Naved Shikoh : पत्रकारों की जायज़-नाजायज़ नेतागीरी को बखूबी पहचान गई है योगी सरकार… हिमेश रेशमिया सी सरकार ने रानू मंडल जैसे ज़मीनी संगठन का मान बढ़ाकर दिया बड़ा संदेश… एक कहावत है- ‘सूत ना कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा’।
ये कहावत हिन्दी बेल्ट के सबसे बड़े पत्रकारिता के हब उत्तर प्रदेश की राजधानी में पत्रकारों की राजनीति में जीवंत नज़र आती है। देश-दुनिया की सियासत और ट्रेड यूनियन्स लखनवी सियासतबाज पत्रकारों की राजनीति का स्तर देख लें तो ये शरमा जाएं और देश-दुनिया की ट्रेड यूनियंस और सियासत ही बंद हो जाये।
श्मशान के पंडे/अघोरी और कब्रिस्तान के ग़स्साल/ग़ोरकंद ( कब्र खोदने वाले) किसी की मौत पर अफसोस नहीं करते बल्कि किसी की मौत इनकी रोटी का इंतजाम करती है। चलिए ये इनके पेशे की मजबूरी है। पर हमारे लखनऊ के चंद पत्रकार नेता/पत्रकार संगठनों की कोई मजबूरी नहीं लेकिन फिर भी ये लोग साथी पत्रकार की मौत पर शोकसभाओं में भी खुल कर प्रतिद्वंद्विता के नंगे नाच वाली गंदी सियासत करते है।
पत्रकारिता के इस नये ज़माने में जब से बिना लिखे-पढ़े और बिना नौकरी किए पत्रकार नेता का मुखौटा बिजनेस करने लगा है तब से पत्रकार नेता बनने और संगठन चलाने की बाढ़ सी आ गयी है। राजदरबार में सीनाताने चहलकदमी करने वाले ज्यादा नहीं हैं, लेहाज़ा इनके दो खेमें हो जाना स्वाभाविक है। इनके दो गुटों में अकसर गैंगवार से हालात भी पैदा हो जाता हैं। इनकी हर हरकत सब देखते हैं तो सरकार क्यों आंखें बंद करे होगी ! उसे भी सबकुछ दिखाई देता होगा। और तब तो ये गैंगवार और भी ज़ाहिर हो जाता होगा जब ये एक दूसरे की शिकायतें लेकर पंहुचते हैं।
मौजूदा सरकार होशियार और समझदार है। पत्रकारों और पत्रकारिता के क्षेत्र में अच्छी पकड़ और समझ है। धंधेबाजों पर सरकार की सख्त निगाहें हैं। आंखें देख रही हैं, कान सुन रहे हैं और नाक सूंघ रही है। कहीं फोटो खिचवा लेना.. कहीं घुस जाना.. किसी दरबार में दाखिल हो जाना.. ये अलग बात है। लेकिन सरकार हर मठाधीश को पहचान गई है। किसी की भी ज्यादा नहीं चल पा रही है।
इतने बड़े.बड़े कथित पत्रकार नेता.. इतने बड़े.बड़े.पत्रकार संगठन / यूनियन.. ज्ञापनों की झड़ी लगाये रहते हैं। पिछले कुछ महीनों में ही लखनऊ के बड़के पत्रकार नेताओं / संगठनों / यूनियनों ने सरकार के शीर्ष लोगों से पत्रकारों की सुरक्षा की मांगों के आधा दर्जन से अधिक ज्ञापन दे डाले होंगे। लेकिन संज्ञान किसका लिया गया ! लखनऊ के ही एक बेनाम.. अंजान.. ग़ैर भौकाली.. जमीनी संगठन की मांग को संज्ञान लेकर पत्रकारों के मान, सम्मान और सुरक्षा के लिए जो पुलिस सर्कुलर जारी हुआ है। मठाधीशों को नजरअंदाज करने का ये एक बड़ा संदेश है।
लेखक नवेद शिकोह लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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Shahnawaz Hassan
November 18, 2019 at 9:49 pm
बड़े पत्रकार संगठन नहीं कहें, बड़ी दुकानदारी चलाने वाले सेवानिवृत्त पत्रकार,जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक का कोई नाता नहीं होता,मेनस्ट्रीम जर्नलिज़्म से दूर रहने वालों की फौज है वह जिन्हें पत्रकारों के दर्द से कोई सरोकार नहीं होता।किसी पत्रकार की शोकसभा में भी आप उनकी जमात के मुस्कराते चेहरे अक्सर देखते होंगे।वैसी दोनो ही बड़े संगठन की मान्यता अब समाप्त हो चुकी है,दोनो की नूरा कुश्ती ने पत्रकारों को शर्मसार किया है।
शाहनवाज हसन
भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ, नई दिल्ली