अमिताभ श्रीवास्तव-
एक अकेली बूढ़ी यहूदी औरत है , मैडम रोसा , जो जवानी में वेश्या रह चुकी है और जिसके पास हिटलर के दौर में आश्वित्ज के यंत्रणा शिविर में बिताये समय की डरावनी यादें हैं जिनके असर में वह इतने बरसों बाद भी कभी-कभी सिपाहियों को देखकर अपने घर के तहख़ाने में छुपने चली जाती है। इटली के एक कस्बाई इलाक़े में वह वेश्याओं के बच्चों की देखभाल करके गुजरबसर करती है। जीवन के आखिरी दौर में याददाश्त उसका साथ छोड रही है।
एक अनाथ बच्चा है मोहम्मद। सेनेगल का प्रवासी है। मोमो कहलाना पसंद करता है। दुनिया में निपट अकेला । बिगड़ैल, ग़ुस्सैल, आवारा। चोरी-झपटमारी करना, ड्रग्स बेचना उसके काम हैं। मर चुकी माँ की कमी महसूस करता रहता है। माँ की मीठी यादें ही उसका सरमाया हैं। जीवन में ममता और देखभाल के अभाव ने उसे बाग़ी बना दिया है। मोमो भरे बाज़ार में मैडम रोसा का पर्स और सामान छीन कर भाग जाता है । उसका संरक्षक एक दयालु बूढ़ा है जो मैडम रोसा का डॉक्टर भी है। वह मोमो को देखभाल के लिए मैडम रोसा के हवाले कर देता है।
यहीं से आवारा मोमो और बूढ़ी मैडम रोसा के बीच गहरी नापंसदगी और चिढ़ से शुरू होकर करुणा और ममता का एक बेहद आत्मीय स्नेह संबंध विकसित होता है जिसकी दिल छू लेने वाली कहानी है द लाइफ़ अहेड।
हॉलीवुड की चर्चित अभिनेत्री सोफिया लॉरेन ने मैडम रोसा नाम की एक बुजुर्ग महिला की भूमिका में बहुत शानदार काम किया है। बहुत मार्मिक। जिस समय यह फिल्म बनी थी, सोफिया लॉरेन की उम्र 86 साल बताई गई थी। यह फिल्म तीन साल पहले आई थी। पचास के दशक में अभिनय शुरू करने वाली सोफिया लॉरेन की गिनती हॉलीवुड की बेहद ग्लैमरस अभिनेत्रियों में होती है। उम्र के इस दौर में भी उनकी सक्रियता सुखद और प्रशंसनीय है।
एक दृश्य में साथी कलाकार के साथ धीरे- धीरे थिरकती बुजुर्ग सोफिया लॉरेन अपने कृश शरीर और झुर्रीदार चेहरे के बीच अपने पुराने दिनों के तमाम लुभावने नृत्यों की याद दिला जाती हैं जिनके कई संस्करण फ़िलहाल यू ट्यूब पर देखे जा सकते हैं।
सोफिया लॉरेन तो खैर मंजी हुई, तजुर्बेकार अभिनेत्री हैं लेकिन मोमो के किरदार में बाल कलाकार इब्राहिमा का अभिनय उनसे रत्ती भर भी कमतर नहीं है। कमाल का काम किया है। उसकी परिपक्वता चौंकाती है। उसके एक साथी बच्चे को वापस ले जाने जब मैडम रोसा के घर उसकी माँ आती है तो अकेला हो जाने के एहसास से उसके चमकदार आबनूसी चेहर पर उभरती उदासी और पलक पर झिलमिलाते, गाल पर ढुलकते आँसू एक अद्भुत मार्मिकता का सृजन करते हैं। अकेलापन दादी अम्मा जैसी मैडम रोसा और बालक मोमो को जोड़ देता है।
समाज के हाशिये पर पड़े अकेले लोग ही फिल्म के किरदार हैं। एक मुस्लिम पात्र हामिल मोमो को महान साहित्यकार विक्टर ह्यूगो की प्रसिद्ध कृति ल मिजरेबल्स का हवाला देकर अच्छाई और बुराई के बारे में समझाता है । हामिल उसे बताता है कि क़ुरान में शेर शक्ति, धैर्य, आस्था और विश्वास का प्रतीक है। हामिल कहता है हर मुसलमान को हमेशा याद रखना चाहिए कि आस्था और विश्वास प्रेम की ही तरह होते हैं।
बीमार मैडम रोसा मोमो से कहती है उसे अस्पताल से डर लगता है। मृत्युशय्या पर पड़ी मैडम रोसा मोमो को पहचान नहीं पाती। वह रोने लगता है। बहुत मार्मिक दृश्य है। अस्पताल से मैडम रोसा को भगा लाता है। अस्पताल से निकलकर मैडम रोसा शांति का अनुभव करती है। मोमो तहख़ाने में उसकी देखभाल करता है। फिल्म मैडम रोसा की मृत्यु पर ख़त्म होती है। प्रेम कैसे मोमो का रूपांतरण करता है, यह फिल्म का संदेश है।
अकेलापन हमारे समय की एक वैश्विक समस्या है जिसके सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक कारण हैं और जिसकी वजह से तमाम मनोरोग भी बढ़ रहे हैं। फिल्म दया, करुणा और मानवीयता का संदेश देने के साथ-साथ इनकी तरफ भी इशारा करती है।
द लाइफ़ अहेड का निर्देशन सोफिया लॉरेन के बेटे एदुआर्दो पोंती ने किया है। इसे नेटफ्लिक्स पर देखा जा सकता है।