केजरीवाल ने माफी मांगने का जो रास्ता ढूंढा है, मेरी राय में वह सर्वश्रेष्ठ है : डॉ. वेदप्रताप वैदिक

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पहले विक्रमसिंह मजीठिया और अब नितिन गडकरी से माफी मांगकर भारत की राजनीति में एक नई धारा प्रवाहित की है। यह असंभव नहीं कि वे केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली और अन्य लोगों से भी माफी मांग लें। अरविंद पर मानहानि के लगभग 20 मुकदमे चल रहे हैं। अरविंद ने मजीठिया पर आरोप लगाया था कि वे पंजाब की पिछली सरकार में मंत्री रहते हुए भी ड्रग माफिया के सरगना हैं।

अरविंद केजरीवाल ने मीडिया मालिकों को ब्लैकमेलर कह दिया, देखें वीडियो

जनता का रिपोर्टर डाट काम नामक वेबसाइट के एक कार्यक्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मीडिया मालिकों को खुलेआम ब्लैकमेलर कह दिया. साथ ही ये भी बताया कि मजीठिया वेज बोर्ड से बचने के लिए अखबारों के मालिक लगातार दिल्ली सरकार पर दबाव बना रहे हैं.

केजरीवाल यानि हर रोज नया बवाल

अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी में इन दिनों जो कुछ चल रहा है, उससे राजनीतिज्ञों के प्रति अविश्वास और गहरा हुआ है। वे उम्मीदों को तोड़ने वाले राजनेता बनकर रह गए हैं। साफ-सुथरी राजनीति देने का वादा करके बनी आम आदमी पार्टी को सत्ता देने में दिल्ली की जनता ने जितनी तेजी दिखाई, उससे अधिक तेजी केजरीवाल और उनके दोस्तों ने जनता की उम्मीदें तोड़ने में दिखाई है।

एक था केजरीवाल… एक थी आम आदमी पार्टी…

Sheetal P Singh : आम आदमी पार्टी…  वे चौराहे पर हैं और उनकी याददाश्त जा चुकी है। चौराहे पर कोई साइनबोर्ड नहीं है न किसी क़िस्म का मील का पत्थर! भारतीय मध्यम वर्ग के २०११-२०१७ के दौरान जगमगाये और बुझ रहे दियों के मानिंद दिवास्वप्न हैं। उनकी समस्यायें अनंत हैं पर उनमें संभावनायें भी कम नहीं पर निश्चित ही वे एक ऐसी बारात हैं जिनमें कोई बूढ़ा नहीं जो बिना साइनबोर्ड के चौराहे पर फँस जाने पर रास्ता सुझा सके। उन्होंने ऐतिहासिक काम हाथ में लिये पर उनके सारे काम अधूरे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य में उनके आउट आफ बाक्स फ़ैसलों से वामपंथी तक एकबारगी चकरा गये पर उनके पास फालोअप न था और ब्यूरोक्रेसी वे पहले ही मोदी के हाथ LG को हार चुके थे।

इन 10 कारणों से MCD चुनाव हारेंगे केजरीवाल

एक कहावत है अति भक्ति, चोरस्य लक्षणम्। यानी बहुत विनम्र इंसान, घातक
होता है। अरविंद केजरीवाल इस कहावत के लिए बिल्कुल सटीक उदाहरण बन गए
हैं। कैसे ? जनता को ऐसा लगता है कि उन्होंने जो कहा, वह किया नहीं।
मसलन, बेहद लाचार व शरीफ बन कर बार बार खांसते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार
और नेताओं की मनमानी से अजिज आ चुकी दिल्ली की जनता को कहा कि हम लाल
बत्ती वाली गाड़ी नहीं लेंगे। सरकारी मकानों में नहीं रहेंगे।
सुरक्षाकर्मियों का घेरा नहीं रखेंगे। जनता का पैसा बर्बाद नहीं करेंगे।
लाेकपाल लाएंगे। सरकार के कामकाज में पारदर्शिता लाएंगे। शीला दीक्षित
काे जेल पहुंचवाएंगे। आैर क्या क्या गिनवाएं..आप खुद ही गिन लीजिए।
दिल्लीवाले उनके झांसे में आ गए।

केजरीवाल महोदय को ये एक श्रेय तो जरूर जाता है….

Rajiv Nayan Bahuguna : अरविन्द केजरीवाल को एक श्रेय तो जाता है कि उसने धुर विरोधी कांग्रेस और भाजपा को कम से कम एक मुद्दे पर एकजुट कर दिया। एक दूसरे से फुर्सत पाते ही वे दोनों केजरीवाल पर टूट पड़ते हैं। क्यों? उदाहरण से समझाता हूं।

चेहरा चमकाने के लिए लाइक्स पाने का चक्कर : केजरीवाल जनता के लाखों रुपये रोजाना देते हैं गूगल और फेसबुक को!

प्रशांत भूषण ने खोली पोल…. दिल्ली सरकार ने टॉक टू एके नामक जो प्रोग्राम कराया, उसके लिए सोशल मीडिया पर पूरे 1.58 करोड़ रुपये लुटाए. ये पैसे आम आदमी पार्टी के नहीं बल्कि जनता के थे. केजरीवाल सोशल मीडिया पर लाइक्स खरीदने के लिए हर दिन 10-10 लाख रुपये गूगल और फेसबुक आदि को दिए. इसी तरह केजरीवाल ने ताज पैलेस होटल से 12 हजार रुपये प्रति थाली के हिसाब से सैकड़ों थाली खरीद कर अपने नेताओं कार्यकर्ताओं को दिल्ली सरकार के दो साल पूरे होने पर पार्टी दी थी. यहां भी जो पैसा खर्च हुआ वह जनता का था, आम आदमी पार्टी का नहीं.

केजरीवाल जी, नई राजनीति करने की बात करते हुए सत्ता में आए थे इसलिए आप तो मिसाल कायम कीजिए

Amitabh Thakur : क्या दिल्ली के पूर्व परिवहन मंत्री गोपाल राय ‘सत्ता भ्रष्ट करती है और पूर्ण सत्ता पूरी तरह भ्रष्ट करती है” के एक और उदहारण हैं या अभी अंतिम टिप्पणी देना जल्दीबाज़ी होगी? इस मामले में सच्चाई का सामने आना नितांत आवश्यक है, अतः मैं एसीबी दिल्ली से जाँच के बाद रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग करता हूँ.

राहत का सोमवार : odd-even फॉर्मूले ने तौबा करवा दी

Sarjana Sharama : इस बार सोमवार राहत का सोमवार होगा। ऑटो या टैक्सी खोजने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। दिल्ली को प्रदूषण मुक्त बनाने के श्री अरंविंद केजरीवाल के odd-even फॉर्मूले ने तौबा करवा दी। इतनी भीषण गरमी में लोग तपती धूप में 20-20 मिनट ऑटो का इंतज़ार करते रहे। रेडियो टैक्सी के अपने नखरे हैं। अभी इस रूट पर कोई टैक्सी नहीं मिल सकती। दो घंटे से पहले नहीं आ सकते आदि आदि।

केजरीवाल जी, आपभी मोदी की तरह जुमलेबाजी की सियासत कर रहे हो?

Vishwanath Chaturvedi : जुमले बाजों ने बिगाड़ा देश मिज़ाज़. बड़े मिया तो बड़े मिया छोटे मियां सुभानल्लाह. जुमलेबाज़ो ने बदरंग किया सियासी चेहरा. केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा सरकार को समर्थन करते हुए दिल्ली की जनता का कर्ज उतार दिया. अब बारी थी पंजाब चुनाओं में लड़ रही पार्टी के लिए फर्ज पूरा करने की. सो केजरीवाल ने शाम होते-होते वकील को बलि का बकरा बनाते हुए यू टर्न लिया और कहा ये वकील तो कांग्रेसी था, इसे मैंने हटा दिया.

‘आप’ तो ऐसे न थे : केजरी वही सब टोटके कर रहे जो भ्रष्ट नेता करते रहे हैं

-मनोज कुमार-

एक साथ, एक रात में पूरी दुनिया बदल डालूंगा कि तर्ज पर दिल्ली में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी के हुक्मरान जनाब अरविंद केजरीवाल ने मुझे तीन दिनों से परेशान कर रखा है। आगे और कितना परेशान करेंगे, मुझे नहीं मालूम लेकिन हाल-फिलहाल मेरी बड़ी शिकायत है। सुबह अखबार के पन्ने पलटते ही दो और चार पन्नों का विज्ञापन नुमाया होता है। इन विज्ञापनों में केजरीवाल अपनी पीठ थपथपाते नजर आते हैं। केजरीवाल सरकार इन विज्ञापनों के जरिये ये साबित करने पर तुले हैं कि उनसे बेहतर कौन? ऐसा करते हुए केजरीवाल भूल जाते हैं कि दिल्ली के विकास को जानकर मध्यप्रदेश का कोई भला नहीं होने वाला है और न ही उनके इस ‘पीठ खुजाऊ अभियान’ से मध्यप्रदेश में कोई सुधार होगा। बार बार भोपाल और मध्यप्रदेश की बात इसलिए कर रहा हूं कि इससे मुझे इस बात की परेशानी हो रही है कि मेरे पढ़ने की सामग्री गायब कर दी जा रही है। केजरीवाल के इस ‘पीठ खुजाऊ अभियान’ में मेरी कोई रूचि नहीं है।

केजरीवाल को खबर मिल चुकी है कि कुमार विश्वास भाजपा ज्वाइन कर सकते हैं!

कुमार विश्वास ने कल यानि 10 फरवरी को दिल्ली के एनडीएमसी क्लब में अपनी हाई प्रोफाइल बर्थडे पार्टी को सेलीब्रेट किया. इसमें सब आए लेकिन केजरीवाल नहीं आए. मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, गोपाल राय से लेकर आम आदमी पार्टी के ढेरों विधायक और दर्जनों बड़े छोटे पत्रकार. सबको इंतजार था तो बस अरविंद केजरीवाल का. लेकिन इंतजार खत्म नहीं हुआ और पड़ोस में रहकर भी केजरीवाल पार्टी में नहीं पहुंचे.

ऑड-इवन से दिल्ली की सड़कों पर क्या फायदा हुआ?

Arvind Shesh : इति “ऑड-इवन” स्वाहा…! इति ‘कार-सेवा’ स्वाहा…! पंद्रह तारीख के साथ ही ऑड-इवन खत्म… और साथ ही दिल्ली में बसों को सहज तरीके से चलने वाली अकेली बीआरटी को खत्म करने का काम शुरू। यानी पंद्रह दिनों की ऑड-इवन कार-सेवा खत्म होने के साथ ही कार वालों की सेवा शुरू…! अब अचानक दिल्ली से प्रदूषण छू-मंतर हो जाएगा… और अगर कहीं से प्रदूषण आएगा तो वह तंदूर चूल्हे से आएगा… और उससे आगे खाना बनाने के लिए जलाई गई आग से आएगा…!

उतर गया चोला… अमीरों का आदमी साबित हुआ केजरीवाल, समझा रहे हैं यशवंत सिंह

Yashwant Singh  : कई लोग कहते मिले कि दिल्ली सुधर गई, केजरीवाल का फार्मूला पास हो गया, दिल्ली वाले बिना चूं चपड़ किए हंसते खेलते नया नियम मान लिए, प्रदूषण घट गया, ट्रैफिक स्मूथ हो गया… ब्ला ब्ला ब्ला…

odd-even : केजरीवाल जैसा मूर्ख मुख्यमंत्री इस देश में दूसरा नहीं देखा…

Nadim S. Akhter :  अरविन्द केजरीवाल जैसा मूर्ख मुख्यमंत्री इस देश में दूसरा ने नहीं देखा, जिसन वाहवाही बटोरने के चक्कर में बिना सोचे-समझे पूरी जनता को odd-even की खाई में धकेल दिया। पहले से ही मरणासन्न दिल्ली का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम इतनी बड़ी आबादी के सफ़र को कैसे झेलेगी, इस पर एक पल भी नहीं सोचा। ऊपर से ये महामूर्ख मुख्यमंत्री स्कूल में बच्चों के बीच जाकर कह रहे हैं कि बेटे, अपने मम्मी-पाप को इस नियम का पालन करने की सीख देना, उनसे जिद करना। लेकिन ये नहीं बता रहे कि जब टाइम से ऑफिस न पहुचने पे पापा की सैलरी कटेगी और ऑटो लेकर जाने में उनकी जेब से दोगुने नोट ढीले होंगे, घर का बजट बिगड़ेगा, तो पापा घर कैसे चलाएंगे?

सम-विषम के नाम पर आम जनता को परेशान करने के लिए अड़ गई आम आदमी पार्टी की सरकार

Sanjaya Kumar Singh : पत्नी और सरकार के आगे तर्क!! दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए जांच के तौर पर शुरू की जा रही सम विषम नंबर की कारों को सम विषम तारीखों को ही चलने देने के फैसले की घोषणा में इतनी छूट है कि – यह प्रयोग सफल हो या असफल कोई खास मतलब नहीं है। सम-विषम नंबर के नाम पर असल में दिल्ली की आबादी को दो हिस्सों में बांट दिया गया है। एक आबादी जो इससे बेसर है। चाहे वह वीआईपी हो या मोटरसाइकिल चलाने वाली या महिलाएं। दूसरी आबादी इससे प्रभावित होने वालों की है और यह दिल्ली में रोज दफ्तर आने जाने वालों का है जो सबसे ज्यादा परेशानी झेलेगी। चूंकि मामला स्थायी नहीं है इसलिए परेशानी और ज्यादा है। वरना परेशान होने वाला अपने लिए कोई इंतजाम करता।

अरविंद केजरीवाल ने किस्सा सुनाने के बहाने कह दिया- ”टीवी चैनल वालों को तो मोदी ने खरीद रखा है”

Arvind Kejriwal : अभी अभी बिहार गए हुए एक रिपोर्टर से बात हुई। उसने एक बड़ा दिलचस्प किस्सा सुनाया। रिपोर्टर ने बिहार के एक गाँव में एक रिक्शा वाले से बात की। दोनों के बीच हुई बात इस प्रकार है –

‘आप’ सरकार ने दिल्ली में श्रम विभाग के अफसरों को चोर मीडिया मालिकों को सबक सिखाने की खुली छूट दी

Yashwant Singh : दिल्ली राज्य में कार्यरत मीडियाकर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड न दिए जाने को लेकर श्रम विभाग ने मीडिया हाउसों को धड़ाधड़ चांटे मारना शुरू कर दिया है. ऐसा दिल्ली की केजरीवाल सरकार की सख्ती के कारण हो रहा है. सूत्रों का कहना है कि अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने श्रम विभाग के अफसरों को साफ-साफ कह दिया है कि किसी का मुंह न देखें, कानूनन जो सही है, वही कदम उठाएं.

दिल्ली में डेंगू से लड़ने का ठेका सिर्फ अरविन्द केजरीवाल ने लिया है!

Sanjaya Kumar Singh : दिल्ली में डेंगू से लड़ने का ठेका सिर्फ अरविन्द केजरीवाल ने लिया है। बाकी देश में तो ना मच्छर हैं ना डेंगू होता है। गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुड़गांव में भी नहीं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री पिछली दफा बिहार चुनाव के उम्मीदवारों की घोषणा कर रहे थे और माननीय उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के अफसरों को बता रहे हैं कि उन्हें किसका आदेश मानना है, किसका नहीं।

स्वतंत्रता दिवस या ARVIND KEJRIWAL दिवस!

पूरा देश आज स्वतंत्रता दिवस मना रहा था लेकिन अरविंद केजरीवाल खुद आज अपना दिवस मनाने में जुटे थे, वह भी स्कूली बच्चों और सरकारी पैसों के जरिए. स्वाधीनता दिवस के मौके पर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में सीएम अरविंद केजरीवाल ने जनता को संबोधित किया. लेकिन, इस मौके पर स्टेडियम में कुछ ऐसा भी हुआ, जिससे केजरीवाल विवादों में घिर गए. स्टेडियम की दर्शक दीर्घा में बच्चों को इस तरह बिठाया गया था, जिससे इंग्लिश में ‘ARVIND KEJRIWAL‘ लिखा दिखाई दे रहा था.

‘आप’ सोशल मीडिया हेड की पत्नी बोली- केजरीवाल ने बर्बाद कर दिया फेमिली लाइफ

आम आदमी पार्टी के सोशल मीडिया हेड अंकित लाल की पत्नी प्रेरणा प्रसाद ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल पर अपना फेसबुक अकाउंट बंद करवाने की कोशिश का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, यह कहने में बुरा लग रहा है, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने अपना करियर कई लोगों के करियर और मेरे जैसे यंगस्टर्स की फैमिली लाइफ को बर्बाद कर बनाया है। प्रेरणा ने केजरीवाल को एक मैनिपुलेटर (जोड़तोड़ करने या अपनी बात मनवाने वाला) करार दिया है।

इस सदी के स्वघोषित सबसे बड़े महानायक केजरीवाल की नाक जड़ से कट गई…

Samarendra Singh : जिसका अंदेशा था वही हुआ. अभय कुमार दुबे की बात सही निकली. किसी एक की नाक जड़ से कटनी थी और इस सदी के स्वघोषित सबसे बड़े महानायक की नाक जड़ से कट गई. कमाल के केजरीवाल जी दुखी हैं. बोलते नहीं बन रहा है. इसलिए अदालत के फैसले का इंतजार किये बगैर उन्होंने अपने क्रांतिकारियों को अपने बचाव में आगे कर दिया है. तोमर की डिग्री फर्जी है, यह मानने के लिए अब उन्हें किसी अदालत के फैसले की जरुरत महसूस नहीं हो रही है. अब उनके क्रांतिकारी कह रहे हैं कि माननीय को गहरा सदमा लगा है. तोमर ने उन पर जादू कर दिया था. फर्जी आरटीआई दिखा कर भ्रमित कर दिया था. हद है बेशर्मी की. बार-बार झूठ बोलने पर जरा भी लाज नहीं आती.

लगता है मोदी जी एक दिन केजरीवाल को देश का प्रधानमंत्री बनवाकर ही मानेंगे… कीप इट अप भाजपाइयों…

Yashwant Singh : नरेंद्र मोदी ने केजरीवाल पर तरह तरह से नकेल कस कर खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम कर दिया है. दिल्ली सरकार के प्रति मोदी जी की चीप किस्म की हरकतों से एक तो खुद मोदी और दूसरे भाजपाई एक्सपोज हो रहे हैं. इस कारण अरविंद केजरीवाल को भारी मात्रा में जन सुहानभूति प्राप्त हो रही है. हाल के दिनों में केजरीवाल ने मोदी के लगाए अवरोधों और उसका डटकर कर रहे प्रतिरोध के कारण जो सिंपैथी गेन की है उससे योगेंद्र यादव -प्रशांत भूषण निष्कासन प्रकरण के घाव भुलाकर लोग फिर से केजरी के साथ खड़े होने लगे हैं. उनमें से एक मैं भी हूं.

अब राजनीति में भड़ास, 7वें स्थापना दिवस पर लांच कर दी जाएगी नई राजनीतिक पार्टी

Yashwant Singh : अब राजनीतिक पार्टी मुझे बनाना ही पड़ेगा. देश चलाने के लिए हम सबों को आगे आना ही पड़ेगा. क्यों न भड़ास के सातवें स्थापना दिवस के मौके पर एक नई राजनीतिक पार्टी लांच कर दी जाए. कांग्रेस के खात्मे, मोदी के पतन, केजरी की चिरकुटई, क्षेत्रीय दलों के करप्शन आदि के कारण पूरे देश में फिर से निराशा का चरम माहौल है. नागनाथ और सापनाथ के बीच चुनने के मजबूरी के कारण हालात बहुत दूर दूर तक बदलते नहीं दिख रहे.

मोदी और केजरी : आइए, दो नए नेताओं के शीघ्र पतन पर मातम मनाएं…

Yashwant Singh : यथास्थितिवाद और कदाचार से उबी जनता ने दो नए लोगों को गद्दी पर बिठाया, मोदी को देश दिया और केजरीवाल को दिल्ली राज्य. दोनों ने निराश किया. दोनों बेहद बौने साबित हुए. दोनों परम अहंकारी निकले. पूंजीपति यानि देश के असल शासक जो पर्दे के पीछे से राज करते हैं, टटोलते रहते हैं ऐसे लोग जिनमें छिछोरी नारेबाजी और अवसरवादी किस्म की क्रांतिकारिता भरी बसी हो, उन्हें प्रोजेक्ट करते हैं, उन्हें जनता के गुस्से को शांत कराने के लिए बतौर समाधान पेश करते हैं. लेकिन होता वही है जो वे चाहते हैं.

अपने गिरेबान में झांकने की बजाय सुभाष चंद्रा ने केजरीवाल के खिलाफ निकाली भड़ास

सुपारी पत्रकारिता को संगठित तरीके से अंजाम देने वाले सुभाष चंद्रा बजाय अपनी गिरेबान में झांकने के, दूसरों को ही समझाने पर उतारू हो जाते हैं. अबकी उनके निशाने पर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल हैं. जी मीडिया पर बार-बार आम आदमी पार्टी को बदनाम करने का आरोप लगाने वाले दिल्ली के सीएम केजरीवाल के खिलाफ भड़ास निकालते हुए जी मीडिया के चेयरमैन सुभाष चंद्रा ने अपने ट्विटर अकाउंट पर ट्विट कर लिखा है, ‘सीएम केजरीवाल को लगता है कि मीडिया किसी को भी बना और बर्बाद कर सकता है पर ये गलत है, मैं उनसे ये रिक्वेस्ट करता हूं कि वह न सिर्फ जी बल्कि किसी भी मीडिया से अपने दुश्मन जैसा बर्ताव नहीं करें.

केजरीवाल से एक और समर्थक का मोहभंग, अपने ब्लाग पर लिखा: ”Kejriwal, You Have Failed Us”

“Not even the king has the right to subordinate the interests of the state to his personal sympathies or antipathies.”

AAP “leader” Ashutosh started his blog with this statement to defend the expulsion of four AAP leaders from the party. If there is one person who needed to be reminded of this sentence today, it is none other than Arvind Kejriwal.

Kejriwal has no moral ground to remain as the convener of AAP and here are the reasons.

आम आदमी पार्टी के आशुतोष को रवीश कुमार का खुला पत्र

आशुतोष जी,

मैं आज दिल्ली में नहीं था। देवेंद्र शर्मा के साथ रिकॉर्डिंग कर रहा था कि किसानों की इस समस्या का क्या कोई समाधान हो सकता है। हम गेहूं के मुरझाए खेत में एक मायूस किसान के साथ बात कर रहे थे। हमने किसान रामपाल सिंह से पूछा कि आपके खेत में चलेंगे तो जो बचा है वो भी समाप्त हो जाएगा। पहले से मायूस रामपाल सिंह ने कहा कि कोई बात नहीं। इसमें कुछ बचा नहीं है। अगर आपके चलने से दूसरे किसानों को फायदा हो जाता है तो मुझे खुशी होगी। वैसे भी अब इसका कोई दाम तो मिलना नहीं है, कुछ काम ही आ जाए। ये उस किसान का कहना है जो चाहता है कि उसकी बर्बादी के ही बहाने सही कम से कम समाधान पर बात तो हो। शायद गजेंद्र ने भी इसी इरादे से जान दे दी जिस इरादे से रामपाल सिंह ने हमारे लिए अपना खेत दे दिया।

गजेन्द्र चुनाव लड़ चुका था, सैकड़ों वीआईपियों को साफा बांध चुका था, आत्महत्या की कोई वजह नहीं थी…

दिनेशराय द्विवेदी : मेरे ही प्रान्त राजस्थान के एक किसान ने आज दिल्ली में अपनी जान दे दी, तब आआपा की रैली चल रही थी। उस के पास मिले पर्चे से जिसे हर कोई सुसाइड नोट कह रहा है वह सुसाइड नोट नहीं लगता। उस में वह अपनी व्यथा कहता है, लेकिन उस नें घर वापसी का रास्ता पूछ रहा है। जो घर वापस लौटना चाहता है वह सुसाइड क्यों करेगा? जिस तरह के चित्र मीडिया में आए हैं उस से तो लगता है कि वह सिर्फ ध्यानाकर्षण का प्रयत्न कर रहा था। उस ने हाथों से पैर से भी कोशिश की कि वह बच जाए। पर शायद दांव उल्टा पड़ गया था। वह अपनीा कोशिश में कामयाब नहीं हो सका। हो सकता है उसे उम्मीद रही हो कि इतनी भीड़ में उसे बचा लिया जाएगा। पर उस की यह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी।

‘आप’ की प्री-प्लांड स्क्रिप्ट थी गजेंद्र का पेड़ पर चढ़ना और फंदे से लटकना!

Abhai Srivastava : गजेंद्र की चिट्ठी की आख़िरी लाइन, ‘कोई मुझे बताओ, मैं घर कैसे जाऊंगा?’ जाहिर है कि ये सुसाइड नोट नहीं। मीडिया क्लिप में साफ सुनाई पड़ रहा है कि जब कुमार विश्वास भाषण दे रहा था तब आवाज़ आई, ‘लटक गया’, फिर विश्वास हाथ के इशारे जैसे कह रहा है कि ‘लटक गया है, स्क्रिप्ट के अनुसार नाटक पूरा हुआ’.  भाइयों AAP ने एक व्यक्ति की हत्या की है। ये भी ध्यान देने की बात है कि गजेंद्र के घर में 2 भतीजियों की आज शादी है, इसका मतलब उसके घर में ऐसा आर्थिक संकट नहीं जैसा प्रोजेक्ट हुआ है। भाई, ये बहुत बड़ी साज़िश है।

आशुतोष जैसा एक मीडियॉकर पत्रकार और बौनी संवेदना का आदमी ही इतनी विद्रूप बातें बोल सकता है!

Vishwa Deepak : गजेन्द्र नामक ‘किसान’ की आत्महत्या के बारे में आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष कहते हैं- ”यह अरविंद केजरीवाल की गलती है. उन्हें मंच से उतर जाना चाहिए था.उन्होंने गलती की. अगली बार मैं केजरीवाल को कहूंगा कि वो मंच से उतर पेड़ पर चढ़ें और लोगों को बचाएं.”

किसान की खुदकुशी और बाजारू मीडिया : कब तक जनता को भ्रमित करते रहोगे टीआरपीखोर चोट्टों….

(भड़ास के संपादक यशवंत सिंह)


उदात्त दिल दिमाग से सोचिए. इस एक किसान की खुदकुशी का मामला हो या हजारों किसानों के जान देने का… सिलसिला पुराना है… महाकरप्ट कांग्रेस से लेकर महापूंजीवादी भाजपा तक के हाथ खून से रंगे हैं…. अहंकारी केजरीवाल से लेकर बकबकिया कम्युनिस्ट तक इस खेल में शामिल हैं. कारपोरेट-करप्ट मीडिया से लेकर एलीट ब्यूरोक्रेशी और विकारों से ग्रस्त जुडिशिरी तक इस सिस्टमेटिक जनविरोधी किसानविरोधी खेल में खुले या छिपे तौर पर शामिल है… ताजा मामला दिल्ली में संसद के नजदीक जंतर मंतर पर केजरीवाल के सामने हुआ इसलिए सारी बंदूकें केजरीवाल की तरफ तनवा दी गई हैं क्योंकि इससे देश भर में किसानों को मरने देते रहने के लिए फौरी तौर पर जिम्मेदार महापूंजीवादी भाजपा, महाकारपोरेट परस्त मोदी और लुटेरी भाजपा-कांग्रेस समेत अन्य जातिवादी करप्ट क्षेत्रीय राज्य सरकारों के मुखियाओं के बच निकलने का सेफ पैसेज क्रिएट हो जाता है और भावुक जनता मीडिया के क्रिएट तमाशे में उलझ कर ‘आप’ ज्यादा दोषी या दिल्ली पुलिस ज्यादा दोषी के चक्कर में फंस कर रह जाती है.

ओम थानवी ने भी कह दिया- केजरीवाल अहंकारी

आशुतोष की किताब के आयोजन में केजरीवाल का अहंकार देखकर मैं दंग रह गया था। न राजदीप-शेखर गुप्ता के सवालों का जवाब उन्होंने जिम्मेदारी से दिया, न हॉल में बड़ी संख्या में मौजूद बुद्धिजीवियों का लिहाज किया। उनका कहना था – बस मैं जैसा हूँ, लोग इससे खुश हैं। भावार्थ यह निकलता था कि मैं बाकी सबको ठेंगे पर रखता हूँ। मीडिया की ओर साफ इशारा भी कर दिया था।

भड़ास के एडिटर यशवंत ने ‘आप’ से दिया इस्तीफा… केजरी को हिप्पोक्रेट, कुंठित और सामंती मानसिकता वाला शातिर शख्स करार दिया

(यशवंत सिंह)

: सवाल उठाने वालों को ‘आप’ से बर्खास्त कर केजरीवाल ने अपनी सच्ची शकल दिखा ही दी : अरविंद केजरीवाल की सच्ची शकल सामने आने से कम से कम मुझे बड़ा फायदा हुआ. अच्छी राजनीति को लेकर मन में जो थोड़े बहुत पाजिटिव विचार आए थे, वो खत्म हो गए. राजनीति में डेमोक्रेटिक नहीं हुआ जा सकता, ये समझ में आ गया. भारत जैसे देश में कहने को भले ही शासन की प्रणाली डेमोक्रेसी हो लेकिन यहां डेमोक्रेटिक व्यक्ति नहीं हुआ जा सकता और डेमोक्रेटिक व्यक्ति हुए बिना अच्छी सच्ची राजनीति हो ही नहीं सकती. केजरीवाल डेमोक्रेटिक था ही नहीं, यह साबित हो गया. इसलिए इससे अब किसी अच्छी सच्ची राजनीति की अपेक्षा नहीं की जा सकती.

‘आप’ से बाहर किए गए योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, आनंद कुमार और अजित झा

वही हुआ जिसकी आशंका थी. तानाशाही दिखाते हुए सत्ता के नशे में चूर अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी से प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, आनंद कुमार और अजित झा को निकाल बाहर कर दिया है. इन सभी पर पार्टी विरोधी गतिविधियों और घोर अनुशासनहीनता का आरोप लगाया गया है. इसके पहले इन नेताओं को पार्टी ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था. इन नेताओं को पार्टी से निकाले जाने का फैसला लेने का नाटक राष्ट्रीय अनुशासन समिति ने किया. समिति का कहना है कि वह कारण बताओ नोटिस के लिए मिले जवाब से संतुष्ट नहीं है.

योगेंद्र यादव ने पूछा- स्वराज का मंत्र लेकर चली इस यात्रा का ‘स्व’ कहीं एक व्यक्ति तक सिमट कर तो नहीं रह जायेगा?

Yogendra Yadav : आज एक सवाल आपसे… अमूमन अपने लेख के जरिये मैं किसी सवाल का जवाब देने की कोशिश करता हूँ। लेकिन आज यह टेक छोड़ते हुए मैं ही आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ। देश बदलने की जो यात्रा आज से चार साल पहले शुरू हुई थी उसकी दिशा अब क्या हो? पिछले दिनों की घटनाओं ने अब इस सवाल को सार्वजनिक कर दिया है। जैसा मीडिया अक्सर करता है, इस सवाल को व्यक्तियों के चश्मे से देखा जा रहा है। देश के सामने पेश एक बड़ी दुविधा को तीन लोगो के झगड़े या अहम की लड़ाई के तौर पर पेश किया जा रहा है। ऊपर से स्टिंग का तड़का लगाकर परोसा जा रहा है। कोई चस्का ले रहा है, कोई छी-छी कर रहा है तो कोई चुपचाप अपने सपनों के टूटने पर रो रहा है। बड़ा सवाल सबकी नज़र से ओझल हो रहा है।

मोदी जी, आम आदमी के साथ इत्ता बड़ा “ब्लंडर” तो AAP वालों ने भी नही किया था जैसे आप कर रहे हो..

परम आदरणीय मोदी जी..

प्रणाम

ये आपको क्या हो गया है…

चुनाव के पहले और चुनाव के बाद आपकी स्थिति तो सस्ते अखबार में आने वाले
“शादी के पहले और शादी के बाद”
वाले विज्ञापन जैसी हो गयी है..

टैक्स चोर सुभाष चंद्रा पर केजरीवाल सरकार ने लगाया 33 करोड़ का जुर्माना

जी ग्रुप वालों की एक कंपन है सिटी केबल. इसने जमकर कर चोरी की है. इस कारण दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने इस कंपनी के मालिक सुभाष चन्द्रा को 15 दिन के भीतर 33.12 करोड़ रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया है. सिटी केबल कंपनी ने दो साल से मनोरंजन कर नहीं दिया है. सिटी केबल एनसीआर में डिजिटल केबल सेवा देती है.  एस्सेल ग्रुप की कंपनी सिटी केबल पर अप्रैल 2013 से मनोरंजन कर धोखाधड़ी में शामिल होने का खुलासा हुआ है. यह कंपनी सरकार को धोखा देकर गैर कानूनी ढंग से कर चोरी कर रही है. कंपनी ने उपभोक्ताओं से करों के नाम पर पैसा एकत्रित किया.

दिल्ली से बाहर निकलते ही केजरीवाल के मंत्री Gopal Rai ने लाल बत्ती लगी कार धारण कर ली

Yashwant Singh : केजरीवाल के एक मंत्री Gopal Rai लाल बत्ती लगी कार से अपने गांव गए थे. क्या बुरा है भाई. वीवीआईपी कल्चर सिर्फ दिल्ली में खत्म करने का वादा था. कोई यूपी बिहार का नाम थोड़े लिया था ‘आप’ ने. वैसे भी, जंगली प्रदेश यानि यूपी में लाल बत्ती लगी कार से नहीं जाएंगो तो अफसर लोग से लेकर नेता लोग अउर जनता लोग तक इनको मंत्री ही नहीं मानेंगे. इसलिए जैसा देस वैसा भेष. दूसरे, गोपाल जी को अपने गांव के लोगों को भी तो एक बार दिखाना था कि देखो, हम मंत्री बन गया हूं, लाल बत्ती वाला… पों पों पों पों…

केजरीवाल से आज फिर निराश हुए ओम थानवी

Om Thanvi : केजरीवाल को पहली बार किसी सभा में आमने-सामने सुना। आशुतोष की किताब का लोकार्पण था। राजदीप ने वे सारे मुद्दे कुरेदे जो जरूरी थे। जो सब भुला बैठे उन्हें अंत में भूपेंद्र चौबे और शेखर गुप्ता ने पूछ लिया। लेकिन केजरीवाल सबसे दाएं-बाएं ही हुए। सिर्फ साले-कमीने की भाषा के इस्तेमाल पर इतना कहा कि उन्हें ऐसा नहीं बोलना चाहिए था। पर इसमें कोई अफसोस का भाव जाहिर न था।

लूट प्रदेश कह लीजिए या आतंक प्रदेश, चहुंओर मातम का नाम है उत्तर प्रदेश…. (सुनें आडियो टेप)

Yashwant Singh : गजब है उत्तर प्रदेश. भ्रष्टाचार और अराजकता का चरम है इस सूबे में. मीडिया वाले सूबे के युवा मुखिया अखिलेश यादव का चरण दबाने में लगे हैं. ज्यादातर समाजवाद का कोरस गा रहे हैं. कुछ एक जो बोल सकते थे, वे चुप्पी साधे हैं. मीडिया मालिक यूपी सरकार के भारी भरकम विज्ञापन तले दबकर एहसानमंद हैं. इन मालिकों के नौकर किस्म के पत्रकार सरकार से अघोषित रूप से मिले कैश या आवास या दलाली या अन्य सुविधाओं के कारण सरकार के खुलेआम या छिपे प्रशंसक बने हुए हैं. ऐसे में सच्चाई सामने नहीं आ रही.

लव, सेक्स, धोखा और आप…. : ‘आप’ अब राजनीतिक दल नहीं, बल्कि गैंग है…

70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में 67 विधायक अरविन्द केजरीवाल के हैं. ये सबको मालूम है. कमाल का बन्दा है ये केजरीवाल. क्या सहयोगी, क्या विरोधी. सबको ठिकाने लगा देता है. क्या अपने- क्या पराये. “जो हमसे टकराएगा-चूर चूर हो जाएगा” के मंत्र का निरंतर जाप करता हुआ ये शख़्स ज़ुबाँ से भाईचारे का पैगाम देता है, मगर, वैचारिक विरोधियों को चारे की तरह हलाल करने से बाज नहीं आता.

बनारस की लवंडई और ग़ाज़ीपुर की अक्‍खड़ई का मिलन!

Abhishek Srivastava : बनारस की लवंडई और ग़ाज़ीपुर की अक्‍खड़ई आपस में मिल जाए तो वही होता है जो आज आम आदमी पार्टी के साथ हुआ है। ग़ाज़ीपुर के निवासी और बीएचयू छात्रसंघ के कभी महामंत्री रह चुके छात्र नेता उमेश कुमार सिंह ने मौके पर जो लंगड़ी मारी है, वह कल होने वाली नेशनल काउंसिल की बैठक से पहले रात भर में ही खेल को बिगाड़ने की कुव्‍वत रखता है। उमेशजी की सोहबत में अरविंद केजरीवाल बनारस से चुनाव तो लड़ आए, लेकिन एक बात नहीं समझ पाए कि मुंह में पान घुला हो तो बनारसी आदमी अमृत को भी लात मार सकता है। अगर ग़ाज़ीपुर का हुआ तो खिसिया कर सामने वाले के मुंह पर थूक भी सकता है।

प्रेम से बोलिए, एंटी करप्शन मूवमेंट स्वाहा….

Dilip C Mandal : प्रेम से बोलिए, एंटी करप्शन मूवमेंट स्वाहा ….  अब ऊपर मोदी और नीचे केजरीवाल हैं और इस समय भारतीय जेलों में कौन कौन से भ्रष्टाचारी बंद हैं, आप बताएं. रॉबर्ट वाड्रा या शीला दीक्षित या कोई उद्योगपति या कोई बड़ा अफसर? कौन है जेल में? वहीं, मनमोहन ने राज चाहे जैसा चलाया, लेकिन उनके समय में जो करप्शन में जेल गए, उनमें कुछ नाम ये हैं:

केजरीवाल या आम आदमी पार्टी से वही लोग निराश हो रहे हैं जो बहुत ज्यादा उम्मीद पाले हुए थे

Sanjaya Kumar Singh : मुझे लग रहा है कि अरविन्द केजरीवाल या आम आदमी पार्टी से वही लोग निराश हो रहे हैं जो बहुत ज्यादा उम्मीद पाले हुए थे। जब अन्ना हजारे के साफ मना करने के बावजूद केजरीवाल ने राजनैतिक पार्टी बनाई – तभी साफ हो गया था कि अरविन्द केजरीवाल में वही कीड़े हैं जो नरेन्द्र मोदी या सोनिया गांधी में। पैकिंग अलग है। अन्ना के आंदोलन की सफलता और अपनी नई बनी छवि को कैश कराने की जल्दबाजी में अरविन्द इस्तीफा देकर बनारस गए और मुंह की खाकर लौटे। इस तरह अरविन्द ने बता दिया कि ना उन्हें राजनीतिक समझ है और ना धूर्तता (तभी कभी कोई स्टिंग कर ले रहा है और कभी कोई और)।

केजरीवाल : चेहरा या मुखौटा?

किसी को इंदिरा गांधी का सिडिंकेट से लड़कर मजबूत नेता के तौर पर उभरना याद आ रहा है तो किसी को प्रफुल्ल महंत का असम में सिमटना और फूकन को बाहर का रास्ता दिखा कर एक क्षेत्रीय पार्टी के तौर पर सिमट कर रह जाना याद आ रहा है। किसी को दिल्ली का चुनावी बदशाह दिल्ली में जीत का ठग लग रहा है तो कोई दिल्ली सल्तनत को अपनी बौद्दिकता से ठगकर गिराने की साजिश देख रहा है। कोई लोकतंत्र की हत्या करार दे रहा है तो कोई जनतंत्र पर हावी सत्ताधारी राजनीति को आईना दिखाने वाली राजनीति का पटाक्षेप देख रहा है। एकतरफा निर्णय सुनाने की ताकत किसी में नहीं है। कोई इतिहास के पन्नों को पलटकर निर्णय सुनाने से बचना चाह रहा है तो कोई अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिये राजनीति के बदलते मिजाज को देखना चाह रहा है। लेकिन सीधे सीधे यह कोई नहीं कह रहा है कि आम आदमी पार्टी का प्रयोग तो राजनीतिक विचारधाराओं को तिलांजलि देकर पनपा है। जहां राजनेता तो हैं ही नहीं। जहा समाजवादी-वामपंथी या राइट-लेफ्ट की सोच है ही नहीं। जहां राजनीतिक धाराओं को दिशा देने की सोच है ही नहीं। जहां सामाजिक-आर्थिक अंतर्रविरोध को लेकर पूंजीवाद से लड़ने या आवारा पूंजी को संभालने की कोई थ्योरी है ही नहीं। यहा तो शुद्द रुप से अपना घर ठीक करने की सोच है।

केजरीवाल जी, अपने ये घड़ियाली आंसू बंद कीजिये…

Umesh Dwivedi : क्या जॉइंट कमिश्नर इनकम टैक्स की नौकरी बेहतर होती या मुख्यमंत्री की कुर्सी, पावर? केजरी बाबू अब हमें बार बार मत सुनाइए कि आप इनकम टैक्स की नौकरी छोड़ कर आये हैं …आपने कोई अहसान नहीं किया है ..हां यदि आप नौकरी छोड़ कर “मदर टेरेसा” जैसा कोई काम करते तो तब आपके उस कदम को सराहा जाता! आपने उससे बड़ा पद पाया है, ये आपकी महत्वकांक्षा थी, ना कि त्याग ! हर व्यक्ति अपने जीवन में ऊंचाई पर जाने के लिए जोखिम लेता है, वो आपने भी लिया तो कोई बड़ी बात नहीं की. ईसलिये अहसान की ये गठरी आप अपने मुख्यमंत्री आवास के अटाला घर में रख दें. कल आप राष्ट्रपति भवन में थे. क्या ज्वाइंट कमिश्नर रहते हुए आप जा पाते? नहीं, बिलकुल नहीं ….आपने नौकरी छोड़ कर उससे ज्यादा पाया है ..ईसलिये कृपया अपने ये घड़ियाली आंसू बंद कीजिये.

केजरीवाल पर संपादक ओम थानवी और नरेंद्र मोदी पर पत्रकार दयानंद पांडेय भड़के

Om Thanvi : लोकपाल को वह क्या नाम दिया था अरविन्द केजरीवाल ने? जी, जी – जोकपाल! और जोकपाल पैदा नहीं होते, अपने ही हाथों बना दिए जाते हैं। मुबारक बंधु, आपके सबसे बड़े अभियान की यह सबसे टुच्ची सफलता। अगर आपसी अविश्वास इतने भीतर मैल की तरह जम गया है तो मेल-जोल की कोई राह निकल आएगी यह सोचना मुझ जैसे सठियाते खैरख्वाहों की अब खुशफहमी भर रह गई है। ‘साले’, ‘कमीने’ और पिछवाड़े की ‘लात’ के पात्र पार्टी के संस्थापक लोग ही? प्रो आनंद कुमार तक? षड्यंत्र के आरोपों में सच्चाई कितनी है, मुझे नहीं पता – पर यह रवैया केजरीवाल को धैर्यहीन और आत्मकेंद्रित जाहिर करता है, कुछ कान का कच्चा भी।

कवि और नेता कुमार विश्वास पर ‘आप’ महिला कार्यकर्ता के साथ अनैतिक संबंध को लेकर सोशल मीडिया पर माहौल गरम

आम आदमी पार्टी नेता और कवि कुमार विश्वास पर पार्टी की एक महिला कार्यकर्ता से अनैतिक संबंध का आरोप लगा है. मामला लोकसभा चुनावों के दौरान का है लेकिन यह प्रकरण सोशल मीडिया में अब गरम हुआ है. #ExposingKumarVishwas ट्विटर पर टॉप ट्रेंडिंग टॉपिक है. आरोप है कि पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान अमेठी में उन्‍होंने एक महिला कार्यकर्ता के साथ अनैतिक रिश्‍ते बनाए. एक अंग्रेजी अखबार में इस बारे में खबर छपने के बाद सोशल मीडिया पर यह मुद्दा चर्चा में आ गया. कुमार विश्वास ने इन आरोपों को खारिज किया है. उन्होंने ट्वीट किया है- ”BJP पालित मीडिया का एक हिस्सा और उसके नेट-नकटे भक्त 2 साल के दुष्प्रचार का तीन नंबरी फल दिल्ली में खाकर भी काम पर जुटे है. गजब.”

‘आप’ में लवंडई जारी है… : टीवी पर सबा नक़वी का शर्मनाक बचाव और पुण्य प्रसून का विश्वसनीय कटाक्ष…

Abhishek Srivastava : कोई पत्रकार जब पार्टी बन जाता है तो उसके चेहरे पर डिफेंस की बेचारगी झलकने लगती है। वहीं कभी पार्टी रहा पत्रकार जब अपने पुराने पाले को दूर से देख रहा होता है तो उसके चेहरे पर सच की रेखाएं उभरने लगती हैं। पहले का उदाहरण आज टाइम्‍स नाउ पर प्राइम टाइम पैनल में बैठी सबा नक़वी रहीं तो दूसरे का उदाहरण दस तक में पुण्‍य प्रसून वाजपेयी रहे। सबा ने अरविंद केजरीवाल का जैसे बचाव किया, वह बहुत शर्मनाक था जबकि प्रसून ने कुमार विश्‍वास के स्‍वराज पर दिए बयान को तीन बार दिखाकर पार्टी पर जो कटाक्ष किया, वह ज्‍यादा विश्‍वसनीय लगा। वैसे, दस तक के बैकग्राउंड में जो लिखा था वही पूरी कहानी बताने के लिए काफी था- ”क्रिकेट खत्‍म, खेल शुरू”।

केजरीवाल की असलियत और पूंजीवादी व्‍यवस्‍था का बलात्‍कारी चरित्र

Vimala Sakkarwal : दिल्‍ली सचिवालय पर प्रदर्शन के दौरान वहां जिस तरह लड़कियों को पीटा गया, वो काम इंसान नहीं कर सकते, सिर्फ जानवर ही कर सकते हैं। वहां महिला पुलिस तो थी, लेकिन पुरुष पुलिस ने जिस तरह टारगेट करके ल‍ड़कियों के सिरों पर डंडे मारे, उनके पेटों में डंडे घुसेड़े, उनके नीचे के हिस्‍से में ड़डे घुसेड़े, बहुत विमानवीय था। मेरे हाथों और पेट पर, … पड़ी नीलें इनकी बर्बरता बयान कर रही हैं।

केजरी और इसका गैंग इतने छोटे दिल दिमाग वाला होगा, मुझे उम्मीद नहीं थी

Yashwant Singh : प्राइम टाइम के दौरान जब एनडीटीवी पर कायदे की बहस ना चल रही हो तो मैं फोकस टीवी देखने लगता हूँ। संजीव श्रीवास्तव बेहद सहज और दिल में उतरने वाली एंकरिंग करते हैं। ज्ञान, भाषा और समझ का स्तर ठीकठाक होने के कारण संजीव बड़े प्यार से बहुत नयी नयी बातें निकालते और निकलवाते रहते हैं। साथ ही चीख चिल्लाहट और चीप एंकरिंग की जगह ताजगी भरी स्टाइल का विकल्प भी बाकी एंकर्स को अनजाने में बताते समझाते रहते हैं। 

केजरीवाल ने छात्रों, मजदूरों, शिक्षकों को पिटवाकर बहुत गलत काम किया है

Abhishek Srivastava : कल दिल्‍ली सचिवालय के बाहर छात्रों, मजदूरों और शिक्षकों को पिटवाकर, उन पर आपराधिक मुकदमे लगाकर और जेल में डालकर आपने बहुत गलत काम किया है Arvind Kejriwal… मैं आपको निजी तौर पर कायदे का आदमी समझता था। अब ये मत कहिएगा कि दिल्‍ली पुलिस केंद्र के पास है, आपके पास नहीं।

अबे चिरकुट आपियों, खुद को अब मोदी-भाजपा से अलग कैसे कहोगे…

Yashwant Singh : चोरकट केजरी और सिसोदिया का असली रूप आया सामने.. दिल्ली में पानी के दाम में 10 परसेंट वृद्धि। अबे चिरकुट आपियों, मोदी-भाजपा से खुद को अलग अब कैसे कहोगे। सत्ता पाकर तुम लोग भी आम जन विरोधी हो गए! अरे करना ही था तो चोर अफसरों के यहाँ छापे मरवाकर उनकी संपत्ति जब्त कराते और उस पैसे को बिजली पानी में लगाते। जल बोर्ड के करप्ट अफसरों और पानी माफिया की ही घेराबंदी कर देते तो इनके यहाँ से हजार करोड़ निकल आता। पर अमेरिकी फोर्ड फाउंडेशन के धन पर करियर बनाने वाले इन दोनों नेताओं से अमेरिकी माडल के पूंजीवाद से इतर काम करने की उम्मीद नहीं की जा सकती।

चुनाव जीतने के बाद सामने आने लगी अहंकारी केजरीवाल की असलियत

Mukesh Kumar : अहंकारी कौन? केजरीवाल या प्रशांत-योगेंद्र?? मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद केजरीवाल ने कहा था कि राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव लड़ने का फ़ैसला अहंकार से प्रेरित था। फिर उन्होंने इस फ़ैसले को नकारते हुए इसके पैरोकारों को पीएसी से बाहर कर दिया। अब वे कह रहे हैं कि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपना विस्तार करेगी। सवाल उठता है कौन अहंकारी है? कहीं ये केजरीवाल का अहंकार तो नहीं बोल रहा था कि मेरे होते हुए फ़ैसला करने वाले तुम तुच्छ लोग कौन होते हो? फैसला करने का हक मेरा और मेरे चमचों का है, किसी और का नहीं इसलिए अब का फ़ैसला सही है और अहंकार रहित है। इस पाखंड पर बलिहारी जाने का मन करता है।

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योगेंद्र और प्रशांत को निपटाने के लिए जी-जान से जुटे केजरी कैंप के नेता

  • ‘आप’ के अंदरखाने एक दूसरे को नीचा दिखाने की जबरदस्त राजनीति चल रही है
  • सत्ता पाते ही आम आदमी पार्टी का चरित्र खास राजनीतिक पार्टियों जैसा हो गया है
  • योगेंद्र और प्रशांत को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर निकालने के लिए लामबंदी

आम आदमी पार्टी के अंदरखाने जबरदस्त खेल चल रहा है. केजरीवाल के इशारे पर उनके भक्त नेता गण प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार बैठे हैं और इसी रणनीति के तहत चालें चल रहे हैं. पूरे मामले को समझने के लिए आपको अंदर के खेल को समझना होगा. टीवी व अखबारों पर जो दिख रहा है, जो छप रहा है, वह बता रहा है कि सब कुछ ठीक रास्ते पर जा रहा है. लेकिन अंदर की कहानी कुछ अलग है. आइए एक एक कर मामले को समझते हैं.

‘आप’ की हरकतें कहीं से भी उसे देश की दूसरी पार्टियों से अलग नहीं करती है

नई दिल्ली। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और मीडिया स्टडीज ग्रुप (एमएसजी) ने मंगलवार को संयुक्त तौर पर “चर्चाः विकल्प की राजनीति का भविष्य” विषय पर एक कार्यक्रम का आय़ोजन किया। चर्चा का संचालन करते हुए मीडिया स्टडीज ग्रुप के अध्यक्ष अनिल चमड़िया ने कहा कि आम आदमी हमेशा अपनी राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए एक नए और मजबूत, सुदृढ़ विकल्प की तलाश करता रहा है। इसी लिहाज से आम आदमी बनाम आम आदमी पार्टी की राजनीति को देखा जाना चाहिए। लेकिन ‘आप’ में प्रशांत भूषण औऱ योगेंद्र यादव को लेकर जो कुछ हो रहा है वह निराशाजनक है।

केजरीवाल सरकार भी बांटने लगी रेवड़ियां, संसदीय सचिव बनाकार 21 MLA को मंत्री पद का दर्ज़ा दिया

Mukesh Kumar :  दिल्ली की केजरीवाल सरकार भी रेवड़ियां बाँटने लगी है। इक्कीस विधायकों को संसदीय सचिव बनाकार मंत्री पद का दर्ज़ा दे दिया गया है। इतने संसदीय सचिव देश के किसी भी राज्य में नहीं हैं। बहुत से राज्यों में तो ये हैं ही नहीं। लगता है किसी असंतोष को दबाने के लिए ऐसा किया गया है, क्योंकि दिल्ली जैसे आधे-अधूरे और छोटे से राज्य में तीन-चार संसदीय सचिवों से काम चल सकता था, इसके लिए इस पैमाने पर रिश्वत ब़ॉटने की ज़रूरत नहीं पड़ती।