मजीठिया वेजबोर्ड मांगने पर हुए ट्रांस्फर / टर्मिनेशन के मामले भी छह माह में निपटाने होंगे : सुप्रीम कोर्ट

रविंद्र अग्रवाल की रिपोर्ट

अखबार कर्मियों को दिवाली के बाद छठ का तोहफा, पंकज कुमार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया उत्साहजनक आदेश…

अखबार मालिकों के सताए अखबार कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट से एक और बड़ी राहत भरी खबर मिली है। माननीय सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस गोगोई और जस्टिस सिन्हा की बैंच ने आज मजीठिया वेजबोर्ड मांगने पर की गई टर्मिनेशन और ट्रांस्फर के मामलों को भी छह माह में निपटाने के आदेश जारी किए हैं। आज दैनिक जागरण गया के कर्मचारी पंकज की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों के खिलाफ लगाई गई अवमानना याचिाकाओं पर 19 जून को दिए गए आने निर्णय के पैरा नंबर 28 में बर्खास्तगी और तबादलों को लेकर दिए गए निर्देशों को भी वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 17(2) के तहत रेफर किए गए रिकवरी के मामलों में 13 अक्तूबर को दिए गए टाइम बाउंड के आर्डर के साथ अटैच करते हुए इन मामलों की सुनवाई भी छह माह के भीतर ही पूरी करने के निर्देश जारी किए हैं।

मजीठिया की जंग : दस दिन में भेजें नेशनल यूनियन की सदस्यता सूची

मजीठिया वेजबोर्ड को पूरी तरह लागू करवाने की जंग को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बनाई जा रही नेशनल यूनियन के गठन के लिए सभी राज्यों के मजीठिया क्रांतिकारियों से निवेदन है कि वे अपने क्षेत्र या राज्य में मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई  लड़ रहे या इसमें शामिल होने के इच्छुक साथियों की सूची नीचे दिए जा रहे फारमेट के अनुसार तैयार करके ए-4 कागज पर प्रिंट करने के बाद सदस्यों के हस्ताक्षर करवाकर दस दिनों के भीतर भिजवाने की व्यवस्था करवाने का कष्ट करें। इसके अलावा इसी फारमेट के अनुसार बनाई गई सूची की साफ्ट कापी में सदस्य के संस्थान और उसके पद की अतिरिक्त जानकारी भी भर कर मेल करने का भी कष्ट कीजिएगा। नीचे दिया गए फारमेट को ही प्रिंट करने के बजाय इसी तरह की डॉक्युमेंट फाइल बनवा कर टाइम या एरियल फांट में १० या १२ साइज में यह जानकारी टाइप करवाएं।

हिमाचल प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्‍टस यूनियन गठित, मजीठिया को लेकर निर्णायक जंग की तैयारी

मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड को लागू करवाने और प्रबंधन के उत्‍पीड़न के खिलाफ पिछले दिन वर्षों से लड़ाई लड़ रहे वरिष्‍ठ पत्रकार रविंद्र अग्रवाल के प्रयासों से हिमाचल प्रदेश में पहली बार पत्रकार एवं गैर-पत्रकार अखबार कर्मियों की यूनियन का गठन कर लिया गया है। हिमाचल के कई पत्रकार और गैरपत्रकार साथी इस यूनियन के सदस्‍य बन चुके हैं और अभी भी सदस्‍यता अभियान जारी है। एक जून को इस हिमाचल प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्‍टस यूनियन(एचपीडब्‍ल्‍यूजेयू) के नाम से गठित इस कर्मचारी यूनियन में पत्रकार और गैरपत्रकार दोनों ही श्रेणियों के अखबार कर्मियों को शामिल किया जाएगा। नियमित और संविदा/अनुबंध कर्मी भी यूनियन के सदस्‍य बन सकते हैं, वशर्ते इनका पेशा सिर्फ अखबार के कार्य से ही जुड़ा होना चाहिए।

थू है ऐसे राष्ट्रीय चैनलों पर, जिन्हें दिल्ली के बाहर की बेटियों का दर्द नहीं दिखता

इन दिनों देवभूमि हिमाचल प्रदेश की जनता एक बेटी से हुए गैंगरेप के बाद उसकी नृशंस हत्या के मामले को लेकर सड़कों पर है। दसवीं की इस छात्रा गुडिय़ा के साथ कातिलों ने जो किया, वह दिल्ली में हुए निर्भयाकांड से भी कहीं ज्यादा अमानवीय और दहलाने वाला अपराध था। इस मामले में हिमाचल की पुलिस की कार्यप्रणाली शक के घेरे में है और प्रदेश की वीरभद्र सरकार के प्रति भी जनता में भारी रोष है। राजनीतिक दल इस मुद्दे पर खुलकर राजनीति कर रहे हैं। सरकार ने मामले की जांच पुलिस से छीन कर सीबीआई को सौंप दी है। हाई कोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए सीबीआई को तुरंत जांच करने के साथ कुछ सख्त दिशानिर्देश दिए हैं। इस बीच पुलिस द्वारा पकड़े गए छह आरोपियों में से एक की पुलिस कस्टिडी में उसके ही साथी आरोपी ने हत्या कर दी है।

नहीं रहे धर्मशाला के वरिष्ठ पत्रकार राकेश पठानिया

(स्व. राकेश पठानिया)

एक कलमकार की मौत और सौ सवाल : कहने को तो अब हिमाचल प्रदेश का शहर धर्मशाला प्रदेश की दूसरी राजधानी है और स्मार्ट सीटी भी बनने जा रही है, मगर आज से दो दशक पहले भी धर्मशाला की प्रदेश की राजनीति में काफी अहमियत थी। तब की पत्रकारिता आज के दौर से कहीं अलग और काफी मुश्किल भरा टास्क थी। कुछ गिनी चुनीं अखबारें प्रदेश के बाहर से छपकर आती थीं और इनके पत्रकारों के तौर पर घाघ लोगों का कब्जा था। किसी नए खबरनवीस के लिए अखबार में जगह तलाशना कोयले के खान में हीरा तलाशने जैसा मुश्किल काम था। सीनियर भी ऐसे थे, जो उस समय के दौर में मिलने वाली तबज्जों और आवभगत के चलते किसी को करीब फटकने नहीं देते थे, और शागिर्द की बात करें तो ऐसा सांप सूंघ जाता था कि मानो वह एकलव्य बनकर उनके लक्ष्य को भेदने को तैयार हो।

मजीठिया : यह है 16 नवंबर, 2016 की तारीख का कोर्ट आर्डर

जागरण प्रकाशन लिमिटेड की ओर से सीनियर काउंसिल श्री अनिल दीवान ने उपस्थित होकर मामले के प्रतिभागी द्वारा तैयार की गईं कानूनी प्रस्तुतियों पर विचार किए जाने को लेकर प्रारंभिक आपत्ति दर्ज करवाई गई कि यह नए सवाल उठाती हैं जो इस न्यायालय द्वारा पारित आदेशों के दायरे से बाहर जा रही हैं, इस संबंध में अवज्ञा का आरोप लगाया गया। श्री दीवान ने आगे कहा कि अवमानना के अधिकार क्षेत्र की कसरत में इस तरह के सवालों पर निर्णय नहीं लिया जा सकता है।

भांड पत्रकारिता के दौर में देश का मनोबल बढ़ा हुआ है

-रवीश कुमार-

बलों में बल मनोबल ही है। बिन मनोबल सबल दुर्बल। संग मनोबल दुर्बल सबल। मनोबल बग़ैर किसी पारंपरिक और ग़ैर पारंपरिक ऊर्जा के संचालित होता है। मनोबल वह बल है जो मन से बलित होता है। मनोबल व्यक्ति विशेष हो सकता है और परिस्थिति विशेष हो सकता है। बल न भी रहे और मनोबल हो तो आप क्या नहीं कर सकते हैं. ये फार्मूला बेचकर कितने लोगों ने करोड़ों कमा लिये और बहुत से तो गवर्नर बन गए। जब से सर्जिकल स्ट्राइक हुई है तमाम लेखों में यह पंक्ति आ जाती है कि देश का मनोबल बढ़ा है। हमारा मनोबल स्ट्राइल से पहले कितना था और स्ट्राइक के बाद कितना बढ़ा है,इसे कोई बर्नियर स्केल पर नहीं माप सकता है। तराजू पर नहीं तौल सकता है। देश का मनोबल क्या होता है, कैसे बनता है, कैसे बढ़ता है, कैसे घटता है।

मजीठिया : श्रमायुक्तों को शक्तियां देकर रिकवरी की गई आसान, शिकायतें निपटाने को छह सप्ताह का समय

अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा आदेश में 23 अगस्त की सुनवाई के दिन उपस्थित चार राज्यों के श्रमायुक्तों को वेजबोर्ड लागू करवाने और शिकायतकर्ताओं की सुनवाई स्वयं करने के आदेश जारी किए हैं। वहीं 20जे के मामले में उत्साहित कर्मियों को इन आदेशों से निराशा जरूर हुई है, मगर कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगली सुनवाई के दिन यानि 04 अक्तूबर, 2016 को इस पर प्रबंधन का पक्ष सुनने के बाद निर्णय दे दिया जाएगा। हालांकि सुनवाई के दौरान जिस प्रकार से जज ने जागरण प्रबंधन के वकील को 20जे के संबंध में स्पष्ट कर दिया है, उससे यह बात साफ हो चुकी है कि अब अगली बार 20जे पर फैसला कर्मचारियों के पक्ष में ही रहेगा।

मजीठिया वेज बोर्ड : महज 20j ही नहीं और भी हैं खतरे

मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर 19 जुलाई को माननीय सुप्रीम कोर्ट का जो आदेश आया है, उसमें पांच राज्यों के बैच को विस्तृत सुनवाई के लिए चुना गया है। इनमें उत्तर प्रदेश, हिमाचल, उत्तराखंड, नागालैंड और मणिपुर राज्य शामिल हैं। यहां असमंजस की स्थिति यह है कि इस आदेश में माननीय न्यायालय ने सिर्फ 20j को बहस का मुद्दा घोषित किया है। हालांकि अधितर बड़े अखबारों ने इसी 20j के सहारे अपने कर्मचारियों से जबरन हस्ताक्षर करवा कर मजीठिया वेज बोर्ड लागू करने से बचने की नाकाम कोशिश की है। वहीं कई अखबारों ने इसके अलावा भी कई तरह के हथकंडे अपनाए हैं।

एंकरों की टोली टीवी पर त्रिनेत्र खोल देती है, तांडव करने लगते हैं : रवीश कुमार

जनमत एक प्रोडक्ट है और दर्शक उपभोक्ता

आत्मकथाओं के लिए इतना सारा मीडिया हो गया है फिर भी लोग अलग से आत्मकथाएँ छाप रहे हैं । सोशल मीडिया पर रोज़ आत्मकथाएँ लिखी जा रही हैं । खाने से लेकर मिलने और नहाने तक की आत्मकथा। फूलों की तस्वीरों के साथ गुडमार्निंग के संदेश भेजने वाले बीमार लोगों का मक़सद ध्यान खींचना है या वाक़ई फूलों की खुश्बू से भर देना है ? हलो और नमस्कार लिखने वाले लोग क्या चाहते हैं पता नहीं चलता । इनबाक्स मनोविकारों का बक्सा है । तो सोचा कि मैं अपनी व्यथा की कथा कैसे कहूँ । पहले एक कविता सुनने का बोझ आप पर डालना चाहता हूँ । ये कविता is written by me but how come I have not twitted yet!

स्व. अतुल जी के साथ चले गए अमर उजाला के सिद्धांत

पिछले दिनों अमर उजाला के नवोन्मेषक स्व. अतुल माहेश्वरी जी की पुण्यतिथि थी। अमर उजाला ने उनको याद करने की औपचारिकता भी निभाई, मगर सवाल यह है कि क्या अमर उजाला की नई मैनेजमेंट के दिमाग में उनकी नीतियां व दूरगामी सोच अभी अमर उजाला में जिंदा या है या फिर उनके साथ ही उनके मूल्यों का भी देहावसान हो चुका है। वैसे मौजूदा परिस्थितियों का आकलन करें, तो ऐसा लग नहीं रहा कि उनके जाने के बाद उनके द्वारा स्थापित सिद्धांतों तथा मूल्यों को पोषित किया जा रहा है। अब हालात बदल चुके हैं। शायद ऐसा होना भी चाहिए, क्योंकि हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता, मगर एक पद की परंपरा व मूल्य एक जैसे हो सकते हैं। ऐसा होने से ही तो आदर्श स्थापित होते हैं। अब असल बात यह है कि स्व. अतुल जी के निधन के बाद अमर उजाला में स्थापित मूल्यों का पतन होता जा रहा है या यह कहें कि उनकी हत्या कर दी गई है या नहीं।

रवीश कुमार ने पूछा- क्या रिपोर्टिंग का अंत हो गया है?

आपने न्यूज़ चैनलों पर रिपोर्टिंग कब देखी है ? जिन चैनलों की पहचान कभी एक से एक रिपोर्टरों से होती थी, उनके रिपोर्टर कहाँ हैं ? अब किसी ख़बर पर रिपोर्टर की छाप नहीं होती । रिपोर्टर का बनना एक लंबी प्रक्रिया है । कई साल में एक रिपोर्टर तैयार होता है जो आस पास …

ट्वीटर और फेसबुक पर मेरे नाम का दुरुपयोग कर घटिया बातें लिखी जा रही हैं : रवीश कुमार

मेरे नाम से समय समय पर सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाया जाते रहता है। इस मुल्क की संस्थाएँ इतनी फटीचर हो चुकी है आप उनसे संपर्क भी नहीं कर सकते कि कौन फैला रहा है और उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए। ट्वीटर और फेसबुक पर नकली आईडी से मेरे नाम का इस्तमाल किया जा रहा है। तस्वीर लगाकर मेरे नाम से अनाप शनाप बातें कही जा रही है। ऑनलाइन दुनिया के गुंडाराज से किसे दिक्कत नहीं हो रही है? क्या ये वही हैं जिन्हें जंगलराज से दिक्कत हो रही है? ये कैसा घटिया समाज है जो मुझे अकेला छोड़ इस गुंडागर्दी को सह रहा है। मैं गिन रहा हूँ। देख रहा हूँ।

शिमला में तैनात धर्मशाला के कर्मी सात साल बाद पंचकूला स्थानांतरित, वेतन में इजाफा

: रविंद्र अग्रवाल की मुहिम का असर, साथियों को मिला न्याय : अमर उजाला प्रबंधन की मनमानियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र अग्रवाल की एक और मुहिम रंग लाई है। रविंद्र अग्रवाल ने अमर उजाला प्रबंधन की धर्मशाला व पंचकूला यूनिटों में पीस रह कर्मचारियों को उनका हक दिलवाया है। मामला यह था कि अमर उजाला ने अपनी धर्मशाला यूनिट से एडिटोरियल व अन्य प्रमुख विभागों को पैकअप करके शिमला पहुंचा दिया था। जबकि कुछ पद पंचकूला के अधिन कर दिए थे।

अमर उजाला ने हिमाचल हाईकोर्ट में दाखिल कर दिया अपना जवाब

आखिर अमर उजाला ने सात महीनों से अपनाए जा रहे टालमटोल रवैये के बीच हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की सख्ती के चलते मजीठिया वेज बोर्ड से संबंधित मामले में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। रविंद्र अग्रवाल की याचिका पर 11 मार्च को कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान हालांकि अमर उजाला की रिप्लाई की फाइल आन रिकार्ड नहीं आ पाई थी, मगर अमर उजाला के वकील ने कोर्ट को बताया कि जवाब दाखिल कर दिया गया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने रविंद्र के वकील को रिज्वाइंडर फाइल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। अगली तारीख एक अप्रैल को रखी गई है।

मजीठिया वेज बोर्ड संघर्ष : अमर उजाला को जवाब दायर करने का अब आखिरी मौका, भारत सरकार भी पार्टी

अमर उजाला हिमाचल से खबर है कि यहां से मजीठिया वेज बोर्ड के लिए लड़ाई लड़ रहे प्रदेश के एकमात्र पत्रकार को सब्र का फल मिलता दिख रहा है। अमर उजाला के पत्रकार रविंद्र अग्रवाल की अगस्त 2014 की याचिका पर सात माह से जवाब के लिए समय मांग रहे अमर उजाला प्रबंधन को इस बार 25 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आखिरी बार दस दिन में जवाब देने का समय दिया है। अबकी बार कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि अगर इस बार जवाब न मिला तो अमर उजाला प्रबंधन जवाब दायर करने का हक खो देगा और कोर्ट एकतरफा कार्रवाई करेगा।

मजीठिया की जंग : जो लेबर इंस्पेक्टर कभी अखबार दफ्तरों की तरफ झांकते न थे, वे आज वहां जाकर जानकारी मांगने को मजबूर हैं

साथियों,  हिमाचल प्रदेश में मजीठिया वेज बोर्ड लागू करने को लेकर मेरे द्वारा बनाया गया दबाव काम करता नजर आ रहा है। हालांकि श्रम विभाग हरकत में तो आया है, मगर अखबार प्रबंधन के दबाव के भय और सहयोग न करने की आदत के चलते श्रम निरीक्षकों को वांछित जानकारी नहीं मिल पा रही है। राहत वाली खबर यह है कि जो श्रम निरीक्षक कभी अखबारों के दफ्तरों की तरफ देखने से भी हिचकिचाते थे, वे आज वहां जाकर जानकारी मांगने को मजबूर हैं। जैसे की आपको ज्ञात है कि मैं मजीठिया वेज बोर्ड के खिलाफ मई २०१४ से लड़ाई लड़ रहा हूं। श्रम विभाग में शिकायतों व आरटीआई के तहत जानकारियां मांगने का दौर जारी है। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में पिछले सात माह से मामला चल रहा है। हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट में भी लड़ाई पहुंचा दी है।

लेबर आफिसर ने अमर उजाला को नोटिस जारी किया

रविंद्र अग्रवाल मामले में लेबर आफिसर धर्मशाला ने अमर उजाला को नोटिस जारी किया है। मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर की गई शिकायत के बाद प्रबंधन ने रविंद्र का ट्रांसफर जम्मू कर दिया था। इसे प्रताड़ित किये जाने की कार्रवाई मानते हुए रविंद्र ने जम्मू ज्वाइन नहीं किया था। इसके बाद प्रबंधन ने उन्हें निपटाने की तैयारी कर ली थी, लेकिन बेज बोर्ड का मामला हाई कोर्ट में लगने के बाद प्रबंधन पीछे हट गया था।

मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे रविंद्र अग्रवाल मामले में अमर उजाला प्रबंधन ओछी हरकतों पर उतरा

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मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे हिमाचल के एकमात्र रिपोर्टर रविंद्र अग्रवाल के मामले में अमर उजाला प्रबंधन ओछी हरकतों पर उतर आया है। प्रबंधन ने पहले तो उत्पीड़न करने के लिए रविंद्र को जम्मू भेजा और अब जब वे जम्मू ज्वाइन करने से पहले छुट्टी पर चल रहे थे तो उनको इससे रोकने के लिए उनकी माई एयू वाली आईडी ही ब्लाक कर दी है। इतना ही नहीं, उनकी अमर उजाला की मेल आईडी भी बंद कर दी गई है। पता चला है कि पांच अगस्त को उनकी माता की तबियत बिगड़ने के कारण उन्हें अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ा था। इस कारण वे छुट्टी पर थे।