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घुटने टेकने को तैयार रहने वाले भारतीय पत्रकारों को पाकिस्तानी पत्रकारों से कुछ सीखना चाहिए

Priyabh Ranjan : नेताओं और सेलेब्रिटीज के आगे घुटने टेकने के लिए हमेशा तैयार रहने वाले (कुछ) भारतीय पत्रकारों को जरा पाकिस्तानी पत्रकारों से कुछ सीखना चाहिए।  DAWN अखबार के एडिटर ने बयान जारी कर कहा है वो अपने अखबार में छपी हर खबर पर कायम हैं। उन दो खबरों पर भी जिनके मुताबिक नवाज़ शरीफ सरकार ने अपनी सेना को चेतावनी दी थी कि आतंकवादियों के खिलाफ सख्ती बरती जाए वरना पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ जाएगा।

<p>Priyabh Ranjan : नेताओं और सेलेब्रिटीज के आगे घुटने टेकने के लिए हमेशा तैयार रहने वाले (कुछ) भारतीय पत्रकारों को जरा पाकिस्तानी पत्रकारों से कुछ सीखना चाहिए।  DAWN अखबार के एडिटर ने बयान जारी कर कहा है वो अपने अखबार में छपी हर खबर पर कायम हैं। उन दो खबरों पर भी जिनके मुताबिक नवाज़ शरीफ सरकार ने अपनी सेना को चेतावनी दी थी कि आतंकवादियों के खिलाफ सख्ती बरती जाए वरना पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ जाएगा।</p>

Priyabh Ranjan : नेताओं और सेलेब्रिटीज के आगे घुटने टेकने के लिए हमेशा तैयार रहने वाले (कुछ) भारतीय पत्रकारों को जरा पाकिस्तानी पत्रकारों से कुछ सीखना चाहिए।  DAWN अखबार के एडिटर ने बयान जारी कर कहा है वो अपने अखबार में छपी हर खबर पर कायम हैं। उन दो खबरों पर भी जिनके मुताबिक नवाज़ शरीफ सरकार ने अपनी सेना को चेतावनी दी थी कि आतंकवादियों के खिलाफ सख्ती बरती जाए वरना पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ जाएगा।

पाकिस्तानी सेना और PMO ने न सिर्फ अखबार की इन खबरों को नकारा था, बल्कि रिपोर्टर सिरिल अलमीडा के देश से बाहर जाने पर पाबंदी भी लगा दी है। ऐसे हालात में Dawn के एडिटर का खबरों पर कायम रहकर अपने रिपोर्टर का साथ देना वाकई तारीफ के काबिल है। भारत में कितने एडिटर ऐसा करने का दावा कर सकते हैं? यहां मामला फंसने पर एडिटर का साथ देना तो दूर, रिपोर्टर पर सारा ठीकरा फोड़ कर उसे नौकरी से निकाल दिया जाता।

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गौरतलब है कि पाकिस्तान में ऐसी कोई भी खबर लिखना या दिखाना खतरे से खाली नहीं होता जिसमें सेना की आलोचना हो। पाकिस्तानी सेना कई बार ऐसे पत्रकारों को पिटवा चुकी है, मरवा भी चुकी है। अभी कुछ लोग ये पढ़कर सोच रहे होंगे कि काश भारत में भी ऐसे पत्रकारों को मरवा दिया जाता।

Sanjaya Kumar Singh :  इमरजेंसी में सरकार ने मीडिया पर नियंत्रण लगाए थे। तब मीडिया ने इसका विरोध किया या सरकार की ‘सेवा’ की। अब बगैर इमरजेंसी लगाए मीडिया ने पालतू होना स्वीकार किया है। अब वह पालतू होने का कर्तव्य निभा रहा है। सरकारी नीतियों की सुरक्षा देना और अपनी समझ के अनुसार भौंकना इसमें शामिल है। अपवाद तब भी थे, अब भी हैं।

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पत्रकार द्वय प्रियभांसु रंजन और संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.

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