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सुख-दुख

बिहार में एक पत्रकार मारा गया तो जंगलराज, यूपी में चार महीने में तीन पत्रकार मारे गए तो कोई खास बात नहीं!

Sanjaya Kumar Singh : मैं पहले ही लिख चुका हूं कि झारखंड के चतरा में पत्रकार की हत्या हुई तो बात आई-गई हो गई। पर बिहार में हुई तो जंगलराज हो गया। उत्तर प्रदेश में चार महीने में तीन पत्रकारों की हत्या हुई। कोई खास बात नहीं। मध्य प्रदेश में पत्रकार संदीप कोठारी को जिन्दा जलाकर दफना दिया गया, छत्तीसगढ़ में भी पत्रकार की हत्या हुई और दिल्ली में भी हुई। फरीदाबाद में एक पत्रकार ने खुदकुशी की पर उसकी हत्या में एक पुलिस वाले को गिरफ्तार किया गया है।

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Sanjaya Kumar Singh : मैं पहले ही लिख चुका हूं कि झारखंड के चतरा में पत्रकार की हत्या हुई तो बात आई-गई हो गई। पर बिहार में हुई तो जंगलराज हो गया। उत्तर प्रदेश में चार महीने में तीन पत्रकारों की हत्या हुई। कोई खास बात नहीं। मध्य प्रदेश में पत्रकार संदीप कोठारी को जिन्दा जलाकर दफना दिया गया, छत्तीसगढ़ में भी पत्रकार की हत्या हुई और दिल्ली में भी हुई। फरीदाबाद में एक पत्रकार ने खुदकुशी की पर उसकी हत्या में एक पुलिस वाले को गिरफ्तार किया गया है।

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इन सब घटनाओं के बावजूद बिहार में पत्रकार की हत्या हुई तो जंगलराज है। हो सकता है झारखंड में रामराज हो। लेकिन मरने वाले पत्रकारों और उनके परिवार के लिए इनमें क्या अंतर? हत्याएं और भी हुई होंगी। पत्रकार की हत्या अगर पेशेगत कारणों से होती है तो निश्चित रूप से बुरी है और चिन्ता का कारण भी। पर हत्या को राजनीतिक रंग देना किस पार्टी की सरकार है उसके आधार पर महत्त्व देना और उस आधार पर खबर को प्रमुखता देना कैसे उचित हो सकता है। ठीक है, कोई पत्रकार बड़ा और कोई छोटा होता है। पर यह उसके काम से तय होना चाहिए। इस बात से नहीं कि उसकी हत्या जहां हुई वहां किस पार्टी की सरकार थी।

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पहले पुलिस कहती थी कि अपराध हमारे क्षेत्र में नहीं हुआ है। अब सोशल मीडिया में भी अपराध कहां हुआ – उससे तय होता है कि चर्चा होनी है कि नहीं। अपराध सामान्य है या सरकार की लापरवाही, नाकामी। अविभाजित बिहार के चतरा में पत्रकार की हत्या होती है, उसकी खबर आती है पर सामान्य अपराध की घटना के रूप में देखी और समझ कर छोड़ दी जाती है। उसके चौबीस घंटे के अंदर कोई साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर सीवान में एक और पत्रकार की हत्या होती है। यह हत्या बिहार सरकार की नाकामी हो जाती है। चतरा में पत्रकार की हत्या सरकार की नाकामी नहीं है क्योंकि चतरा तकनीकी तौर पर झारखंड में है। (सीमा क्षेत्र का मामला है मैं यकीनी तौर पर नहीं कह सकता है कि चतरा में हत्यास्थल झारखंड में ही है, हो सकता है बिहार में ही हो पर चूंकि बिहार और झारखंड पक्का नहीं है इसलिए चतरा की हत्या पर नहीं बोलेंगे) क्योंकि झारखंड में भाजपा की सरकार है। इसलिए झारखंड की हत्या पर सोशल मीडिया में पोस्ट नहीं हैं। ना के बराबर हैं। झारंखंड की हत्या की सूचना भी नहीं है लोगों के पास। सीवान की हत्या पर सब को कुछ ना कुछ कहना है। हर किसी की राय है। जब झारखंड की हत्या पर नहीं है और बिहार की हत्या पर राय दी जा रही है तो समझ सकते हैं कि राय क्या होगी। बिना संपादक की रिपोर्टिंग ऐसे ही होती है। यह है भविष्य की पत्रकारिता, भविष्य की राजनीति और पत्रकारों का भविष्य। लगे रहो भक्तों। मीडिया को गाली देना आसान है।

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बिहार में जंगलराज का प्रचार करने वालों कों बहुत तकलीफ है कि हत्यारों ने एक दिन पहले एक और पत्रकार को जहां मारा वह जगह झारखंड में है और संयोग से वहां भाजपा का राज है। हत्या और पत्रकारों की हत्या में भी राजनीति, खेमेबाजी। वैसे, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के हिसाब से दिल्ली सबसे ऊपर है। बिहार का स्थान 23 वां और उत्तर प्रदेश उससे भी नीचे है। आंकड़े तो आंकड़े हैं, आंकड़ों का क्या? सच यही है कि एक पत्रकार की हत्या जंगलराज में हुई तो एक की राम राज्य में भी!

वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.

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