफ़ लौटने शुरू हो गए हैं.

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