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सियासत

सच तो ये है हम एक निर्लज्ज और बेहया समाज हैं . .

“मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ” महान दार्शनिक अरस्तु के ये शब्द कभी-कभी विचलित कर देते हैं। यह समाज हमें, कभी दिल्ली का सामूहिक दुष्कर्म दिखाता है कभी बंगाल में खुले मंच पर हो जाने वाला बलात्कार। और कभी मुंबई का एक जघन्य अपराध। सच तो यह है कि ये घटनाएँ पूरे देश में हो रही हैं। कहीं मीडिया की पहुँच है, कहीं बिल्कुल नहीं है। मनुष्य के रूप में ऐसे हैवान अपना गुनाह भी स्वीकार करते हैं किन्तु अगर कुछ नहीं मिलता तो वह है- इंसाफ़! और देश के पुरोधा राजनीतिक दल इसे हर बार राजनैतिक मुद्दा बनाने की कोशिश करते हैं। जब तक लाश ना बिछे हमारे इस समाज को तृप्ति नहीं मिलती। और हम दिन भर बैठकर “सुपर पॉवर इंडिया” के सपने देखते रहते हैं। देश का मीडिया अंत तक “प्राइम टाइम शो ” चलाता रहता है। टीवी चैनलों में प्रवक्ता लगातार अपनी बातें दोहराकर अंत तक पार्टी का रुख़ ही साफ़ करते रहते हैं। सरकारें नए क़ानून की बातें करती रहती हैं।

<p>"मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है " महान दार्शनिक अरस्तु के ये शब्द कभी-कभी विचलित कर देते हैं। यह समाज हमें, कभी दिल्ली का सामूहिक दुष्कर्म दिखाता है कभी बंगाल में खुले मंच पर हो जाने वाला बलात्कार। और कभी मुंबई का एक जघन्य अपराध। सच तो यह है कि ये घटनाएँ पूरे देश में हो रही हैं। कहीं मीडिया की पहुँच है, कहीं बिल्कुल नहीं है। मनुष्य के रूप में ऐसे हैवान अपना गुनाह भी स्वीकार करते हैं किन्तु अगर कुछ नहीं मिलता तो वह है- इंसाफ़! और देश के पुरोधा राजनीतिक दल इसे हर बार राजनैतिक मुद्दा बनाने की कोशिश करते हैं। जब तक लाश ना बिछे हमारे इस समाज को तृप्ति नहीं मिलती। और हम दिन भर बैठकर "सुपर पॉवर इंडिया" के सपने देखते रहते हैं। देश का मीडिया अंत तक "प्राइम टाइम शो " चलाता रहता है। टीवी चैनलों में प्रवक्ता लगातार अपनी बातें दोहराकर अंत तक पार्टी का रुख़ ही साफ़ करते रहते हैं। सरकारें नए क़ानून की बातें करती रहती हैं।</p>

“मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ” महान दार्शनिक अरस्तु के ये शब्द कभी-कभी विचलित कर देते हैं। यह समाज हमें, कभी दिल्ली का सामूहिक दुष्कर्म दिखाता है कभी बंगाल में खुले मंच पर हो जाने वाला बलात्कार। और कभी मुंबई का एक जघन्य अपराध। सच तो यह है कि ये घटनाएँ पूरे देश में हो रही हैं। कहीं मीडिया की पहुँच है, कहीं बिल्कुल नहीं है। मनुष्य के रूप में ऐसे हैवान अपना गुनाह भी स्वीकार करते हैं किन्तु अगर कुछ नहीं मिलता तो वह है- इंसाफ़! और देश के पुरोधा राजनीतिक दल इसे हर बार राजनैतिक मुद्दा बनाने की कोशिश करते हैं। जब तक लाश ना बिछे हमारे इस समाज को तृप्ति नहीं मिलती। और हम दिन भर बैठकर “सुपर पॉवर इंडिया” के सपने देखते रहते हैं। देश का मीडिया अंत तक “प्राइम टाइम शो ” चलाता रहता है। टीवी चैनलों में प्रवक्ता लगातार अपनी बातें दोहराकर अंत तक पार्टी का रुख़ ही साफ़ करते रहते हैं। सरकारें नए क़ानून की बातें करती रहती हैं।

प्रगतिवादियों…गांधीवादियों…नारीवादियों… कहां हैं मोमबत्तियां- निकलो दिल्ली की सड़कों पर…. आज उत्तर प्रदेश की एक और बेटी हैवानियत का शिकार हो गयी। कहां हो तथाकथित ‘न्याय’धीशों- जल्दी सामने आओ मामले की सुनवाई कर सज़ा पर रोक लगानी होगी ना! निर्भया कांड के बाद हमें तुमसे कुछ उम्मीदें जगी थीं, लेकिन तुमने उन उम्मीदों को मिट्टी में मिला दिया। ये कैसा न्याय किया तुमने। तुम हमारे देश की माँ-बहन-बेटियों को इंसाफ़ ना दे सके।

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ये कैसी न्याय व्यवस्था है जो हमारे देश की बेटियों को 8-10 महीने में भी न्याय न दिला सके। क्या अब वक़्त नहीं आ गया है कि ऐसे सड़ी-गली न्याय व्यवस्था को बदलकर पूर्ण रूप से सुधार किया जाए। समझ में नहीं आता कि हम किस समाज में रहते हैं। क्या वाक़ई इंसान हैं हम? या अब भी हम हिंदू-मुसलमान-सिख की दुहाई देंगे। या अब भी “सुपर पॉवर इण्डिया ” पर व्याख्यान देंते रहेंगे।
 
सच तो ये है कि हम एक निर्लज्ज और बेहया समाज हैं….. और आज भी हम उसी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
 
कृष्ण प्रताप सिंह
[email protected]
https://www.facebook.com/Pratap.Empire

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0 Comments

  1. shyamnandan kumar

    October 1, 2014 at 5:26 am

    1000% truly said sir, we are people of dubious character. we can see happening everything but can’t do anything. our mentality has rotten. how can be deserve to be a super power without feeling of higher degree of nationality.

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