राज्य उपभोक्ता आयोग में एक अजब-गजब मामले की सुनवाई की गई. मामला लखनऊ के रहने वाले विनय कुमार मिश्रा और उनकी पत्नी से जुड़ा है.
दरअसल विनय मिश्रा ने अपनी गर्भवती पत्नी संगीता को 15 जनवरी 2024 को रात 9 बजे लखनऊ के मनकामेश्वर अस्पताल में भर्ती कराया था. यहां मौजूद डॉ मीना पांडेय ने खुद को स्त्री रोग विशेषज्ञ बताया. अगले दिन यानी 16 जनवरी को सामान्य डिलिवरी से संगीता ने एक पुत्री को जन्म दिया. डॉ मीना ने विनय को ब्लड की जरूरत बताई, जिसके बाद विनय ब्लड लेकर जब वापस लौटे तो पता लगा कि उनकी पत्नी का देहांत हो चुका है. विनय को इस बात का गहरा धक्का लगा.
विनय को बाद में पता लगा कि डॉ मीना एक होम्योपैथिक डॉक्टर हैं और गलत ढंग से खुद को सत्री रोग विशेषज्ञ प्रचारित कर रखा है. विनय को ये भी पता चला कि डॉ मीना ने उनकी पत्नी को एलोपैथिक की दवाएं दीं जिसके लिए वह अधिकृत नहीं थी. जिसके चलते प्रसव के बाद सावधानी नहीं बरती जा सकी.
इससे आहत होकर विनय ने यह परिवाद राज्य उपभोक्ता आयोग, उप्र, लखनऊ में पेश किया, जिसकी सुनवाई राज्य आयोग के श्री राजेन्द्र सिंह सदस्य एवं माननीय श्री विकास सक्सेना सदस्य द्वारा की गयी.
प्रिसाइडिंग जज माननीय श्री राजेन्द्र सिंह ने मामले में सभी तथ्यों और मा सुप्रीम कोर्ट मा राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग एवं जांच आख्या का सन्दर्भ लेते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया-
विपक्षीगण को संयुक्त और पृथक-पृथक रूप से आदेश दिया कि वे 25.00 लाख रू और उस पर परिवादी की पत्नी की मृत्यु के दिनांक 16-01-2014 से 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज, 05.00 लाख रू तथा 20,000/- रू वाद व्यय और इस पर दिनांक 16-01-2014 से 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज के साथ इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर परिवादी को अदा करें और यदि यह धनराशि 30 दिन के अन्दर अदा नहीं होती है तब ब्याज की दर 15 प्रतिशत होगी, जो दिनांक 16-01-2014 से अन्तिम भुगतान के दिनांक तक देय होगी.
इस प्रकार इन सब धनराशियों को मिलाने से कुल धनराशि निर्णय के दिनांक तक 12 प्रतिशत ब्याज के साथ लगभग 66,44,000 रू होती है, जो विपक्षीगण द्वारा परिवादी को अदा की जानी है.
देखें आदेश…