सुजीत सिंह प्रिंस-
डिजिटल अरेस्ट क्या होता है, और इससे कैसे बचा जा सकता है?
अभी लखनऊ में KGMC की एक महिला डॉक्टर को साइबर ठगों ने डिजिटल अरेस्ट कर लिया और केवल 2 घंटे के अंदर उनके अकाउंट से 85 लाख रुपए अपने अकाउंट में ट्रांसफर करवा लिए। इसके बाद भी उनको 10 दिन तक डिजिटल अरेस्ट में रखा।
मार्च में इसी तरह की एक बड़ी घटना और हुई थी जब वाराणसी की एक महिला टीचर को डिजिटल अरेस्ट करके उनके 3.55 करोड़ रुपए साइबर ठगों ने अपने अकाउंट में ट्रांसफर करवा लिए थे। वाराणसी वाली घटना में बैंक कर्मियों को भी अरेस्ट किया गया था। शायद एक्सिस बैंक लखनऊ का रीजनल हेड था, और उसका कजिन बनारस ब्रांच में था छोटा कर्मचारी। मार्च में लखनऊ के सभी पेपर में यह न्यूज़ आई थी।
डिजिटल अरेस्ट में साइबर ठग द्वारा पीड़ित को फोन कर बताया जाता है कि उनका नाम कोई शिकायत दर्ज हुई है। झूठे मामले को लेकर पीड़ित को पहले काफी डराया जाता है, जिससे वह घबरा जाता है। इसके बाद उन्हें घर से बाहर निकलने से मना कर दिया जाता है।
दूसरा फोन कॉल कर के पीड़ितों को मदद देने का आश्वासन दिया जाता है। मदद मानकर पीड़ित ठगों की कही हुई हर बात को फालो करता है। ठग पीड़ितों को एक एप डाउनलोड करने को कहते हैं। लगातार उस एप के जरिये पीड़ित से जुड़े रहते हैं।
कुछ देर बाद वह केस को रफा-दफा करने के लिए पीड़ित से कुछ पैसे मांगते हैं। पीड़ित को इतना डरा दिया जाता है कि वह अपने स्वजन और करीबियों से भी इस तरह की बातें बताने में घबराने लगता है।
फ्रॉड करने वाले लोग लॉ ऑफ एवरेज पर काम करते हैं 100 कॉल करेंगे तो एक न एक व्यक्ति फंस ही जाता है। यूपी के एक भूतपूर्व डीजीपी ने तो ओटीपी बताकर खुद ही अपना पैसा ट्रांसफर कर दिया था।
वैसे कुछ लोग कहते हैं- असलियत में डिजिटल अरेस्ट जैसा कुछ नहीं होता, यह सिर्फ फ्रॉड करने का नया तरीका है। There is Nothing like digital arrest, they are frauds on video call in Police uniform at fake police station.