वाराणसी (भाष्कर गुहा नियोगी) : तो क्या आज भी दौलत और ताकत के आगे इंसान से लेकर भगवान तक विवश हैं? मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उनके ठीहे लम्ही में लक्ष्य नाट्य मंच के कलकारों ने सवा सेर गेहूं की प्रस्तुति कर इस सवाल को उठाया। भूमिहीन शंकर जब महाजन पाण्डेय महाराज से कहता है, हम तो आनाज दे देंगे सरकार, पर याद रखियेगा, एक भगवान का घर भी है…… तो महाजन जवाब देते हैं, वहां की चिंता तू कर, वहां हमे कुछ नहीं होगा, वहां, सुर, असुर, देवी- देवता, महात्मा सब ब्राहम्ण ही तो हैं, जो कुछ होगा, हम संभाल लेंगे।
प्रेमचंद जयंती पर लमही में सवा सेर गेहूं का मंचन करते वाराणसी के कलाकार
स्थान, काल, पात्र से परे जाकर नाटक का कथानक कहीं न कहीं मौजूदा हालात से संवाद करता दिखा। नाटक के माध्यम से कलाकारों ने मौजूदा हालात पर कटाक्ष किया। जमींदार न सही सरकारी तंत्र और उसके कारीन्दे कहीं न कहीं उसी भूमिका में हैं। अभाव में आत्महत्या करते किसान, दवा के अभाव में मरते मरीज, इंसाफ के लिए यहां से वहा भटकते लोग उसी व्यवस्था से उत्पीड़ित हैं, जिसका चित्रण प्रेमचन्द ने अपनी कहानी सवा सेर गेहूं में किया है।
नाटक में पाण्डेय महाराज की भूमिका का निर्वाह अजय रोशन, शंकर की भूमिका भोला सिंह राठौड़, भगेलू की भूमिका असलम शेख, छक्कन की भूमिका में अजय थापा, मंगल की भूमिका में हरिश्चन्द्र पाल, शम्भू और बाबा की भूमिका में कृष्णा चौबे, नवीन मिश्रा, किसान की भूमिका में धनरतन यादव, रवि राज, धनंजय सिंह, महेन्द्र कुमार पटेल रहे। नाटक के संवाद और कलाकारों की अदाकारी के चलते अंत तक दर्शकों की उपस्थिति बनी रही।
– भाष्कर गुहा नियोगी