अपीलों को विशेष न्यायालय एमपी/एमएलए ने सारहीन माना, अवर न्यायालय के फैसले पर मुहर… अपीलीय न्यायालय ने कहा कि अवर न्यायालय द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश में कोई त्रुटि नहीं… विशेष न्यायाधीश बोले- अवर न्यायालय द्वारा पारित किए गए आदेश में हस्तक्षेप का कोई औचित्य नहीं
उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में 10 साल पहले चुनावी सभा में भड़काऊ भाषण देने के आरोप से घिरे भाजपा सांसद वरुण गांधी को अपीलीय न्यायालय के फैसले से एक बार फिर बड़ी राहत मिली है। अपीलीय न्यायालय ने अवर न्यायालय के वर्ष 2013 के दो अलग-अलग मुकदमों में पारित निर्णय एवं आदेश को सम्पुष्ट (सहमति) कर राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया है। तत्कालीन अखिलेश सरकार के समय में दायर दोनों अपीलों को विशेष न्यायालय एमपी/एमएलए ने सारहीन माना है।
जनपद के थाना बरखेड़ा में 8 मार्च 2009 को समय करीब 2:00 बजे थानाध्यक्ष ने मौखिक सूचना के आधार पर धारा 125 लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 19 51 तथा धारा 153 (क) व 188 भारतीय दंड संहिता का अभियोग वरुण गांधी पर पंजीकृत किया जिसमें उन पर बिना सक्षम अधिकारी की अनुमति के बरखेड़ा बाजार में चुनावी जनसभा को संबोधित करने और इस दौरान भड़काऊ भाषण देने की बात कही गई। विवेचना के उपरांत विवेचक ने वरुण गांधी के विरुद्ध आरोपपत्र धारा 153 (क) 295 (क) व 505 (2) भारतीय दंड संहिता एवं धारा 125 लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत विचारण हेतु न्यायालय को प्रेषित किया।
इसी प्रकार पीलीभीत शहर में कोतवाली में मौखिक सूचना के आधार पर 18 मार्च 2009 को समय करीब रात्रि 9:30 बजे अभियुक्त वरुण गांधी के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (क) 295 (क) एवं 505 (2) धारा 125 लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अंतर्गत अभियोग दर्ज किया गया। विवेचना पूर्ण करने के उपरांत वरुण गांधी के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (क) 295 (क) एवं 505 ,ह धारा 125 अधिनियम 1951 में आरोपपत्र विचारण हेतु न्यायालय में भेजा गया था, जिसमें कहा गया कि वरुण गांधी ने 7 मार्च 2009 को मोहल्ला डालचंद में आयोजित चुनावी जनसभा में एक वर्ग विशेष का नाम लेकर भड़काऊ भाषण दिया।
वर्ष 2009 में प्रदेश में मायावती की सरकार थी। जब दोनों मामलों में वरुण गांधी अदालत में हाजिर हुए तो उनको न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया था। मामला राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में सुर्खियों में था। माहौल खराब होने पर वरुण गांधी को पीलीभीत जिला जेल से रातोंरात एटा जिला जेल के लिए स्थानांतरित कर दिया गया था। उन पर प्रदेश सरकार ने रासुका लगा दी थी। उसके बाद भाजपा की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े वरुण गांधी सांसद बन गए।
दोनों ही मुकदमों में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय से वर्ष 2013 में वरुण गांधी को दोषमुक्त करार दे दिया गया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय ने अभियोजन की ओर से पेश किए गए सभी गवाहों को पक्ष द्रोही माना था। तब उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी। वरुण गांधी का इतने बड़े मामले में अदालत से दोषमुक्त होना सपा सरकार को रास नहीं आया। राज्य सरकार की ओर से दोनों ही मुकदमों में तत्कालीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के निर्णय व आदेश को विशेष न्यायालय में अपील दायर कर चुनौती दी गई।
विशेष न्यायालय एमपी/एमएलए/ पर जनपद एवं सत्र न्यायाधीश ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दायर की गई अपील पर सुनवाई करते हुए अवर न्यायालय के दोनों मुकदमों में दिए गए फैसले व आदेश का परीक्षण किया। दायर अपील के तर्कों को सुना व देखा, जिसके बाद अपने फैसले में कहा कि अवर न्यायालय द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश में कोई त्रुटि नहीं है बल्कि अवर न्यायालय द्वारा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का विश्लेषण करते हुए तर्कसंगत निष्कर्ष निकालकर अपना आदेश पारित किया है। ऐसी दशा में अवर न्यायालय द्वारा पारित किए गए आदेश में अपीलीय न्यायालय को हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता है, तदनुसार अपराधिक अपील सारहीन होने के कारण खारिज किए जाने के योग्य है एवं अवर न्यायालय द्वारा पारित आदेश सम्पुष्ट किए जाने योग्य है।
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