मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद कमलनाथ ने बड़ा फैसला किया… उन्होंने किसानों की कर्जमाफी फाइल पर दस्तखत कर दिए… शपथ लेने के बाद कर्जमाफी फाइल पर दस्तखत के बाद कमलनाथ ने जो राजाज्ञा जारी किया उसमें कहा गया है कि 2 लाख रुपये तक का किसानों का कर्जा माफ किया …
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किसान विरोधी पत्रकारों से अपील, वायरल हो चुके इस कार्टून व परचे को न देखें-पढ़ें!
दिल्ली आज किसानों की हो चुकी है. हर ओर किसान. रंग-बिरंगे झंडों से लैस किसान. कर्ज माफी और फसलों का वाजिब मूल्य इनकी मुख्य मांगें हैं. लेकिन मीडिया खामोश है. मीडिया इसलिए खामोश है क्योंकि ये गोदी है. मीडिया इसलिए खामोश है क्योंकि यह पेड है. मीडिया इसलिए खामोश है क्योंकि बाजारू हो चुका यह …
DUJ STANDS WITH FARMERS
The DUJ expresses solidarity with the protesting farmers. The Kisan Mukti March should open the eyes of the Centre, whose policies have been spreading miseries in the agriculture sector for the last 25 years.
TOI को पता है कि कोई किसान टाइम्स आफ इंडिया नहीं पढ़ता, इसलिए वह किसान विरोधी छापता है! देखें
Vibhuti Pandey : आप चाहे कितनी भी बार कह लें, चाहे टाइम्स के संपादक तक आप की बात से सहमत हों, लेकिन The Times of India अपना उच्च मध्यम वर्गीय चरित्र नहीं छोड़ेगा. कल किसान कवरेज पर टाइम्स की हेडलाइन पढ़िए. परसों सोशल मीडिया पर हिट शेयर के लिए इन्होंने जो भी किया हो लेकिन …
नाकारा सरकारें और आत्महन्ता किसान
अनेहस शाश्वत
लाख दावों प्रति दावों के बावजूद आज भी भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती ही है। आधुनिक अर्थव्यस्था में इस स्थिति को पिछड़ेपन का द्योतक मानते हैं। बावजूद इसके अपने देश के किसानों ने देश के अनाज कोठार इस हदतक भर दिये हैं कि अगर तीन साल लगातार देश की खेती बरबाद हो जाये तो भी अनाज की कमी नहीं होगी। गौर करें यह तब जब भारत की आबादी लिखत-पढ़त में 125 करोड़ है यानी वास्तविक आबादी इससे ज्यादा ही होगी।
कमाल ख़ान की इस एक रिपोर्ट से हिल गया हूं : रवीश कुमार
Ravish Kumar : कमाल ख़ान की एक रिपोर्ट से हिल गया हूं। यूपी के सीतापुर में कर्ज़ रिकवरी वाले एक किसान के घर गए। रिकवरी एजेंट ने किसान को ट्रैक्टर से ही कुचल कर मार दिया और ट्रैक्टर लेकर फ़रार हो गए। मात्र 65,000 रुपये कर्ज़ था।
वित्तीय पूंजी ने किसानों के सभी तबकों को तबाह किया है
किसान आंदोलन की नयी शुरुआत : बैंक पति, स्टाक एक्सचेंज अधिपति जैसे वित्तीय अभिजात वर्ग के शासन में किसानों की अर्थव्यवस्था और जीवन का संकट उनकी आत्महत्याओं के रूप में चैतरफा दिख रहा है। यह वो दौर है जिसमें कारपोरेट पूंजी ने राजनीतिक सम्प्रभुता और आम नागरिकों के जीवन की बेहतरी के सभी पक्षों पर खुला हमला बोल दिया है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार पर भी वित्तीय पूंजी का गहरा हमला है लेकिन सबसे अधिक इसकी चोट अनौपचारिक आर्थिक क्षेत्र खासकर खेती-किसानी पर दिख रही है। पचास फीसदी से अधिक देश की आबादी खेती पर निर्भर है और आर्थिक संकट का भयावह चेहरा यहाँ खुलकर दिख रहा है।
किसानों को छींक भी आ जाए तो सरकारें कांपने लगती हैं
सरकार को केवल किसानों की चिंता है… लगता है कोई और तबका इस देश में रहता ही नहीं…
श्रीगंगानगर। पटाखा फैक्ट्री मेँ आग से दो दर्जन से अधिक व्यक्ति मारे गए। एमपी मेँ सरकारी गोली से आंदोलनकारी 6 किसानों की मौत हो गई। दो दर्जन से अधिक संख्या मेँ मारे व्यक्तियों का जिक्र कहीं कहीं है और किसानों के मरने का चप्पे चप्पे पर। राजनीतिक गलियारों मेँ। टीवी की डिबेट मेँ। अखबारों के आलेखों मेँ। संपादकीय में। बड़े बड़े कृषि विशेषज्ञ लेख लिख रहे है। उनकी इन्कम का लेख जोखा निकाला जा रहा है। उनके कर्ज माफ करने की चर्चा है। उस पर चिंतन और चिंता है। कुल मिलाकर देश का फोकस किसानों पर है।
लगता है कोई और तबका इस देश मेँ रहता ही नहीं।
किसानों के पेशाब पीने के बाद भी नहीं पिघलेगी मोदी सरकार
Nitin Thakur : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस दिन कंगारुओं के प्रधानमंत्री के साथ अक्षरधाम में पिकनिक मना रहे थे, क्या उन्हें इल्म है कि ठीक उसी दिन नॉर्थ एवेन्यू पर इस देश के चार किसान नंग धड़ंग होकर प्रदर्शन कर रहे थे? वो पागल नहींं थे.. और ना ही वो किसी पब्लिसिटी के लिए आए थे.. वो तो बेचारे तमिलनाडु के अपने गांवों से हज़ारों किलोमीटर दूर पत्थर के इस शहर में अपनी गुहार लगाने पहुंचे थे।
किसानों की वायरल हुई ये दो तस्वीरें ‘मोदी गान’ में रत टीवी और अखबार वालों को न दिखेंगी न छपेंगी
Mahendra Mishra : ये तमिलनाडु के किसान हैं। दक्षिण भारत से दिल्ली पीएम मोदी के सामने अपनी फरियाद लेकर आये हैं। इनमें ज्यादातर के हाथों में ख़ुदकुशी कर चुके किसानों की खोपड़ियां हैं। बाकी ने हाथ में भीख का कटोरा ले रखा है। पुरुष नंगे बदन हैं और महिलाओं ने केवल पेटीकोट पहना हुआ है। इसके जरिये ये अपनी माली हालत बयान करना चाहते हैं। इन किसानों के इलाकों में 140 वर्षों बाद सबसे बड़ा सूखा पड़ा है।
अमिताभ ने किसान चैनल से पैसे नहीं लिए तो करोड़ों रुपये कौन डकार गया?
Samarendra Singh : ‘किसान’ चैनल से पैसे नहीं लेकर अमिताभ बच्चन ने अपना मान बढ़ाया है. उनके जैसे किसी भी बड़े आदमी से इसी तरह के व्यवहार की उम्मीद की जाती है. अमिताभ बच्चन पहले से ही इतने ऊंचे मुकाम पर हैं कि वहां पहुंचना किसी फिल्मी सितारे के बस की बात नहीं. और आज इस फैसले से बिग बी का कद और अधिक बढ़ा है. अब यह पता चलना चाहिए कि बिग बी ने पैसे नहीं लिए तो लिंटास ने उनके नाम पर पैसे कैसे लिए?
दूरदर्शन का किसान चैनल लॉन्च
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को पूरी तरह कृषि क्षेत्र को समर्पित दूरदर्शन का किसान चैनल लॉन्च किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा – हमारे यहां कहावत थी उत्तम खेती, मध्यम बान, निषिध चाकरी भीख निदान। इस कहावत को एक बार फिर सच कर दिखाने की जरूरत है। 24 घंटे चलने वाला यह चैनल किसानों …
राज ठाकरे ने इतनी सक्रियता विदर्भ में खुदखुशी कर रहे किसानों के लिए नहीं दिखाई
मनसे राज ठाकरे का राजनीतिक वजूद ख़त्म हो चुका है। राज ठाकरे का राजनीतिक भविष्य अधर में अटका है। मनसे चीफ ने जनसरोकार से जुड़े मुद्दो को कभी उठाते नहीं। नफरत की राजनीति करना यही उनका मूल एजेंडा रहा है। राज ठाकरे की छवि एक पेज – ३ नेता जैसी है।
दूरदर्शन के किसान चैनल में एडवाइजर (प्रोग्राम एंड प्रोडक्शन) बने आलोक रंजन
वरिष्ठ पत्रकार और पत्रकारिता जगत में 25 साल के अनुभव को देखते हुए आलोक रंजन को दूरदर्शन के किसान चैनल में एडवाइजर (प्रोग्राम एंड प्रोडक्शन) के तौर पर नियुक्त किया गया है। एक मई यानी शुक्रवार से उन्होंने अपना कार्यभार भी संभाल लिया है। 90 के दशक में आलोक रंजन ने लोकमत में सब एडिटर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी। उसके बाद दूरदर्शन (फर्स्ट एडिशन, मेट्रो न्यूज) से जुड़े रहे, अलग-अलग कार्यकर्मों के जरिए।
दूरदर्शन में किसान चैनल के संपादकीय सलाहकार बने कुमार आनंद
देश के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार कुमार आनंद ने भारतीय दूरदर्शन के किसान चैनल में संपादकीय सलाहकार (एडिटोरियल कंसल्टेंट) के पद पर ज्वॉइन किया है। इससे पहले प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अनेक शीर्ष पदों पर उनका लंबा अनुभव रहा है।
गुस्से में किसान : 20 को देशव्यापी विरोध, पांच मई को संसद पर प्रदर्शन, 14 मई को रेल-सड़क रोकेंगे, जेलें भरेंगे
उत्तर प्रदेश किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष कामरेड इम्तेयाज बेग ने कहा कि पूरे देश में ख़ास तौर से उत्तरी भारत में असामायिक वर्षा, ओले, आंधी और बाढ़ के चलते हजारो किसानों के मरने के साथ ही लगभग 20 से 30 हजार करोड़ की रवि की फसलो की बर्बादी के बाद भी केंद्र व प्रदेश सरकारों के अगुवा कुम्भकर्णी नीद में पड़े हैं। किसानो की कोई चिंता नहीं। आईएएस लॉबी किसानों की मौत को स्वाभाविक बता रही है। बीमा कम्पनियां और बैंक किसानों से पैसा लेकर फसल बीमा नहीं करते हैं। केंद्र और प्रदेश सरकारें किसानो की बर्बादी पर राहत के नाम पर मुआवजा पहले नौ हजार रुपये प्रति हेक्टेयर, अब बढ़ाकर साढ़े तेरह हजार रुपये प्रति हेक्टेयर कर दिया है। यह किसानों के साथ सरकारों का क्रूर मजाक है, क्योकि एक बिस्से की पूरी फसल बर्बाद होने पर 142 रूपये या पचास फीसदी बर्बाद होने पर 71 रूपये का चेक मिल रहा है, क्या यह किसानों के साथ खिलवाड़ नहीं है, सरकार बताये ?
स्थायी समाधान नहीं है कर्ज और माफ़ी
यह बड़े दुख की बात है कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश के किसान लगातार आत्महत्या की ओर प्रवृत हो रहे हैं. आश्चर्य की बात तो यह कि पिछली सरकार के कृषिमंत्री यह कहते रहे कि उन्हें यह नहीं मालूम कि किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के 31 मार्च 2013 तक के आंकड़े बताते हैं कि 1995 से अब तक 2,96 438 किसानों ने आत्महत्या की है. 2014 में किसानों की आत्महत्या का ब्यौरा जून महीने तक ज्ञात हो सकेगा. जानकार इस सरकारी आकंडे को काफी कम कर आंका गया बताते हैं.
किसानों और महिलाओं की चीख को दबाना चाहता है यूपी का शासन-प्रशासन
उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का नारा देने वाली समाजवादी पार्टी की सरकार में ठीक विपरीत परिणाम आता नजर आ रहा है। अपराध और भ्रष्टाचार के बिन्दुओं पर तुलना की जाये, तो आज उत्तर प्रदेश बिहार से ज्यादा बदनाम नजर आ रहा है। कानून व्यवस्था को लेकर हालात इतने दयनीय हो चले हैं कि आम आदमी को कोई सांत्वना तक देने वाला नजर नहीं आ रहा, लेकिन खास लोगों के अहंकार को ठेस न पहुंचे, इसका पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
अलवर के किसानों को रोड पर लाने की शुरुआत!
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अलवर में जापानी कम्पनी को 500 एकड़ जमीन देंगी। क्यों? क्योंकि इस जमीन में जापानी इन्वेस्टमेंट जोन स्थापित होगा! इसमें सैरेमिक्स, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम और मैन्यूफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों पर फॉक्स होगा। लेकिन सरकार को यह भी बतलाना चाहिए कि क्या उक्त निर्णय/घोषणा से पूर्व इस तथ्य का आकलन किया गया है कि इस कारण कितने किसान हमेशा को बेरोजगार हो जाएंगे?
फसल ऊपरवाला ले गया, नौकरी अखिलेश और जमीन मोदी
सात रुपये का चेक। किसी किसान को मुआवजे के तौर पर अगर सात रुपये का चेक मिले तो वह क्या करेगा। 18 मार्च को परी ने जन्म लिया। अस्पताल से 3 अप्रैल को परी घर आई। हर कोई खुश । शाम में पोती के होने के जश्न का न्योता हर किसी को। लेकिन शाम में फसल देखने गये परी के दादा रणधीर सिंह की मौत की खबर खेत से आ गई। समूचा घर सन्नाटे में। तीन दिन पहले 45 बरस के सत्येन्द्र की मौत बर्बाद फसल के बाद मुआवजा चुकाये कैसे। आगे पूरा साल घर चलायेंगे कैसे। यह सोच कर सत्येन्द्र मर गया तो बेटा अब पुलिस भर्ती की कतार में जा कर बैठ गया।
सियासत तले दबे किसानों का दर्द कौन समझेगा ?
किसानों के हक में है कौन, यह सवाल चाहे अनचाहे भूमि अधिग्रहण अध्यादेश ने राजनीतिक दलों की सियासत तले खड़ा तो कर ही दिया है। लेकिन देश में किसान और खेती का जो सच है उस दायरे में सिर्फ किसानों को सोचना ही नहीं बल्कि किसानी छोड़ मजदूर बनना है और दो जून की रोटी के संघर्ष में जीवन खपाते हुये कभी खुदकुशी तो कभी यू ही मर जाना है। यह सच ना तो भूमि अध्ग्रहण अध्यादेश में कही लिखा हुआ है और ना ही संसद में चर्चा के दौरान कोई कहने की हिम्मत दिखा रहा है। और इसकी बडी वजह है कि 1991 के आर्थिक सुधार के बाद से कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में आयी हो किसी ने भी कभी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लेकर कोई समझ दिखायी नहीं और हर सत्ताधारी विकास की चकाचौंध की उस धारा के साथ बह गया जहा खेती खत्म होनी ही है । फिर संयोग ऐसा है कि 91 के बाद से देश में कोई राजनीतिक दल बचा भी नहीं है, जिसने केन्द्र में सत्ता की मलाई ना खायी हो।
महत्वपूर्ण कौन… किसान या क्रिकेट?
यह कतई आश्चर्य की बात नहीं है कि आजकल अखबार व दृश्य श्रव्य मीडिया का पहला समाचार क्रिकेट है, फिर राजनीतिक उठापटक और अपराध या फ़िल्मी सितारों की चमक दमक वगैरह। जंतर मंतर पर लाखों किसान देश के दूर दराज इलाकों से आकर अपनी समस्याएं बताना चाहते हैं लेकिन मीडिया लोकसभा और राज्यसभा में किसानों के चिंतकों की बात तो सुन रहा है परन्तु यहां मौजूद किसानों की नहीं। खड़ी फसलों की भयानक तबाही क्या महज एक खबर है ? यह बात एक किवदंती सी बहु-प्रचलित है कि देश में सत्तर प्रतिशत किसान हैं लेकिन मीडिया में उन पर चर्चा एक प्रतिशत से भी कम होती है।
मीडिया का मोतियाबिंद : इसके आपरेशन का समय आ गया है…
Ambrish Kumar : कल जंतर मंतर पर जन संसद में कई घंटे रहा. दस हजार से ज्यादा लोग आए थे जिसमें बड़ी संख्या में किसान मजदूर थे. महिलाओं की संख्या ज्यादा थी. झोले में रोटी गुड़ अचार लिए. मंच पर नब्बे पार कुलदीप नैयर से लेकर अपने-अपने अंचलों के दिग्गज नेता थे. अच्छी सभा हुई और सौ दिन के संघर्ष का एलान. बगल में कांग्रेस का एक हुल्लड़ शो भी था. जीप से ढोकर लाए कुछ सौ लोग. मैं वहां खड़ा था और सब देख रहा था. जींस और सफ़ेद जूता पहने कई कांग्रेसी डंडा झंडा लेकर किसानों के बीच से उन्हें लांघते हुए निकलने की कोशिश कर रहे थे जिस पर सभा में व्यवधान भी हुआ. एक तरफ कांग्रेस में सफ़ेद जूता और जींस वालों की कुछ सौ की भीड़ थी तो दूसरी तरफ बेवाई फटे नंगे पैर हजारों की संख्या में आये आदिवासी किसान थे.
बैसाखी पर किसान टीवी लांच करेगी सरकार
नई दिल्ली। किसानों को समर्पित टेलीविजन चैनल ‘किसान टीवी’ को हिन्दी पंचांग के नववर्ष बैसाखी के अवसर पर लांच किया जाएगा। पंजाब सहित देश के कई हिस्सों में इस दौरान फसल की कटाई एवं अन्न संग्रह का समय होता है। सरकार ने संसद में रखे गये अपने 2015-16 के बजट पेपर में इस चैनल के लांच की तिथि की घोषणा की है।
जेपी की सम्पूर्ण क्रांति के दौरान जान की परवाह किये बिना किशन ने लाठी-गोली के बीच जीवंत तस्वीरें खींची
: बिहार में फोटो पत्रकारिता के जनक थे किशन : पूर्वी भारत के अग्रणी छाया-पत्रकारों में शुमार रहे कृष्ण मुरारी किशन के असामयिक निधन पर रामजी मिश्र मनोहर मीडिया फाउंडेशन की ओर से आयोजित श्रद्धांजलि सभा में वक्ताओं ने उन्हें मरणोपरान्त पद्मश्री से सम्मानित करने की मांग की है। बिहार चैम्बर ऑफ कॉमर्स कान्फ्रेंस हॉल में आयोजित श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए पूर्व उपमुख्यमंत्री श्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि बिहार फोटोग्राफी में नवीनतम तकनीक का प्रयोग कृष्ण मुरारी किशन ने किया था। सही मायने में किशन बिहार में छाया पत्रकारिता के जनक थे। उन्होंने राज्य सरकार से मांग की स्व0 कृष्ण मुरारी किशन के तमाम चित्रों का संकलन प्रकाशित करे।
कृष्ण मुरारी किशन के नाम पर ‘फोटो जर्नलिस्ट एवार्ड’ शुरू करने के लिए मुख्यमंत्री मांझी को पत्र लिखा
सेवा में, श्री जीतन राम मांझी, माननीय मुख्यमंत्री,
बिहार सरकार, पटना
विषय- राज्य सरकार की ओर से पटना निवासी प्रख्यात छायाकार स्व.कृष्ण मुरारी किशन जी के नाम पर प्रति वर्ष ‘के एम किशन पत्रकारिता/छायाकार सम्मान एवार्ड’ देने के आग्रह के संदर्भ में,
मान्यवर,
बजट के महीने में देश का वित्त मंत्री दिल्ली चुनाव के लिये बीजेपी हेडक्वार्टर में बैठने को क्यों है मजबूर
: दिल्ली फतह की इतनी बेताबी क्यों है? : बजट के महीने में देश के वित्त मंत्री को अगर दिल्ली चुनाव के लिये दिल्ली बीजेपी हेडक्वार्टर में बैठना पड़े… केन्द्र के दर्जन भर कैबिनेट मंत्रियों को दिल्ली की सड़कों पर चुनावी प्रचार की खाक छाननी पड़े… सरकार की नीतियां चकाचौंध भारत के सपनों को उड़ान देने लगे… और चुनावी प्रचार की जमीन, पानी सड़क बिजली से आगे बढ़ नहीं पा रही हो तो संकेत साफ हैं, उपभोक्ताओं का भारत दुनिया को ललचा रहा है और न्यूनतम की जरूरत का संघर्ष सत्ता को चुनाव में बहका रहा है।
किसान मर रहे हैं, मोदी सपने दिखाते जा रहे हैं, मीडिया के पास सत्ता की दलाली से फुर्सत नहीं
Deepak Singh : प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री बनने के बाद कौन सुध लेता हैं किसानों की? महाराष्ट्र में और केंद्र में दोनों जगह भाजपा की सरकार पर हालत जस के तस। यह हाल तब हैं जब नरेंद्र मोदी को किसानों का मसीहा बता कर प्रचार किया गया। आखिर क्यों नई सरकार जो दावा कर रही हैं की दुनिया में देश का डंका बज रहा हैं पर उस डंके की गूंज गाँव में बैठे और कर्ज के तले दबे गरीब और हताश किसान तक नहीं पहुँच पाई? क्यों यह किसान आत्महत्या करने से पहले अपनी राज्य सरकार और केंद्र सरकार पर भरोसा नहीं कर पाया की सरकार आगे आएगी और कुछ मदद करेगी?
किसान चैनल साकार करेगा धरती से दौलत पैदा करने का सपना
भोपाल 12 सितम्बर । दूरदर्शन द्वारा प्रारम्भ किया जा रहा किसान चैनल धरती से दौलत पैदा करने का सपना साकार करेगा। हमारे देश में पुरातनकाल से यह मान्यता है कि किसान समृद्ध होगा तो देश समृद्ध होगा। खेती लाभ का धंधा बने, समस्त कृषि आधारित कार्यों को किसान से जोड़कर एक बड़ी इंडस्ट्री खड़ी की जा सके, किसानों को कृषि के संबंध में शिक्षा, सूचना एवं ज्ञान प्राप्त हो सके, ऐसे सभी प्रयासों में दूरदर्शन का किसान चैनल महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। यह विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में मध्यप्रदेश के जनसंपर्क मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल ने व्यक्त किये। वे विश्वविद्यालय द्वारा प्रसार भारती एवं मेपकॉस्ट के सहयोग से आयोजित “दूरदर्शन किसान चैनल: स्वरूप एवं रचना” विषयक संविमर्श में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
बकाएदार किसान को बेइज्जती की हवालात, आरोपी डाक्टर को सम्मान की कुर्सी, दैनिक जागरण का खबरों के साथ भेदभाव
: ये तस्वीरें बयां करती हैं देश के सत्ता-सिस्टम और बिके दैनिक जागरण की असलियत : चंदौली (यूपी) : कहते हैं कि एक तस्वीर की जुबां कई लाख शब्दों पर भारी होती है. चंदौली तहसील में दो-तीन दिन पहले खींची गई दो तस्वीरें एक साथ सत्ता, सिस्टम, मीडिया, न्याय, अमीरी-गरीबी सभी का पोल खोल गईं, जिसे शायद हम लाखों शब्द के जरिए भी उतने अच्छे बयां नहीं कर पाते. ये तस्वीरें यह बताने के लिए काफी हैं कि एक आम नागरिक, किसान, गरीब के साथ सत्ता-सिस्टम और मीडिया किस तरह का व्यवहार करता है, और अमीरों के साथ उसके व्यवहार में कितना परिवर्तन आ जाता है.
सलाखों के पीछे किसान
जल्द शुरू होंगे किसानों और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए टीवी चैनल
केन्द्र सरकार ‘डीडी किसान’ नाम का किसानों के लिए एक 24 घंटे का चैनल शुरू करने की योजना बना रही है। चैनल को जल्द से जल्द लॉन्च करने के लिए सरकार प्रसार भारती के साथ काम कर रही है। सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि चैनल क्षेत्रीय फ़ीड के साथ एक राष्ट्रीय चैनल हो या प्रत्येक क्षेत्र के लिए अलग चैनल होने चाहिए। नया चैनल मौसम और बीज संबंधित जानकारी कृषक समुदाय को देगा। दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) पहले से ही कृषि संबंधी कार्यक्रमों को चलाते हैं।