: रविंद्र अग्रवाल की मुहिम का असर, साथियों को मिला न्याय : अमर उजाला प्रबंधन की मनमानियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र अग्रवाल की एक और मुहिम रंग लाई है। रविंद्र अग्रवाल ने अमर उजाला प्रबंधन की धर्मशाला व पंचकूला यूनिटों में पीस रह कर्मचारियों को उनका हक दिलवाया है। मामला यह था कि अमर उजाला ने अपनी धर्मशाला यूनिट से एडिटोरियल व अन्य प्रमुख विभागों को पैकअप करके शिमला पहुंचा दिया था। जबकि कुछ पद पंचकूला के अधिन कर दिए थे।
इसके चलते करीब सात साल पहले अमर उजाला के एडिटोरियल स्टाफ को धर्मशाला से शिमला स्थित कार्यालय में शिफ्ट करके संपादक सहित डैस्क का सारा काम यहां बदल दिया था। इसके चलते धर्मशालार यूनिट के तहत आने वाले साथियों को भी शिमला भेज दिया गया था। जबकि इनका तबादला नहीं किया गया। इन्हें धर्मशाला यूनिट का इंप्लाई ही दर्शाया जाता रहा। इसके चलते उन्हें पंचकूला यूनिट के तहत मिलने वाले वित्तीय लाभ नहीं मिल पाते थे।
असल खेल की बात करें, तो यहां अमर उजाला ने धर्मशाला यूनिट को घाटे में दर्शाने के लिए बड़ी चालाकी कर रखी है। हिमाचल के ऊपरी जिलों शिमला, सोलन, सिरमौर व किन्नौर को पंचकूला यूनिट के प्रकाशन के तहत रखा है। इसके चलते हिमाचल सरकार सहित बड़े-बड़े संस्थानों व औद्योगिक क्षेत्रों का विज्ञापन पंचकूला यूनिट के खाते में चला जाता है। ऐसे में हिमाचल के खाते में सिर्फ बाकी के आठ जिलों की प्रिंटिंग व यहां के स्टाफ का भारी भरकम खर्च आता है। इस कारण यह यूनिट अखबार की सत्तर फीसदी सर्कूलेशन संभालने के बावजूद विज्ञापन की कमाई पंचकूला में चले जाने के चलते घाटे में रहती है।
हालांकि शुरू में इसका कोई प्रभाव कर्मियों पर नहीं दिखता था, असल खेल तब पता चला जब मजीठिया वेज बोर्ड सामने आया। अमर उजाला ने वेज बोर्ड के नियमों कायदों की धज्जियां उड़ाते हुए जब कमाई के मामले में सभी यूनिटों को अलग दर्शाकर वेतन तय किया तो धर्मशाला के कर्मी पंचकूला से पिछड़ गए। जबकि उनके बाकी साथ हर रोज उनके साथ वाली कुर्सी में उनके जितना ही काम करके ज्यादा वेतन पा रहे थे। पर कर भी क्या सकते थे, दब्बूपन व नौकरी जाने का खतरा जो सामने था। ऐसा बदस्तूर चलता रहा।
उनकी किस्मत तब खुली, जब अमर उजाला प्रबंधन से अकेले अपने दम पर लड़ाई लड़ रहे रविंद्र अग्रवाल ने अमर उजाला प्रबंधन की पब्लिकेशन के नियमों को तोडऩे व कर्मियों के इस उत्पीडऩ की शिकायत जून माह में उपायुक्त कांगड़ा से लिखित तौर पर की। इसमें अमर उजाला पर श्रम कानूनों के साथ-साथ समाचार पत्र के प्रकाशन के नियमों की भी धज्जियां उड़ाने की बात शामिल थी। लिखा गया था कि अमर उजाला धर्मशाला से अपना प्रकाशन बंद कर चुका है, अब केवल नगरोटा बगवां से अखबार ही प्रिंट होती है। इसके बावजूद अखबार में प्रकाशन केंद्र का पता धर्मशाला के जिला आफिस का दिया जा रहा है। जहां केवल जिला प्रभारी ही बैठता है। वहीं शिमला के प्रकाश केंद्र के बारे में न तो आरएनआई और न ही उपायुक्त के समक्ष घोषणा दाखिल की गई है।
फिलहाल इस मामले में जांच कहां तक पहुंची है, यह तो उपायुक्त व विभाग ही जाने, मगर इस मुहिम का असर यह हुआ है कि शिमला में बंधुआ मजदूरों की तरह सात सालों से काम कर रहे धर्मशाला यूनिट के साथियों को अमर उजाला प्रबंधन ने आनन-फानन में पंचकूला यूनिट में स्थानांतरित कर दिया है। इसके साथ ही उनकी तनख्वाह में करीब दो हजार रुपये प्रतिमाह का इजाफा भी हो गया है। यानि चौबिस हजार रुपये सालाना।
मुहिम जारी रहेगी : रविंद्र अग्रवाल
इस संबंध में रविंद्र अग्रवाल से बात की गई तो उन्होंने बताया कि उनकी अब तक की लड़ाई से संस्थान में मानमानी पर लगाम लगी है। उन्होंने बताया कि उन्होंने जून माह में उपायुक्त को एक शिकायत पत्र सौंपा था। इस पर उन्होंने श्रम विभाग को भी मामले की जांच के निर्देश दिए हैं। इसकी लिखित जानकारी कुछ दिन पूर्व ही उन्हें मिली है। उन्होंने कहा कि अमर उजाला प्रबंधन द्वारा जबरन शिमला बिठाए गए धर्मशाला यूनिट के कर्मियों को पंचकूला भेजे जाने की खबर भी कुछ दिन पहले ही उन्हें मिली है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि उनकी मुहिम के चलते सात सालों से अन्याय सह रहे बाकी साथियों को हर माह करीब दो हजार रुपये का लाभ मिला है। उन्होंने कहा कि उनकी जांच तब तक जारी रहेगी, जब तक अमर उजाला प्रबंधन मजीठिया वेज बोर्ड को अक्षरश: लागू नहीं करता।