उत्तर प्रदेश के किसी बिजनेसमैन को दिन दिन दूनी रात चैगनी कमाई करने का धंधा करना हो तो राज्य का आबकारी विभाग उसके लिये नजीर बन सकता है।कमाई के मामले मंे आबकारी महकमें ने बड़े-बड़े उद्योगपतियों को पछाड़ दिया है।आश्चर्य की बात यह है कि शराब के कारण प्रदेश की जनता के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के साथ-साथ अन्य कई सामाजिक बुराइयों की चिंता सरकार में बैठे लोगों को रत्ती भर भी नहीं है।इसी लिये प्रति वर्ष हजारो करोड़ की आमदनी करने वाले महकमें के बड़े अधिकारी इतनी मोटी कमाई के बाद भी संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं।वह प्रदेश के तमाम जिलाधिकारियों को पत्र लिखकर अपने जिले में शराब की खपत बढ़ाने को कह रहे हैं।शराब से परिवार बिगड़ते हैं तो बिगड़े।अपराध बढ़ते हैं तो बढ़ा करें लेकिन आबकारी विभाग का इन बातों से कुछ लेना-देना नहीं है।ऐसा लगता है कि यूपी के जिलाधिकारियों के पास कोई काम नहीं है।इसी लिये उनके कंधों पर शराब बेचने की जिम्मेदारी डाली जा रही है।सरकारी खजाना भरने के चक्कर में आबकारी विभाग के अधिकारी महापुरूषों की उस नसीहत को अनदेखा कर रहे हैं जिसमें वह कहा करते थे,‘ जो राष्ट्र नशे का शिकार होता है,विनाश उसकी तरफ मुंह बाय खड़ा रहता है।’
नशे के खिलाफ तमाम नसीहतें आज भी जगह-जगह पोस्टरों-बैनरों-होर्डिंग के माध्यम से सामने आ रही हैं,लेकिन हो इसके उलट रहा है।आश्चर्य की बात यह है कि यह नशा विरोधी होर्डिंग और बैनर-पोस्टर भी आबकारी विभाग के अधीन काम कर रहा मद्य निषेध विभाग ही लगाता है, ताकि लोग नशे में फंस कर घर बर्बाद न करें।मतलब एक ही विभाग जहां एक तरफ लोगों को अधिक से अधिक शराब पिलाने के चक्कर मंें अपनी हदें पार कर रहा है तो उसका ही उप-विभाग(मद्य निषेध विभाग)प्रदेशवासियों को नशे से दूर रखने के लिये करोड़ो रूपया विज्ञापन पर खर्च कर रहा है।
उत्तर प्रदेश में वाणिज्य कर विभाग के बाद सबसे अधिक सरकारी खजाना आबकारी विभाग के राजस्व से ही भरता है।वर्ष 2013-2014 के वित्तीय वर्ष में आबकारी विभाग ने शराब,बियर और भांग जैसी नशीली चीजों से 12 हजार पाॅच सौ करोड़ के लक्ष्य के साक्षेप में 11 हजार छहः सौ करोड़ रूपये का राजस्व एकत्र किया।इतनी राशि में किसी छोटे-मोटे देश का पूरा बजट तैयार हो जाता है।आबकारी विभाग की आमदनी साल दर साल आगे बढ़ रही है।वित्तीय वर्ष 2008 और 2009 में आबकारी विभाग ने 4 हजार 220 करोड़ रूपये का राजस्व जुटाया था जो वर्ष 2012-2013 में 9 हजार 782 करोड़ पहुंच गया।
राज्य में शराब की खपत की बात की जाये तो फुटकर अंग्रेजी शराब की दुकानों से वर्ष 2013-2014 में 08 करोड़ 25 लाख 53 हजार 9सौ चार बोतलें अंगे्रजी शराब की बिकी।ठर्रा यानी देशी पीने वालों की आदत तो इससे काफी अधिक थी।वित्तीय वर्ष 2013-2014 में 26 करोड़ 86 लाख 68 हजार 231 लीटर शराब पियक्कड़ गटक गये।इसी प्रकार बियर पीने वाले भी पीछे नहीं रहे।बीयर के शौकीन उक्त वित्तीय वर्ष में 15 करोड़ 43 लाख 8 हजार 748 बोतलें डकार गये।बात दारू पीने में रिकार्ड बनाने की कि जाये तो लखनऊ और कानपुर मंडल इस मामले में पहले और दूसरे पायदान पर रहे जबकि तीसरे नबंर पर बाबा भोलेनाथ की नगरी वाराणसी मंडल के लोग रहे।सबसे कम दारू पीने वालों में मुरादाबाद मंडल रहा।
उत्तर प्रदेश में यह शराब पियक्कड़ों के पास करीब 23,175 फुटकर दुकानों के माध्यम से पहुंचती है।वित्तीय वर्ष 2013-2104 के अनुसार राज्य में देशी शराब की 13,640 अंगे्रजी शराब की 5,096 बियर की 4,043 के अलावा पूरे प्रदेश में 396 माॅडल शाॅप थीं जिसमें और वृद्धि ही हुई है।
यह सुनकर और देखकर आश्चर्य होता है कि राज्य में जितने मयखाने हैं उतने तो ज्ञान के मंदिर (हाईस्कूल और इंटर कालेज) भी नहीं हैं।यूपी में कुल 23 हजार 175 शराब की दुकानों के मुकाबले मात्र 20,720 कालेज ही हैं।ऐसी ही स्थिति सरकारी अस्पतालों की है।यूपी की करीब 21 करोड़ आबादी के लिये प्रदेश में मात्र 5,095 अंग्रेजी (एलोपैथिक), 2114 आयुर्वेदिक,1,575 होम्योपैथिक और 253 यूनानी अस्पताल हैं।इसमें भी करीब 80 प्रतिशत खस्ता हालत में हैं।न तो प्रर्याप्त डाक्टर और अन्य स्टाफ तैनात हैं, न ही दवाएं मौजूद हैं।
बहरहाल, शराब के धंधे से आबकारी विभाग भले ही हजारो करोड़ कमा रहे हो, परंतु तथ्य यह भी है कि उत्तर प्रदेश में अंग्रेजी दारू पीने वालों की संख्या लगातार घट रही है।उत्तर प्रदेश सरकार की आय घट रही है। सरकार के लिये यह बात चिंता जनक है,लेकिन वह जमीनी हकीकत को अनदेखा कर रही है।उत्तर प्रदेश में नंबर दो की शराब का धंधा खूब फल-फूल रहा है।प्रदेश में अंग्रेजी शराब की खपत या बिक्री कम हो रही है तो उसका सबसे बड़ा कारण है हरियाणा। यू पी के कई जिलों में हरियाणा की अवैध शराब धड़ल्ले से बिक रही है।पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो हरियाणा की शराब छोटी-छोटी दुकानों और गली मोहल्ले में घरों से बेचीं जा रही है। ऐसा नहीं है की पुलिस या उत्तर प्रदेश के आबकारी विभाग को इस बात की जानकारी नहीं है।खाकी वर्दीधारी लोग इन अवैध शराब बेचने वालों से अपना हिस्सा वसूलते खुले आम देखे जा सकते हैं।अवैध कारोबार के पनपने का एक कारण और भी ह।ै जहां नंबर एक की शराब के दुकानों और मॉडल शापों पर दारू का एक पव्वा 150-160 रूपये में मिलता है वहीँ अवैध हरियाणा ब्रांड पव्वा केवल 60-70 रुपये में मिल जाता है। इस लिए प्रदेश में नंबर एक की अंग्रेजी शराब की बिक्री कम हो रही है।बताते चलें कि 2012 के विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान सपा नेता और मौजूदा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि अगर उनकी सरकार बनी तो ‘शाम की दवा’ के दाम घटाये जायेंगे,लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।यह स्थिति तब है जबकि आबकारी विभाग के मुखिया मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही हैं।
प्रदेश में अवैध शराब का धंधा बढ़ रहा है।वहीं आबकारी विभाग अपनी मजबूरियों में उलझा है।आबकारी विभाग के नियमों के मुताबिक जिला आबकारी अधिकारी को हर माह पच्चीस फीसदी दुकानों का निरीक्षण करना चाहिए। इस दौरान शराब की गुणवत्ता, दुकान के मानक, रेट सूची आदि की जांच करनी होती है।नकली शराब की जांच के लिए जिला आबकारी अधिकारी और निरीक्षक को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इसी तरह, आबकारी निरीक्षक को महीने में एक बार प्रत्येक दुकान का निरीक्षण करना चाहिए,लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है जिस कारण प्रदेश में हरियाणा की शराब की बिक्री और मिलावटी शराब का कारोबार खूब फल-फूल रहा है। आबकारी विभाग के ही एक रिटायर्ड अधिकारी का कहना था कि प्रतिमाह करोड़ों रुपये का राजस्व देने वाला आबकारी विभाग विकलांग है। विभाग के पास न ही पर्याप्त मात्रा में फोर्स है और न ही चलने के वाहन हैं। ऐसे में शराब का गलत कारोबार करने वालों के खिलाफ विभाग नाकाम हो रहा है। सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला यह विभाग अपने संसाधनों के लिए ही तरस रहा है। इतना ही नहीं यह विभाग संसाधन के साथ ही उन कड़े नियमों के लिए भी मोहताज है जो इसके पास नहीं हैं।
बता दें कि मलिहाबाद कांड में जहरीली शराब से जब कई दर्जन लोगों की मौत हुई तो सरकार ने आनन-फानन में आबकारी विभाग के सभी अधिकारियों के ऊपर कार्रवाई करते हुए उनको पद से हटा दिया। जबकि दूसरी तरफ पुलिस विभाग के सीओ स्तर तक ही कार्रवाई की गई। सूत्र बताते हैं कि इस अवैध कारोबार में पुलिस की मोटी रकम प्रतिमाह बंधी हुई होती है। कभी-कभार आबकारी विभाग की टीम छापेमारी करती है तो उससे पहले अवैध कारोबार करने वालों को पता चल जाता है। ऐसे में इसकी जानकारी अधिकतर पुलिस ही देती है।
बात यही खत्म नहीं होती है। प्रदेश में आबकारी विभाग के पास अवैध शराब का कारोबार करने वालों के खिलाफ कोई सख्त कानून नहीं है।विभाग कहीं भी अवैध शराब पकड़ता है तो उसे एक्साइज की धारा 60, 61 और 62 के तहत ही कार्रवाई करनी पड़ती है। कच्ची,देसी या फिर विदेशी, किसी भी तरह की अवैध मदिरा का व्यवसाय करने वालों के खिलाफ आबकारी विभाग सिर्फ उक्त धाराओं में ही कार्रवाई करता है। यह धाराएं जमानतीय तो होती ही हैं,अवैध करोबारियों पर जुर्माना भी नाम मात्र का लगता है। सबसे बड़ी बात यह है कि सुबह विभाग इनको पकड़ कर कोर्ट में पेश करता है जबकि शाम तक यह आरोपी जमानत पर रिहा होकर फिर अपने धंधे में लग जाते हैं। अगर इससे भी ज्यादा कुछ होगा तो मात्र छह माह की कैद हो जायेगी।मोटे अनुमान के अनुसार अवैध शराब की बिक्रि से आबकारी विभाग को प्रति वर्ष करीब 500 सौ करोड़ का नुकसान हो रहा है।
लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार से संपर्क : [email protected]