उत्तर प्रदेश में पुलिस महानिरीक्षक के रूप में कार्यरत रहे एस.आर. दारापुरी (संयोजक, जन मंच) का कहना है कि जहरीली शराब से मौतों के लिए योगी सरकार की शराब नीति जिम्मेदार है. वर्तमान शराब नीति में तरफ सरकार शराब के ठेके उच्चतम बोली पर चढ़ाती है जिसे शराब माफिया सिंडिकेट बना कर हथिया लेते हैं. इसमें व्यापक भ्रष्टाचार होता है जिसके लाभार्थी अधिकारी और एक्साईज विभाग के मंत्रीगण होते हैं.
ठेका हथियाने के बाद शराब माफिया शराब को न केवल मनमाने दामों पर बेचते हैं बल्कि अधिकारियों की मिलीभगत से कच्ची शराब की बिक्री भी करते हैं क्योंकि उन्हें ठेका लेने में दी गयी धनराशि की वसूली करनी होती है. इसका नतीजा यह होता है कि ठेके की शराब बहुत महँगी पड़ती है जिससे बचने के लिए गरीब लोग अवैध शराब बेचने वालों की शरण में जाते हैं और कई बार ज़हरीली शराब का शिकार हो जाते हैं.
योगी सरकार द्वारा शराब पर गाय-सेस लगा देने से शराब और भी महंगी हो गयी है. इसके विपरीत यदि शराब के ठेके सस्ते दिए जाएँ और उसमें भ्रष्टाचार न हो तो ठेकों पर सस्ती/सुरक्षित शराब उपलब्ध हो सकती है जिसका सेवन गरीब लोग आराम से कर सकते हैं. अब अगर ठेकों की शराब अधिक महंगी होने के कारण गरीब लोग कच्ची ज़हरीली शराब से मरते हैं तो इसके लिए वे नहीं, बल्कि सरकार की शराब नीति ज़िम्मेदार है. इसके लिए इस नीति के शिकार लोगों को उचित मुआवजा देने की ज़म्मेवारी भी सरकार की ही है. इसके साथ ही सरकार को मध्यनिषेध विभाग को तुरंत बंद करके उस पर किये जा रहे व्यर्थ खर्च को भी बंद करना चाहिए.
अब हाल में योगी सरकार द्वारा ज़हरीली शराब से मरे गरीब लोगों के परिवारों को 2 लाख के मुयाव्ज़े की घोषणा पूर्णतया अपर्याप्त एवं अन्यायकारी है क्योंकि सरकार दंगों या विभिन्न घटनाओं में मरने वाले अपने लोगों के लिए तो 20 लाख/10 लाख मुआवजे की घोषणा करती है परन्तु एक गरीब की जान की कीमत केवल 2 लाख लगती है जो कि शर्मनाक है.
अतः योगी सरकार प्रत्येक मृतक के परिवार को कम से कम दस लाख का मुयावजा दे. इसके साथ ही शराब के ठेकों की नीलामी में व्यापक भ्रष्टाचार को रोके और आम लोगों को सस्ती और सुरक्षित शराब आसानी से उपलब्ध कराने की व्यवस्था करे.