Rohini Gupte : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले प्रो.कृष्णमोहन सिंह ने अपनी पत्नी को जिस तरह से पीटते हुए घर से बाहर निकाला, चंदन पांडेय की नजर में गुनाह-ए-अजीम तो उनकी पत्नी ने घर जाकर किया। क्या चंदन पांडेय मर्दवादी ब्राह्म्णवाद से बाहर आकर इन सवालों पर बात करने की जहमत उठाएंगे। उनके ब्लॉग पर भी मैनें यही सवाल पूछे हैं….
आप साहित्यकार हैं शायद इसीलिए आप तथ्य और तर्क की जमीन से कम लफ्फाजी के आसमान से ज्यादा बात करते हैं। आप या तो बताना नहीं चाहते या फिर सब कुछ जानते हुए छिपा रहे हैं। न्याय और इंसानियत जैसे शब्दों के जाल में सच को उलझाया नहीं जा सकता है। सच चिल्ला-चिल्ला कर बोलता है। तीन तथ्य हैं जिन्हें मैं आपके सामने पेश करना चाहती हूं। जिन तथ्यों को झुठलाकर आपने अपने तर्कों का हिमालय खड़ा किया है। उसका एक तीर ही उसे धराशाही करने के लिए काफी है। आखिरकार शरुआत किसने की ? किसी सभ्य समाज में प्रोफेसर की बात तो छोड़ दीजिए कोई सामान्य इंसान भी ऐसा नहीं करता जो ‘साहित्यकार’ कृष्ण मोहन सिंह ने किया है। बजाय आमने-सामने बैठकर बात करके अलग होने का फैसला करने के उन्होंने अपनी पत्नी किरन को उनके मायके जाने के बाद वहीं तलाक का कागज भिजवा दिया। और फिर जब किरन मायके से लौटींं तो उन्हें घर में ही नहीं घुसने दिया गया। दूसरा, दोस्तों की मध्यस्थता में जो समझौता हुआ उसमें अस्थाई गुजारा भत्ता के तौर पर15 हजार रुपये प्रति माह के हिसाब से कृष्ण मोहन द्वारा किरन को दिया जाना था। कोर्ट में फैसला होने तक इसको जारी रखना था। लेकिन दो चार महीने देने के बाद उसे 15 हजार से घटाकर 10 हजार कर दिया गया और फिर उसे भी बंद कर दिया गया। तीसरा तथ्य ये कि जब मामला कोर्ट में चल रहा हो तो यथास्थिति बनाए रखने की जिम्मेदारी केवल एक की नहीं बल्कि दोनों पक्षों की होती है। ऐसे में एक दूसरी महिला को घर में लाकर रखने की कोशिश क्या अदालत की अवमानना नहीं है?
फेसबुक पर रोहिनी गुप्ते.
Arvind Shesh : चंदन पांडेय दरअसल अपने “मूल” यानी ब्राह्मणवादी मर्द के लोकेशन से अपनी मूर्खता का विज्ञापन कर रहे हैं। उस कथित साहित्यकार, आलोचक, प्रोफेसर और बुद्धिजीवी (अब इन “उपाधिययों” पर हंसी आती है) के धतकर्म का बचाव या वकालत करते हुए चंदन या ऐसे दूसरे लोग बुद्धिजीवियों की फर्जी दुनिया का एक नया विद्रूप रचते हैं और इस तरह उस फर्जी बुद्धिजीवी के अपराध में बराबर के सहभागी बनते हैं..!
फेसबुक पर अरविंद शेष.
मूल पोस्ट…