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सुख-दुख

अक्षय, तुम दुबारा भारत में जन्म मत लेना और जन्म लेना भी तो पत्रकार मत बनना!

Rajat Amarnath : सुनो अक्षय, दूर कहीं जहाँ भी तुम भेज दिये गये हो वहाँ अपने बारे में सोचना कि क्या मिला तुम्हें. एक नपुंसक समाज, ख़बर बताने की जगह TRP के लिऐ ख़बर बनाने वाले न्यूज़ चैनल, “प्रधान सेवक” से सवाल दागने की जगह उनके साथ दाँत निपोरते हुऐ “सैल्फी” लेने वाले संपादक, असमय मौत. तुम्हारी जवान मौत पर मज़ाक उड़ाते संवेदनहीन नेता. आखिर क्या ज़रूरत थी तुम्हें किसी घोटाले को उजागर करने की? क्या तुमने अपने ही साथी “दीपक शर्मा” से कोई सबक नहीं सीखा था कि अगर नेता को नंगा करेंगे तो नौकरी गंवा दी जाती है या अपने पूर्व न्यूज़ डायरेक्टर “क़मर वाहिद नक़वी” से समझ लेते कि नेताओं की “चरण वंदना” ना करने पर क्या नतीजा होता है.

<p>Rajat Amarnath : सुनो अक्षय, दूर कहीं जहाँ भी तुम भेज दिये गये हो वहाँ अपने बारे में सोचना कि क्या मिला तुम्हें. एक नपुंसक समाज, ख़बर बताने की जगह TRP के लिऐ ख़बर बनाने वाले न्यूज़ चैनल, "प्रधान सेवक" से सवाल दागने की जगह उनके साथ दाँत निपोरते हुऐ "सैल्फी" लेने वाले संपादक, असमय मौत. तुम्हारी जवान मौत पर मज़ाक उड़ाते संवेदनहीन नेता. आखिर क्या ज़रूरत थी तुम्हें किसी घोटाले को उजागर करने की? क्या तुमने अपने ही साथी "दीपक शर्मा" से कोई सबक नहीं सीखा था कि अगर नेता को नंगा करेंगे तो नौकरी गंवा दी जाती है या अपने पूर्व न्यूज़ डायरेक्टर "क़मर वाहिद नक़वी" से समझ लेते कि नेताओं की "चरण वंदना" ना करने पर क्या नतीजा होता है.</p>

Rajat Amarnath : सुनो अक्षय, दूर कहीं जहाँ भी तुम भेज दिये गये हो वहाँ अपने बारे में सोचना कि क्या मिला तुम्हें. एक नपुंसक समाज, ख़बर बताने की जगह TRP के लिऐ ख़बर बनाने वाले न्यूज़ चैनल, “प्रधान सेवक” से सवाल दागने की जगह उनके साथ दाँत निपोरते हुऐ “सैल्फी” लेने वाले संपादक, असमय मौत. तुम्हारी जवान मौत पर मज़ाक उड़ाते संवेदनहीन नेता. आखिर क्या ज़रूरत थी तुम्हें किसी घोटाले को उजागर करने की? क्या तुमने अपने ही साथी “दीपक शर्मा” से कोई सबक नहीं सीखा था कि अगर नेता को नंगा करेंगे तो नौकरी गंवा दी जाती है या अपने पूर्व न्यूज़ डायरेक्टर “क़मर वाहिद नक़वी” से समझ लेते कि नेताओं की “चरण वंदना” ना करने पर क्या नतीजा होता है.

तुमने तो ऐसे घोटाले को उजागर करने का बीड़ा उठाया था जिसमें एक राज्यपाल का बेटा तक जान गंवा चुका है. अगर कुछ सबूत हाथ लग भी गये थे तो चुप रहते या फिर किसी जिंदल सरीखे नेता का नाम घोटाले में होता तो मालिकों से मिलकर कुछ पैसे बना लेते. लेकिन तुमको तो अपनी कलम की ताक़त दिखानी थी. भुगतो अब. अरे, कुछ तो सबक “जगेन्द्र” की मौत से लेते कि इस गूंगे बहरे देश में ईमानदार पत्रकार को ना तो कोई घोटाले उजागर करने का हक़ है न ही अपनी आवाज़ उठाने का. अब सोच समझ कर जन्म लेना. अगर इंसान के रूप में इस धरती पर आओ तो हिन्दुस्तान, इंडिया, भारत में पैदा मत होना और अगर गलती से यहाँ पैदा हो जाओ तो पत्रकार मत बनना और किस्मत में फिर से पत्रकार बनना लिख दिया हो तो मेरे भाई किसी घपले घोटाले को उजागर करने की हिम्मत मत करना वरना फिर से मार दिये जाओगे… तुम तो असमय चले गये लेकिन अपने पीछे छोड़ गये हो एक गहरा सन्नाटा और उसमें गूंजते कुछ सवाल जिनके जवाब 42 ज़िंदगी ख़त्म होने के बाद भी किसी के पास नहीं हैं…

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Zafar Irshad : मत डालो अपनी जान जोखिम में पत्रकार भाइयों किसी स्टोरी के लिए,क्योंकि चाहे तुम मर जाओ या विकलांग हो जाओ तुम्हारे परिवार के अलावा किसी को तुम्हारे मरने पर एक दो दिन दुःख होगा बस.. आखिर में ज़िन्दगी भर तुम्हारा परिवार ही तुम्हारी कमी महसूस करेगा और कोई नहीं.. यहाँ तक की तुम्हारा संस्थान भी एक दो दिन याद करेगा तुम्हें. वो भी अगर तुम स्थायी कर्मचारी हुए तो वरना अगर कॉन्ट्रैक्ट पर या स्ट्रिंगर हुए तो संस्थान भी मुंह मोड़ लेगा.. अपनी जान जोखिम में डाल कर कुछ अच्छी स्टोरी कर भी लाये तो ज़्यादा से ज़्यादा एडिटर तारीफ कर देगा बस, मर गए तो तुम्हारे परिवार को कोई सहायता नहीं मिलेगी, न ही मरणोपरांत राष्ट्रपति पदक.. पूरे देश में नेताओं और अधिकारीयों का ऐसा गिरोह काम कर रहा है, जिसे भेद पाना किसी पत्रकार के बस की बात तो नहीं..भारत में सबसे कमज़ोर और उपेक्षित नौकरी है पत्रकारों, की जिला स्तर पर बहुत से छोटे पत्रकार बिना सैलरी बिना किसी जीवन बीमा के दिन दिन भर ख़बरों की दौड़ में भागते फिरते है..और खबर के लिए जान लगा देते है,उनका संस्थान तो उनको अपना कर्मचारी भी नहीं मानता..फिर क्यों दांव पर लगाते हो अपनी ज़िन्दगी अपने बच्चो का बचपन..? नहीं तोड़ पाओगे कभी भी अधिकारीयों और नेताओं का गिरोह..इस लिए अभी भी सलाह है छोटे पत्रकारों को और स्ट्रिंगरों को,पत्रकारिता से अच्छा है रिक्शा चला लो..लेकिन मुझे मालूम है यह तुम अब कर नहीं पाओगे, क्योंकि तुम्हारे पत्रकारिता का नशा चढ़ गया है जो मार्फीन और अफीम के नशे से ज़्यादा मज़ा देता है…

Vikram Singh Chauhan : टीवी टुडे संस्थान के पत्रकार अक्षय सिंह की मौत पर मध्यप्रदेश के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने मजाक बनाते हुए कहा है कि हमसे बड़ा पत्रकार है क्या? कितनी शर्म की बात है किसी इंसान के मौत का मजाक बनाने वाले इस देश में मंत्री बने बैठे है. जनता ने अपार बहुमत देकर इन्हें अहंकारी बना दिया है. लेकिन सच यह भी है कि इंडिया टुडे ग्रुप इस न्यूज़ को ज्यादा नहीं उछालेगा क्योंकि उन्हें भाजपा शासित राज्यों से सबसे ज्यादा पैसा मिलता है. पत्रकार की मौत एक मजदूर की मौत से भी ज्यादा सस्ती है. VIP लोगों के साथ पत्रकारिता करते पत्रकार को ये बात समझ नहीं आती. उनके जाने के बाद उनके परिवार वालों से पूछ लीजिये.

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Munne Bharti : पत्रकारों पर हमले में सीधे सरकारें शामिल हैं.. शायद मध्य प्रदेश सरकार में चल रही सियासी उठापटक का नतीजा है पत्रकार की मौत … प्रधानमंत्री जी की ख़ामोशी मुनासिब नहीं… आखिर देश की सियासी पार्टियों की ख़ामोशी भी अपने आप में सवालियां निशान है.. शहीद पत्रकारों को खिराजे अक़ीदत पेश है… मेरी सभी पत्रकार संगठनो और संस्थाओं से  अपील है की पत्रकाओं की सुरक्षा के लिए सीधी प्रधानमंत्री जी से दो टूक बात करें ..  और अगर सरकारें न मने तो आघे की रणनीति तैयार करें.. जिसमे सरकारों को जनता के सामने सरकारों की पोल खोल अभियान पूरी तरह शामिल हो… जिसमे सरकारों के प्रेस कॉन्फ्रेंस का बायकाट भी शामिल हो… अगर हम अब आवाज़ नहीं बुलंद करेंगे तो अगली बारी हमारी है….  आप जहाँ है वही अपने पत्रकार भाइयों के हक़ में आवाज़ बुलंद कीजिये.. सरकारों पर दबाव बनायें… अब बस बहुत हुआ..  

Ajit Anjum : दिल्ली और देश से बाहर हूँ सो आजतक के खोजी पत्रकार अक्षय की रहस्यमय मौत के बारे में बहुत पता नहीं चल पाया. सोशल मीडिया पर समझने की कोशिश करके भी समझने में नाकाम रहा कि उसकी मौत कैसे हुई? कौन ज़िम्मेदार है? व्यापमं घोटाले में हुई मौतों से इसे जोड़ा जा सकता है या नहीं? लेकिन टुकड़ों टुकड़ों में जितना मैंने अक्षय के बारे में पढ़ा, उससे यही लगा कि उसकी मौत कई सवाल छोड़ गई है. मैं अक्षय से कभी मिला नहीं था और दुर्भाग्य ही कहिए कि मैं उसे उसके नाम से भी नहीं जानता था, जबकि मैं हमेशा ये मानता रहा हूँ कि मैं टीवी मीडिया में काम करने वाले अधिकाधिक लोगों को जानता हूँ. या तो नाम ये या काम से. तो अक्षय को क्यों नहीं जाना पाया? क्योंकि वो गुमनाम रहकर …पर्दे के पीछे रहकर काम करने में यक़ीन रखता था. जहाँ टीवी पर आने के लिए लोग मरे जाते हैं, वहाँ अक्षय ही था कि चुपचाप काम कर रहा था …विकास मिश्रा Vikas Mishra ने बहुत अच्छी पोस्ट अक्षय के बारे में लिखी है ….

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Sanjeev Chauhan : मैंने YouTube के अपने पापुलर चैनल Crimes Warrior पर ‘आज तक’ चैनल के खोजी और युवा पत्रकार अक्षय सिंह को श्रद्धांजिल के बतौर उनसे जुड़े तमाम वीडियो के लिए एक विशेष विंडो तैयार की है। इसमें व्यापम घोटाले से जुड़े तमाम वीडियो के साथ-साथ 5 जुलाई 2015 को दिल्ली के निगम बोध घाट पर किये गये अक्षय सिंह के अंतिम-संस्कार से जुड़े असंपादित वीडियो/ रॉ-फुटेज भी मौजूद है। व्यापम घोटाले की तफ्तीश/ रिपोर्टिंग के दौरान मध्य-प्रदेश के झबुआ में संदिग्ध हालातों में काल का ग्रास बने अक्षय की मौत पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का दिल्ली में लंबा-चौड़ा ‘ज्ञान’ हो या फिर तमाम सत्ताधारियों और गैर-सत्ताधारियों की अंतिम-संस्कार में उपस्थिति। क्राइम्स वॉरियर के इन वीडियो/ फुटेज में बतौर इतिहास सब कुछ कैद है। जल्दी नजर न आने वाले टीवी टुडे नेटवर्क (आज तक) के मालिक अरुण पुरी हों या वर्तमान में आज तक के सर्वे-सर्वा वरिष्ठ पत्रकार सुप्रिय प्रसाद, राजदीप सरदेसाई, पुन्य प्रसून बाजपेयी,  दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया या फिर ‘आप’ नेता कुमार विश्वास…या कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी.. या फिर भाजपा दिल्ली प्रभारी सतीश उपाध्याय… क्राइम्स वारियर के कैमरे ने इस मौके पर हर किसी की उपस्थिति इतिहासिक याद के रुप में दर्ज करने की कोशिश की है। क्राइम्स वॉरियर परिवार की ओर से इस होनहार युवा पत्रकार के लिए यही अश्रुपूरित और सच्ची श्रद्धांजलि… देखें: https://www.youtube.com/playlist?list=PLhjyOczvlcpQ5CBtY-iyXmkBn2waM2Mx_

वरिष्ठ पत्रकार रजत अमरनाथ, जफर इरशाद, विक्रम सिंह चौहान, मुन्ने भारती, अजीत अंजुम, संजीव चौहान के फेसबुक वॉल से.

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