जम्बू द्वीप के पर-पीड़क राजा मिडास की कथा… आपको यूनान के उस राजा मिडास की कहानी याद होगी जो अपनी इकलौती संतान अपनी पुत्री मैरीगोल्ड को बेहद प्यार करता था लेकिन उससे भी अधिक प्रेम उसे सोने से था। वह दिन-रात सोना इकट्ठा करने में लगा रहता। दुनिया में किसी भी राजा के पास उसके खजाने के बराबर सोना नहीं था। इस पर भी उसके कोष में सोना जितना ही अधिक बढ़ता, उसकी हवस भी उतनी ही बढ़ती जाती थी। जब वह अपने खजाने में एकत्र किये सोने को गिना करता था तब अपनी पुत्री को भी अनदेखा कर देता था।
उसकी सोने की भूख निरंतर बढ़ती गई। एक बार उसने अन्न-जल त्याग कर ईश्वर की कठोर उपासना करके ईश्वर को प्रसन्न किया और ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया कि वह जिसे भी छू देगा वह सोने का बन जायेगा। यह वरदान पाकर राजा मिडास खुशी से फूला न समाया। दूसरे दिन प्रातःकाल उसने वरदान की शक्ति परखने के लिए अपने पलंग को छूकर देखा, तो वह पलंग सोने का बन गया। मिडास बहुत खुश हुआ। वह दिन भर सुध-बुध खोकर अपने महल की सभी चीज़ों को सोने में परिवर्तित करने में लगा रहा। यहां तक कि उसे भोजन तक का होश न रहा। सोना बनाते-बनाते शाम हो गई, अब वह थककर चूर हो चुका था और उसे जोरों की भूख भी लग आई थी। उसने अपने सेवकों को भोजन लाने का आदेश दिया किंतु भोजन को हाथ लगाते ही वह सोने में परिवर्तित हो गया और मिडास भूखा रह गया। फिर उसने फल खाने चाहे, किंतु वे सब भी सोने के बन गये। बदहवास राजा चीखने-चिल्लाने लगा। इस पर जब उसकी रानी और पुत्री उसके पास आईं तो राजा के छूते ही वे भी सोने में बदल गईं।
लेकिन यह कहानी जम्बूद्वीप के एक ऐसे मिडास की है जिसका बचपन घोर गरीबी में बीता था। कुछ बड़ा हुआ तो एक ढाबे में लोगों के जूठे बर्तन धोने का काम किया। वह दिमाग से बहुत शातिर था, सो जवान होने पर अपने जैसे चालबाज, झूठे और मक्कार ऐसे लोगों के गिरोह में शामिल हो गया जो हर हाल में राज्य की शासन-सत्ता पर अपना प्रभुत्व जमाना चाहते थे। जम्बू द्वीप के उस राज्य की शासन-व्यवस्था के अनुसार मिडास एक बार एक छोटे-से सूबे का मुख्य शासक बन गया। बस फिर क्या था, उसने जम्बूद्वीप भर के बड़े-बड़े धनवान व्यापारियों से सांठगांठ कर इधर-उधर के हालचाल नमक-मिर्च लगाकर फैलाने के धंधेबाज कुछ चाटुकारों को खूब सारा धन व प्रलोभन देकर अपने चारों तरफ झूठ, छल, कपट, प्रंंपच, डर, भय व भ्रम का ऐसा मायाजाल फैलाया कि पूरे जम्बूद्वीप और अन्य राज्यों में प्रजाजनों के बीच उसकी एक कुशल तारणहार की छवि बन गई। ठगों के उसके अपने गिरोह द्वारा गढ़ी गई इसी कृत्रिम आभासी छवि के कारण पूरे जम्बूद्वीप की प्रजा पर जादुई प्रभाव हो गया और सबने मिडास को पूरे राज्य का ही शासक बना दिया।
जबकि वास्तविकता यह थी कि मिडास के छूने से सोने की चीजें राख बन जाती थीं। वह जिस भी चीज को स्पर्श करता, वह अपना मूल स्वरूप खोकर इतनी अधिक विकृत हो जाती थी कि उसे व्यवहार में लाने वाले का जीवन अत्यधिक कष्टों से भर जाता। उसके स्पर्श ही नहीं वाणी में भी ऐसा विषैला प्रभाव था कि लोग सुनकर न केवल भ्रम में पड़ जाते, बल्कि अपना सबकुछ दांव पर लगा बैठते और फिर बाद में सिर धुनते। राज्य के प्रजाजनों को संबोधित करते हुए वह वाणी से भले ही कई बार भाइयों और भैंनों कहता लेकिन भीतर से वह किसी अत्यंत क्रूर कसाई से कम नहीं था। कहा जाता है कि व्यक्ति का चेहरा उसकी मनःस्थिति बता देता है और उसकी आंखें उसके भीतर की झांकी प्रस्तुत करने वाली खिड़कियां होती हैं, इस पैमाने के अनुसार उक्त मिडास की क्रूरता उसके चेहरे, आंखों और उसकी आवाज से साफ झलकती थी जो उसके कसाई होने की चुगली खाती।
पर-पीड़न में सुख का अनुभव करने वाले इस मिडास के पास राज्य में सर्वत्र हा-हाकार, रुदन, पीड़ा, भूख, गरीबी, बेरोजगारी, घृणा, वैमनस्य, लूट, हिंसा, मारकाट, हत्याओं और बर्बादी के अलावा प्रजाजनों को देने के लिए कुछ भी नहीं था। उसने अपनी क्रूरता, मूर्खता, जिद और सनक से अपने ही राज्य में ऐसा वातावरण बना दिया था कि बड़े से बड़ा अधिकारी भी भयभीत रहने लगा। इससे राज्य के सभी जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग तथा उनके अधीस्थ कर्मचारी लोक-कल्याण के काम बंद कर उसे और उसके चाटुकारों को प्रसन्न करने में जुट गये। परिणामस्वरूप राज्य में पुरानी प्रथाओं, परंपराओं, नियम-कानूनों को तिलांजलि देते हुए प्रजा को बर्बाद करने वाली नीतियां और कार्यक्रम लागू किये जाने लगे। देसी-विदेशी बड़े-बड़े धनवानों को खुश कर उनकी दौलत के अंबारों में इजाफा करने के लिए आये दिन नये-नये नियम-कायदे तथा करारोपण लागू करने से जनता में अफरा-तफरी फैल गई जिससे राज्य के किसान, छोटे व्यवसायी, श्रमिक, आदिवासी, उद्योग-धंधे आदि सब बर्बाद हो गये। राज्य के कुछेक चाटुकारों, खुशामदियों, स्वार्थियों और मंदबुद्धि लोगों के अतिरिक्त सर्वत्र हा-हाकार मच गया। ऐसी विकट स्थिति में पर-पीड़न में सुख का अनुभव करने वाले उस क्रूर शासक मिडास को राज्य की दुर्दशा का हाल बताने का साहस किसी में भी नहीं रहा, क्योंकि विपरीत विचार को सुनने की क्षमता उसमें थी ही नहीं। जो भी उसके विरुद्ध आवाज उठाता, वह उसे कठोर दंड देता और यहां तक कि उसे जान से ही मरवा देता। वह चारों तरफ से आने वाली अपनी जै-जैकार के स्वरों के अलावा अन्य कुछ भी सुनने को तैयार ही नहीं था।
‘हारे को हरिनाम’ इस अवधारणा को मन मे लिये पीड़ित-शोषित और बर्बाद कर दिये गये प्रजाजन अपने-अपने धार्मिक विश्वास के अनुसार दिन-रात ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु, जीसस आदि को पुकारते कि हमें इस दुष्टात्मा से शीघ्र छुटकारा दे दो। तभी उस अदृश्य सर्वशक्तिमान ने ऐसा खेल दिखाया कि……
डिस्क्लेमर :– इस कहानी का सम्बंध किसी फेंकू टाइप व्यक्ति से नहीं है….
श्यामसिंह रावत
वरिष्ठ पत्रकार
Amit
February 9, 2018 at 5:30 am
Congress ka dalal
Amit
February 9, 2018 at 5:30 am
Congress ka Dalal
vddv
February 9, 2018 at 10:03 am
chutiya lekhak
Guest
February 14, 2018 at 8:15 am
GobarChhap Bhakto ko Mirch lag gayi:)