मजीठिया वेज बोर्ड मामले में हम इन दिनों एक तरफ जहाँ खुश होकर सुप्रीम कोर्ट के 23 अगस्त के फैसले की तारीफ़ के कसीदे पढ़ रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की बारीकियों का अध्ययन कर रहे हैं वहीँ पत्रकारों का एक समूह कुछ वकीलों की तारीफ और मैनेजमेंट के इशारे पर दूसरे वकीलों के खिलाफ सोशल मीडिया पर वॉक युद्ध कर रहा है। फेसबुक पर स्टोरी चल रही थी कि अमुक वकील तो सुप्रीम कोर्ट में कुछ नहीं बोले। एक ने ‘हिन्दुस्तान और हिंदुस्तान टाइम्स के रिटायरमेंट हुए लोगों को मिले लाखों रुपये’ पर कमेंट लिखा है कि हिन्दुस्तान के कर्मचारियों को जितना पैसा बताया गया, उतना नहीं मिला। यानि सीधे सीधे कहें तो आरोप हिन्दुस्तान टाइम्स कर्मचारियों के वकील उमेश शर्मा जी पर लगा दिया। साथ ही मेरी लेखनी पर भी।
अब इस पर मेरी भी सफाई सुन लीजिये। आपमें से जो भी साथी मेरी लेखनी पर आरोप लगा रहे हैं उनके प्रति गुस्सा या रंज तनिक भी मेरे मन में नहीं है। रोजाना 70 से अस्सी फोन आ रहे हैं। सभी साथियों को मजीठिया वेज बोर्ड के बारे में जानकारी देना, वाट्सअप और मेल के जरिये देश भर के पत्रकारों के सवालों का जवाब देना, कहीं फंसना तो उमेश सर को याद करना। ऊपर से ये आरोप, फिर भी नाराजगी नहीं है। दोस्तों आप सबको बता दूं हिन्दुस्तान टाइम्स के रिटायर लोगों को ज्यादा रकम मिलने वाली खबर बिलकुल सही और सटीक भी है। आप में से कुछ साथी चाहें तो उन लोगों से बात भी करा सकता हूँ।
अब आई बात सुप्रीम कोर्ट के वकील उमेश शर्मा जी की तो आपको बता दूं कि उमेश शर्मा जी के लिए पत्रकारों का वेज बोर्ड कोई नया नहीं है। मजीठिया वेज बोर्ड से पहले वे पत्रकारों के लिए गठित पालेकर वेज बोर्ड और बछावत वेज बोर्ड की लडाई लड़कर अखबार मालिको को हरा चुके हैं। वे पत्रकारों का अधिकार भी उन्हें दिला चुके हैं। आपको उनके अनुभव का एक और उदाहरण देता हूँ। एक वरिष्ठ अधिवक्ता जो पहले पत्रकारिता में थे, 1996 में उनके समर्थन में उमेश शर्मा जी ने केस लड़ा और उन्हें उस समय 2 लाख 65 हजार की रकम दिलाई। सोचिए, आज के हिसाब से ये कितना होता है। आप खुद अंदाजा लगाइये। कई और मामले हैं जो साबित करते हैं कि उमेश सर काफी सुलझे हुए जानकार और संयमी एडवोकेट हैं।
एक उदाहण और देता हूँ। अमिताभ बच्चन को एंग्रीयंग मैंन कहते हैं। वे परदे पर खूब चिल्लाते हैं, तालिया भी बजती हैं लेकिन वे हमेशा दिलीप कुमार जी को अपना एक्टिंग गुरु मानते हैं क्योंकि दिलीप कुमार जी बहुत कम चिल्लाते हैं मगर उनके अभिनय की पूरी दुनिया लोहा मानती है। उन्हें जो कहना रहता है, बहुत ही शालीनता से कह देते हैं और उनके जवाब पर तालियां नहीं बजती बल्कि वो जो तर्क देते हैं उसे सुनकर दुनिया जरूर अवाक रह जाती है।
इस संबंध में श्री विनय विहारी सिह जो कि कोलकता में पत्रकार हैं और इंडियन एक्सप्रेस से रिटायरमेंट के बाद १७(१) का अप्लीकेशन मार्च २०१५ में उमेश शर्मा जी के बताए हुए तरीके से लगाया और तभी उनकों प्रबंधकों ने बुला कर बकाया दे दिया। उनको फ़ोन करना है तो नंबर ले लीजिए. इसके बाद श्री प्रेमचन्द सिन्हा व 10 अन्य जो कि हिन्दुस्तान टाइम्स से रिटायर हुए थे उनके द्वारा CCP No. १२८ / २०१५ लगाया गया। साथ ही श्री उमेश शर्मा के द्वारा १७(१) का अप्लीकेशन लगाया गया। उन सभी को पैसा लाखों में मिला। इस बात की पुष्टि फोन द्वारा कर सकते हैं।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि क़ानूनी कार्यवाही में लगाए गये दाव पेंच से जीत होती है, सिर्फ़ बहस को मुद्दा बना कर गुमराह ना हों। यह हिन्दी फिल्म की क़ानूनी लडाई नहीं है जिसमें हीरो सबसे ज़्यादा बोलकर जीत जाता है। कृपया यह बताएं कि इनके अलावा कितने पत्रकारों को कुछ हाथ आया है। दोस्तों आप सबसे निवेदन है कि कृपया किसी भी वकील के बारे में कोई भी वॉक युद्ध ना करें। हमारा मकसद साफ़ है कि मालिकों को हराना और अपना हक़ पाना है। इस राह पर ही चलना है। भटकना तनिक भी नहीं है। ध्यान दीजिये।
शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
9322411335
[email protected]