Ashwini Kumar Srivastava : अच्छे दिन लाने के नाम पर आई मोदी सरकार ने देश के साथ क्या सुलूक किया है, यह तो पता नहीं लेकिन कम से कम रियल एस्टेट उद्योग को तो जरूर ही उन्होंने मनमोहन सरकार के 10 बरसों के स्वर्णिम दौर से घसीट कर सबसे बुरे दिनों के दर्शन करा दिए हैं। पहले तो सरकार में आते ही काले धन के खिलाफ अभियान छेड़ने की धुन में न जाने कितने सनकी कानून बनाये या पुराने कानून के तहत ही नोटिस भेज-भेज कर देशभर को डराया….फिर बेनामी सम्पति कानून का ऐसा हव्वा खड़ा किया कि शरीफ आदमी भी दूसरा फ्लैट/मकान या प्लॉट लेने से कतराने लगा। ताकि कहीं उसकी किसी सम्पति को बेनामी करार देकर खुद सरकार ही न हड़प ले।
इसके बाद, साहब ने बिना कोई तैयारी किये नोटबंदी करके महीनों तक देशभर के लोगों को महज अपनी जरूरतभर का सामान खरीदने की बेबसी देकर रियल एस्टेट उद्योग की कमर ही तोड़ दी। उससे भी मन नहीं भरा तो फिर रेरा का ऐसा चक्कर चलाया कि रियल एस्टेट कंपनियां महीनों से चकरघिन्नी बनी हुई हैं। क्योंकि रेरा कानून भले ही कागजों में बन गया हो मगर इसके चलते ही रियल एस्टेट कंपनियां न तो कोई भुगतान स्वीकार कर पा रही हैं और न ही अपना कोई प्रोजेक्ट लांच कर पा रही हैं। इसकी वजह है इसमें लगाई गई वह शर्त, जिसके मुताबिक अब कोई भी रियल एस्टेट कंपनी रेरा में रजिस्टर्ड हुए बिना कारोबार नहीं कर सकती। लेकिन हद देखिये कि महीनों बीत चुके हैं लेकिन अभी रेरा का रेजिस्ट्रेशन कहाँ होना है, कैसे होना है, कितने दिन में होगा, यह तक बताने वाला भी कोई नहीं है।
जाहिर है, पहले तो रेरा की कमेटी बने, वह रजिस्ट्रेशन का तौर-तरीका और बाकी नियम-कायदे बताए, फिर जाकर वहां कंपनियां अप्लाई करें… और तब न जाने क्या संसाधन और कितना स्टाफ होगा रेरा की कमेटी में… और न जाने कितने दिन-महीने और लग जाएंगे देश में रियल एस्टेट कंपनियों को अपना कारोबार दोबारा शुरू करने में…यह पता लगे, तब ही मोदी के दिखाए अच्छे दिनों को लेकर रियल एस्टेट उद्योग में कुछ उम्मीद की किरण जग पाएगी।
लेकिन यह सब करके भी तसल्ली नहीं मिल पा रही थी तो इन हालात में कोढ़ में खाज की कहावत को सच करते हुए मोदी सरकार ने जीएसटी का बम उद्योग जगत पर और दे मारा। इन सबके बीच अभी हाल ही में एक खबर और आई थी, जिसमें कहा गया था कि 50 लाख से ऊपर की सम्पति खरीदने के लिए प्रवर्तन निदेशालय यानी कि ईडी जैसे खतरनाक विभाग से लोगों को मंजूरी लेनी होगी। भले ही जिन लोगों के पास काले धन के भंडार न हों लेकिन वे भी 50 लाख से ऊपर की सम्पति खरीदने के लालच में ईडी की लालफीताशाही या धौंसपट्टी में फंसने से परहेज तो करेंगे ही।
बिलकुल उसी तरह, जिस तरह अच्छा-भला शरीफ आदमी भी अपने देश में थानों में कोई मामला ले जाने से परहेज करता है, इस डर से कहीं ऐसा न हो कि इस मामले में या किसी और ही मामले में शक की निगाह से देखते हुए पुलिस उसके ही पीछे पड़ जाए। इन्हीं वजहों से हाल यह हो चुका है कि देश का सारा रियल एस्टेट उद्योग इस समय अपने वजूद को बचाये रखने के लिए जूझ रहा है। पेशेवर श्रमिक के साथ-साथ मजदूरों के खाली बैठने से न जाने कितनी नौकरियां इस क्षेत्र की तबाही से जा चुकी हैं। न जाने कितना राजस्व, जो स्टाम्प/टैक्स आदि के रूप में सरकार को इस उद्योग के फलने-फूलने से मिलता था, का नुकसान देश को मूर्खतापूर्ण नीतियों के चलते हो चुका है। सीमेंट, स्टील, लकड़ी, ईंट-भट्ठा, कंस्ट्रक्शन, इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, विज्ञापन जगत, पेंट, टाइल्स, अन्य बिल्डिंग मटेरियल, होम फर्निशिंग आदि के रूप में इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े न जाने कितने उद्योग रियल एस्टेट की बर्बादी की चपेट में आकर खुद भी मुश्किल दिनों से जूझ रहे हैं।
न जाने कितने बैंक, होम लोन में आई भारी गिरावट के बाद तेजी से घटते अपने कारोबार को वापस पटरी पर लाने की जुगत में परेशान हैं। ऐसे में क्या देश की जीडीपी नहीं धराशाई होगी, आर्थिक विकास की दर में गिरावट नहीं आएगी, खरबों रुपये के राजस्व की हानि नहीं होगी सरकार को, बेरोजगारों की फौज नहीं बढ़ेगी, बाजार और उद्योग जगत की कमर नहीं टूटेगी…. ?
इसी वजह से तो यही सब हो रहा है देश में। जो देश मनमोहन सिंह की सरकार के समय आर्थिक महाशक्ति का सबसे बड़ा दावेदार बनते हुए अमेरिका और चीन तक की नींदें उड़ाने में कामयाब था, वही देश मोदी सरकार के आते ही महज तीन बरस में ही आर्थिक महाशक्ति बनना तो दूर, आर्थिक बदहाली की राह पर न जाने कितना आगे निकल चुका है।
जहां तक अर्थशास्त्र से की गई मेरी उच्च शिक्षा और देश के शीर्ष मीडिया हाउस/अखबारों में बतौर आर्थिक पत्रकार काम करने के 10 साल से भी ज्यादा के अनुभव के बाद उपजे मेरे ज्ञान या समझ का सवाल है, वह यही कहते हैं कि रियल एस्टेट उद्योग की बदहाली देश की अर्थव्यवस्था की चूलें तक हिलाने की क़ुव्वत रखती है। ऐसा नहीं होता तो 2008 में अमेरिका के रियल एस्टेट उद्योग की तबाही के बाद दुनियाभर में आई मंदी दुनिया ने नहीं देखी होती।
इसी वजह से मोदी सरकार को चाहिए कि वह किसी भी कीमत पर रात-दिन एक करके देश के रियल एस्टेट उद्योग को पटरी पर लाएं….अगर 2019 में देश को आर्थिक बदहाली की कगार पर लाकर पटक देने वाले प्रधानमंत्री के रूप में चुनाव में उतरकर वह जनता के सामने शर्मिंदा नहीं होना चाहते हैं तो…
लखनऊ के पत्रकार और उद्यमी अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेरों कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं….
Satyendra PS आप यह जान लें कि मोदी यह सब करके चुनाव जीतेगा। औऱ आखिर में हिटलर टाइप देश बर्बाद करने के बाद आत्महत्या कर सकता है। आप रियल स्टेट बता रहे हैं। रेलवे को किस तरह बर्बाद किया और लूटा है इन सबों ने। किराया बढ़कर दोग्गुना हो चूका है। अब सरकार सब्सिडी छोड़ने की अपील करने जा रही है। इस साल परिचालन अनुपात 14 साल में सबसे घटिया रहा है।
Ashwini Kumar Srivastava “इजराइल से मिले समाचार से पता चला है कि मोदी जी ने 70 साल बाद किसी भारतीय पीएम के तौर पर इजराइल जाकर पूरे इजराइल के लोगों का दिल जीत लिया है। वहां उनके स्वागत में हर इजराइली लहालोट हो गया है। भारत और मोदी का डंका इससे दुनियाभर में बजने लगा है। और, अडानी ने वहां का सबसे बड़ा हथियारों का ठेका हथियाकर अपनी कंपनी और कारोबार को चार चांद लगा लिए हैं।” दरअसल, अडानी वाली लाइन गोल करके ही मीडिया और मोदी के अन्धभक्त मोदी को जनता के बीच में महानायक बनाकर पेश कर रहे हैं। यही तरीका वह मोदी के हर काम या फैसलों में अपनाते हैं। कोई नहीं जान पाता कि रेलवे को बर्बाद करने के पीछे किसको फायदा पहुंचाने का खेल चल रहा है, बिल्कुल वैसे ही जैसे इजराइल जाकर इतनी मेहनत करने के पीछे किसका कारोबार बढ़ाने का खेल चल रहा है, यह जनता नहीं जान पा रही।
Arun Gautam बांग्लादेश गए थे तो अम्बानी के लिए ठेका ले आए थे… अभी इजराइल गए तो अडानी के लिए ठेका ले आये… हमारे परिधानमंत्री प्राइवेट कंपनियों की एजेंटगिरी मस्त करते हैं.. ऐसा एजेंट PM पाकर देश धन्य है।