वीरेंद्र यादव-
कल पुस्तक मेला में राजकमल प्रकाशन के जलसाघर में मंच संवाद से मुक्त होने के बाद मित्र अब्दुल बिस्मिल्लाह के साथ अंग्रेजी के पैवेलियनों का फेरा किया तो वहाँ पेंगुइन सहित कई अन्य प्रमुख स्टालों पर पाठकों का रेला चल रहा था. अब्दुल बिस्मिल्लाह अंग्रेज़ी का नया ताजा फिक्शन तलाश रहे थे तो मेरी निगाह कुछ वैचारिक लेखन पर टिकी थीं.
बहरहाल कुछ पुस्तकें हमने अपनी अलग अलग पसंद से चुनी और खरीदीं. लेकिन जिस एक पुस्तक को हम दोनों ने खरीदा, वह थी लंबे दौर तक टाइम्स आफ इंडिया के प्रधान संपादक रहे शाम लाल की Indian Realties. यह ‘लाइफ एंड लेटर्स’ शीर्षक स्तंभ में प्रकाशित उनके लेखों का संग्रह है. उस दौर में इन्हें पढ़ा था., लेकिन पुस्तक रुप में इन्हें पढ़ना भारतीय समाज के एक पूरे गुजरे दौर से रुबरु होना था.
याद था कि कभी इसी स्तंभ में उन्होंने प्रेमचंद पर एक लेख लिखा था, इंडेक्स में यह लेख तो मिला ही , साथ ही सुखद आश्चर्य हुआ शाम लाल के ‘मैला आँचल’ पर लेख को देखकर. और इस लेख पर डेडलाइन 15 जुलाई 1955 और इसके प्रकाशक के रुप में ‘समताघर पटना’ का उल्लेख है. यानि यह लेख ‘मैला आँचल’ के प्रकाशित होते ही लिखा गया था तब लिखा गया था, जब इसकी न तो शोहरत हुई थी और न किसी बड़े प्रकाशन ने इसेतब तक छापा था.
यह थी ‘मैला आँचल’ की शक्ति और शाम लाल की पारखी निगाह. इस पुस्तक में मुक्तिबोध, निर्मल वर्मा से लेकर ‘नई कविता’ तक पर लिखे लेख शामिल हैं. अंग्रेज़ी अखबार के संपादक का यह विषय विस्तार सचमुच विस्मयकारी है, आज अंग्रेजी में भी शायद ही ऐसा कोई विद्वान संपादक हो! हिंदी में तो खैर इस दौर में यह असंभव ही है. लेकिन यह देखकर अफसोस हुआ कि वर्ष 2007 में रुपा से इसका पहला पेपरबैक संस्करण प्रकाशित हुआ था और वही अब तक बिक नहीं पाया, यानि कि पैपरबैक के दूसरे संस्करण की नौबत ही नहीं पाई. शाम लाल सरीखे विद्वान पुस्तक प्रेमी की पुस्तक की यह नियति आज के अंग्रेज़ी बौद्धिक पाठक समुदाय पर एक टिप्पणी भी है.