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यूपी के एक दुखी युवा उद्यमी का दर्द- ”योगी जी के राज में देर भी है, अंधेर भी”

Ashwini Kumar Srivastava : योगी जी के राज में देर भी है, अंधेर भी! यूपी में योगी आदित्यनाथ के सरकारी तंत्र का यह हाल है कि जिसका पाला इससे पड़ गया, उसने अगर भ्रष्टाचारी अफसरों को चढ़ावा नहीं चढ़ाया तो न तो उसका कोई काम होना है और न ही उसकी शिकायत की कहीं सुनवाई होनी है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण तो खुद मैं ही हूं, जो पिछले ढाई बरस से पहले अखिलेश सरकार के खासमखास और अब योगी जी के कृपा प्राप्त लखनऊ औद्योगिक विकास प्राधिकरण (लीडा) के वरिष्ठ परियोजना प्रबंधक एस. पी. सिंह, परियोजना प्रबंधक ओ. पी. सिंह और उनके साथ के अन्य भ्रष्ट अफसर/कर्मियों के गठजोड़ से जूझ रहा हूँ।

मैंने अपनी रियल एस्टेट कंपनी के माध्यम से लीडा के क्षेत्र में एक आवासीय बहुमंजिली इमारत बनाने की मंजूरी लीडा से 2015 में मांगी थी। लेकिन आज दो-ढाई साल हो चुके हैं और एस. पी. सिंह ने एक के बाद एक नए सरकारी कागज मांगकर मुझे मंजूरी न तो दी है और न ही देने का उनका अब कोई इरादा ही दिख रहा है। तब जबकि 2015 में ही वह हमसे 26 लाख रुपये की फीस सरकारी खजाने में जमा भी करवा चुके हैं। यही नहीं, एयरपोर्ट व फायर आदि की एनओसी के साथ-साथ वह न जाने कितने कागज व संशोधित नक्शे हमसे इन ढाई साल में किश्त दर किश्त लेटर भेज कर जमा करवाते रहे हैं। उन्होंने हर बार हमसे ऐसे ही किसी न किसी नए कागज, एनओसी, संशोधित नक्शे आदि की मांग की है। सब कुछ देने के बाद भी वह फिर किसी नए नियम का हवाला देकर हमसे फिर से कुछ न कुछ मांग ही लेते हैं।

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उन्हें ढाई साल से जमा हमारी फ़ाइल में न तो एक ही बार में सारी कमियां नजर आ पाती हैं और न ही सारे नियम एक ही बार में याद रह पाते हैं। विडंबना देखिए कि योगी सरकार और उनका पूरा तंत्र इन दिनों फरवरी में होने वाले औद्योगिक सम्मेलन की तैयारी में दिन-रात एक किये हुए है। सरकार मीडिया के जरिये यह दावा कर रही है कि इस औद्योगिक सम्मेलन में आने वाले उद्योगपति यदि यूपी में आकर करोड़ों-अरबों या खरबों की रकम लगाकर उद्योग-धंधे लगाएंगे तो सरकार व सरकारी तंत्र उन्हें किसी तरह की दिक्कत नहीं होने देगा। उन्हें हर तरह की मंजूरी जल्द से जल्द और बिना भ्रष्टाचार का सामना किये मिल जाएगी।

जबकि यदि सिर्फ मेरा ही मामला देखा जाए तो साफ-साफ पता लगता है कि यूपी में योगी के आने से भी कुछ नहीं बदला है। और यूपी में सिर्फ मेरा ही मामला ऐसा नहीं है बल्कि यदि कोई व्यक्ति उद्योग बंधु की वेबसाइट पर जाकर देखेगा तो उसे पता चल जाएगा कि किस कदर प्रदेश में परेशान व्यापारियों और उद्योगपतियों की शिकायतों का जखीरा जमा हो चुका है। और यह तो शायद कुछ भी नहीं है, राज्य के भ्रष्ट अफसरों की मेहरबानी से मुख्यमंत्री के आईजीआरएस पोर्टल जनसुनवाई पर भी बड़ी तादाद में व्यापारियों और उद्योगपतियों की शिकायतों का पुलिंदा जमा होने के पूरे आसार हैं।

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यदि कोई व्यक्ति आरटीआई डालेगा तो इसका खुलासा भी हो ही जायेगा कि औद्योगिक अवस्थापना एवं विकास विभाग, विभिन्न विकास प्राधिकरण, नगर विकास जैसे विकास व व्यापार/उद्योग-धंधों से जुड़े मंत्रालयों में व्यापारियों/उद्योगपतियों की कितनी शिकायतें महीनों या बरसों से धूल फांक रखी हैं…या कितनी शिकायतों को अफसरों ने शासन स्तर पर भी सांठ-गांठ करके औने-पौने में बिना न्याय दिलवाए ही निस्तारित दर्ज करा दिया है।

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खुद मुझे उद्योग बंधु में शिकायत किये हुए महीनों बीत चुके हैं लेकिन उस पर सुनवाई तक नहीं शुरू हुई। वहां से मुझे एक पत्र आया था कि 17 नवम्बर को सुनवाई करके आपकी समस्या का निस्तारण कर दिया जाएगा। लेकिन उसके बाद वह फ़ाइल भी एस. पी. सिंह ने हमारे प्रोजेक्ट की फ़ाइल की ही तरह ही दबवा दी।

उससे पहले मैंने मुख्यमंत्री को एक शिकायत आईजीआरएस के माध्यम से दी थी तो उस पर एस. पी. सिंह ने चार छोटी मोटी कमियां और एक नए नियम का हवाला देकर हमसे फिर से कुछ कागज व संशोधित नक्शा मांग कर उस शिकायत को निस्तारित करवा दिया। फिर मैंने जब वे कागज और संशोधित नक्शा आदि जमा कर दिया तो एक बार फिर हमारी फ़ाइल दाब कर एस. पी. सिंह ने मौन साध लिया।

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इस पर फिर मैंने प्रधानमंत्री के शिकायत सुनवाई तंत्र पोर्टल पर दो बार शिकायत दर्ज कराई। एक शिकायत को प्रधानमंत्री कार्यालय से मुख्यमंत्री कार्यालय में भेजा गया और वहां से मुझे फिर आईजीआरएस पर एक नया शिकायत नम्बर देकर उस शिकायत को औद्योगिक एवं अवस्थापना विभाग या लीडा को न भेज कर नगर विकास विभाग को भेज दिया गया। वहां से जवाब आ गया कि ये शिकायत हमारे विभाग की नहीं है।

दो-ढाई महीना हो गया लेकिन अब वह शिकायत तब से वहीं ठप पड़ी है और उस पर सुनवाई तक नहीं शुरू हो रही। इसी तरह प्रधानमंत्री कार्यालय को दी गयी दूसरी शिकायत का भी कोई अता-पता नहीं चल रहा, बस अंडर प्रोसेस स्टेटस ही पोर्टल पर नजर आ रहा है।

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फिर मैंने मुख्यमंत्री के जनसुनवाई पोर्टल पर दो शिकायतें और दर्ज कराईं। इनमें से एक तो महीनों से औद्योगिक एवं अवस्थापना आयुक्त के पास लंबित यानी लटकी हुई है। वह भी हमारी फ़ाइल की ही तरह योगी राज के भ्रष्ट अफसरों के चंगुल में आ गयी लगती है। इसमें भी दो रिमाइंडर भेज चुका हूं मगर रिमाइंडर भी उसी तरह गुम हो गए हैं, जैसे कि मेरी हर फ़ाइल या शिकायत गुम हो गयी है। हालांकि मेरी दूसरी शिकायत जरूर शासन के अफसरों ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए लीडा के सीईओ को भेज जरूर दी थी लेकिन लगता है कि वह भी अब सीईओ की तिजोरी में जाकर कहीं छिप सी गई है। कुल मिलाकर मेरी तीन शिकायतें अफसरों ने मुख्यमंत्री के यहां, दो प्रधानमंत्री के यहां और एक उद्योग बंधु में दबा दी हैं। एक एस. पी. सिंह पहले ही निस्तारित करवा कर फारिग हो चुके हैं। अब ऐसे योगी राज को क्या कहा जाए, जहां देर भी है और अंधेर भी…

अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से. अश्विनी दिल्ली में नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, बिजनेस स्टैंडर्ड जैसे बड़े अखबारों में लंबे समय तक पत्रकारिता करने के बाद कई साल से यूपी की राजधानी लखनऊ में बतौर रीयल इस्टेट उद्यमी सक्रिय हैं.

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पूरे प्रकरण को विस्तार से समझने के लिए इसे भी पढ़ें :

एक बिल्डर का आरोप- ”योगी जी के सजातीय एसपी सिंह निरंकुशता और भ्रष्टाचार की जीती जागती मिसाल बन चुके हैं”

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