अजय कुमार-
वो शहर जो 1996-2001 के बीच, मेरी कर्मभूमी रहा और मेरे लिए घर जैसा था। आतंक और Militancy पर रिपोर्टिग के लिए साल में कम से कम 8-10 बार, कश्मीर जाया करता था। Militancy का दुर्गम दौर था वो, बिना सेना कि मदद के कवरेज हो पाता था। कई रातें जागकर बीताई थी, कि कहीं कोई AK 47 कि गोली, काम तमाम ना कर दे।
32 सिखों कि हत्या जो Chittisinghpura में हुई थी, उस हादसे कि कवरेज के दौरान, Militants ने चेताया। रात के 3 बजे फोन पर 5 घंटे घाटी छोडकर भागने का फरमान जारी किया। Office ने तुरंत वापसी का इंतजाम किया था। उस वक्त आज तक चैनल में काम करता था। उस के बाद, घाटी में कभी प्रवेश ना करने का संदेशा दिल्ली में मुझ तक पहुंचाया गया। घर वालों के दबाव में वापस नहीं गया।
कल जब लाल चौक पर Clock Tower पर तिरंगा लहलहाता देखा, तो सीना 56 इंच का महसूस किया। ये वहीं लाल चौक था, जहाँ कभी, शाम 5 बजे के बाद जाता नहीं था। दुकाने बंद रहती थी, लोगों में डर और खौफ था।
सेना का कोई जवान आज लाल चौक पर सुरक्षा के लिए तैनात नहीं था। जिंदगी लहलहा रही थी और Tourists बरसात और गुलाबी ठंढ का मजा लूट रहे थे। लोग काफी पी रहे थे, गोलगप्पे खा रहे थे। जलेबी तली जा रही थी और जिंदगी चटकदार लग रही थी। ये 1996-2001 वाला श्रीनगर नहीं था। ये 5 अगस्त 2019 के बाद का कश्मीर है…
धारा 370 और 35 A को INEFFECTIVE बनाने के बाद का कश्मीर – ये मेरा, हम सबका, पूरे भारत का कश्मीर है।
इस नये कश्मीर के लिए जितना भारत सरकार को घन्यवाद देता हूँ, उतना ही, अपने बॉस, श्री जगदीश चंद्र को, जिन्होंने बातों-बातों ने श्रीनगर के ठंडे मौसम में कुल्फी खिलाने के लिए, मुझे, मेरे कश्मीर से मिलाया। महज 8 घंटे में हम दोनों, कुल्फी खाकर वापस आ गए।
लेकिन, मेरे लिए ये 22 साल के वनवास का खात्मा था – अपने दूसरे घर में जा कर, “घर वापसी” का एहसास था – श्रीनगर की खुली हवा में आजादी की सांस लेना था – एक एहसास जो जीवन भर, मेरे साथ रहेगा। Thanks a ton, Govt of India & Special Thanks to, PM Modi – HM Amit Shah…