Nitin Thakur : प्रज्ञा ठाकुरों, साक्षी महाराजों, रवि किशनों, सन्नी देओलों, अनंत हेगड़ों को जीतना ही चाहिए। बेशक उन्हें संसद में आना ही चाहिए। फिल्मी स्क्रीन्स पर चमकना और निहत्थे गांधी के हत्यारों का पक्ष लेना इसके लिए काफी है। ये उन्हीं का दौर है। दुनिया में दक्षिणपंथ चरम पर है और भारत दुनिया में ही है तो फिर फैशन की कॉपी करनेवाले इस समाज का संतुलित रह पाना कैसे मुमकिन था। हर विचार और हर रुझान का वक्त खुद ब खुद आता है। परिस्थितियां निर्मित हो ही जाती हैं। हम उसी दौर को जी रहे हैं और अभी उसे जिएंगे। इसके बीच शांति, प्यार, सबके लिए उच्च जीवनस्तर की मांग करते रहना मगर फिर भी निंदा झेलना अपनी नियति है।
पत्रकारिता के लिए ये सबसे अच्छा समय है। स्वर्णिम काल। इससे पहले ऐसा अवसर आपातकाल में पत्रकारिता कर रहे लोगों को ही मिला था। जब सत्ता बोलने दे तब बोले तो क्या बोले, दमन के बीच फुसफुसाना भी बड़ी बात होती है। जो तब बोले थे वो बाद में याद रखे गए। जो रेंग रहे थे उन्हें उनकी ग्लानि ने हमेशा डिफेंसिव बनाए रखा। अगले पांच सालों में और तय हो जाएगा कि कौन पत्रकारिता को धंधा बनाकर रखता है और किसने इस पेशे के सवाल पूछने की मूल पहचान को बनाए रखने के लिए सब दांव पर लगा दिया। 2014 के वक्त भी और आज 2019 के वक्त भी मैं अपने साथी पत्रकारों के सामने दोहराना चाहता हूं कि हम जब तक पत्रकारिता कर रहे हैं तब तक चिरविपक्ष हैं। कांग्रेस आती तो भी सवालों के पिन चुभोने थे, और अब जब बीजेपी ही शासन जारी रखेगी तब तो पिन और ज़ोर से चुभोने हैं। उन्हें पचास साल दिए, हमें केवल पांच वाला बहाना खो जानेवाला है। ये अब असफलताओं के नए बहाने तलाशेंगे। हमारा काम है कि इन्हें बहाने ना खोजने दें। पत्रकार का काम उस मां जैसा होना चाहिए जो बच्चे को बीमारी से बचाने के लिए कड़वी दवाई देती रहती है, भले ही बच्चा यानि जनता उसे उलट दे या ज़ोर लगाकर भाग निकलना चाहे। नेता उसे ललचाएं या भरमाएं मगर हमें अपना काम ईमानदारी से पूरा करना है। इसकी कीमत हमें चुकानी पड़ी है और चुकाएंगे ये इस पेशे का सत्य है।
अब एक बात विपक्ष से भी। अगर बेरोज़गार को रोज़गार नहीं चाहिए, किसान को अपने फसल भुगतान की फिक्र नहीं, छात्रों को ठीक वक्त पर परीक्षा परिणामों के ना आने से फर्क नहीं पड़ता तो क्या हुआ? वो अपना वोट उसे ही दे रहे हैं जिसे देना चाहते हैं ( अगर ईवीएम में आंशिक गड़बड़ी की बात दरकिनार कर दें)। विपक्षियों को चिंता करनी चाहिए कि उनके उठाए मुद्दे असर क्यों नहीं कर रहे हैं। क्यों उनके नायकों पर लोगों का भरोसा नहीं है और आखिर इस बार नेता विपक्ष की कुर्सी पर कौन बैठेगा। आपकी हार का विश्लेषण महीने भर होता रहेगा। हर विश्लेषण को आंख-कान-दिमाग-दिल खोलकर सुनें-पढ़ें।
अब अंत में एक निजी फिक्र लिखकर बात खत्म करता हूं। जब देश ने नौकरी, किसान, नदियों की सफाई जैसे अहम मुद्दों पर बार बार चिंता करके भी वोट मोदी को ही दिया है तब विपक्ष भी देर सवेर भावनात्मक मुद्दों पर खेलना शुरू करेगा। उसे भी सत्ता चाहिए और जो राह उसे वहां तक पहुंचाएगी वो उस पर ही चल निकलेगा. मेरी चिंता दूरगामी है। भावनात्मक मुद्दे पेट नहीं भरते, तन को कपड़े नहीं देते, सिर पर छत नहीं देते और अगर लोगों को ही इसकी फिक्र नहीं है ये अहसास नेताओं को हो गया तो फिर उन्हें भी क्या ज़रूरत है कि वो बिजली-पानी की बात करके चुनाव हारते रहें। आखिरकार इसका घाटा लोग उठाएंगे।
एक नागरिक के तौर पर मेरी बधाई नरेंद्र मोदी जी तक पहुंचे। उन कार्यकर्ताओं को बधाई जिन्होंने अप्रैल-मई की गर्मी में दिन-रात देखे बिना पार्टी के एजेंडे को घर-घर पहुंचाया। उन विपक्षी कार्यकर्ताओं को भी निराश नहीं होना चाहिए जिन्होंने अपने बुझे हुए नेताओं की जीत के लिए परिश्रम किया। शुभकामनाएं उन राहुल गांधी को भी जिन्होंने पहला आम चुनाव अपनी ज़िम्मेदारी पर लड़ते हुए राजनीति में प्रेम भाव को बढ़ाने की ऐसी कुछ अच्छी बातें कही जिनसे कड़वाहट ज़रा कम हुई। कुछ विश्राम के बाद पक्ष और विपक्ष फिर हमारी कलम की नोक के निशाने पर होंगे। शो मस्ट गो ऑन। पत्रकारिता जारी है।
एथेंस में सुकरात का मुकदमा चला। लोगों को ही फैसला लेना था। आरोप था कि सुकरात अपनी शिक्षाओं से युवाओं को पथभ्रष्ट कर रहे हैं। ये वही शिक्षाएं हैं जिन्हें सैकड़ों सालों से पूरी दुनिया किताब छाप-छापकर पढ़ती रही है। उस दौर में यही शिक्षाएं बड़ी बुरी लग रही थीं। एथेंस में लोकतंत्र था। सुकरात की सज़ा के लिए मतदान हुआ। सुकरात को 220 के मुकाबले 281 मतों से दोषी करार दिया गया और मौत की सज़ा सुनाई गई। ज़हर का प्याला पिलाये जाने से पहले जब क्रीटो ने सुकरात को संसार के जनमत की परवाह करने की सलाह दी तो सुकरात ने उसे एक भीड़ की संज्ञा देते हुए कहा कि- भीड़ न तो व्यक्ति का उपकार कर सकती है, न अपकार| वह किसी व्यक्ति को न तो ज्ञानी बना सकती है और न ही मूर्ख| भीड़ तो मनमाने ढंग से कार्य करती है।
सोशल मीडिया के चर्चित लेखक और टीवी9 भारतवर्ष चैनल में कार्यरत पत्रकार नितिन ठाकुर की एफबी वॉल से.
Shambhu chudhary
May 24, 2019 at 7:59 pm
Great
Mahendra Gaur
May 25, 2019 at 11:39 am
Calling spade a spade is rare these days. Media barons and not media persons are to be blamed for the present day fiasco.Even during emergency this pattern was there.
Kapil Pathak
May 26, 2019 at 12:03 pm
My name is kapil Pathak
I m interested to join your channel TV9 Bharatvarsha..