Daya Shankar Rai : विरोध के तेज होते स्वरों के बीच लगता है सरकार ने मिर्जापुर के मिड-डे-मील मामले में अब लीपापोती की कोशिशें शुरू कर दी हैं। आज के अखबारों में बेसिक और उच्च शिक्षा शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी और दिनेश शर्मा का बयान है कि घोटाला उजागर करना कोई अपराध नहीं है इसलिए इस मामले में पत्रकार पवन जायसवाल की गिरफ्तारी नहीं होगी। दोनों ने घटना की विस्तृत जांच की बात कही है। लेकिन लगता है खुद को बुरी तरह फंसती देख सरकार अपना मुंह छुपाने की कोशिशों में लग गई है।
यहाँ महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पवन जायसवाल ने पत्रकारीय धर्म का पालन करते हुए इस मामले को उजागर कर अपने काम को बखूबी अंजाम दिया है जिसे मीडिया अब भूलता जा रहा है। अगर इस खबर को जानते हुए वह इसे छुपा जाते तो बेशक वह अपने पेशे से धोखा करते और उन पर सवाल भी उठते। लेकिन पवन ने वही किया जो कि एक ईमानदार और प्रोफेशनल पत्रकार को करना चाहिए था। फिर उन पर मुकदमा कैसे बनता है?
जाहिर है यह सब वहाँ के वाचाल और बड़बोले डीएम के इशारे पर पवन और कुछ गिने-चुने ईमानदार पत्रकारों को डराने धमकाने की नीयत से हुआ है। इसलिए कार्रवाई तो दरअसल उन डीएम महोदय, ब्लाक शिक्षा अधिकारी और उन पुलिस वालों पर होनी चाहिए जिन्होंने पवन पर मुकदमा दर्ज किया और कराया है। और, डीएम अनुराग पटेल साहब अभी रुके नहीं हैं। उनका बड़बोलापन क़ायम है। आज के टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़ उन्होंने कहा है कि पवन जायसवाल प्रिंट मीडिया के पत्रकार होते हुए वहाँ वीडियो कैमरा लेकर गए थे।
वाह पटेल साहब! तो आप पत्रकारिता के नियम और तौर-तरीके भी सिखाएंगे !! इसलिए दिनेश शर्मा जी और सतीश जी से यही कहूंगा कि एक भ्रष्टाचार उजागर करने के लिए पवन को सम्मानित करें और इस मामले में सरकार की और बदनामी करा रहे इन डीएम महाशय और उन सभी अफसरों और पुलिस वालों भूमिका की निष्पक्ष जांच करा कर उन पर सख्त कार्रवाई करें।इससे सरकार की इज्ज़त बढ़ेगी ही, घटेगी नहीं !
वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर राय की फेसबुक वॉल से.
पूरे प्रकरण को समझने के लिए ये वीडियो देखें…