: ये तस्वीरें बयां करती हैं देश के सत्ता-सिस्टम और बिके दैनिक जागरण की असलियत : चंदौली (यूपी) : कहते हैं कि एक तस्वीर की जुबां कई लाख शब्दों पर भारी होती है. चंदौली तहसील में दो-तीन दिन पहले खींची गई दो तस्वीरें एक साथ सत्ता, सिस्टम, मीडिया, न्याय, अमीरी-गरीबी सभी का पोल खोल गईं, जिसे शायद हम लाखों शब्द के जरिए भी उतने अच्छे बयां नहीं कर पाते. ये तस्वीरें यह बताने के लिए काफी हैं कि एक आम नागरिक, किसान, गरीब के साथ सत्ता-सिस्टम और मीडिया किस तरह का व्यवहार करता है, और अमीरों के साथ उसके व्यवहार में कितना परिवर्तन आ जाता है.
सलाखों के पीछे किसान
नीले पैंट और आसमानी शर्ट में डाक्टर राजीव
चंदौली जिले से जुड़े इस कहानी का प्लाट चंदौली तहसील है. इसमें दो मुख्य कैरेक्टर हैं, एक किसान और दूसरा डाक्टर. किसान ने खेती के लिए कुछ लाख रुपए का लोन लिया था, जो चुका ना पाने के कारण वह 4 लाख रुपए हो गया था. इस किसान को सरकारी कारिंदे कानून का हवाला देते हुए उठा लाए और एसडीएम कोर्ट में बने हवालात में डाल दिया. उसकी कोई बात नहीं सुनी गई. उस पर कोई दया भाव नहीं दिखाया गया, क्योंकि यहां कानून का पालन करना सरकारी महकमे का दायित्व था. मजबूर किसान को सलाखों के पीछे ढकेल दिया गया. किसान सूनी आंखों में अपनी बेबसी लिए सलाखों के पीछे अपनी किस्मत पर रोने को विवश था.
दूसरे करेक्टर डाक्टर साहब पर भी 56 लाख रुपए का बकाया था. गलत इलाज करने पर उपभोक्ता फोरम ने 56 लाख रुपए मरीज को चुकाने का फैसला सुनाया था. डाक्टर साहब की गलती से एक 14 वर्षीय बच्ची ने अपना पैर ही गंवा दिया था. 56 लाख का बकाया ना देने वाले डाक्टर को पकड़ कर नहीं लाया गया था बल्कि इज्जत के साथ बुलाया गया था. यह डाक्टर जब तहसील कार्यालय पहुंचा तो अधिकारी से लेकर चपरासी तक इसकी आगवानी में बिछ गए. 56 लाख के बकाएदार को बैठने के लिए तहसील में कुर्सी दी गई. इनके लिए कानून का पालन कराया जाना सरकारी कारिंदों की कोई मजबूरी नहीं थी. ये पैसे वाले थे, लिहाजा इन पर कोई भी कानून-कायदा लागू नहीं होता था.
सत्ता-सिस्टम के बाद अब अपने आप को खुद से चौथा खंभा कहने वाले मीडिया की. तमाम अखबारों ने खबर प्रकाशित की, लेकिन डाक्टर की इज्जत बचाते हुए. किसी ने दो बकाएदार को जेल भेजने की कहानी लिखी तो देश का सबसे महाभ्रष्ट और शोषक घराना माने जाने वाला दैनिक जागरण ने खबर ही नहीं प्रकाशित की. इस खबर को सबसे बेहतर ढंग से पेश किया राष्ट्रीय सहारा, हिंदुस्तान, डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट समेत कुछ अखबारों ने. जिले के कुछ चुनिंदा पत्रकारों मसलन आनंद सिंह, अशोक जायसवाल, प्रदीप शर्मा, महेंद्र प्रजापति ने बिना किसी डर भय के सत्ता-सिस्टम के इस भेदभाव की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की.
लेकिन खुद को विश्व का, देश का सबसे बड़ा अखबार बताने वाले समूह दैनिक जागरण ने इस खबर को प्रकाशित ही नहीं किया, क्योंकि डाक्टर से उसको गाहे-बगाहे विज्ञापन मिलता है. पैसे की बदौलत मीडिया को गिरवी रखने वाले जागरण समूह के बेशर्म पत्रकारों ने इस मामले में एक शब्द भी नहीं लिखा. आम लोगों की उम्मीदों का भी कुछ ख्याल नहीं किया. हालांकि इस बिके हुए समूह की इस कारगुजारी की जिले के लोग निंदा कर रहे हैं. इस एक घटना ने बता दिया कि देश आजादी के बाद भी अंग्रेजों के दमनात्मक कानूनों के सहारे चल रहा है, बस इसकी डोर अब काले अंग्रेजों के हाथ में आ गई. बाकी आजादी से पहले से लेकर अब तक कुछ भी नहीं बदला है. दमन वैसे ही जारी है. गरीबों के लिए अलग कानून, अमीरों के लिए अलग कानून.
चंदौली से एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
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Rishi Nagar
August 13, 2014 at 1:48 pm
😕 Shame Shame!