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आज हेडलाइन मैनेजमेंट का वर्तमान और फॉलोअप के लिए तरसती खबरों के नमूने

संजय कुमार सिंह

भाजपा की सरकारें हेडलाइन मैनेजमेंट कर रही हैं और ज्यादातर अखबार उनकी सेवा में लगे हैं – यह तो पुरानी बात हो गई। आज के अखबारों में इसका सबूत देखिये और समझिये कि ऐसे समय में दिल्ली के स्कूलों में बम होने की धमकी और जीएसटी कलेक्शन सबसे ज्यादा होने जैसी रूटीन खबरों को प्राथमिकता क्यों मिली है। इन दो और ऐसी सरकारी व मैनेज्ड खबरों के कारण जो खबरें दब गईं आज उनकी चर्चा करता हूं। अखबारों के पक्षपात का आलम यह है कि अमर उजाला ने अमित शाह के आरोप को तो लीड बना दिया पर संबंधित सवाल का जवाब नहीं मांगा। आज जब खबर है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है तो खबर पहले पन्ने पर नहीं है।

चुनाव के समय प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं की गिरफ्तारी, बैंक खाता फ्रीज करना, राज्य सरकार गिराने की कोशिशें आदि तो आप जानते हैं। अब अमित शाह का वीडियो शेयर करने के मामले में भी दिलचस्प कार्रवाई चल रही है। एक्स यानी ट्वीटर ने झारखंड कांग्रेस का अकाउंट बंद कर दिया है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी समेत 12 लोगों को दिल्ली पुलिस ने नोटिस भेजा है। टाइम्स ऑफ इंडिया और द हिन्दू की आज की खबर के अनुसार रेवंत ने कहा कि जिस हैंडल से वीडियो साझा किया गया है वह उनका नहीं है। खबर के अनुसार मुख्यमंत्री ने दिल्ली पुलिस के नोटिस का जवाब देने के लिए चार हफ्ते का समय मांगा है। इस मामले में रेवंत अभियुक्त नहीं है लेकिन दिल्ली पुलिस ने उन्हें नोटिस दिया है जो पूछताछ के लिए गवाहों को समन करने के अधिकार देता है। यह तो हुई राजनीति की बात। व्यवसायियों के लिये जीएसटी, इलेक्टोरल बांड, ईडी, वसूली आदि की कहानियों के साथ आपने 10 वर्षों में ईज ऑफ डुइंग बिजनेस का प्रचार भी खूब सुना होगा। आज टाइम्स ऑफ इंडिया में खबर है कि भारत में कारोबार-व्यवसाय करने वालों 69233 अनुपालन करने होते हैं।

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1. सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करके मांग की गई है एक एक्सपर्ट पैनल बनाया जाये जो कोविशील्ड के साइड इफेक्ट की जांच करे और एक सरकारी भुगतान प्रणाली तैयार की जाये जो इस दवाई के दुर्लभ साइड इफेक्ट से प्रभावित लोगों के परिवार के लोगों को क्षतिपूर्ति मुहैया कराये। यह खबर द टेलीग्राफ में लीड है। अमर उजाला में सिंगल कॉलम। 

2. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर मांग की थी कि टूजी स्पेक्ट्रम का आवंटन नीलामी के बगैर करने की अनुमति दी जाये। सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को खारिज कर दिया है। आज छपी खबरों के अनुसार, सरकार ने इस 22 अप्रैल को 2012 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्पष्टीकरण के लिए याचिका लगाई थी। कोर्ट रजिस्ट्रार ने कहा है कि सरकार स्पष्टीकरण की आड़ में आदेश की समीक्षा की मांग कर रही है। यह गलत है। विचार का कोई उचित कारण नहीं है। एक लाख 76 हजार करोड़ का कथित टूजी घोटाला और तब की सरकार को बदनाम करने की कहानी और मुकदमे का सच आपको याद होगा।

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3. इंडियन एक्सप्रेस में आज आधे पन्ने का विज्ञापन है जो बताता है कि टीवी9 नेटवर्क पर आज रात प्रधानमंत्री और पांच संपादकों का राउंडटेबल होगा जो मराठी, तेलुगू, बांग्ला, गुजराती और कन्नड के चैनल संपादक हैं। यह राउंडटेबल हिन्दी वाले संपादक के ‘साथ’ होगा। आप समझ सकते हैं कि मीडिया को इंटरव्यू नहीं देने वाले और प्रेस कांफ्रेंस नहीं करने वाले 2014 के प्रधानसेवक और 2019 के चौकीदार ने चुनाव प्रचार की कैसी तैयारियां की हैं। वैसे तो यह विज्ञापन है लेकिन विपक्षी दलों के नेता जब जेल में है, अदालत उन्हें चुनाव प्रचार के लिए भी छोड़ने की जरूरत नहीं समझ रही है (भले उन्होंने ऐसी अपील की हो या नहीं), विपक्षी दलों के खाते फ्रीज हैं तो सरकारी दल की यह व्यवस्था खबर है

4. इंडियन एक्सप्रेस में सिंगल कॉलम की एक खबर है कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर मांग की है कि जनता दल (एस) के सांसद प्रज्वल रेवन्ना के डिप्लोमैटिक पासपोर्ट को रद्द कर दिया जाये और इस तरह डिप्लोमैटिक तथा पुलिस चैनल का उपयोग करके उसकी वापसी सुनिश्चित की जाये। आपको याद होगा, कल अमर उजाला में यह मामला लीड था। मैंने यहां लिखा था, शीर्षक है, “हम मातृशक्ति के साथ, कांग्रेस सरकार बताये – क्यों नहीं की गई कार्रवाई : शाह” उपशीर्षक है, “कर्नाटक : (केंद्रीय) गृहमंत्री ने साधा निशाना, कहा – नारी का अपमान किसी हाल में बर्दाश्त नहीं”। 

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कल की खबरों से ही साफ था कि इस मामले में अगर कार्रवाई राज्य सरकार को ही करनी थी तो उसने मामला सामने आने के बाद जो किया जाना है वह किया जा चुका था जबकि प्रधानमंत्री ने किसी को जाने बगैर उम्मीदवार बनाया है, उसका प्रचार किया है या जान बूझकर सब करने के बाद मामला राज्य सरकार के सिर मढ़ने की कोशिश हो रही थी। ऐसी खबर को महत्व देने से पहले संपादक को सोचना चाहिये कि वास्तविकता क्या है और केंद्र सरकार ने अपना काम किया है कि नहीं। अमर उजाला में आज मुख्यमंत्री की मांग की खबर तो नहीं ही है यह खबर भी पहले पन्ने पर नहीं है कि प्रज्वल रेवन्ना ने कहा है कि यौन अपराध के उससे संबंधित मामले में सच्चाई सामने आयेगी और सत्य की जीत होगी (द टेलीग्राफ)।

5. हिन्दुस्तान टाइम्स में तीन कॉलम की खबर है, पार्टियां जब एक दूसरे पर आरोप लगा रही हैं तब प्रज्वल ने कहा है कि वह वापस आयेगा। खबर के अनुसार उसने एसआईटी के समक्ष पेश होने के लिए हफ्ते भर का समय मांगा है। इसमें मुख्यमत्री की चिट्ठी का जिक्र है पर केंद्र सरकार का पक्ष नहीं है कि वह क्या कर रहा है या कब करेगा। अमित शाह के आरोपों को प्रमुखता देने वालों की नैतिक जिम्मेदारी थी कि इस मामले में अमित शाह का पक्ष बताते। पहले की पत्रकारिता ऐसी ही होती थी और तब नेताओं के कहने पर आरोप को प्रचार देने का मतलब था लेकिन अब आप नेताओं का उसके सही या गलत आरोप का प्रचार क्यों करेंगे (या उसे खबर क्यों मानगें) जब वह संबंधित सवालों का जवाब देने के लिए आपको भी नहीं मिले। 

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6. आज नवोदय टाइम्स की एक खबर के अनुसार, सिद्धू मूसेवाला की हत्या के आरोपी को अमेरिका में गोली मार दी गई और गोल्डी बराड़ की मौत हो गई है। खबर के अनुसार, गोल्डी बराड़ को गैंगेस्टर लॉरेंस बिश्नोई का दाहिना हाथ कहा जाता है। तिहाड़ जेल में गैंगस्टर सुनील मान उर्फ टिल्लू ताजपुरिया की सुआ घोंपर हत्या कर दी गई थी (जेल के अंदर हुई इस हत्या का वीडियो वायरल हुआ था)। इसकी जिम्मेदारी गोल्डी बराड़ ने ली थी। गोल्डी पर रैपर हनी सिंह से 50 लाख रुपये की वसूली (की कोशिश) का आरोप था। इंटरनेट पर मिल रही ताजा खबरों के अनुसार कैलिफोर्निया पुलिस ने गोल्डी की मौत से इनकार किया है। मुद्दा यह नहीं है कि गोल्डी मारा गया या बच गया या खबर झूठी है। मुद्दा यह है कि विदेश में हत्या के लिए भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। आधिकारिक तौर पर भारत सरकार इससे इनकार कर रही है। खबर करने वाली विदेशी पत्रकार को देश निकाला दिया जा चुका है और प्रधानमंत्री घुसकर मारने का दवा कर रहे हैं (2019 के चुनाव प्रचार के समय भी किया था)।

अमेरिका की पुलिस मुठभेड़ में भारतीय नागरिक की मौत की खबर से इनकार कर रही है और भारतीय मीडिया में इस पर तो छोड़िये जेल में हत्या और उसका वीडियो लीक होने का फॉलो अप देखने को हम तरस रहे है। भारतीय समाज में यह सब मुद्दा ही नहीं है जबकि न्यूयॉर्क के ट्विन टावर पर हमले के बाद जनसत्ता में खबर छपी थी, लोग डरे हुए हैं कि बच्चे न डर जायें। अब भारत के प्रधानमंत्री चुनावी सभाओं में कह रहे हैं (और बुधवार को फिर कहा है जो टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा है) भारत आतंकवादियों को उनके घर में घुसकर मारता है। कल आपने यहां खालिस्तान समर्थक नेता और अमेरिकी नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नून की हत्या की साजिश पर वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट, खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या के खिलाफ भारत में रह रही एक विदेशी पत्रकार अवनी डिऐज को देश निकाला और घुसकर मारने का प्रधानमंत्री दावा पढ़ा था।

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7. आज ही अखबारों में मुंबई में कि पुलिस हिरासत में मौत की खबर है। सलमान खान के घर के बाहर फायरिंग के मामले में गिरफ्तार आरोपियों में से एक, अनुज थापन की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई। मुंबई पुलिस ने का दावा है कि अनुज ने जेल के बाथरूम में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वह फाजिल्का जिले के सुखचैन गांव का रहने वाला था। गांव के सरपंच मनोज कुमार गोदारा का कहना है कि अनुज ने आत्महत्या नहीं की है, बल्कि पुलिस हिरासत में यातना के कारण उसकी मौत हुई है। यह आत्म हत्या नहीं कत्ल है। इसकी जांच महाराष्ट्र के बाहर की किसी एजेंसी से कराई जानी चाहिये। यहां उल्लेखनीय है कि जामनगर में हिरासत में मौत के 1990 के एक मामले में पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को उम्रकैद की सजा हुई है। संजीव भट्ट अप्रैल 2011 में चर्चा में आए थे, जब उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री (अब प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी के शामिल होने का आरोप लगाया था।

पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को पालनपुर के 1996 एनडीपीएस मामले में भी दोषी करार दिया गया है। उन्हें 20 साल के कठोर कारावास और दो लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। इस मामले में संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने कहा है, हमें निष्पक्ष ट्रायल का मौका ही नहीं दिया गया। जिस व्यक्ति ने ड्रग्स पकड़ने के लिए रिवॉर्ड लिया, उसे अप्रूवर बनाकर हम पर आरोप लगा दिए गए। 4.5 साल से इस कोर्ट के जज का तबादला नहीं हुआ। हमने सारे मुद्दे उठाये, लेकिन हमारी कोई बात सुनी नहीं गई। संजीव भट्ट के दोनों मामले आज की दो खबरों के कारण उल्लेखनीय है। पहला तो हिरासत में मौत का मामला है और दूसरा एनडीपीएस या नशे का मामला – उनपर नशा प्लांट कर किसी को फंसाने का आरोप है।

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नशे से संबंधित एक खबर आज अमर उजाला में है। इसके अनुसार, दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार के जब्ती रिकार्ड से करीब पांच लाख करोड़ मूल्य की 70 हजार किलो से अधिक हेरोइन गायब होने पर गृहमंत्रालय से जवाब मांगा है। इस मामले में अगली सुनवाई 9 सितंबर को होगी। खबर के अनुसार, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि वर्ष 2018-2020 के दौरान हेरोइन की जब्ती के बारे में एनसीआरबी रिपोर्ट व गृहमंत्रालय के आंकड़ों में अनियमितताएं हैं।

8. आज वसूली की एक खबर का भी जिक्र है। इससे इलेक्टोरल बांड और ईडी के छापों तथा उसके दबाव में वसूली के आरोपों और ईडी की भूमिका याद आती है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार पीएमएलए के मामले में जमानत –  पीएमएलए के मामले में गिरफ्तार और जेल में बंद विचाराधीन कैदियों से संबंधित मुंबई डेटलाइन की एक खबर के अनुसार एक विशेष पीएमएलए अदालत ने मंगलवार को कॉक्स एंड किंग्स समूह के सीएफओ अनिल खंडेलवाल और आंतरिक अंकेक्षक नरेश जैन को जमानत दे दी। यस बैंक के केस में ईडी ने इन लोगों को साढ़े तीन साल से जेल में रखा हुआ था और यह अवधि इस मामले में न्यूनतम सजा से ज्यादा तो है ही अधिकतम से भी दो साल ज्यादा है। अदालत ने इसे गंभीर माना है और महसूस किया है कि इन्हें बिना आरोप के सजा दी गई है और आरोपों के बिना उचित ट्रायल भी नहीं हुआ है। इससे जितनी जल्दी संभव हो ट्रायल पाने का उनका अधिकार बेमतलब हो गया है।

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9. इसके मुकाबले द हिन्दू में आज ही एक खबर है जिसके अनुसार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एक नाथ शिन्दे ने दावा किया है कि दो साल के अपने शासन में उन्होंने मुंबई शहर और महाराष्ट्र जैसे व्यावसायिक राज्य में उद्योग का भरोसा बनाने के लिए बहुत कुछ किया है। उनका दावा है कि राज्यों और केंद्र में एनडीए सरकारों का रिकार्ड प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए तीसरा कार्यकाल सुनिश्चित करने के लिए पर्यापत होगा। यह दिलचस्प है कि आज ही दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और एनडीए के विरोधी दलों में प्रमुख आम आदमी पार्टी के नेता को जेल में रखने को जायज ठहराया है और एक साल से ज्यादा गुजर जाने के बाद भी जमानत देने की जरूरत नहीं समझी है जबकि सिसोदियो कोई वंशवादी या बचपन में चाय बेचने वाले विशेष नेता नहीं हैं, राजनीति में आने से पहले पत्रकार थे और जनहित में सबसे अच्छे तथा ज्यादा काम करने वालों में होंगे।

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, ट्रायल कोर्ट ने कहा है कि अभियुक्त मनीष औऱ दूसरे सहअभियुक्त मिलकर प्रयास कर रहे हैं कि ट्रायल में देरी हो क्योंकि वे कई सारे आवेदन दायर करते रहे हैं, मौखिक अपील की है और इनमें कुछ तो बहुत बहुत ही हल्के हैं। कोर्ट ने सिसोदिया की इस शिकायत को नहीं माना कि मामला कछुये की गति से चल रहा है।   

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