पंकज कुमार झा-
सबसे कठिन होता है जजमेंटल होना। लेकिन उससे भी कठिन है चुप रह जाना। अपने माखनलाल के ही, हमारे कनिष्ठ बैच के छात्र रहे यशस्वी पत्रकार दिवंगत विकास शर्मा जी के बारे में संस्थान के ही पूर्व छात्रों ने काफ़ी कुछ बताया। लिखने का आग्रह भी था लेकिन, हिम्मत नहीं हो रही थी।
सच ईश्वर जानें लेकिन इस हृदय विदारक घटना के एक बड़े पहलू पर मित्र Jitendra Pratap Singh के पोस्ट के संपादित अंश को ही मेरा भी लिखा माना जाय। मुझे साहस नहीं हो रहा इससे अधिक कुछ भी कहने का।
जितेंद्र जी लिखते हैं :-
स्वर्गीय विकास शर्मा जी के बारे में कुछ ऐसी बातें पता चली जिसे जानकर में चौक गया कि स्क्रीन पर अपनी बुलंद आवाज में रिपोर्टिंग करता यह व्यक्ति अंदर ही अंदर कितना घुट रहा था। कितनी बुरी तरह से टूट चुका था।
विकास शर्मा जी कानपुर देहात के छोटे से गांव के थे और एक बेहद पिछड़ी जाति यानी बढ़ई परिवार में पैदा हुए थे। पत्रकारिता की डिग्री ली और कई चैनलों में काम करते हुए वे रिपब्लिक तक पहुंचे। उन्होंने प्रेम विवाह किया था। पत्नी को प्राथमिक स्कूल में टीचर की सरकारी नौकरी मिल गई। उसके बाद उसकी चाल चलन और आदतें व्यवहार बदल गया।
विकास शर्मा जी की पत्नी ने इनके ऊपर दहेज उत्पीड़न से लेकर इनके बुजुर्ग पिताजी के ऊपर मॉलेस्टेशन तक का केस दर्ज करवा दिया था। इससे विकास बुरी तरह टूट चुके थे। वे अपने मां-बाप के इकलौते लड़के थे। इनकी दो बहन हैं।
विकास शर्मा के एक सहकर्मी से आज मेरी बात हुई। उन्होंने बताया कि यह व्यक्ति इतना टूट चुका था कि रविवार को भी घर नहीं जाता था। कहता था कि मैं घर जाऊंगा फिर खाली दिमाग शैतान का घर होगा। इसलिए वह ऑफिस में काम करता रहता था। सब लोग शिफ्ट पूरी होने के बाद अपने घर चले जाते थे लेकिन, विकास शर्मा जब तक नींद नहीं आए तब तक ऑफिस में काम करते रहते थे। कोर्ट कचहरी, पुलिस स्टेशन के चक्कर लगा-लगा कर वे थक चुके थे।
अंदर ही अंदर घुट रहे विकास शर्मा जी कोरोना से ठीक हो गये थे। पर फिर उन्हें हार्ट अटैक आया और मात्र 36 साल की उम्र में वह ईश्वर के प्यारे हो गए।
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