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केजरीवाल की गिरफ्तारी पर सबसे बुनियादी सवाल 40 दिन बाद सुप्रीम कोर्ट में उठा

यह ‘अच्छे दिन’ की व्यवस्था है जहां मुख्यमंत्री को जेल में रखा जा सकता है और बलात्कारियों अपराधियों को राहत देने का उतावलापन दिखता रहा है। केजरीवाल की गिरफ्तारी पर सवाल 40 दिन बाद उठा तो चुनाव आयोग के साथ आप प्रतिनिधियों की बैठक कई दिनों बाद हो पाई और 40 मिनट चली। इसमें चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि हम आप के सवालों का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हैं। चुनाव आयोग की इस स्वतंत्रता की जानकारी मुझे नहीं थी और यह ‘खबर’ मुझे कहीं प्रमुखता से नहीं दिखी।

संजय कुमार सिंह 

आज मेरे लगभग सभी अखबारों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का सवाल पहले पन्ने पर है। इंडियन एक्सप्रेस में यह सिंगल कॉलम में है और अमर उजाला में डबल कॉलम में। इसके अलावा पांच अखबारों में यह सवाल या खबर लीड या सेकेंड लीड है। इससे आप समझ सकते हैं कि यह कितना महत्वपूर्ण मामला है। खासकर तब जब इस मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणी कल ही छपी थी और कहा गया था कि मुख्यमंत्री ज्यादा समय तक लोगों से दूर नहीं रह सकते हैं। यह एक अलग मांग पर अदालत का फैसला था और सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका है वह उनकी (यानी मुख्यमंत्री की) गिरफ्तारी पर ही सवाल है। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से यह सवाल पूछा है जो सभी अखबारों में प्रमुखता से छपा है।

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इस तरह, आप समझ सकते हैं कि एक मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करने की देश की अब तक की पहली घटना में सरकारी एजेंसियों की मनमानी की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने में इतना समय लगा और तब जाकर सबसे बुनियादी सवाल उठा जो सबसे पहले उठना चाहिये था। मुझे नहीं पता इसका क्या जवाब है और जवाब के बाद सुप्रीम कोर्ट इसपर क्या निर्णय करेगा लेकिन मैं चकित हूं कि एक मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी जैसे बिल्कुल असामान्य और एक राजनेता के मामले में जो सवाल सबसे पहले पूछा जाना चाहिये था वह कई दिनों बाद पूछा गया। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसके बाद अगर पता चलेगा कि गिरफ्तारी गलत है तो उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकेगी क्योंकि नियमतः इसके लिए सरकारी अनुमति की जरूरत है और सरकार आम तौर पर अनुमति नहीं देती है। इसमें भी खेल होते हैं पर वह अलग मामला है।

बहुप्रचारित ‘अच्छे दिन’

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इस तरह मैं यह कहना चाहता हूं कि बहुप्रचारित ‘अच्छे दिन’ में दशा यह है कि एक राजनीतिक दल के प्रमुख, निर्वाचित और लोकप्रिय मुख्यमंत्री को 21 मार्च की रात गिरफ्तार किया गया और 16 मार्च को देश में आम चुनाव की घोषणा हुई थी। कल यानी 30 अप्रैल को उनकी गिरफ्तारी के समय पर सवाल सुप्रीम कोर्ट में उठा तो 40 दिन बाद। यानी चुनाव की घोषणा के बाद विपक्षी दल के एक नेता को गिरफ्तार कर लिया गया। नीचे की अदालतों ने मुद्दे पर चर्चा की या नहीं, उन्हें जेल में रहना पड़ा और जो व्यवस्था है उसमें गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सबसे बुनियादी सवाल सुप्रीम कोर्ट में उठे 40 दिनों बाद। मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी के राजनीतिक मायने हैं और चुनाव की घोषणा के बाद ऐसा किया जा सका। तो आम आदमी की क्या बिसात है, यह आप समझ सकते हैं। इसके साथ याद कीजिये कि प्रो जी साईबाबा को मई 2014 में नक्सलियों के साथ कथित संबंध के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

प्रो जी साईबाबा की जेल

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व्हीलचेयर से चलने वाले प्रोफेसर साई बाबा दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाते थे। गढ़चिरौली की एक अदालत ने नक्सलियों के साथ संबंध रखने के आरोप में उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी।  शरीर से तकरीबन 90 फीसदी विकलांग साईबाबा शुरू से ही आदिवासियो – जनजातियों के लिए आवाज उठाते रहे हैं। पिछले मार्च में बांबे हाईकोर्ट ने साई बाबा सहित अन्य लोगों की भी आजीवन कारावास की सजा पर रोक लगाते हुए उन्हें रिहा कर दिया। अब आप समझ सकते हैं कि अंग्रेजी के प्रोफेसर को 10 साल जेल में रखा गया। निचली अदालत ने उन्हें सजा दी थी जिसे हाईकोर्ट ने नहीं माना। आम तौर पर सरकारें हाईकोर्ट के फैसले की अपील सुप्रीम कोर्ट में करती और उसका फैसला अंतिम होता है। कई बार सरकार ऊपरी अदालत में अपील नहीं करती है और हाईकोर्ट का आदेश मान लिया जाता है। अंतिम न्याय मिलने तक काफी समय लगता है। भले ही नियम यह हो कि अपराधी छूट जाये तो छूट जाये पर निर्दोष को सजा नहीं हो पर सच यही है कि निर्दोष को सजा नहीं हो इसकी परवाह किसी को नहीं है।

बलात्कार जैसे मामले में सरकार अभियुक्त को छोड़ने या राहत देने के लिए परेशान रही हैं तो इसलिए कि अभी तक यह व्यवस्था थी कि मीडिया ऐसी गड़बड़िया प्रकाश में लाता था तो कार्रवाई होती थी। जनता को भी न्याय का भरोसा रहता था। अब वह सब नहीं है। और मुख्यमंत्री को भी कोई छूट नहीं है। बलात्कारी को राहत दिलाने का उतावलापन हम देख चुके हैं तब भी। ऐसे में अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी तथा उनके लोगों के साथ जो किया जा रहा है उसे जनता देख रही है और उम्मीद की जाती है कि इसका जवाब जरूर देगी। लेकिन सरकार ऐसी हो सकती है इसका अनुमान बहुत कम लोगों को रहा होगा। इससे पहले आप पढ़ चुके हैं कि चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के चुनाव अभियान, ‘जेल का जवाब वोट से’ को अनुमति नहीं दी है। इसपर दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने कहा है कि भाजपा ने पहले तो केजरीवाल को गिरफ्तार करवाया और अब हमारे खिलाफ अपने एक और हथियार भारत के चुनाव आयोग का इस्तेमाल कर रही है। आप समझ सकते हैं कि इस सरकार का विरोध कितना मुश्किल है। उदाहरण न सिर्फ चंडीगढ़ का है सूरत के बाद इंदौर का भी मामला सामने आया है।

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चुनाव आयोग बाध्य नहीं है

आम आदमी पार्टी के मामले में एक प्रतिनिधिमंडल 30 अप्रैल को चुनाव आयोग से मिला। इसमें आतिशी, सौरभ भारद्वाज, पंकज गुप्ता, दिलीप पांडे और आदिल कुल पांच सदस्य थें। कोई 40 मिनट तक चली बैठक के बाद आप नेताओं ने चुनाव आयोग पर पक्षपात करने का आरोप लगाया और कहा कि उन्होंने चुनाव आयोग को पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन की याद दिलाई। आतिशी ने कहा कि हम 22 मार्च से समय मांग रहे थे, अब जाकर समय मिला है। हमने चुनाव आयोग को बताया कि अगर बीजेपी शिकायत करती है तो आयोग तुरंत एक्शन लेते हुए नोटिस भेज देता है। लेकिन हम एक महीने से शिकायत के बाद कार्रवाई के लिए इंतजार कर रहे हैं।

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केजरीवाल की गिरफ्तारी

आप ने आयोग से पूछा कि हमारे कैंपेन गीत को लेकर नोटिस तो भेजा गया है लेकिन चुनावों से ठीक पहले अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर कोई नोटिस नहीं भेजा। सौरभ भारद्वाज ने कहा कि हमने चुनाव आयोग से पूछा कि हमारी शिकायत पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई। उन्होंने कहा, चुनाव आयोग ने कहा कि हम आपके सवालों का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हैं। तकरीबन 40 मिनट तक चली इस बैठक में चुनाव आयुक्त हर सवाल के जवाब में फाइन बोलते रहें। आतिशी ने कहा कि भाजपा के नेता जब आचार संहिता के बावजूद ईडी और सीबीआई का इस्तेमाल करती है तो चुनाव आयोग को दिक्कत नहीं होती लेकिन जब वही चीज आम आदमी पार्टी ने गाने में लिख दिया तो चुनाव आयोग को आपत्ति हो गई। (टीवी9 की खबर के आधार पर)

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आज इंडियन एक्सप्रेस और अमरउजाला की लीड लगभग एक जैसी है। दोनों ने एक दूसरी खबर के साथ अमित शाह के आरोप या सवाल को लीड बनाया है। अमित शाह का यह ससाल दूसरे अखबारों के पहले पन्ने पर इतनी प्रमुखता से नहीं है। भाजपा का प्रचार करता अमर उजाला का शीर्षक है, “हम मातृशक्ति के साथ, कांग्रेस सरकार बताये – क्यों नहीं की गई कार्रवाई : शाह” उपशीर्षक है, “कर्नाटक : (केंद्रीय) गृहमंत्री ने साधा निशाना, कहा – नारी का अपमान किसी हाल में बर्दाश्त नहीं”। इसी खबर के साथ अमर उजाला की एक और खबर का शीर्षक है, “आयोग की शिकायत के बाद बनी एसआईटी: रेखा शर्मा”। एक और  शीषर्क है, “जदएस ने प्रज्वल को पार्टी से किया निलंबित”। इसके नीचे बोल्ड फौन्ट में एक शीर्षक है, “कुमारस्वामी बोले – कांग्रेस छवि खराब करने की कोशिश कर रही”।

अमित शाह का पलटवार

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आप जानते हैं कि मामला सार्वजनिक होने से पहले प्रज्वल विदेश भाग चुका था। कर्नाटक सरकार ने एसआईटी बना दी है, कार्रवाई शुरू है। लेकिन अमित शाह का सवाल यहां लीड है पर यह नहीं बताया गया है कि उसे वापस लाने के लिए केंद्र सरकार क्या कर रही है। यह राज्य सरकार का काम नहीं है और बुलडोजर न्याय या कार्य हो सकता था कि प्रज्वल का पासपोर्ट रद्द कर दिया जाता। उसके बाद उसका विदेश में रहना मुश्किल हो जाता, भारत वापस आता या नहीं। पर उस बारे में कोई खबर नहीं है। सवार कर्नाटक सरकार से है जबकि मुद्दा यह भी है कि भाजपा ऐसी पार्टी और उसके ऐसे उम्मीदवार का समर्थन क्यों कर रही है औऱ प्रधानमंत्री ने उसके लिए वोट क्यों नहीं मांगे? अगर प्रधानमंत्री को उम्मीदवार के तीन हजार यौन अपराधों के वीडियो की जानकारी नहीं थी और वे उसका समर्थन कर रहे हैं तो यह उनकी व्यवस्था है इसमें हमें कुछ नहीं कहना है। मुझे तो उनका सवाल लीड बनाने लायक नहीं लगा।

मेरी समस्या यह है कि इंडियन एक्सप्रेस में भी यही लीड है। जद एस ने प्रज्वल को निलंबित किया; शाह ने कांग्रेस पर पलटवार किया। इंडियन एक्सप्रेस में एक और दिलचस्प खबर है। इसका शीर्षक है, “मोदी ने भाजपा उम्मीदारों से कहा : मतदाताओं से आरक्षण छीनने की कांग्रेस की योजना के बारे में कहिये”। आप जानते हैं कि कांग्रेस ने ऐसी किसी योजना के बारे में नहीं कहा है। उल्टे, वह जातिगत जनगणना की बात कर रही है और इस आधार पर जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी का नारा दिया है। असल में भाजपा के हिन्दू-मुसलमान की राजनीति का यह अच्छा जवाब है और भाजपा व्यवहार में भी आरक्षण के खिलाफ रही है। इसपर पहले यहां लिख चुका हूं। ऐसे में कांग्रेस की योजना से भाजपा का परेशान होना स्वाभाविक है और इसलिए उसे झूठ बोलना पड़ रहा है। कांग्रेस इसका जवाब दे तो तू-तू, मैं-मैं होगा और नहीं दे तो झूठ स्थापित हो जायेगा। अखबारों की जिम्मेदारी है कि वे पाठकों को सच्चाई बताये। इसलिए आप देखिये कि आपका अखबार आपको क्या समझा रहा है।

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घर में घुसकर मारते हैं

द हिन्दू में आज पहले पन्ने पर एक खबर का शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने कहा भाजपा सरकार आतंकवादियों को उनके घर में घुसकर मारती है। हिन्दी में यह खबर जागरण डॉट कॉम में मिली। इसके अनुसार, प्रधानमंत्री ने 30 अप्रैल को कहा, कांग्रेस नीत संप्रग सरकार में आतंकी हमला करके भाग जाते थे तो सरकार केवल बचाओ-बचाओ चिल्लाती थी लेकिन अब हालात बदल गए, अब हम आतंकी गतिविधियों पर डोजियर नहीं भेजते बल्कि उन्हें घर में घुसकर मारते हैं। मोदी महाराष्ट्र के लातूर, धाराशिव और माढ़ा में पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में चुनावी रैलियों को सबोधित कर रहे थे।

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खालिस्तानी की हत्या और कोशिश  

आज के अखबारों में एक और प्रमुख खबर खालिस्तान समर्थक नेता और अमेरिकी नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नून की हत्या की साजिश पर वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट भी है। द टेलीग्राफ में यह खबर लीड है। इसके अनुसार, पन्नून के मामले में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के पूर्व मुखिया पर उंगली उठी है। भारत ने आधिकारिक तौर पर इससे इनकार किया है। बीबीसी की एक खबर के अनुसार, वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हत्या की इस कोशिश में रॉ शामिल थी। भारत ने इसे निराधार बताया है। अमेरिका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेदांत पटेल से पूछा गया कि वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट कहती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘इनर सर्कल को पन्नून की हत्या की कोशिश की जानकारी थी’, इसे अमेरिका कैसे देखता है?

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जवाब में उन्होंने कहा- “हम भारत सरकार से भारतीय जांच कमेटी के नतीजों के आधार पर जवाबदेही की उम्मीद करते हैं। हम लगातार उनके साथ काम कर रहे हैं और अतिरिक्त जानकारियां भारत से मांग रहे हैं। हम भारत सरकार के साथ उच्च स्तर पर अपनी चिंताएं साझा करना जारी रखेंगे।” उन्होंने आगे कहा, “इस मामले में हम इससे ज़्यादा बात नहीं कर सकेंगे।” यहां यह उल्लेखनीय है कि खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या के खिलाफ भारत में रह रही एक विदेशी पत्रकार अवनी डिऐज  को देश निकाला दिया जा चुका है। भास्कर डॉट कॉम की एक खबर के अनुसार ऑस्ट्रेलिया के एबीसी न्यूज कंपनी के लिए काम करने वाली अवनी डिऐज 19 अप्रैल को भारत छोड़कर जा चुकी हैं। उसे भारत में चुनाव के कवरेज की इजाजत नहीं दी गई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अवनी वही पत्रकार हैं, जिन्होंने कनाडा में खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या के खिलाफ एक रिपोर्ट पब्लिश की थी। यूट्यूब पर मौजूद इस रिपोर्ट को भारत में बैन कर दिया गया है। एबीसी न्यूज ने इसका विरोध भी किया था।

अवनी ने अपने एक पॉडकास्ट ‘लुकिंग फॉर मोदी’ में बताया कि भारत सरकार ने उनके वीजा परमिट को यह कहकर नहीं बढ़ाया कि उनकी रिपोर्ट्स ने लक्ष्मण रेखा क्रॉस की है। अवनी ने कहा, “ऑस्ट्रेलिया सरकार के हस्तक्षेप के बाद भारत छोड़ने से 24 घंटे पहले मुझे दो महीने के लिए वीजा दिया गया, लेकिन चुनाव कवर करने की इजाजत नहीं मिली। मैंने भारत में पहले चरण के मतदान से पहले देश छोड़ दिया था।”

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