Ashwini Kumar Srivastava : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जहां एक तरफ इस वक्त देश और दुनिया के उद्योगपतियों को यह बताने में व्यस्त हैं कि उत्तर प्रदेश में अब सारे अफसर सुधर गए हैं और भ्रष्टाचार कहीं नहीं है इसलिए आइये और यहां उद्योग-धंधे लगाइये तो ऐन इसी वक्त यहां के बेखौफ और भ्रष्ट अफसर उद्योगपतियों और उद्योगों की ही खटिया खड़ी करने में जुटे हुए हैं। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री खुद और औद्योगिक विकास मंत्रालय के छोटे-बड़े हर अफसर समेत उप मुख्यमंत्री, कई वरिष्ठ मंत्री व कई अन्य विभाग इन दिनों राज्य में 2018 की फरवरी में होने वाले निवेश सम्मेलन की तैयारी में जीजान से जुटे हुए हैं।
जबकि राज्य की जमीनी हकीकत यह है कि उद्योगपतियों को लुभाने और उन्हें यहां उद्योग लगाने या प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए राज्य में बड़े पैमाने पर जमीन मुहैया कराने के लिए जिन विकास प्राधिकरणों को जिम्मेदारी खुद सरकार ने दी है, वह पहले की ही तरह बेखौफ होकर बेशर्मी से भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। इसके बावजूद इन प्राधिकरणों का यह खुला भ्रष्टाचार भी न जाने कैसे खुद मुख्यमंत्री या उनके सभी वरिष्ठ अफसरों तक को नजर नहीं आ पा रहा, वह भी तब जबकि एक नहीं सैकड़ों-हजारों शिकायतें खुद मुख्यमंत्री कार्यालय, विकास प्राधिकरण या औद्योगिक विकास मंत्रालय आदि तक लगातार पहुंचाई जा रही हैं।
मिसाल के तौर पर, लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण (लीडा) को ही ले लीजिए, जो राजधानी लखनऊ से लेकर कानपुर और उन्नाव तक में औद्योगिक विकास के लिए मुख्यमंत्री की मुहिम में जुटी हुई है। जबकि वहीं के वरिष्ठ परियोजना प्रबंधक और योगी जी के सजातीय एस पी सिंह निरंकुशता और भ्रष्टाचार की जीती जागती मिसाल बन चुके हैं। वे मायावती सरकार के दौर में लीडा पहुंचे थे, एक अन्य प्राधिकरण से डेपुटेशन पर। लेकिन वहां पहुंच कर उन्होंने न सिर्फ धीरे-धीरे अपने पूर्व विभाग से ढेरों अपने चेले कर्मचारी भी वहीं लीडा में तैनात करवा लिए बल्कि खुद भी बाद में बनी अखिलेश सरकार की मेहरबानी से वहीं स्थायी रूप से समाहित भी हो गए।
जाहिर है, पहले बसपा, फिर सपा और अब योगी सरकार…इन तीनों सरकारों में अपना जलवा बुलंद रखने वाले और लीडा में अपने ही चेले चापड़ भर्ती करके यदि वह बरसों से अगर अपनी कुर्सी से हिल नहीं रहे हैं तो जरूर उन्हें लीडा में कुछ न कुछ तो मलाईदार नजर आया ही होगा। वह जब से लीडा में पहुंचे हैं, लीडा के क्षेत्र में इंडस्ट्री लगाने के लिए मंजूरी लेने या आवासीय/कमर्शियल प्रोजेक्ट करने के लिए सरकार से अप्रूवल लेने आने वाले रियल एस्टेट कारोबारी या उद्योगपति, तभी से बेहद परेशान हैं। सिंह के द्वारा इन सभी से नक्शा वसूली या मंजूरी आदि के लिए अनापशनाप धन की मांग की जाती है। जो पूरा कर देता है, उसे वह और उनके मातहत कई सारे नियम-कानूनों को ताक पर रखकर भी आननफानन में अप्रूवल दे देते हैं और जो ऐसा नहीं करता है, उसे वह महीनों-बरसों तक लीडा के चक्कर लगवा लगवा कर उसकी फ़ाइल या तो डंप कर देते हैं या प्रोजेक्ट को ही भयंकर घाटे में पहुंचा देते हैं।
खुद मेरी कंपनी ने प्रोजेक्ट मंजूरी की अपनी फ़ाइल 2015 में जमा की थी, जिसे किसी न किसी बहाने से लटका रखकर एस पी सिंह ने हमें भी बेहद गहरे घाटे में ला दिया है। कई कई महीनों तक पहले तो जवाब ही नहीं दिया और अगर दिया भी तो किश्तों में एक एक करके हमसे कुछ न कुछ कागज मांगते रहे। जब दो बरस से ज्यादा समय उनकी इसी कछुआ चाल के चलते बीत गया और हमारे प्रोजेक्ट को मंजूरी नहीं मिल सकी तो उकताकर हमने अपनी फ़ाइल, एसपी सिंह की मनमर्जी और भ्रष्टाचार को लेकर एसपी सिंह के खिलाफ राज्य के औद्योगिक विकास मंत्रालय और मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक शिकायतें पहुंचाईं।
लेकिन यह महोदय न जाने कैसे उन शिकायतों को बेहद आसानी से निस्तारित तो कभी ठंडे बस्ते में डलवाने में कामयाब हो जा रहे हैं। पहली शिकायत मैंने मुख्यमंत्री को इसी साल 29 अगस्त को की थी, जिसका निस्तारण सिंह महोदय ने फ़ाइल में चार मामूली कमियां निकाल कर और फ़ाइल दोबारा जमा करने को कह कर करवा दिया था। अब भला उनसे कौन यह जाकर पूछे कि ये जो चार कमियां हैं, ये दो बरस से जमा फ़ाइल में आपको या आपके विभाग को नजर नहीं आईं और आपने कई अन्य विभागों से एनओसी हमसे मंगवा कर और लाखों रुपए का शुल्क मंजूरी के नाम पर जमा भी करवा लिया।
सिंह साहब दी ग्रेट से यह सवाल तो वही पूछ सकता है, जो बसपा, सपा और भाजपा जैसे तीनों दलों की सरकार में भी बेखौफ होकर नियम-कानून को ताक पर रखकर गुलछर्रे उड़ाने की हैसियत रखता हो। बहरहाल, मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचाई गई मेरी एक शिकायत फिलहाल लीडा में दोबारा पहुंच चुकी है। लीडा के सीईओ उसे दाब कर बैठे हैं। शिकायत पहुंचने के बावजूद एस पी सिंह आज भी बेखौफ हैं और मेरी फ़ाइल आज भी उन्हीं के रहमो करम पर है। इससे पहले की शिकायत का निस्तारण सिंह साहब आसानी से करवा चुके हैं इसलिए शायद उन्हें पक्का यकीन है कि उनका इस बार भी कुछ नहीं बिगड़ेगा और फ़ाइल वह हमेशा की ही तरह किसी न किसी जुगत से रोक कर रख ही लेंगे।
अब मेरे सामने भी ज्यादा विकल्प बचे नहीं हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने और राज्य में औद्योगिक विकास की गंगा बहाने में जुटी योगी सरकार को अगर खुली आँखों से भी यह भ्रष्टाचार नजर नहीं आया…तो अंततः आरटीआई आदि की मदद से सूचना निकलवा कर मैं हाई कोर्ट में जल्द ही एक जनहित याचिका डालूंगा। मुझे पक्का यकीन है कि आज नहीं तो कल ऐसे भ्रष्टाचारी और निरंकुश अफसर को मैं उसके सही ठिकाने यानी जेल तक पहुंचाने में कामयाब हो ही जाऊंगा।
बिजनेस स्टैंडर्ड समेत कई अखबारों में पत्रकार रहने के बाद रीयल इस्टेट फील्ड में सक्रिय हुए अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ चुनिंदा इस प्रकार हैं…
Bakhri Live जल्द से जल्द इस अधिकारी के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर किया जाना चाहिए। साथ ही सीबीआई की एंटी करप्शन विंग में भी पूरी शिकायत फाइल किया जाए तो कुछ संभव हो सकता है।
Ashwini Kumar Srivastava सीबीआई क्या राज्य सरकार के अफसरों के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के मामलों को लेती है? मुझे लगा था कि शायद यह केवल केंद्र सरकार के कर्मियों के मामले ही लेती है।
Vishal Sharma CBI won’t work… Only state vigilance can take any action against state Govt officials, even if the concerned official is an IAS officer
Ashwini Kumar Srivastava जी विशाल जी। यही मुझे भी जानकारी थी इसीलिए अभी तक सीबीआई के बारे में सोचा तक नहीं था। अब विजिलेंस में शिकायत दर्ज करवाने का प्रयास करूंगा।
Arun Khare सीबीआई यह जांच तभी कर सकती है जब राज्य सरकार अनुरोध करे । दूसरी बात योगी सरकार से उम्मीद बेकार है । तीसरी बात आप आरटीआई के बाद सीधे अदालत का दरवाजा खटखटाएं वहीं थोडी सी उम्मीद है ।
Ashwini Kumar Srivastava जी सर। मुझे तो अब यही एकमात्र रास्ता नजर आ रहा है। इससे कम से कम इस अफसर को तो इसके किये हुए भ्रष्टाचार की सजा मिलने की उम्मीद है। वरना यह जब तक नौकरी में रहेगा, ऐसे ही शासन और प्रशासन में गंदगी फैलाता रहेगा।
Mukul Shrivastava यार Ranvijay Singh, कृपया संज्ञान लो और देखो क्या हो सकता है ।
Ashwini Kumar Srivastava धन्यवाद Mukul Shrivastava सर। मीडिया में अगर लीडा में व्याप्त इस निरंकुशता और भयंकर भ्रष्टाचार के बारे में खुलासा होगा, तब शायद कहीं मुख्यमंत्री और उनके अफसरों को राज्य की जमीनी हकीकत का पता चल पाएगा। जिस लीडा को मुख्यमंत्री सैकड़ों एकड़ जमीन अधिग्रहित करने की जिम्मेदारी देकर उन्हीं जमीनों को देकर उद्योग व उद्योगपतियों को बुलाने की कवायद कर रहे हैं, वह लीडा क्या अपने अधिकार क्षेत्र में जुड़ने वाली इन जमीनों पर लगने वाले उद्योग व उद्योगपतियों को भ्रष्टाचार से इस कदर त्रस्त नहीं कर देगा कि वे भाग खड़े हों? वैसे भी लखनऊ, कानपुर और उन्नाव के जो पचासों गांव सरकार ने लीडा को दे रखे हैं, वहां से करोड़ों-अरबों रुपये की उगाही के चक्कर में लीडा के अफसर पहले से ही न तो उद्योग लगने दे रहे हैं और न ही जो लगाकर बैठा है, उसे चैन से कारोबार करने दे रहे हैं। अब ऐसे हालात में कौन उद्योगपति भला बरसों तक लीडा के चक्कर लगाने या मोटी रकम घूस में देने के लिए यूपी में आएगा? जब यह हाल राजधानी लखनऊ के औद्योगिक विकास प्राधिकरण का है, तो न जाने प्रदेश के बाकी प्राधिकरण क्या गोरखधंधा कर रहे होंगे…सरकार को कम से कम अपनी नाक के नीचे बैठे लीडा के भ्रष्ट अफसरों पर तो कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए ताकि राज्यभर के भ्रष्ट अफसरों में सरकार का भय व्याप्त हो।
Abhishek Srivastava भला आदमी हर धंधे में मिसफिट है।
Ashwini Kumar Srivastava अभिषेक बाबू देखना जरा अगर कहीं प्रिंट मीडिया में कोई स्टोरी हो सके या रीजनल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में। क्योंकि कोर्ट तो मुझे जाना ही है और शासन में कंप्लेंट भी मैं कर ही रहा हूँ लेकिन क्षेत्रीय मीडिया ही अगर इसे उठा देगा तो कम से कम सरकार समझेगी तो कि आखिर अफसर काम कैसे कर रहे हैं।
Akhilesh Pratap Singh आप धंधे के प्रचलित मानकों के खिलाफ जा रहे हैं…टेक केयर…शठे शाठ्यम् समाचरेत तो है ही लेकिन जल में रहकर मगर से वैर न पालने की लोकोक्ति भी है….सही बोलकर आपको तकलीफ न उठानी पड़े…इसी सरकार में किसी सबल को पकड़िए, आगे बढ़ जाइए….उलझने में रुकना पड़ेगा….
ऐसी सलाह भी मेरे जैसे कुछ लोग देते हैं… 🙁
Ashwini Kumar Srivastava मगर से बैर करना नहीं चाहते थे, तभी तो दो-ढाई बरस खामोशी से बार बार किश्तों में बताई जा रही हर कमी दूर करते जा रहे थे। न जाने कितनी बार उनसे मुलाकात करके फ़ाइल को मंजूरी देने का अनुरोध भी किया लेकिन किसी व्यक्तिगत मगर अनजान कारण से अफ़सर महोदय ने जब तय ही कर लिया है कि लीडा के क्षेत्र में वह हमें कारोबार करने ही नहीं देंगे तो हमारे सामने अब विकल्प ही क्या बचा है? वह अफसर खुद इतने पावरफुल हैं कि सपा, बसपा और भाजपा में उनका कोई एक बाल भी टेढ़ा नहीं कर पाया तो किस भाजपा नेता से सोर्स सिफारिश लगवाया जाए? मुख्यमंत्री के सजातीय हैं और गोरखपुर के भी हैं तो मीडिया, कोर्ट में गुहार लगाने के अलावा हमारे पास अब बचा ही क्या है? यह प्रदेश अब ऐसे ही चल रहा है। यहां के अफसर अब निरंकुश और सत्ता तंत्र धृतराष्ट्र बना हुआ है। ठीक है, इस टकराव के बाद नहीं होगा प्रोजेक्ट लीडा के क्षेत्र में…वैसे भी दो ढाई साल से यह अफसर हमें करने ही कहाँ दे रहा है? कहीं और कर लेंगे प्रोजेक्ट तो…किसी और प्रदेश में जमीन खरीद लेंगे…लेकिन कम से कम यह भ्रष्टाचारी अफसर तो कोर्ट और मीडिया के जरिये अपनी करनी का फल पा ले। इस अफ़सर ने नियम कानून की धज्जियां खुलेआम उड़ाई हैं। किसी प्रोजेक्ट फ़ाइल की मंजूरी या उसके रिजेक्शन की एक तय समय सीमा होती है। यहां सरकार के मुखिया जनता और मीडिया को बताते हैं कि तीन दिन में फ़ाइल हो रही है। गाजे बाजे के साथ दुनियाभर के उद्योगपतियों को यहां यूपी में बुलाने जा रहे हैं कि आओ यहां पैसा लगाओ…अब कोई पागल ही होगा, जो अपनी सारी जमा पूंजी यहां के भ्रष्ट अफसरों की भेंट चढ़ाने के लिए उद्योग-धंधे लगाने आएगा। पहले मुख्यमंत्री सारे विकास प्राधिकरण और विभाग तो दुरुस्त कर लें, जहां से दर्जनों मंजूरी लेने में उद्योगपतियों को करोड़ों अरबों की घूस तो देनी ही पड़ जाती है, साथ ही समय भी कई कई महीने या बरस लग जाता है। आज ही नवभारत टाइम्स की खबर है कि दिल्ली में बिल्डिंग कंप्लीशन सर्टिफिकेट अब एक हफ्ते में मिल जाएगा। इसके लिए वहां की सरकार ने सारे इंतजाम भी कर दिए हैं कि उद्योगपति को कहीं दर्जन भर विभाग में भटकना नहीं पड़ेगा और न ही हर विभाग के अफसर की काली कमाई का खजाना भरवाना पड़ेगा बल्कि एक हफ्ते में मंजूरी या रिजेक्शन हो जाएगा। प्रोजेक्ट हो या न हो लेकिन अब इस अफसर की कारगुजारी को लेकर मैं कोर्ट में तो जरूर ही जाऊंगा।
Satyendra PS क्या कहा जाए ऐसे हरामखोरों के बारे में। पूरे प्रदेश में अहम कमाऊ पदों पर प्रदेश के छटे हुए भ्रष्ट अधिकारियों को बैठाया गया है, वह एकमात्र नमूना नहीं है जिससे आपका पाला पड़ा है।
Ashwini Kumar Srivastava आप बता ही रहे थे कि अपने गृह जनपद गोरखपुर में भी अपने सजातीय और महाभ्रष्ट पीसीएस अफसर को डीएम बना रखा है मुख्यमंत्री ने। अब ऐसी गंदी सोच रखकर शासन चलाने वाले मुख्यमंत्री से भी न्याय की उम्मीद क्या की जाए…इसी वजह से तो प्रशासन अब आम जनता या किसी के लिए भी बहुत खतरनाक बन चुका है। पहले गोरखपुर का सत्यानाश किया बरसों…अब प्रदेश का करने के लिए मुख्यमंत्री बन कर आ गए हैं। 2019 के चुनाव में इनको जनता अगर सबक सिखाएगी तभी कुछ आंख खुल सकेगी इनकी। इस बार के निकाय चुनाव में शहर वाले तो वैसे ही भाजपा समर्थक बने रहे लेकिन कम से कम गांव और कस्बों के नतीजों को देखने के बाद कहा जा सकता है कि इनकी खाट खड़ी होने के इस बार पूरे आसार हैं। अब इनको केवल ईवीएम ही बचा पाएगी।
Satyendra PS यह सही है। एक वरिष्ठ और तेज तर्रार पीसीएस अधिकारी ने यह जानकारी दी तो मैं आश्चर्यचकित रह गया था। अब तक महत्त्वपूर्ण जिलों में तेज तर्रार आईएएस को ही जिलाधिकारी बनाने की परंपरा थी। अब भ्रष्ट होना महत्त्वपूर्ण पोस्ट पाने की प्रमुख योग्यता बन गई है।
Ashwini Kumar Srivastava बताइये क्या अजब गजब हाल कर दिया है प्रशासन का। वह दिन दूर नहीं, जब यूपी की जनता खुद ही एक दिन अपनी करनी का फल भोगेगी। भाजपा और योगी को चुनकर भेज तो दिया धर्म और जाति के नाम पर लेकिन जब यूपी का बंटाधार हो जाएगा, तब ही अक्ल आएगी लोगों को। वैसे ही यहां उद्योग धंधे न के बराबर हैं, भ्रष्टाचार और अपराध चरम पर हैं, इंफ्रास्ट्रक्चर न के बराबर है…उस पर मुख्यमंत्री और ऐसा बैठा दिया है, जो जाति के पैमाने पर चुन चुन कर भ्रष्ट अफसरों को बैठाने में जुटा हुआ है।
Satyendra PS ज्यादातर लोगों का प्रशासन से सीधा काम नही पड़ता और साइड इफेक्ट समझने भर को उन्हें दिमाग नहीं होता। जिनका प्रशासन से सीधा काम पड़ता है और काम अटका पड़ा है, वो समझ रहे हैं। यह सरकार तो बालू तक की दलाली खा रही है। साल भर पहले की तुलना में बालू का दाम तीन गुना हो गया है। भट्ठे वालों की हालत खराब है, ईंट नहीं बिक रहे। मेरे एक मित्र बताने लगे कि अब जबरी अवैध बालू खोदवा रहा हूँ वरना काम बंद हो जाएगा और 100 से ज्यादा मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे। इन गरीब गुरबों को लगता है कि बड़े लोग बर्बाद हो रहे हैं। हकीकत तो यहहै किबड़े लोग दो चार साल कुछ न करें तब भी शानदार जिंदगी जिएंगे। मरना मजदूरों को है जो मंथली सेलरी पर डिपेंड हैं।
Ashwini Kumar Srivastava ऐसा नहीं है। प्रशासन से जिंदगी का हर एक पहलू जुड़ा है और सभी को किसी न किसी रूप में प्रशासन को पंगु करने वाले इस जतिवादी भ्रष्टाचार का दंड भोगना ही पड़ेगा। अस्पताल, पुलिस थाना, शिक्षा, परिवहन, जमीन, नौकरी, खेती बाड़ी आदि सब कुछ इसी प्रशासन से तो ही कन्ट्रोल हो रहा है। यहां तक कि शमशान भी। इसलिए कोई मतदाता अपनी गलती की सजा भोगे बिना इस दुनिया से रुखसत भी तो नहीं हो सकता।
Satyendra PS सीधा सम्बन्ध नहीं होता। जो सीधे नहीं पहुंच पाते, अपने रिश्तेदारों, नेताओ को गरिया रहे हैं कि वो हमारा काम नही करा रहे, जबकि जिलाधिकारी सहित सक्षम अधिकारी सीधे कह दे रहे हैं कि अपना काम हो तो लेकर आइए, सिफारिश न करिए। किसी की कोई सुनवाई नहीं है लेकिन पब्लिक सरकार से जवाब न मांगकर अपने रिश्तेदार को गरिया रही है कि वो काम कराना नहीं चाह रहा है।
Ashwini Kumar Srivastava मैं अगर लीडा से त्रस्त और तबाह हूँ तो कोई किसी अस्पताल, थाने, स्कूल, तहसील, टैक्सी-बस, नौकरी या किसी भी प्रशासनिक संस्था या उसके अप्रत्यक्ष रूप से त्रस्त और तबाह होगा ही। अगर किसी व्यक्ति का सत्ता तंत्र में जुगाड़ हुआ या वह खुद या उसका कोई परिचित-रिश्तेदार सत्ता तंत्र में शामिल होगा तो शायद उसे यह गुमान होगा कि उसे इस भ्रष्ट तंत्र से कभी कुछ नुकसान नहीं होगा। लेकिन वह गलत सोच रहा है। क्योंकि एक न एक दिन वह या उसके परिजन इसी तंत्र में कहीं न कहीं तो फंसेंगे ही।
Mudit Mathur योगी आदित्यनाथ तक शिकायत पहुँचती ही कहाँ है? तथ्यों में दम है। ऐसे कई पीड़ितों को एकजुट कर के साथ में लेकर भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्ष हो तभी रास्ता निकलेगा। अपर मुख्य सचिव श्री अनूप पाण्डेय बहुत ही न्यायप्रिय अधिकारी हैं। उन तक पूरा मामला पहुँचाइए तो जरूर नतीज़ा निकलेगा। ऐसे अफसरों की नाजायज़ करतूतों से सरकार की नीतियों और नीयत पर सवाल उठते हैं।
Ashwini Kumar Srivastava अनूप चंद्र पांडेय तक तो जो शिकायत की गयी है, वह आज डेढ़ महीने से ज्यादा हो गया लेकिन अभी तक मार्क होकर प्रक्रिया में ही नहीं आयी है। अब बताइये, दो साल से ज्यादा समय हो गया फ़ाइल रुके हुए…इसकी शिकायत की जाए तो महीनों गुजर जाएंगे लेकिन उस पर सुनवाई ही नहीं होगी…अंधेर नगरी चौपट राजा वाला हाल हो गया है उत्तर प्रदेश में तो…किससे क्या शिकायत की जाए और कहां क्या कहा जाए, कुछ समझ ही नहीं आता…नीचे अनूप चंद्र पांडेय वाली शिकायत का स्क्रीन शॉट भेज रहा हूँ आपको सर…आप ही बताइए अब कैसे पहुंचाए उन तक अपनी शिकायत?
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