भोपाल : तिब्बत से चीन के कब्जे के हटाने को लेकर 136 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं और इसी विस्तारवादी चीन ने तिब्बत के बाद भारत में भी समस्याएं पैदा करना शुरू कर दिया है। आग अभी आपके घर से दूर है, लेकिन सतर्क नहीं हुए तो यह आग आपके घर तक भी पहुंच जाएगी। इसलिए भारत की तरफ से तिब्बतियों को राजनैतिक सपोर्ट की जरूरत है। चीन के प्रति भारतीय नागरिकों को आगाह करते हुए उक्त उद्गार भारत-तिब्बत समन्वय कार्यालय के संयोजक जिग्मे त्युल्ट्रीम ने भोपाल में भारत-तिब्बत सहयोग मंच के बैनर तले आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए।
‘वैश्विक परिदृश्य में तिब्बत की समस्या और समाधान’ विषय पर बोलते हुए जिग्मे ने कहा कि, जिन तिब्बतियों ने अभी तिब्बत नहीं छोड़ा है उन्हें चीन का प्रशासन तमाम षड्यंत्रों के तहत चीन के प्रति झुकने को मजबूर कर रहा है। तिब्बत की शिक्षा व्यवस्था में सुनियोजित ढंग से षड्यंत्र पूर्वक प्रयास करके वहां के नैनिहालों की मानसिकता को चीन परस्त बनाया जा रहा है। यही नहीं, चीन ने ब्रम्हपुत्र नदी पर बांध बनाकर वहां के लोगों के जनजीवन को बुरा कर दिया है। बांध से कभी पानी रोककर तो कभी एकदम पानी छोडक़र नदी के किनारे रहने वाली आबादी को तंग कर दिया है। उन्होंने बताया कि अगर चीन में कोई हमारे दलाई लामा का चित्र रखता है तो उसे जेल में डालकर तरह-तरह की यातनाएं दी जाती हैं । जिग्मे ने बताया कि जिस चीन में फेसबुक, ट्विटर और अभिव्यक्ति की आजादी पर बैन है, उस चीन के साथ तिब्बती तो क्या वहां के लोग भी तंग हैं।
उन्होंने कहा, चीनी गणराज्य की कू्ररता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, चीन में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मांग कर रहे छात्र-छात्राओं पर वर्ष 1989 में वहां की सरकार ने टैंक चलवा दिया था।
संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे भारतीय तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और पंजाब एजुकेशन बोर्ड के उपाध्यक्ष डॉ.कुलदीप चंद अग्रिहोत्री ने मोदी सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार ने चीन को कूटनीतिक रूप से जबाव देना शुरू कर दिया है। जिस चीन ने सिक्किम के करीब तक रेल पटरी बिछा दी, उसके जबाव में हमने भी दिल्ली से अरुणाचल प्रदेश के नहारलागुन तक टे्रन चलाना प्रारंभ कर दी है। डॉ. अग्रिहोत्री ने कहा कि तिब्बत समस्या पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की देन है। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक गुरूजी और तिब्बती धर्म गुरू दलाई लामा ने भी तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को चीन से सतर्क रहने के लिए आगाह किया था, लेकिन खुद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का राजनेता मानने वाले पंडित नेहरू ने किसी की एक न सुनी और आज तिब्बत और भारत उसी की परिणाम देख रहे हैं। डॉ. कु लदीप चंद ने कहा कि, देश के स्कूल-कॉलेजों के कोर्स में विद्यार्थियों को भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, श्रीलंका, अफगानिस्तान आदि के बारे में तो बताया जाता है, लेकिन तिब्बत के बारे में बहुत ही कम बताया जाता है, कि तिब्बत भी भारत का पड़ोसी देश है। उन्होंने कहा कि चीन द्वारा आधिपत्य जताने के बाद तिब्बत की पराजय ,पराजय नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की पराजय है। उन्होंने कहा कि जिस दिन हिन्दुस्थान की सरकार चीन के कब्जे से अपनी जमीन छुड़ा लेगी, तब तिब्बत की आजादी में भी देर नहीं लगेगी।
दैनिक स्वदेश के प्रधान संपादक राजेन्द्र शर्मा ने संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, स्वामी विवेकानंद ने भारत को पहले ही चेता दिया था कि चीन रूपी ड्रैगन अभी सो रहा है लेकिन जिस दिन जाग गया तो भारत के लिए खतरा उत्पन्न हो जाएगा। और अब चीन जाग चुका है, इसलिए स्वामी विवेकानंद की चेतावनी को समझें। उन्होंने कहा कि इतिहास हमें बताता है कि चीन का जो दानव है उसका अंत जरूर होगा। साम्राज्यवादी शक्तियां अपना विनाश लेकर साथ चलती हैं। चीन का सहोदर रूस आज टुकड़ों में विभाजित हो गया। कल चीन भी यही स्थिति होगी। जैसे भारत की संस्कृति अमर है, वैसे ही तिब्बत की संस्कृति अमर है। संकट की इस घड़ी में निराश होने की जरूरत नहीं। तिब्बत को आजादी जरूर मिलेगी।
इस अवसर पर भारत-तिब्बत मंच के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. शिवेन्द्र प्रसाद, सामाजिक कार्यकर्ता शशिभाई सेठ, पूर्व लोकसभा सदस्य और मंच के अरूणाचल प्रदेश इकाई के अध्यक्ष आर के खिरमे, चरैवेति पत्रिका के संपादक जयकृष्ण गौड़, मंच के प्रांत संयोजक जगदीश जोशी ‘प्रचंड’ ने भी अपने विचार व्यक्त किए।