मथुरा में एमबीए पास लड़की से रेप के मामले में पत्रकार कमलकांत उपमन्यु को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तगड़ा झटका दिया है। न्यायाधीश अरुण टंडन तथा सुनीता अग्रवाल की डिवीजन बैंच ने इस मामले में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के स्पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद, डीजीपी तथा एसएसपी मथुरा को 25 जुलाई तक शपथपत्र दाखिल करने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 27 जुलाई को होनी है। कोर्ट ने 12 जुलाई के अपने आदेश में यह भी पूछा है कि बलात्कार पीड़िता का कोर्ट में बयान हो जाने के बावजूद जांच को दूसरे जिले में ट्रांसफर कराने को देखते हुए क्यों न यह मामला सीबीआई को सौंप दिया जाए।
यह मामला 6 दिसंबर 2014 का है। मथुरा के हाईवे थाने में अपराध संख्या 944/2014 धारा 376 व 506 आईपीसी के तहत दर्ज मामले में एक लड़की ने उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्यक्ष, ब्रज प्रेस क्लब के अध्यक्ष तथा मथुरा छावनी बोर्ड के भी उपाध्यक्ष पद पर काबिज रहे कमलकांत उपमन्यु पर रेप का आरोप लगाया। उपमन्यु ने अपने प्रभाव और पुलिस अफसरों से अपनी नजदीकियों का इस्तेमाल करते हुए इस गंभीर आपराधिक मामले की जांच मथुरा से फिरोजाबाद ट्रांसफर करा लिया और फिर फिरोजाबाद पुलिस से केस में फाइनल रिपोर्ट लगवा दी। जांच ट्रांसफर होने से पूर्व पीड़िता का मथुरा में मेडिकल हो चुका था और मथुरा पुलिस के सामने 161 व कोर्ट में 164 के तहत बयान हो चुके थे।
उन दिनों यूपी के डीजीपी एएल बनर्जी हुआ करते थे और जिन्हें हफ्ते भर बाद ही रिटायर होना था। मथुरा की एसएसपी मंजिल सैनी थीं जो उपमन्यु से अच्छे से परिचित थीं। मंजिल सैनी ने उपमन्यु के खिलाफ एफआईआर ही बड़ी मुश्किल से दर्ज होने दी और फिर एफआईआर दर्ज होने के बावजूद गिरफ्तारी न करके उसे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने की पूरी छूट भी दी। एसएसपी का संरक्षण ही था कि बलात्कार जैसे संगीन आरोप में और पीड़िता के 164 के बयान हो जाने के बावजूद कमलकांत उपमन्यु अपने सगे भाई की एप्लीकेशन पर जांच मथुरा से फिरोजाबाद स्थानांतरित करने में सफल रहा।
फिरोजाबाद में तब तक एसपी के पद पर पीयूष श्रीवास्तव आ चुके थे जो पहले मथुरा में एएसपी रहे थे। पीयूष श्रीवास्तव से भी कमलकांत उपमन्यु की अच्छी सेटिंग थी इसलिए उसे फिरोजाबाद के आईओ को प्रभावित करने में कोई परेशानी नहीं हुई। केस की गंभीरता और आरोपी पत्रकार कमलकांत उपमन्यु के प्रभाव को देखते हुए मथुरा बार एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष एडवोकेट विजयपाल तोमर इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ले गए और 09 फरवरी 2015 को जनहित याचिका दायर की।
एडवोकेट विजयपाल तोमर की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश माननीय डी. वाई. चंद्रचूढ़ तथा माननीय सुजीत कुमार की बैंच ने संज्ञान लेते हुए 11 फरवरी 2015 के अपने आदेश में संबंधित सभी अधिकारियों तथा सीजेएम मथुरा को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए। इलाहाबाद हाइकोर्ट में लंबित होते हुए पत्रकार कमलकांत उपमन्यु ने इस बीच फिरोजाबाद पुलिस से इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगवा ली। आरोपी कमलकांत उपमन्यु ने पीड़िता को मथुरा कोर्ट के अंदर अपने पक्ष में बयान देने पर बाध्य कर दिया। याचिकाकर्ता एडवोकेट विजयपाल तोमर ने 12 जुलाई 2016 को कोर्ट के समक्ष सारा मामला पेश किया।
आरोपी पर प्रभाव का इस्तेमाल कर जांच बदलवाने, फाइनल रिपोर्ट लगवाने और पीड़िता के बयान अपने पक्ष में कराने की बात बताई। कोर्ट ने अब 25 जुलाई तक मुख्यमंत्री के स्पेशल ऑफीसर इंचार्ज जगजीवन प्रसाद, डीजीपी उत्तर प्रदेश तथा एसएसपी मथुरा को अपने-अपने शपथपत्र दाखिल करने करने को कहा है। कोर्ट ने अपने आदेश में पूछा है कि क्यों न यह मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया जाए।
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