संजीव महाजन की दल्लागिरी के बारे में सबको पता था. यह उगाही करता था. अपने आकाओं तक उगाही की रकम पहुंचाता था. इसको भास्कर में ही पूरा संरक्षण हासिल था. सवाल है कि दैनिक भास्कर प्रबंधन सिर्फ संजीव महाजन पर कार्रवाई करके छुट्टी पा लेगा या उसके आका का भी पता लगाकर उनको रुखसत करेगा. संजीव का आका अगर पावरफुल बना रहा तो वह नया संजीव महाजन पैदा कर देगा. बुराई की जड़ पर प्रहार जरूरी है.
संजीव महाजन के बॉस के बारे में कहा जा रहा है कि वह संजीव को हमेशा बचाता रहता था. संजीव महाजन कभी गली कूचों में प्लास्टिक की गेंद से क्रिकेट खेलता था और एक कॉलोनी के एक मकान में रहता था. फिर यह अचानक दैनिक भास्कर के एक पत्रकार के चुंगल में आया. दैनिक भास्कर के पत्रकार ने इससे वसूली कराना शुरू कर दिया. संजीव और उसका आकर दैनिक भास्कर में तरक्की पर तरक्की पाते गए. दोनों की इस जोड़ी की बिजनेस फील्ड में जोरदार बैटिंग को देखकर प्रबंधन ने इन्हें एक साथ गेम खेलने में लगा दिया.
कुछ लोगों का कहना है कि इन दोनों लोगों को दैनिक भास्कर के एक मालिक तो फूटी आंख नहीं देखना चाहते थे लेकिन दूसरा दिल्ली वाला मालिक इन दोनों को प्रोटेक्ट करता रहता था. बताया जाता है कि कल्पेश याग्निक भी इस जोड़ी को पसंद नहीं करते थे. इसलिए असली मुजरिम संजीव महाजन नहीं बल्कि उसको संरक्षण देने वाला उसका बॉस है जो अब भी अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ है.
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