70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में 67 विधायक अरविन्द केजरीवाल के हैं. ये सबको मालूम है. कमाल का बन्दा है ये केजरीवाल. क्या सहयोगी, क्या विरोधी. सबको ठिकाने लगा देता है. क्या अपने- क्या पराये. “जो हमसे टकराएगा-चूर चूर हो जाएगा” के मंत्र का निरंतर जाप करता हुआ ये शख़्स ज़ुबाँ से भाईचारे का पैगाम देता है, मगर, वैचारिक विरोधियों को चारे की तरह हलाल करने से बाज नहीं आता.
राजनीतिक हमाम में जब इस बन्दे ने घुसपैठ की तो इस शख़्स के बेहद क़रीबी लोगों में बेहद छिछोरे किस्म के लोग थे, जो अपनी निजी ज़िंदगी, आम आदमी से बे-ख़बर, पूरे ऐशो-आराम के साथ जीते हैं लेकिन सार्वजनिक जीवन में इस क़दर लफ़्फ़ाज़ी करते हैं कि पूछो मत. आशुतोष जैसे कइयों की “आप” में हैसियत वाली उपस्थिति इस बात की गवाही देने के लिए काफ़ी है. पूर्व राजस्व आयुक्त से लफ़्फ़ाज़ी किंग बन चुके, “आप” के एकमात्र नेता अरविन्द केजरीवाल से कोई ये पूछे कि योगेन्द्र यादव और कुमार विश्वास, आशुतोष, दिलीप पाण्डेय जैसे लोगों में से ज़्यादा विश्वसनीय कौन है, तो, केजरीवाल कुमार विश्वास, आशुतोष, पाण्डेय के पक्ष में नज़र आएंगे जबकि आम आदमी, जो इन सबको क़रीब से जानता होगा, वो केजरीवाल की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के डायरेक्टर्स, विश्वास, आशुतोष, दिलीप पाण्डेय, जैसे जोकरों से ज़्यादा योगेन्द्र यादव को योग्य क़रार देगा. पर योग्यता लेकर केरीवाल करेंगे क्या?
जितने ज़्यादा जोकर या मूर्ख होंगे, उनके बीच खुद को सबसे ज़्यादा गंभीर व बुद्धिमान साबित करना उतना ही आसान होगा. सबसे ज़्यादा योग्य होने का तमगा तो वो खुद को बहुल पहले ही दे चुके हैं. जोकर होना या मूर्ख होना भी खतरनाक नहीं है. खतरनाक है खुद को गन्दगी के दलदल में खड़ा रख, सफाई-अभियान की अगुवाई का दम्भ भरना. खतरनाक है, आम आदमी के विश्वास की ह्त्या करना. केजरीवाल और उनके स्वयंभू कलाकारों के अंदर की “गन्दगी” सड़ी हुई लाश की तरह “आप” के पानी में सतह पर आ चुकी है. केजरीवाल के साथ जो लोग हैं, वो चना खाकर आंदोलन करने वाले लोग नहीं बल्कि संपन्न तबके के वो लोग हैं, जो ठीक-ठाक पैसा हासिल करने के बाद अब, पावर की जुगाड़ में हैं.
अन्ना की गँवारूपन वाली ईमानदारी को, आई.आई.टी. से निकला केजरीवाल नाम का “बुद्धिमान” पढ़ा-लिखा आदमी तुरंत पकड़ लिया. हमारे ज़्यादातर प्रोफेशनल टॉप इंस्टीच्यूट, देश सेवा की बजाय, अवसरवादी सोच की पाठशाला साबित हुए हैं. केजरीवाल भी अपवाद साबित नहीं हुए. थोड़ा सा दिमाग चलाया, और, अब “आप” के बेताज बादशाह हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. एक ऐसा इंसान जो बात लोकतंत्र की करता है मगर लोकतंत्र से इस इंसान को ज़बरदस्त नफ़रत है. 2014 की “भाईचारा” फिल्म के बाद, मार्च 2015 में “नफ़रत” फ़िल्म भी ज़ोरदार तरीक़े से रिलीज़ हुई. भाईचारा नाम की फिल्म का “नायक”, राजनीति के परदे पर, इस बार, खलनायक की तरह नज़र आया. हिन्दी फिल्मों के खलनायक की तरह इस शख़्स ने भी गली-छाप टपोरियों के भरोसे, विरोध की हर आवाज़ को ठिकाने लगाने का रास्ता अख़्तियार कर लिया है.
“आप” की ज़मीन तैयार करने वाले कई लोगों को ज़मींदोज़ कर दिया गया. “आप” अब एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि, एक गैंग है. ये गैंग सपने दिखा कर सपनों का क़त्ल करने में उस्ताद है. ये गैंग बद से बदनामी की ओर बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा है. अपनों से लव की स्टोरी के बाद धोखा और सहयोगी के साथ सेक्स वाला सोना के साथ लगातार साज़िशों का दौर. ये है आज “आप” की तस्वीर. बावजूद इस गैंग को इस बात का भरोसा है, कि, केजरीवाल नाम का ये नायक और इसकी “आप”, राजनीतिक हमाम में कपड़ों में दिखाई देंगे. अपने चेलों के साथ, गुरु बनने का ढोंग रच कर, गुरु जी ने, खुद को गुरु-घंटाल साबित करने की कोशिश की है.
गुरु घंटाल, केजरीवाल जी को यकीन है कि दिल्ली के 67 विधायक उनके साथ हैं. मगर इस गैंग लीडर को ये भी यकीन होगा कि राजनीति बड़ी बेरहम होती है. विधायकों का ईमान-धर्म, सत्ता के साथ ही हिलता-डुलता है. आज केजरीवाल के साथ, तो हो सकता है, कल योगेन्द्र यादव के साथ. इस गैंग लीडर को भी इस बात का अंदाज़ होगा कि पब्लिक, नेताओं से भी ज़्यादा बेरहम होती है. सर पर बैठा कर तो रखती है, मगर, सपनों के क़त्ल की साज़िश रचने वालों को सरेआम “फांसी” पर चढ़ाने से गुरेज़ नहीं करती. फिल्म में एक्टिंग करना एक कला है. तीन घंटे की फिल्म के दौरान कई बार नायक के लिए तालियां बजती हैं, मगर क्लाइमेक्स में जब ये पता चलता है कि फिल्म का नायक ही असली खलनायक है और नायक के पीछे चलने वाले हफ्ता वसूली करने वाले टपोरी, तो, दर्शकों का गुस्सा सातवें आसमान पर होता है और 3 घंटे की फिल्म के बाद भी कई दिनों तक नायक बने खलनायक को गालियां मिलती हैं. “आप” गैंग के लीडर और इसके सदस्यों ने ऐसी फ़िल्में कई बार देखी होगी. ख़ुदा ख़ैर करें!
लेखक नीरज वर्मा ‘लीक से हटकर’ ब्लाग के संचालक हैं.
Comments on “लव, सेक्स, धोखा और आप…. : ‘आप’ अब राजनीतिक दल नहीं, बल्कि गैंग है…”
हैरानी की बात है कि प्रबुद्ध वर्ग के लोग केजरीवाल को अब समझ पाये हैं। हम जैसे सामान्य पत्रकार तो इसे शुरू में ही समझ गये थे जब शीला दीक्षित और राबर्ट वाड्रा के भ्रष्टाचार की पोल खोलन से शुरू हुआ इसका नाटक ने अचानक मोड ले लिया और एकमात्र लक्ष्य मोदी विरोध हो गया। इस गुरू घंटाल ने जनता को मूर्ख बनाया ही आश्चर्य तो तब हुआ जब पूरा मीडिया इसका दीवाना हो गया। यही पोर्टल केजरीवाल के समर्थन वाले लेखन से भरा रहता था। खीझकर हम जैसे लोग इसे केजरीवाल पोर्टल कहने लगे थे। अब बडा मजा आ रहा है कि खुद को दिमागवाला समझने वाला मीडिया मूर्ख बन गया। सरजी अब आगे देखतें जायें क्या होता है। पांच साल तक और कोई चारा भी नहीं।
Badi sharam ki baat hai ki hum log choti si state ke chief minister or ek choti si party ki kamiyan dhoond rahe hain aur shayad isi liye humara desh kabhi sahi nahi socha sakta. Look for the Giants and make them seperate from politics but why will you do that as all the people have their own interest and are biased. sorry but all of you very narrow minded ppl. delhi will judge him according to the works for delhi not what happening in the party..