(यूपी के दो पत्रकार जिन्हें जंगल राज की भेंट चढ़ना पड़ा. राजीव चतुर्वेदी को थाने में पुलिस वालों ने पीट कर मार डाला तो जगेंद्र सिंह पर पुलिस वालों ने पेट्रोल डालकर दिन दहाड़े जला दिया. लखनऊ के कायर पत्रकारों ने फिर चुप्पी साध रखी है और राजीव चतुर्वेदी पर आरोप लगे होने का हवाला देकर सरकार और पुलिस की हत्यारी खाल को बचाने में जुट गए हैं.)
Krishna Kant : यूपी में मारे गए दोनों पत्रकार इंसान थे कि नहीं थे? कुछ लोगों ने कहा, मारा गया पत्रकार अच्छा आदमी नहीं था. कुछ ने कहा, वह दक्षिणपंथी था. मान लिया कि जगेंद्र सिंह जिन्हें जिंदा जला दिया गया और थाने से मृत निकाले गए राजीव चतुर्वेदी दोनों ही भ्रष्ट रहे हों, संघी रहे हों, कांग्रेसी या सपाई रहे हों, दलाल रहे हों, तो क्या उन्हें पुलिस जिंदा जलाकर या थाने में पीटकर निपटाएगी?
कितने भ्रष्ट नेताओं को संसद में पेट्रोल डालकर जलाया गया या ऐसी सोच का समर्थन किया गया? ऐसा किया भी क्यों जाना चाहिए?
आप किसी कदाचार में लिप्त हैं तो आपको कोई भी क्यों मारेगा? कोई व्यक्ति कितना भी अच्छा बुरा हो, उसके अपराधों की सजा सिर्फ कानून और अदालतें दी सकती हैं. और यदि इन दोनों पत्रकारों का मारा जाना सही है तो किसी को कोई भी, कहीं भी मार सकता है. फिर अदालतों और कानून का कोई काम नहीं है.
नाजायज तरीके से की गई हर हत्या का समर्थन करके आप अपने लिए एक और गड्ढा खोद लेते हैं.
दिल्ली के युवा और जनपक्षधर पत्रकार कृष्ण कांत के फेसबुक वॉल से.
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