राकेश कायस्थ-
सवाल– क्या चल रहा है?
जवाब– फॉग चल रहा है।
जुबान पर चढ़ चुके फॉग के इस इरिटेटिंग वन लाइनर में एक बहुत गहरा अर्थ छिपा हुआ है। कोई मुद्दा, सवाल या ट्रेडिंग टॉपिक अपने आप नहीं चल रहा होता है। किसी खास मकसद से उसे कोई ना कोई चला रहा होता है। इस समय कंगना रनौत का बयान चल रहा है। आइये समझने की कोशिश करते हैं कि इस बयान के पीछे क्या खेल चल रहा है।
- आरएसएस का प्रिय प्रोजेक्ट है– राष्ट्रीय आंदोलन के गौरवशाली अतीत को लोक स्मृति से खुरच-खुरच कर मिटाना। आज़ादी की लड़ाई से दूर रहना, अंग्रेजी फौज में भर्तियां करवाना, जासूसी करना और पेंशन उठाना, तमाम ऐसी बातें लोक स्मृतियों में मौजूद हैं, जिनसे पीछा छुड़ाना संघ के बूते की बात नहीं है। संघ का डिफेंस मैकेनिज्म उसे इस बात के लिए प्रेरित करता है कि अगर राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदारी का कोई प्रमाण ना दे सके तो फिर उस गौरवशाली आंदोलन को ही लोक स्मृति से मिटा दे।
- संघ एक नैतिकता शून्य संगठन है, जिसे अपनी बात से मुकर जाने, एक ही मुद्दे पर पांच अलग-अलग बयान जारी करने, पकड़े जाने पर माफी मांगने और छिपकर वार करने से कोई परहेज नहीं है। दुनिया के ज्यादातर फासिस्ट संगठन ऐसे ही होते हैं। राष्ट्रीय आंदोलन और उसके शीर्ष नेताओं पर अपने चंगू-मंगुओं से कीचड़ फिकवाना एक तरह लिटमस टेस्ट है, यह जानने के लिए कि समाज इन बातों पर किस तरह की प्रतिक्रिया दे रहा है। प्रतिक्रिया के विश्लेषण के आधार पर प्रोजेक्ट आगे बढ़ता है।
- संघ यह सोचता है कि अपने अफवाह तंत्र की बदौलत भारत का एक समानांतर इतिहास बना लेगा है, जिसमें सिर्फ ऐसी कहानियां होंगी जो उसके पॉटिकल नैरेटिव को सूट करती हैं। साध्वी प्रज्ञा सरीखे ना जाने कितने लोग इस काम में लगाये हैं।
- मोदी और योगी 2 अक्टूबर को चरखा पकड़कर फोटो खिंचवाते हैं और उनके बाकी नेता और समर्थक गोडसे के नाम के जयकारे लगाते हैं। `दोगला ‘ बीजेपी समर्थकों की प्रिय गाली है। लेकिन आरएसएस के बारे क्या कहा जाये? दोगला कहना उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि इस संगठन की दो नहीं कई जुबान हैं।
- याद कीजिये कंगना रनौत के ठीक पहले बीजेपी की किसी गुमनाम सी छात्र नेता दावा किया कि आज़ादी 99 साल की लीज़ पर है। मीडिया ने रातो-रात ऋचा पाठक नाम की उस लड़की को मशहूर कर दिया। कथित तौर पर उस लड़का विरोध करने वाले बहुत से स्वयंभू प्रगतिशील भी समझ नहीं पाये कि बार-बार इस बात की चर्चा करके वो वही कर रहे हैं, जो आरएसएस चाहता है। लिटमस टेस्ट पूरा हुआ। लोगों में इस बात को लेकर काफी जिज्ञासा थी कि क्या सचमुच भारत की आज़ादी लीज पर है।
- लीजिये अब प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए अगला बयान आ गया। कंगना रनौत ने भारत की आज़ादी को भीख बताया। क्या नरेंद्र मोदी `भीख का अमृतोत्सव’ मनवा रहे हैं। जिस सार्वजनिक मंच से यह बात कही गई वह भारत के पौने दो-सौ साल पुराने मीडिया संस्थान से जुड़ा हुआ है। कंगना रनौत के इस निर्ल्लज कथन पर वहाँ मौजूद लोग खी-खी करके हँस रहे हैं। ये वही लोग हैं, जो सोशल मीडिया पर देशभक्ति और देशद्रोह का सार्टिफिकेट बांटते फिरते हैं।
- नये लिटमस टेस्ट के नतीजों का इंतज़ार है। बीजेपी के स्वयंभू देश भक्त समर्थकों की भावना इस बयान से आहत नहीं हुई। कायदे से कंगना रनौत को सलाखों के पीछे होना चाहिए लेकिन वो पद्यश्री पाकर इतरा रही हैं। असल में कंगना रनौत को सम्मान ही इसलिए मिला है क्योकि वो ऐसे बयान देने में सक्षम हैं। इस बयान पर तीव्र प्रतिक्रिया का ना होना यह बताता है कि लोकतांत्रिक भारत बहुत तेजी से फासिस्ट भारत बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
- देश का एक बहुत बड़ा तबका राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े जीवन मूल्यों, सिस्टम और संविधान के खिलाफ उसी तरह कैंपेन चला रहा है, जिस तरह कुछ खास तरह की बीमारियों में अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर के खिलाफ काम करने लगती है। कुल मिलाकर यह लड़ाई संघ बनाम संघ है। यानी एक तरफ आरएसएस है और दूसरी तरफ है, यूनियन ऑफ इंडिया या आइडिया ऑफ इंडिया। लड़ाई मुश्किल है और यकीनन यह लड़ाई कायरों के लिए नहीं है।
नोट– भावनाएं सिर्फ हिंसक, लंपट और समाज विरोधी लोगों की नहीं होती हैं, आम शांतिप्रिय नागरिकों की भी होती है। सुश्री कंगना रनौत के बयान से मेरी भावनाएं आहत हुई हैं। पोस्ट पर विष्ठा विसर्जन करने वालों का स्वागत है, ताकि उन्हें चिन्हित करने और धक्के मारकर निकालने में आसानी हो।
कृष्ण कांत-
वे शहीदों के नाम पर फिल्म बनाकर अरबों रुपये कमाते हैं, लेकिन उन्हीं शहीदों की कुर्बानी का मजाक उड़ाते हैं. वे देश की आजादी के स्वनामधन्य रखवाले हैं, लेकिन आजादी को भीख बताते हें. वे अपने को सच्चा राष्ट्रवादी कहते हैं, लेकिन भारतीय राष्ट्रवाद के खिलाफ अभियान चलाते हैं. वे देश की आजादी, देश के स्वतंत्रता सेनानियों, देश के नायकों के खिलाफ घृणित अभियान चला रहे हैं, ताकि इसको नष्ट किया जा सके. वे सौ साल से यही काम कर रहे हैं.
इसी कुनबे की एक युवती कहती है कि आजादी लीज पर मिली. एक स्वनामधन्य महारानी कहती है कि आजादी भीख में मिली. पूरा फर्जी राष्ट्रवादी कुनबा मौन है. किसी के मुंह से निंदा के दो शब्द नहीं फूटे, न फूटेंगे. क्योंकि पूरे कुनबे की सोच यही है. जो सरकार उस विक्षिप्त महिला को जनता का खजाना फूंक कर सरकारी सुरक्षा देती है, देश का सर्वोच्च सम्मान देती है, वही सरकार उसकी परनाले जैसी अनियंत्रित जबान पर लगाम नहीं लगाती.
क्योंकि वे सब ऐसा ही सोचते हैं. बस बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते क्योंकि जनता से डरते हैं. वे जानते हैं कि गांधी के नेतृत्व में इस देश की जनता जान देने पर उतारू थी. वे जानते हैं कि इस देश की जिस जनता ने दुनिया की सबसे बड़ी हुकूमत से लड़कर आजादी हासिल की थी, वह हमारी सच्चाई जान गई तो हमारी नफरत की दुकान बंद हो जाएगी. इसलिए वे धीरे धीरे प्रयोग कर रहे हैं.
वे कांग्रेस का बहाना लेकर नेहरू के खिलाफ अभियान चलाते हैं. वे फोटोशॉप करके गांधी का चरित्र हनन करते हैं. वे फोटोशॉप करके नेहरू का चरित्र हनन करते हैं. वे नेहरू, पटेल, भगत सिंह, गांधी, सुभाष सबके बारे में अफवाहें फैलाते हैं. पूरे आजादी आंदोलन के खिलाफ एक संगठित अभियान सालों से चल रहा है.
जब भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी हुई तो इनके एक महान संघ परिवारी और कथित गुरु लेख लिखकर कह रहे थे कि भगत सिंह जैसे लोगों को आदर्श नहीं माना जा सकता क्योंकि वे अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सके. वे लिख रहे थे कि भगत सिंह देश का आदर्श नहीं हो सकते, क्योंकि वे ताकतवर से लड़ बैठे और अपनी जान दे दी. वे कायर हैं इसलिए इससे ज्यादा आज भी सोच सकते. 90 साल तक इसी विचारधारा के कारण अछूत बने रहे तो अब चोला ओढ़ लिया है. वे महापुरुषों के नाम का नारा लगाकर उन्हें मिटाने का अभियान चला रहे हैं.
प्रधानमंत्री आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. गिरोह के मोहरे और पालतू अभियान चला रहे हैं कि आजादी भीख में मिली थी. उनके मुताबिक असली आजादी तो 2014 में मिली है. उनके लिए उनकी कुर्सी ही उनकी आज़ादी है। अगर नाखून भी कटवाया होता तो आज़ादी की कीमत मालूम होती। वे देश के नायकों से नफरत करते हैं। महात्मा के पांव छूकर धोखे से गोली मारने वाला कायर हत्यारा गोडसे उनका आदर्श है. उसका महिमागान करने वाली महिला संसद में सुशोभित है. यही उनका न्यू इंडिया है. पर्दा हटाइए, असलियत दिख रही है. शौके दीदार अगर है तो नजर पैदा कर…
आपकी आज़ादी को खतरा है। आपके उस देश की अस्मिता को निशाना बनाया जा रहा है जिसे आपके पुरखों ने अपना खून बहाकर हासिल की थी। अगर आप चाहते हैं कि उस बलिदान का मजाक बना दिया जाए तो आप भी अपने माथे पर राष्ट्रवादी लिख लीजिए और उसी भीड़ में शामिल हो जाइए जो उस पागल महिला की बात पर ताली बजा रही थी।