च्यांग काई शेक का जन्म चीन के चीकियांग प्रान्त में चिकोउ नामक कस्बे के एक साधारण परिवार में 1887 में हुआ था। च्यांग ने सैनिक शिक्षा के अतिरिक्त चीन के प्राचीन ग्रंथों और आधुनिक विषयों का भी अध्ययन किया। टोकियो में सैनिक कॉलेज में अध्ययन के दौरान वह चीन की राष्ट्रवादी पार्टी कुओमितांग (KMT) के प्रभावी नेता सुनयातसेन के क्रांतिकारी संगठन ‘तुंग मेंग हुई’ का सक्रिय सदस्य बना।
चीन लौटने पर उसने शंघाई के क्रांतिकारी नेता चेन ची मेई की सेना की एक बिग्रेड का नेतृत्व करते हुए 1911 की क्रांति में भाग लिया। चीन के आंतरिक युद्धों में क्रांतिकारियों के पक्ष में लड़ता हुआ वह सुनयातसेन का विश्वासपात्र बन गया और 1923 में एक सैनिक अकादमी का प्रमुख बना। जहां साम्यवादियों से उसका संघर्ष प्रारंभ हो गया। उसने अपने सहपाठियों को अकादमी में उच्च पदों पर नियुक्त किया जबकि साम्यवादियों को सैनिक उच्च पदों से वंचित रखा।
12 मार्च, 1925 को सनयात सेन की मृत्यु के बाद च्यांग काई शेक ही कुओमितांग दल का प्रधान बना। उसकी सद्भावना व्यवसायियों व जमींदारों के साथ थी। उसने साम्यवादियों को कुओमितांग दल से निष्कासित कर दिया। च्यांग का मानना था कि कम्युनिस्ट शक्तिशाली होते जा रहे हैं जो जमींदारों पर आक्रमण कर उनकी सम्पत्ति पर कब्जा कर रहे हैं। अतः इन्हें समाप्त करना आवश्यक है। च्यांग काई शेक ने कम्युनिस्टों को पार्टी से निकाल कर शुद्धीकरण आंदोलन चलाया जिसमें हजारों कम्युनिस्ट, ट्रेड यूनियनिस्ट तथा किसान नेता मारे गए। इस तरह च्यांग काई शेक ने अपनी सत्ता को मजबूती से स्थापित किया। वहाँ राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हुई और च्यांग काई शेक उसका राष्ट्रपति बना।
1. कुओमितांग दल की अलोकप्रियता एवं भ्रष्ट शासन―च्यांग काई शेक की तानाशाही के दौरान चीन की बेहद दुर्दशा हुई। उसके नेतृत्व में कुओमितांग सरकार भ्रष्ट और निकम्मी थी। उसके पास जनता को सुधार के रूप में देने के लिए कुछ नहीं था। उसने ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं चलाया जिससे व्यापक जनता को लाभ हो। इतना ही नहीं कुओमितांग सरकार ने अपना अधिकांश समय उद्योगपतियों, बैंकरों व जमींदारों के हितों की रक्षा में गंवाया।
2. सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार व अन्य कमजोरियाँ―शासन में भारी भ्रष्टाचार व्याप्त था। सरकार के अधिकारी बहुत अधिक भ्रष्ट और अक्षम थे। सार्वजनिक संपत्ति जनता की बजाय निजी व्यापारिक घरानों द्वारा प्रयुक्त हो रही थी। कर्मचारियों की भर्ती और पदोन्नति योग्यता पर आधारित न होकर च्यांग की भक्ति पर आधारित थी। सर्वत्र चापलूसों की भरमार थी। औद्योगिक उत्पादन, खेती व अन्य कुटीर उद्योग ठप्प थे। ऐसी स्थिति में सरकार ने जनता का विश्वास खो दिया।
3. समाज के विभिन्न वर्गों में सामाजिक-आर्थिक असंतोष―च्यांग काई शेक की कुओमितांग सरकार द्वारा किसानों की गरीबी दूर करने के लिए कुछ भी नहीं किया गया। सूखे और अकाल से पीड़ित कृषकों की दशा बेहाल थी। तो दूसरी ओर शहरों में मुनाफाखोरों व व्यापारियों-सौदागरों के पास अनाज की कमी नहीं थी। च्यांग के आसपास सदैव मंडराते रहने वाले खुशामदी और चापलूस उसकी झूठी प्रशंसा करते रहते थे। इससे वह और भी अधिक गर्वोन्मत्त रहने लगा। दक्षिणपंथी विचारों के पृष्ठपोषक च्यांग को चीनी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद बहुत भाता था और यही उसके प्रगतिशील वामपंथियों से टकराव तथा उसके पतन का मुख्य कारण था।
4. राष्ट्रवादी सरकार का साम्राज्यवादी शक्तियों के साथ सम्बंध―सरकार पर विदेशी पूँजीपतियों का अत्यधिक प्रभाव था और वे चीन का जमकर शोषण कर रहे थे। इस शोषण को रोक पाने में कुओमितांग सरकार असमर्थ थी। फलतः स्वदेशी पूँजीपति वर्ग सहित सामान्य जन भी सरकार के विरोधी हो गए। वस्तुतः जन-समर्थन हासिल करने के लिए कुओमितांग सरकार ने कोई ठोस सामाजिक, आर्थिक कार्यक्रम पेश नहीं किया।
5. चीन में अमेरिका का प्रभुत्व―चीन की राष्ट्रवादी कुओमितांग सरकार का अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी देशों के साथ सम्बंध था। चीनी अर्थ-व्यवस्था अमेरिकी आर्थिक साम्राज्यवादी नीति से परिचालित हो रही थी। चीन की बैकिंग व्यवस्था पर अमेरिकी बैंक का नियंत्रण था। चीन में अत्यधिक मात्रा में अमेरिकी सामान का आयात हो रहा था। यह मात्रा इतनी अधिक हो गई थी कि चीन की अधिकांश औद्योगिक इकाइयाँ बंद हो गईं और तमाम मजदूर बेकार हो गए। इसी कारण किसान-मजदूर आदि लोगों ने सरकार की नीतियों से असंतुष्ट होकर गृहयुद्ध में चीनी साम्यवादियों का साथ दिया। फलतः साम्यवादियों को सफलता मिली और पराजित च्यांग को चीन छोड़ कर फारमोसा भाग जाना पड़ा। जहाँ दिसंबर, 1943 में उसने चीन की राष्ट्रवादी सरकार का गठन किया।
संघियों का भारत―
पाठक अब तक यह तो समझ ही चुके होंगे कि च्यांग काई शेक की तथाकथित राष्ट्रवादी सरकार ने चीन की जैसी दुर्गत कर दी थी, आज भारत में संघ के सर्वश्रेष्ठ स्वयंसेवक नरेद्र मोदी के नेतृत्व वाली स्वघोषित राष्ट्रवादी सरकार के क्रिया-कलापों में कोई विशेष अंतर नहीं है। बल्कि जिस तरह मोदी ने तमाम संवैधानिक संस्थाओं तथा मीडिया का गला घोट दिया है, नोटबंदी व जीएसटी से देश की अर्थ-व्यवस्था की कमर तोड़ डाली है, देश के संविधान, न्यायालय, सामाजिक सद्भाव और लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है, छद्म राष्ट्रवाद तथा सांस्कृतिक पुनर्जागरण के नाम पर दूसरे संप्रदाय वालों को घृणा व तज्जनित हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है, इससे तो संघियों की मोदी सरकार ने च्यांग काई शेक को मीलों पीछे छोड़ दिया है।
इन हालातों को देखते हुए मन में शंका का उठना स्वाभाविक है कि कहीं भारत को भी शीघ्र ही च्यांग काई शेक के तथाकथित राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पुनरोत्थान की तरह गृहयुद्ध की विभीषिका में नहीं झौंक दिया जायेगा।
श्याम सिंह रावत
वरिष्ठ पत्रकार