राहुल भटनागर पर आरोप है कि मुख्य सचिव रहते हुए उन्होंने न सिर्फ अपने सहयोगी अफसरों को बदनाम किया बल्कि अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए हर किस्म के घिनौने हथकंडे अपनाए. उदाहरण के तौर पर गोमती रिवर फ्रन्ट परियोजना के सम्बन्ध में जानबूझकर राहुल भटनागर ने अपने सहयोगी अधिकारियों को बदनाम करने की नीयत से अनियमित कार्यवाही की… कुछ प्वाइंट्स देखें…
1. दिनांक 01.04.2017 को मुख्यमंत्री के समक्ष हुई बैठक में यह किस आधार पर कहा गया कि पुनरीक्षित परियोजना के लिए रु. 2448 करोड़ की आवश्यकता होगी।
2. क्या पुनरीक्षित परियोजना की स्वीकृति किसी स्तर पर हुई?
3. अनुमोदित परियोजना रु. 1513 करोड़ के विरुद्ध रु. 1437 करोड़ व्यय होने के बावजूद लगभग 60 प्रतिशत काम पूरा हुआ जबकि न्यायिक जाँच समिति के समक्ष वर्तमान अभियन्ताओं द्वारा यह आंकड़े दिये गये हैं कि लगभग 95 प्रतिशत कार्य मौके पर हो गया है।
4. बैठक में मुख्यमंत्री द्वारा मुख्य सचिव को जाँच समिति के गठन करने के निर्देश दिये गये थे कि परियोजना में देरी क्यों हुई, पैसा कहाँ खर्च हुआ? उसके स्थान पर दिनांक 04.04.2017 की मुख्य सचिव द्वारा हस्ताक्षरित अधिसूचना में निम्नलिखित बिन्दु मुख्य सचिव द्वारा किस आधार पर निर्धारित किये गये? क्या विभागाध्यक्ष द्वारा कोई तकनीकी आख्या तत्कालीन मुख्य सचिव को दी गयी थी? या अपने मन से आरोप चिन्हित किये गयेः-
(क) पुनरीक्षित लागत रु. 1513 करोड़ में 95 प्रतिशत व्यय किया गया जबकि इस परियोजना का 60 प्रतिशत काम पूरा हुआ।
(ख) गोमती नदी के जल को प्रदूषण मुक्त कराने के स्थान पर अनेक गैर जरूरी कार्यों पर अत्यधिक धनराशि खर्च की गयी।
(ग) कार्यों को कराने के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
(घ) कार्यों की गुणवत्ता, परियोजना में देरी तथा धनराशि अनियमित रूप से खर्च होने के आधार पर जाँच आवश्यक है।
5. उक्त उच्च स्तरीय बैठक में तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा निम्नलिखित तथ्यों से क्यों नहीं अवगत कराया गयाः-
(क) 95 प्रतिशत धनराशि व्यय होने के पश्चात् लगभग 95 प्रतिशत कार्य पूरा हो गया।
(ख) 32 किलोमीटर का ड्रैन प्रदूषित जल ले जाने के लिए मात्र 900 मीटर का निर्माण उनके कार्यकाल 13 सितम्बर 2016 से मार्च 2017 तक क्यों नहीं हो पाया?
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय का म्यूजिकल फाउण्टेन बनाने का निर्णय तत्कालीन मुख्यमंत्री जी द्वारा लिया गया था और जिस पर व्यय का अनुमोदन स्वयं श्री राहुल भटनागर द्वारा व्यय वित्त समिति की बैठक दिनांक 10.06.2016 में लिया गया।
(घ) पर्यावरण की दृष्टिकोण से परियोजना के सम्बन्ध में प्रशासनिक विभाग द्वारा सम्पूर्ण तथ्य माननीय मंत्री परिषद की बैठक दिनांक 18.07.2016 में रखे गये थे।
(ड.) तत्कालीन मुख्य सचिव, श्री राहुल भटनागर के कार्यकाल में उक्त परियोजना में रु. 781.26 करोड़ का व्यय हुआ और तत्कालीन मुख्य सचिव, श्री आलोक रंजन के कार्यकाल तक रु. 656.58 करोड़ का व्यय हुआ।
(च) तत्कालीन मुख्य सचिव, श्री आलोक रंजन के द्वारा दिनांक 08.04.2015 से 30.06.2015 तक 16 बैठक अनुश्रवण समिति की गयीं। दिनांक 06.07.2016 से 13 सितम्बर 2016 तक तत्कालीन मुख्य सचिव, श्री दीपक सिंघल के कार्यकाल में 2 बैठक तथा तत्कालीन मुख्य सचिव, श्री राहुल भटनागर द्वारा सितम्बर 2016 से फरवरी 2017 तक 5 बैठक की गयीं।
(छ) दिनांक 13 सितम्बर 2016 तक प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन निर्धारित समय-सारिणी से आगे चल रहा था और जो भी विलम्ब हुआ वह सितम्बर 2016 के बाद हुआ।
(ज) यदि प्रोजेक्ट अधूरा था तो तत्कालीन मुख्य सचिव, राहुल भटनागर द्वारा उक्त प्रोजेक्ट का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री जी से क्यों कराया?
6. दिनांक 04.04.2017 की अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 162 के अन्तर्गत निहित शक्ति को करते हुए सिंचाई विभाग द्वारा की गयी। उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 162 संविधान के अन्तर्गत प्रारम्भिक निष्कर्ष निकालने हेतु माननीय सेवानिवृत्त न्यायधीश की अध्यक्षता में प्रशासनिक जाँच के आदेश राज्य सरकार कर सकती है लेकिन तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा उक्त अधिसूचना में न्यायिक जाँच करने का आदेश किस प्राविधान के अन्तर्गत दिया गया? उक्त समिति के अन्तर्गत शासकीय नियमों से सुविज्ञ कोई प्रशासनिक अधिकारी अथवा तकनीकी नियमों से सुविज्ञ कोई सेवानिवृत्त इंजीनियर इन चीफ क्यों नहीं रखने का सुझाव दिया गया?
7. उक्त तथाकथित एकपक्षीय न्यायिक जाँच की आख्या की विश्वसनीयता पर प्रथम दृष्टया रूप से प्रश्न चिन्ह लगता है। जाँच आख्या के पृष्ठ सं. 34 में टिप्पणी कि ‘‘वर्तमान मुख्य सचिव अथवा वर्तमान प्रमुख सचिव, सिंचाई का दायित्व नहीं होता है क्योंकि जून 2016 के पश्चात् कुछ ही मीटिंग उक्त समिति की हुई और यह कार्य समाप्ति की ओर अन्तिम अवधि में था’’ साफ तरह से दर्शाता है कि तत्कालीन मुख्य सचिव, श्री राहुल भटनागर द्वारा जाँच प्रभावित की गयी। प्रशासकीय विभाग द्वारा येन-केन-प्रकरेण व्यय वित्त समिति से यह योजना अनुमोदित करायी गयी जैसी गंभीर टिप्पणी किया जाना भी दुर्भाग्यपूर्ण है।
8. अनुश्रवण समिति, जिसमें कि विभिन्न विभागों के प्रमुख सचिव तथा अनेक विभागों के तकनीकी अधिकारी सम्मिलित थे, में से सिर्फ तत्कालीन मुख्य सचिव, आलोक रंजन तथा तत्कालीन प्रमुख सचिव, सिंचाई दीपक सिंघल को चिन्हित कर उन अधिकारियों, जिनके समय में रु. 800 करोड़ से अधिक व्यय हुआ, को दोष-मुक्त निर्धारित करने की प्रक्रिया संदेह से घिरी है।
9. न्यायिक जाँच समिति की आख्या आने के पश्चात् तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा नियमों के अन्तर्गत परीक्षण करने हेतु प्रशासनिक विभाग को क्यों नहीं भेजा गया? तत्कालीन मुख्य सचिव के पास ऐसा कौन-सा तकनीकी ज्ञान या जानकारी थी जिसके आधार पर उनके द्वारा स्वयं उक्त जाँच आख्या को प्रथम दृष्टया गोपनीय रूप से न केवल रिपोर्ट को स्वीकृत कर माननीय मुख्यमंत्री जी को गुमराह किया गया अपितु दोषी अधिकारी भी चिन्हित कर लिये गये।
10. न्यायिक जाँच आख्या में अवयवों के विश्लेषण तथा परियोजन के व्यय के विश्लेषण नियम विरुद्ध होने के बावजूद भी सिंचाई विभाग से अभिमत क्यों नहीं लिया गया?
11. दोषी अधिकारी चिन्हित करने के पश्चात् यदि अखिल भारतीय सेवा के भी अधिकारी उक्त दोषियों में थे तो किस आधार पर नियुक्ति विभाग का अभिमत नहीं लिया गया?
12. दोषी अधिकारी चिन्हित कर कार्यवाही प्रस्तावित करने हेतु माननीय उच्च स्तरीय खन्ना समिति का गठन का सुझाव भी तत्कालीन मुख्य सचिव की मानसिकता को दर्शाता है। जब न्यायिक जाँच समिति द्वारा अपने को दोष-मुक्त लिखवा लिया गया, तत्पश्चात् अपने से वरिष्ठ अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही प्रस्तावित करने हेतु कनिष्ठ अधिकारियों को समिति में क्यों रखा गया?
13. ऐसी जाँच जिसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह हो और एकपक्षीय हो तथा जिसकी संस्तुति का परीक्षण न सिंचाई विभाग, नियुक्ति विभाग, वित्त विभाग से कराया गया हो, के आधार पर दोषी चिन्हित करने की संस्तुति देना अन्तर्गत धारा 177 सपठित 120बी, 466, 467, 468 आई.पी.सी. के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है या नहीं, विचारणीय है।
14. यदि ईमानदारीपूर्वक तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा सारे तथ्य मुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुत किये जाते तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की इस परियोजना का कार्य मौके पर बन्द नहीं होता और अनायास विवाद न बनता।
15. जहाँ उक्त परियोजना के क्रियान्वयन में निविदा आदि या तकनीकी कार्यों में अनियमितता की गयी है, के सम्बन्ध में विस्तृत जाँच कर कार्यवाही आवश्यक है। सिंचाई विभाग में कार्यों के भौतिक सत्यापन की जिम्मेदारी जूनियर इंजीनियर की होती है तथा गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सहायक अभियन्ता की होती है। यह आश्चर्यजनक है कि राहुल भटनागर को इसका कोई ज्ञान नहीं था और पूरे प्रकरण में किसी भी जूनियर इंजीनियर तथा सहायक अभियन्ता की जिम्मेदारी निर्धारित नहीं की गयी।
अनौपचारिक रूप से यह भी ज्ञात हुआ है कि उक्त पत्रावली पर अधिकांश टिप्पणियाँ मुख्य सचिव कार्यालय में वर्षों से अवैधानिक रूप से जमे स्टाफ अफसर श्री पालीवाल द्वारा बनाकर प्रस्तुत की गयीं। तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा कानून, नियम, प्रशासनिक मर्यादा का बिना ध्यान रखे सिर्फ अपने राजनैतिक हित साधने के लिए तथा कुर्सी पर बने रहने के लिए इस प्रकार की घिनौनी कार्यवाही की गयी।
लखनऊ से भड़ास संवाददाता की रिपोर्ट.