लखनऊ : मेरे ईमानदार पत्रकार साथियों, मेरी आप से विनम्रता के साथ अपील है, नवनीत सहगल जैसे उत्तर प्रदेश की लूट के साम्राज्य के सरगना के जब मैंने दृष्टान्त मैग्ज़ीन में लगातार बेनकाब किए तो वह मेरी पत्रिका के टाइटल को कैंसिल कराने की कोशिश कर रहे हैं। प्रेस पर छापे डलवाए गए। अपने डिपार्टमेंट के तीन अधिकारियों की कमेटी बनाकर एक फर्जी रिपोर्ट बनवाई और उस प्रेस को दबाव डालकर उससे मेरी पत्रिका की छपाई बंद करवा दी.
मेरे ऊपर मानहानि का मुकदमा किया। एक आपराधिक मुकदमा दर्ज किया गया। कोर्ट के अन्दर जज के सामने पुलिस कस्टडी में मेरे ऊपर नवनीत सहगल के गुंडों ने हमला किया, फिर भी सकून नहीं मिला तो मेरे सरकारी मकान को कैंसिल करा दिया और में फुटपाथ पर आ गया। क्या ये सब सत्य के रास्ते पर चलने के कारण हो रहा है और मेरे जैसे ईमानदार पत्रकार ने नवनीत सहगल जैसे के आगे घुटने नहीं टेके, इसलिए ये हो रहा है?
नवनीत सहगल तू भूल गया है, मुझे भूखा मरना मंजूर है लेकिन तेरे जैसे गंदे आदमी के आगे घुटना टेकना मंजूर नहीं है और तेरी दबंगई मंजूर नहीं है। लगा ले तू जितना भी जोर, हम भी देखें तेरे बाजुओं में कितना जोर है। मेरी देश के सभी पत्रकार भाइयों से अपील है कि अब सड़कों पर बगावत होनी चाहिए। एक बड़ा आन्दोलन सड़कों पर होना चाहिए। इस तरह का सरकारी दमन हमारे साथ हो रहा है। कल आपकी बारी हो सकती है। इसलिए सड़कों पर उतरना अब जरूरी हो गया है। बगावत करना जरूरी हो गया है। अगर आप लोग इस आन्दोलन से जुड़ना चाहते हैं और पत्रकारिता की गरिमा को जीवित रखने के लिए अपना योगदान देना चाहते हैं तो इस आन्दोलन से जुड़ें। आप लोग अपना मोबाइल नंबर जरूर दें।
अनूप गुप्ता के एफबी वाल से
Comments on “पत्रकारों से यूपी के सूचना सचिव के खिलाफ सड़कों पर उतरने का आह्वान”
अनूप जी आपकी इस अपील का कोई असर होगा, मुझे नहीं लगता। इसकी वजह साफ है। आज पत्रकारिता के पेशे में पत्रकार नहीं बल्कि मालिकों, राजनेताओं और नौकरशाहों के तलवे चाटने वाले दल्ले हैं। ये दल्ले अपने संस्थानों में कार्यरत युवाओं को भी दल्ला बनने को मजबूर कर रहे हैं। टेलीवीजन चैनलों में तो हालत इतनी घिनौनी हो चुकी है कि अब कोई युवा इस पेशे में आना भी नहीं चाहता। समाज में इस पाकसाफ पेशे की मर्यादा धूल में मिलाने वाले ये दल्ले विभिन्न सभाओं और गोष्ठियों में मक्कारी की हद तक झूठ बोलते हैं और अपने आसपास सिर्फ दल्लों को रखते हैं। मैं ऐसे तकरीबन चार-पांच मक्कारों को जानता हूं जो विभिन्न चैनलों में शीर्ष पदों पर बैठे हुए हैं। इसलिए इस कुकर्मी जमात से कोई अपील मत कीजिए। अपील करनी ही है तो सड़क पर धूल फांकती आम जनता से कीजिए या फिर अपनी इस लड़ाई को उस अंजाम तक पहुंचाइए जहां एक अकेले इंसान का साहस किसी भी बलशाली दु;शासन पर भारी पड़ जाए।
अपनी तो ये आदत है कि हम कुछ कहते,
कुछ कहने पे तूफ़ान उठा लेती है दुनिया ~~~~
कुछ नहीं कहते ~~~~बअस चुप कप से हैं रहते,
हैं ग़मगीन बोहोत और कुछ नहीं कहते।
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दोस्तों, अक्सर लोग कहते हैं की दाल में कुछ काला है लेकिन यहां तो पूरी दाल ही काली है।
दौलत और शोहरत के नशे में चूर सत्ता और पत्रकारिता अपने चरम पर है, पद और पैसा कमाने की अंधाधुंध दौड़ और झूठी शा-औ-शौक़त के फेर ने मान और मर्यादाओं की सारी हदें तोड़ दी हैं जो ना केवल एक पाक-साफ़ राजनीति अपितु गणेश शंकर विद्यार्थी जी की पतित पावनी लेख-लेखनी को हंसिए पर खड़ा देख है।
कुछ ऐसा ही यह छद्दम युद्ध नज़र आता है यहां।
गड़ेश शंकर विद्यार्थी जो अतीत से आज तक और आंगे भी मिसन पत्रकारिता की पितामाह जाने जाते है, गांधी जी भी पत्रकार थे, अटल बिहारी जी ने भी पत्रकारिता के गौरव पूर्ण काल के इतिहास को जिया है लाल कृष्णा आडवाणी जी भी पत्रकार थे, बाला साहेब ठाकरे जी भी कार्टूनिस्ट पत्रकार थे लेकिन इन सभी महापुरुषों ने कभी भी मिसन पत्रकारिता और उसकी गरिमा पर आंच नहीं आने दी.लेकिन वर्तमान पत्रकारिता किस दौर से गुजर रही है ये इस्थित पूरे देश का एक एक नागरिक जानता है पहले के अखबारों के मालिक कभी भी अपने संपादकों के काम में हस्तछेप नहीं किया करते थे और कभी कभार किया भी तो संपादक का चरित्र इतना मजबूत हुआ करता था की संपादक मालिक को अपने काम में हस्तछेप करने के लिए मना कर दिया करता था लेकिन आज इस्थित इसके बिलकुल उलट है आज अखबारों के मालिकों को संपादक नहीं विज्ञापन मेनेजर चाहिये होते है और मिल भी रहे है ,जब अखबारों के सम्पादक मालिकों के चाटुकार होंगे तो रिपोर्टर कैसा होगा ये आप अनुमान लगा सकते है, आज आपको पत्रकार नहीं भांड मिल जाएगा ,आज आपको पत्रकार नहीं दलाल मिल जाएगा ,आज आपको पत्रकार नहीं ब्लैक मेलर मिल जाएगा इस्थित इससे और अधिक भयानक है जब पत्रकार नौकरशाहों और मंत्रियौं को लड़कियां पहुचाने लगे तो मिसन पत्रकारिता की गरिमा तार तार होने लगी,
में पूछना चाहता हूँ उन पत्रकारों से एक सीमित वेतन पाने बाला पत्रकार अकूत सम्पति का मालिक कैसे बन बैठा , बड़ी बड़ी गाडियों का मालिक कैसे बन बैठा ये सम्पन्नता किसी भी तरह से ईमानदारी से नहीं आ सकती है इस सम्पन्नता को पाने के लिए पत्रकार को सबसे पहले भांड बनना होगा ,दलाल बनना होगा ,ब्लैक मेलर बनना होगा और तो और वैश्या के कोठे का चकला घर का दलाल बनना होगा, कितनी शर्मनाक बात है आज का पत्रकार कोठे का दलाल हो गया.
मेरी सभी ईमानदार पत्रकार भाइयौ से अपील है मिसन पत्रकारिता को इस कठिन दौर से निकालने में अपनी भूमिका अदा कीजिये नहीं तो कहीं देर हो गई तो आने वाली आंगे की पीड़ियाँ हम सब को माफ़ नहीं करेंगी तो हम सभी मिलकर शपथ ले की मिसन पत्रकारिता को भांड , दलाल ,ब्लैकमेलर और वैश्या के कोठे बाले दलालों के हांथो से निकाल कर ईमानदार पत्रकारों के हाथों में पत्रकारिता की कमान सोपे, अब समय आ गया की भ्रष्ट पत्रकारों के खिलाफ आंदोंलन चलाया जाए और इनको पूरी तरह से उकाड़ फेका जाए.
आप सभी ईमानदार पत्रकार इस आन्दोलन से जुड़ना चाहे तो आपका बहुत सुआगत है और एक बड़ी पहल की शुरुआत की जाए आप सभी लोग इस पोस्ट को पड़ने बाद अपना मोबाइल नंबर जरूर देने का कस्ट करे.
धन्यबाद
अनूप गुप्ता
संपादक दृष्टान्त मैगज़ीन
लखनऊ 09795840775