गोविन्द पंत राजू-
भड़ास में सीनियर वीडियो जर्नलिस्ट राजेश कुमार द्वारा वरिष्ठ पत्रकार श्रवण शुक्ल पर लगाए गए आरोपों के बारे में पढ़ा। ये आरोप पूरी तरह निराधार व एकपक्षीय हैं। सच्चाई यह है कि राजेश कई वर्ष पूर्व श्रवण के पुश्तैनी घर में घरेलू नौकर की तरह आया था। श्रवण के पिताजी के बाद वह श्रवण की दो बहनों के घर पर भी रहकर काम करता रहा। बाद में श्रवण जब लखनऊ में ईटीवी के ब्यूरो प्रमुख थे तब उन्होंने राजेश को अपने दफ्तर में कार्यालय सहायक के तौर पर रह लिया। उन दिनों भी राजेश उन्ही के साथ उनके घर में ही रहता था।जब ईटीवी का विस्तार होना शुरू हुआ तो श्रवण ने पहले अपने घर पर काम करने वाले श्रवण वर्मा को कैमरा सिखवा कर कैमरामैन रखवा दिया। इसके बाद उन्होंने कम पढ़ा लिखा होने के बावजूद राजेश को भी कैमरा सिखवा कर उसे भी कैमरामैन बनवा दिया। इस दौरान आठ वर्ष से भी अधिक की अवधि तक राजेश श्रवण के घर पर ही रहता रहा। उसके खाने कपड़े आदि की जिम्मेदारी शुक्ल परिवार ही उठाता रहा।
इसके बाद राजेश का तबादला आगरा हो गया। आगरा में बहुत परेशनियों का सामना करने के बाद श्रवण ने ही राजेश को फिर से लखनऊ बुलवा लिया। इस बीच श्रवण खुद लखनऊ छोड़ चुके थे लेकिन आगरा से वापस आने के बाद उन्होंने राजेश को अपने सराय माली खां वाले घर में रहने की जगह दे दी ,यह घर उन दिनों खाली था।इसके बाद पिछले पांच साल से राजेश इसी घर में रह रहा था।
राजेश का यह आरोप बिलकुल बेबुनियाद है कि वह श्रवण शुक्ल के घर पर किराएदार की हैसियत से रहता था। उसे तो परिवार से पुराने संबंधों के कारण खाली पड़े घर में रहने की जगह दी गयी थी।बाद में श्रवण स्वयं भी परिवार सहित इसी घर में रहने के लिए आ गए थे और अभी भी वहीँ रह रहे हैं।
जहाँ तक 8 अप्रैल वाली घटना की बात है वह भी राजेश ने अपने शिकायती पत्र में पूरी तरह झूठ और तथ्यों को तोड़मरोड़ कर लिखी है। श्रवण शुक्ल के अनुसार , ” उस दिन की घटना कुछ इस तरह से हुयी थी : 7 अप्रैल को राजेश ऑफिस से जल्दी घर आ गया था और बिना कुछ बात किये सीधा ऊपर चला गया। अमूमन ऐसा होता नहीं था कि राजेश थोड़ी देर बात किये बिना ऊपर चला जाता हो । रात में मैंने जब उससे बुलाया तो उसने कहा भय्या पेट ख़राब था इसीलिये ऑफिस से चला आया ।मैंने जब उसकी आँखें देखी तो वे लाल थी। मैंने उसको बोला बेटा आप तुरंत कल अपना टेस्ट करवायें , ये सब कोरोना के लक्षण लग रहे हैं।
8 अप्रैल को में अपने एक दोस्त डॉ शरद झिंगरन, डेंटल सर्जन, गुवाहाटी के साथ माँ विध्यवासिनी देवी के दर्शन को मिर्ज़ापुर गए थे। दोनों लोग 9 अप्रैल को लगभग 7 बजे शाम को लौटे। 8 बजे के करीब राजेश का फ़ोन आया की वह कोरोना पॉजिटिव हो गया है। इस पर उसकी वाइफ भागते हुए नीचे आई और मेरे दोस्त, दो बेटों और मेरे नौकर धर्मपाल के सामने कहती हैं कि भैय्या उनसे कह दीजिये यहाँ न आयें। यहाँ हमारे और आपके बच्चे हैं ,सबको कोरोना हो जायेगा। कह दीजिये घर चले जायें । मैंने यही राजेश को बोला कि तुम्हारी पत्नी ऐसा कह रही हैं। आप बेटा या तो अस्पताल में भर्ती हो जाओ, मैं बेड का इंतज़ाम करता हूँ। राजेश ने कहा कि भैय्या इन्फेक्शन माइल्ड है। मैं घर (गाँव ) चला जाता हूँ । मैंने उससे कहा कि जो पैसे या किसी और चीज की जरूरत हो तो बता देना । इसके कुछ दिन बात राजेश की पत्नी पंचायत चुनाव के लिए बच्चों को यहीं हमारे घर पर छोड़ कर गांव चली गयी थी। इसके बाद दोनों बच्चों की देखभाल भी हमने ही की और उनको गैस खरीदने व् अन्य जरूरतों के लिए एक हजार रूपये भी दिए।
मैंने राजेश को घर न आने को नहीं कहा ,इस बात के चार गवाह हैं और दो फ़ोन कॉल जो अपनी जांच में स्थानीय पुलिस निकलवा सकती है।जिससे इस बात की पुष्टि हो जाएगी कि घर न आने की बात राजेश की पत्नी ने कही थी न कि मैंने। दरसल राजेश इन दिनों ए एन आई में कैमरामैन के पद पर है और ए एन आई उत्तर प्रदेश सरकार की अधिकृत न्यूज एजेंसी के रूप में काम करती है। राजेश भी प्रायः मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में कैमरामैन के तौर पर मौजूद रहता है। सम्भवतः इसी वजह से उसे यह गलतफहमी हो गयी है कि वह जो चाहे करवा सकता है। राजेश कई साथी कैमरामैनों से यह भी कहता था कि वो ये घर नहीं कभी छोड़ेगा क्योंकि उसकी पहुंच महाराज जी (चीफ मिनिस्टर) तक है। “
जो तस्वीरें राजेश ने भड़ास न्यूज़ में भेजी हैं वो पांच साल पहले की हैं जब वो आगरा से लखनऊ फैमली को शिफ्ट कर रहा था और उस समय श्रवण ने उसे अपने घर में रहने की जगह दी थी।इन तस्वीरों में जो फर्नीचर ,कूलर आदि चीजें दिख रहीं हैं वह भी श्रवण के घर की हैं कि राजेश की । राजेश के सामन में तो सिर्फ गठरियाँ हैं। श्रवण के घर में CCTV लगे हैं, वो खुद घर छोड़ कर गया लेकिन ट्विस्ट ये दिया कि उसे और उसकी फैमली को घर से निकाला गया। CCTV फुटेज में सब साफ़ हैं। ये सारी बातें उसने इन्क्वायरी अफसर के सामने भी स्वीकार की हैं।
चूँकि अब इस मामले में पुलिस ने छानबीन शुरू कर दी है इसलिए सच सामने आ ही जाएगा। लेकिन इस तरह के आरोपों से श्रवण शुक्ल की छवि को चोट पहुंचाने की जो घटिया कोशिश की गयी है वह बहुत घृणित है। श्रवण लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं और पत्रकार के रूप में उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इण्डिया से लेकर टीवी और डिजिटल मीडिया में अच्छा ख़ासा नाम कमाया है। उनकी छवि एक पेशेवर और प्रतिबद्ध पत्रकार की रही है। लखनऊ के तमाम पत्रकार जानते हैं कि वे लोगों की मदद में किस तरह सबसे आगे रहते हैं।
मूल पोस्ट-