…2007 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को इसलिये हार का सामना करना पड़ा था, क्योंकि तब प्रदेश में जंगलराज जैसे हालात थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया था, यही समस्या अखिलेश सरकार के साथ है…
अजय कुमार, लखनऊ
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के डीएसपी मोहम्मद तंजील अहमद की जिस तरह से एक शादी समारोह से लौटते समय मौत के घाट उतारा गया वह शर्मनाक तो है ही इस तरह की वारदातें कई गंभीर सवाल खड़े करती है। खासकर तब तो और भी आश्चर्य होता है जब ऐसे हादसों के समय सियासतदार चुप्पी साध लेते हैं कथित धर्मनिरपेक्ष शक्तियां की जुबान पर ताला लग जाता है। उम्मीद तो यही की जा रही थी शहीद डीएसपी तंजील की मौत के बाद फिजाओं में तुम कितने तंजील मारोगे, घर-धर से तंजील निकलेगा’ का नारा गूंजेगा। यह तंजील को सच्ची श्रद्धांजलि होती, लेकिन नारा लगाना तो दूर चंद लोगों के अलावा तंजील के घर जाकर उनके परिवार के आंसू तक पोछना किसी ने जरूरी नहीं समझा। तंजील की हत्या आतंकवादी साजिश थी या फिर कोई और वजह, इसका खुलासा देर-सबेर हो ही जायेगा।
मगर वतन पर शहीद होने वालों के प्रति ऐसी बेरूखी न केवल दुखदायी है, बल्कि चिंताजनक भी है। जिस देश में अफजल गुरू और यहां तक की 26/11 के हमले में शामिल पाकिस्तानी आतंकवादी कसाब के समर्थन में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है वहां तंजील अहमद की शहादत को सलाम करने के लिये नेताओं और लोगों को समय नहीं मिलता है। शहीद डीएसपी तंजील का तिरंगे में लिपटा पार्थिव शरीर शाहीन बाग स्थित उनके घर पहुंचा तो वहां रोना पीटना मच गया। हजारों की संख्या में लोग जमा हो गए। ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं था कि तंजील एनआईए में कार्यरत हैं। उनको जामिया नगर स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। तंजील को दफनाने से पूर्व स्थानीय लोगों ने खूब हंगामा किया। लोगों का कहना था कि केंद्र, यूपी और दिल्ली सरकार से शहीद के घर उनके परिवार को सांत्वना देने कोई नहीं पहुंचा।
बात तंजील के परिवार की कि जाये तो तंजील की पत्नी फरजाना बटला हाउस स्थित सरकारी स्कूल में टीचर हैं। वहीं, बेटी दसवीं में पढ़ती है, जबकि बेटा सातवीं कक्षा में पढ़ता है। तंजील के बड़े भाई रागिब अजमेरी गेट स्थित एंग्लो अरेबिक सीनियर सेकेंडरी स्कूल में टीचर हैं। हत्याकांड के समय रागिब दूसरी गाड़ी में तंजील से कुछ दूरी पर थे। तंजील को दिल्ली सरकार ने एक करोड़ की आर्थिक मदद दी है तो यूपी सरकार ने बीस लाख की।
बहरहाल, तंजील पर जिस तरह ताबड़तोड़ दो दर्जन गोलियां दागी गईं उससे यह स्पष्ट है कि हत्यारों का मकसद उनकी जान लेना ही था। तंजील अहमद राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआइए से 2009 से जुड़े थे इसलिए इस तरह की आशंकाएं उभरना स्वाभाविक हैं कि कहीं उनकी हत्या के पीछे आतंकी तत्वों का तो हाथ नहीं है? ध्यान रहे कि जिस बिजनौर जिले में उन्हें निशाना बनाया गया वहां कुछ समय पहले हुए बम विस्फोट की जांच एनआइए ही कर रही थी। इस बम विस्फोट के पीछे आतंकियों का ही हाथ था। आतंकवादी भटकल की गिरफ्तारी में तंजील का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। एनआइए का सदस्य होने के नाते तंजील पठानकोट में हुई आतंकी वारदात के अलावा अन्य कई आतंकवादी घटनाओं की जांच से भी जुड़े हुए थे। तंजील अहमद थे तो एनआईए में जरूर लेकिन मूलरूप से वह सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के अधिकारी थे। 1991 में तंजील की बीएसएफ में सब इंस्पेक्टर के रूप में भर्ती हुई थी। तेजतर्रार तंजील की कार्यक्षमता को देखकर उन्हें एनआइए में लाया गया था और वह इस एजेंसी के गठन के समय से ही उससे जुड़े हुए थे। तंजील की उर्दू भाषा पर अच्छी पकड़ थी। वह सर्विलांस में भी माहिर थे। आतंकवादियों के कोडवर्ड आसानी से टेªस कर लेते थे। आतंकवादियों के बीच होने वाली बातचीत को समझने में उन्हें महारथ हासिल थी।
तंजील की हत्या एक दुस्साहसिक घटना तो थी ही इससे अलावा इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है यह उत्तर प्रदेश में बिगड़ी कानून का एक और नमूना थी। इस संदर्भ में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तर प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए जो कहा कि इस राज्य में सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत बनाने की आवश्यकता है उससे असहमत नहीं हुआ जा सकता है। राज्यपाल राम नाईक भी कई बार प्रदेश की कानून व्यवस्था पर प्रश्न चिंह लगा चुके हैं। यहां तक की कानून व्यवस्था को लेकर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की नाराजगी भी किसी से छिपी नहीं है। 2007 के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को इसी लिये हार का सामना करना पड़ा था, क्योंकि तब प्रदेश में जंगलराज जैसे हालात थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया था। यही समस्या अखिलेश सरकार के साथ है।
उत्तर प्रदेश सरकार चाहे जैसे दावे क्यों न करे, रह-रहकर ऐसी घटनाएं होती ही रहती हैं जो यही बताती हैं कि राज्य सरकार कानून एवं व्यवस्था के समक्ष उपजी चुनौतियों का सही तरह से सामना नहीं कर पा रही है। इस मामले में उसके पास अपने बचाव का यही तर्क होता है कि उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है और कानून एवं व्यवस्था संबंधी आंकड़े अन्य राज्यों से बेहतर हैं। आंकड़ों की अपनी एक महत्ता होती है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उत्तर प्रदेश सरकार रह-रहकर इस आरोप से दो चार होती है कि वह उन तत्वों पर लगाम नहीं लगा पा रही है जो कानून एवं व्यवस्था के लिए खतरा बने हुए हैं। उधर, उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने कहा है कि पठानकोट आतंकी हमले की जांच में शामिल एनआईए अफसर तंजील अहमद की हत्या देश के खुफिया तंत्र की कार्यप्रणाली में खामी का नतीजा है। उन्होंने इस घटना पर गहरी चिंता जताई है। प्रकाश सिंह हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई उपद्रव और हिंसा की घटनाओं की जांच करने वाली कमेटी के अध्यक्ष हैं। पूर्व डीजीपी प्रकाश कहते हें अगर हत्या किसी निजी वजह से की गई है तो जांच में इसका खुलासा हो जाएगा, लेकिन देश के बड़े-बड़े मामलों की जांच से जुड़े अधिकारी को अगर आईएसआई के इशारे पर मारा गया है, तो इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता है।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
manmohan rnakoti
April 6, 2016 at 12:08 pm
एनआईए अफसर तंजील अहमद की हत्या देश के खुफिया तंत्र की कार्यप्रणाली की पोल खोलती नजर आ रही है. इस तरहेँ से तो अन्य जाँच अधिकारी अब आगे की जाँच से अपने को बचाकर चलना चाहेंगे. आँखिर इन लोगोँ के बारे में जानकारी लीक कशे हो जाती है. बड़ी अपसोस जनक बात है. हर बार हल्ला मचता है पर नतीजा shuneeye ही rehta है. अब धरमनिरपेक्षोँ की बोलती बंद क्योँ है.