उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं। पहले शाहजहाँपुर के जगेंद्र सिंह को जिन्दा जला कर मार दिया गया। फिर कानपुर में पत्रकार दीपक मिश्रा को पांच गोलियां मारी गयीं। साफ़ है कि अगर पहली घटना में अखिलेश सरकार तुरंत कार्यवाही करती तो कानपुर की घटना की पुनरावृत्ति नहीं होती। पहली घटना में आरोपी मंत्री और पुलिस कर्मियों पर प्रभावी कार्यवाही न होने से माफिया के हौसले और बढ़ गए और उन्होंने एक और पत्रकार को निशाना बना दिया। अब जगेंद्र की तरह दीपक मिश्रा के हमलावर भी गिरफ्तार नहीं हुए।
शाहजहाँपुर ,कानपुर के बाद अब एटा , आगरा , मैनपुरी , मेरठ , मुरादाबाद , बनारस , इलाहाबाद? और प्रदेश भर के सभी जिले दुहराये जाएं तो आश्चर्य न होगा। पत्रकारों पर हमले और हत्या में आरोपियों पर कड़ी कार्यवाही न होना उकसाने जैसा है। ऐसे माहौल में आने वाले समय में उत्तर प्रदेश में पत्रकारों की जान खतरे में है। जाहिर सी बात है कि आरोपी मंत्री को बर्खास्त न करके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ़ सन्देश दे दिया है कि जिन्दा जलते और गोली खाते पत्रकारों से उन्हें और उनकी सरकार को कोई सरोकार नहीं है। पूरे प्रदेश में पत्रकार आंदोलित है परन्तु सरकार के कानो में जूं तक नहीं रेंग रही है।
ऐसे हालात में तो लगता है कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश का इतिहास पत्रकारों की लाश पर लिखा जाएगा। सरकार के भ्रष्टाचार, घोटाले, कानून व्यवस्था की मैली तस्वीर और पुलिस, नेता, माफिया के खतरनाक गठजोड़ ने कलम के सिपाहियों को दहशत में डाल दिया है। सरकार को गलतफहमी में न रहते हुए ये मानकर चलना चाहिए कि भ्रष्टाचार और अराजकता से लड़ने वाला आज हर सख्स पत्रकार है। आखिर कितने जगेंद्र को मारोगे ? एक जगेंद्र के मरने पर भ्रष्टाचार और अराजकता को तार तार करने वाले सैकड़ो जगेंद्र पैदा होंगे। प्रदेश में हजारो लाखो लोग अपने अपने हाथो में कलम रुपी हथियार उठा लेंगे।
भ्रष्टाचार और अराजक व्यवस्था से लड़ने वाला हर सख्स जगेंद्र बनेगा। आज उत्तर प्रदेश की भयावह तस्वीर को साफ़ दिखाने के लिए जगेंद्र जैसे लोगो को जिन्दा जलाने और गोलियों से भूनने से कुछ नहीं होगा। इसके लिए तो प्रदेश से गुंडागर्दी , माफियागिरी, अराजकतावाद , भ्रष्टाचार और अत्याचार वास्तव में ख़त्म करना होगा, तभी आईने में वास्तविक तस्वीर दिखाई देगी। सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए मिर्जा ग़ालिब की ये लाइनें बरबस ही याद आती हैं –
उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा,
धूल चेहरे पे थी, आईना साफ़ करता रहा।
मैं अपने पत्रकार साथियों से कहना चाहता हूँ कि ऐसे दौर में भी घबराने या डरने की कोई जरूरत नहीं है। रात जितनी काली होती है सवेरा उतना ही सुखद होता है। इतिहास गवाह है कि भारत में आपातकाल के समय मीडिया पर सेंसरशिप लगने के समय में भी कलम के प्रवाह को लाख कोशिशों के बाद सरकार रोक नहीं पाई थी। आतंकवादियों की धधकती बन्दूकों, तालिबानियों के फतवे और युद्ध क्षेत्र की विभीषिका भी पत्रकारों को सत्य का उद्घाटन करने से नहीं रोक पाई। कलम का प्रवाह तो जारी रहेगा , शतत, हमेशा हमेशा के लिए निरंतर । चाहे पत्रकारों को कितनी भी कुर्बानिया क्यों न देनी पड़ें ? हो सकता है कि इस कठिन सफर में हमारे कुछ साथी हमसे हमेशा हमेशा के लिए बिछुड़ भी जाएं परन्तु उनकी याद को जिन्दा रखने और भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए ये लड़ाई अनवरत जारी रहेगी। अंत में अपने पत्रकार मित्रों से इन लाइनों के साथ अपनी बात समाप्त करता हूँ –
गर नहीं शमशीर अपने हाथ में तो क्या हुआ
हम कलम से ही करेंगे कातिलों के सर कलम
एटा के लेखक-पत्रकार राकेश भदौरिया से संपर्क : 9456037346
manoj thakur
June 13, 2015 at 7:31 am
kya baat kar rahe janab 1 toh patrkaaron ko poore paise nahin mil rahe oopar se yeh goliyan yeh aag lgane waali vaardaten .patrkaaron ka manobal kamjor kar rahi hain aakhir unke bhi toh unme ghar wapsi ka intejar karte hain