लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया नेता हेमंत तिवारी का जवाबी पत्र ये रहा-
ये है उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग की स्पेशल टास्क फ़ोर्स (stf) का मूल पत्र-
मूल खबर-
लखनऊ के इन तीन वरिष्ठ पत्रकारों को एसटीएफ ने नोटिस भेजा
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sushil dube lucknow
November 27, 2021 at 11:18 pm
क्या ऑलराउंडर खिलाड़ी की गूगली से STF होगी क्लीन बोल्ड ?
असत्य, भ्रामक एवं निराधार आरोप लगाकर अपराधिक उद्देश्यों से एसटीएफ उत्तर प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश सरकार की छवि को धूमिल करने के साथ ही साथ जनमानस में एसटीएफ के विरुद्ध एक अविश्वास और असुरक्षा की भावना उत्पन्न करने का कुत्सित प्रयास करने का आरोप लगाकर एसटीएफ द्वारा लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमज़ोर करने की कड़ी में उत्तर प्रदेश के धुरंधर पत्रकारों को नोटिस जारी करके 7 दिनों में स्पष्टीकरण मांगा था लेकिन मात्र 24 घंटे के अंदर ऑल राउंडर पत्रकार हेमंत तिवारी की गुगली से प्रतीत होता है कि STF की नोटिस को उनके द्वारा क्लीन बोल्ड कर दिया गया है।
अपने हरफनमौला मिजाज़ के लिए जाने जाते हेमंत तिवारी ने 23 नवंबर को नोटिस के जवाब में एसटीएफ को किसी भी बात या तथ्यों का स्पष्टीकरण ना देकर एक तरह से एसटीएफ को अपना नोटिस वापस लेने का ही निर्देश जारी कर दिया है जिसको देखकर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा हेमंत तिवारी को हजरतगंज थाने का गॉडफादर की टिप्पणी आज भी सत्य प्रतीत होती हैं, पुलिस हजरतगंज थाने की हो या एसटीएफ की हरफनमौला खिलाड़ी के सामने आने पर बेबस हो जाते है।
STF की नोटिस के किसी भी बिंदु पर सीधा जवाब न दे कर जिस तरह से अपने ही साथी पत्रकार जिसकी मान्यता नियम विरुद्ध कराए जाने का बखान हर मौके पर हेमंत तिवारी की ज़ुबान पर रहता था और बड़े-बड़े आलीशान होटलों में गलबहियां की तस्वीरें सोशल मीडिया पर दिखती थी उसके अस्तित्व को ही इंकार करके STF के सम्मुख असत्य, भ्रामक एवं निराधार पत्र लिखकर अपने अपराधों को बढ़ावा देना ही प्रतीत होता है और पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों को दरकिनार करते हुए दिखता है।
हेमंत तिवारी द्वारा अपने वक्तव्य के संबंध में कोई भी साक्ष्य या प्रमाण नही उपलब्ध कराया है जिसमें उनके द्वारा कहा गया था कि एसटीएफ में महंगे महंगे उपकरण खरीदे गए हैं उनका इस्तेमाल ब्यूरोक्रेट व पत्रकारों की फोन टैपिंग के लिए किया जा रहा है जिससे सरकार के शीर्ष पर बैठे लोग खाली एक इंस्ट्रूमेंट से दबाव में रखकर अपने साथियों को ब्लैकमेल कर तो इससे बड़ा करप्शन कोई नहीं होता ,,,आदि
खोजी-खुलासे की पत्रकारिता पर हेमंत तिवारी की खामोशी समुचित पत्रकार जगत के लिए एक निराशाजनक बात है। हेमंत तिवारी द्वारा न सिर्फ इस बात का खुलासा किया गया कि मंत्रियों, नौकरशाहों का फोन टेप कराकर उनका क्या हाल होगा उसको सोचिए और जिस दिन ये बम फूटेगा ये देश की पॉलिटिक्स का महाबम होगा जिनको साफ-साफ सुना जा सकता है बल्कि उनके द्वारा अपने तीनों मोबाइल नंबर की टेपिंग की बात कही गयी है जिसका सीधा आरोप एसटीएफ पर लगाया गया है और इस बारे में उनकी खामोशी सम्पूर्ण देश के पत्रकारों के लिए निराशाजनक है।
संजय शर्मा द्वारा अपने ट्वीट में हेमंत तिवारी के वक्तव्य की जांच कराए जाने की मांग इसलिए भी अति आवश्यक है कि वह कौन कौन पत्रकार हैं जिनके फोन टेप कराए जा रहे हैं।आखिर कौन एसटीएफ के अधिकारी हैं जो पत्रकारों के फोन टेप कर के उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता को समाप्त करने की साजिश कर रहे हैं लेकिन इस संबंध में हेमंत तिवारी द्वारा कोई वक्तव्य, साक्ष्य ना देकर एसटीएफ को नोटिस वापस लिए जाने का जो अनुरोध किया है यह पूरे मामले को दबाने का खेल दिखता है जो उत्तर प्रदेश के पत्रकारों कलमकारी के लिए अत्यंत शर्मनाक बात होगी।
हेमंत तिवारी के अनुरोध पर एसटीएफ द्वारा अपनी नोटिस को वापस लिया जा सकता है और ये भी मुमकिन है कि इस प्रकरण को बंद किया जा सकता है लेकिन उत्तर प्रदेश के पत्रकारों या आम जनमानस द्वारा फोन टेपिंग जैसे गंभीर आरोपों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस पूरे प्रकरण में हेमंत तिवारी द्वारा अपने ही करीबी संजय शर्मा को पहचानने से इनकार किया जाना एक बड़ा सवालिया निशान भी है क्योंकि इन दोनों की दोस्ती और रंगीनियों की कहानियां सोशल मीडिया पर इनकी तस्वीरों को एसटीएफ द्वारा खंगालने पर बड़ी आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
वहीं हेमंत तिवारी के निर्देश/अनुरोध पर यदि एसटीएफ नोटिस वापस लेने का काम करती है तो उत्तर प्रदेश की पत्रकारिता पर कुठाराघात होगा क्योंकि पत्रकार अपनी बात और अपनी बात पर अडिग रहता है और खबरों की विश्वसनीयता ही उसकी पत्रकारिता का आधार है ।